भारत मे समस्यायों का अम्बार निगल रही हैं देश को.., - Study Search Point

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भारत मे समस्यायों का अम्बार निगल रही हैं देश को..,

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आज हमारे भारत देश मे समस्यायों का अम्बार लगा हुआ है। वर्षो की गुलामी ने हमारे दिल और दिमाग पर गहरा असर डाला है। भारत एक ओर तो जहां विकास की ऊंचाइयां छूने के लिए तैयार है, वहीं वह दूसरी ओर पतन की शुरुआत भी कर चुका है। व्यापार, राजनीति, समाज और धर्म के साइड इफेक्ट तो देखने को मिल ही रहे हैं लेकिन इससे कहीं ज्यादा खतरनाक हो रहे हैं हालात। संपूर्ण विश्व के भ्रष्ट और चालाक राजनीतिज्ञ भारत को निगलने की फिराक में बैठे हैं क्योंकि भारत के राजनीतिज्ञ औसत दर्जे की सोच रखते हैं। हम लगातार बढ़ती जनसंख्या, काबू से बाहर होती महंगाई, गरीबी के कारण भुखमरी, समाज में जहर की तरह फैल रहा भ्रष्टाचार और देश के युवाओं को हर हफ्ते होता सच्चा प्यार जैसी समस्याओ की बात नहीं करेंगे। भारत में 29 राज्य और 7 केंद्र शासित प्रदेश हैं। सभी प्रदेश किसी न किसी समस्या से जूझ रहे हैं। कोई आबादी के दबाव से तो कोई भुखमरी से जूझ रहा है। कोई आतंकवाद या नक्सलवाद की समस्या से ग्रस्त है तो कोई प्राकृतिक आपदाओं से परेशान है। कोई निरक्षरता और बेरोजगारी से लड़ रहा है तो कोई सामाजिक असमानता और सांप्रदायिकता का दंश झेल रहा है। हम इन सभी समस्याओं को छोड़ भी दें तो भारत में ऐसी 10 बुराइयां हैं, जो भारत को धीरे-धीरे निगल रही हैं।

नशे का व्यापार : शराब, स्मैक, अफीम, हेरोइन, तंबाकू, सिगरेट, भांग, चरस और गांजे का व्यापार भारत में कई वर्षों से जारी है। हालांकि पिछले कुछ वर्षों से सिगरेट, तंबाकू और शराब के व्यापार में अप्रत्याशित रूप से बढ़ोतरी हुई है। देश का युवा यदि नशे में डूब जाएगा तो फिर देश का भविष्य क्या होगा? भारत के सीमावर्ती राज्यों में ड्रग्स का व्यापार अपने चरम पर है। पंजाब, हरियाणा, उत्तरप्रदेश, बिहार, पूर्वोत्तर राज्य और पश्‍चिम बंगाल के लोगों को कमजोर किया जा रहा है।
सिगरेट का व्यापार : 20-30 साल पहले भारत में सिगरेट का डिब्बा कुछ रईसों की जेब में ही मिलता था लेकिन अब बच्चे-बच्चे की जेब में सिगरेट है। अब तो महिलाएं भी सिगरेट और शराब पीने लगी हैं। तंबाकू का गुटखा खाने वाले तो गाजरघास की तरह फैले हुए हैं। हर दो कदम पर पान की दुकानें हैं। 
भारतीय लड़कियां पी रहीं सिगरेट : भारत के कॉलेज में प्रोफेसरों को देखकर क्रिएटिव डिस्कशन में भाग लेते हुए और नारीवाद और नारी सशक्तीकरण जैसी बातें सुनने के बाद कई ल‌ड़कियों ने शराब, सिगरेट पीने जैसी गंदी लतों की आदत डाल ली है। अब स्त्री स्वतंत्रता का यही एकमात्र प्रतीक बचा है कि आप पुरुषों जैसी हो जाएं और हर वह काम करें, जो एक बुरा पुरुष करता है। कॉलेज में सिगरेट पीना स्कूल के मुकाबले ज्यादा आसान है। पेड़ के नीचे बैठकर आइडिया एक्सचेंज करते हैं तथा सिगरेट पीने की लत लड़कियों को कॉलेजों की विभिन्न सोसायटी बैठकों से भी लगती है, वहीं नारीवाद की बातें और नारी सशक्तीकरण की भावना भी इन दिनों सिगरेट पीने की आदत में इजाफा कर रही हैं।
7वें नंबर पर भारत : विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की नई रिपोर्ट बताती है कि चीन ने सिगरेट पीने के मामले में पूरी दुनिया को पीछे छोड़ दिया है। पूरी दुनिया में करीब 1 अरब स्मोकर्स हैं। WHO की रिपोर्ट बताती है कि चीन में स्मोकर्स की कुल संख्या अन्य सभी विकासशील देशों के स्मोकर्स की संख्या से भी ज्यादा है। अकेले साल 2014 में दुनिया में मौजूद 100 करोड़ स्मोकर्स ने कुल 5 लाख 60 हजार करोड़ सिगरेट पी डाली। आकड़ों के मुताबिक हर स्मोकर ने हर दिन करीब 15 से 16 सिगरेट पी हैं जिनमें 80 फीसदी से ज्यादा सिर्फ मिडिल और लोअर क्लास के लोग हैं।WHO ने भारत जैसे अन्य सारे विकासशील देशों को आगाह किया कि तेजी से बढ़ रहे स्मोकर्स की संख्या को रोकने का प्रयत्न नहीं किया तो हालत बहुत खराब हो सकती है। सिगरेट पीने के मामले में भारत दुनिया में 7वें नंबर पर है।
अंग्रेजी पर भारी देशी और कच्ची : कच्ची शराब पीने से मरने वालों की खबरें तो आए दिन आती ही रहती हैं। हालांकि सरकार ने शहरों में अब अंग्रेजी शराब की ‍दुकानें और देशी शराब के ठेके पहले की अपेक्षा कई गुना बढ़ा दिए हैं। आज से 15 साल पहले शराब की दुकानें शहरी आबादी से एक ओर हुआ करती थीं, लेकिन अब हर आधा किलोमीटर पर शराब की दुकानें खुल गई हैं। अधिकतर अपराध शराब के नशे में ही होते हैं, यह किसी को बताने की जरूरत नहीं। सभ्य जनता इन शराबियों से परेशान है। पुलिस में शिकायत करने का कोई मतलब नहीं क्योंकि पुलिस खुद शराबी है।शराब से सिर्फ राजस्व में बढ़ोतरी नहीं की जा रही, बल्कि खपत भी बढ़ाई जाती है। सरकार द्वारा शराबबंदी का दावा झूठा है। हालांकि केरल और गुजरात ने शराबबंदी कर रखी है, लेकिन इससे शराब बिक्री बंद नहीं होगी। यदि हम औसतन या अनुमान लगाएं तो 1 जिले में सालाना देशी शराब लगभग 15 लाख लीटर तक बिक जाती है। उसी तरह विदेशी शराब की बिक्री 5 लाख लीटर तक रहती है। भारत में लगभग 675 जिले हैं। अब आप अनुमान लगा सकते हैं कि शराब की कितनी खपत होती होगी। शराब से मर रहा है देश और सरकार को राजस्व की चिंता है। देश की लाश पर राजस्व इकट्ठा कर रही है सरकारें।
देह व्यापार : पूंजी के बाद स्त्री को समाज को संचालित करने वाली एक वस्तु माना गया है। जिस समाज की जितनी ज्यादा महिलाएं वेश्यालयों में होंगी वह उतना कमजोर होता जाएगा। यही कारण था कि गुलाम व्यवस्था या कहें कि मुगलकाल में वेश्यालयों की संख्या बढ़ गई थी। हजारों की तादाद में महिलाओं को वेश्यालयों के हवाले कर दिया जाता था। गुलाम व्यवस्था में उनके मालिक वेश्याएं पालते थे। अनेक गुलाम मालिकों ने वेश्यालय भी खोले। मुगलों के हरम में सैकड़ों औरतें रहती थीं। मुगलकाल के बाद जब अंग्रेजों ने भारत पर अधिकार किया तो इस धंधे का स्वरूप बदलने लगा। भारत को पूरी तरह से खत्म करने के कई उपाय किए गए। भारत के कई गांव और समाज इस व्यापार में सैकड़ों सालों से लगे हुए हैं। अब यह उनका पुश्तैनी धंधा बन गया है।

देह व्यापार का आधुनिक रूप : आधुनिक युग में देह व्यापार का तरीका और भी बदल गया है। पुराने वक्त के कोठों से निकलकर देह व्यापार का धंधा अब वेबसाइटों तक पहुंच गया है। यहां कॉलेज छात्राएं, मॉडल्स और टीवी व फिल्मों की नायिकाएं तक उपलब्ध कराने के दावे किए गए हैं। माना जाता है कि इस कारोबार में विदेशी लड़कियों के साथ मॉडल्स, कॉलेज गर्ल्स और बहुत जल्दी ऊंची छलांग लगाने की मध्यमवर्गीय महत्वाकांक्षी लड़कियों की संख्या भी बढ़ रही है।  अब दलालों की पहचान मुश्किल हो गई है। इनकी वेशभूषा, पहनावा व भाषा हाईप्रोफाइल है और उनका काम करने का ढंग पूरी तरह सुरक्षित है। ये न केवल विदेशों से कॉलगर्ल्स मंगाते हैं बल्कि बड़ी कंपनियों के मेहमानों के साथ कॉलगर्ल्स को विदेश की सैर भी कराते हैं। सेक्स एक बड़े कारोबार के रूप में परिवर्तित हो चुका है। इस कारोबार को चलाने के लिए बाकायदा ऑफिस खोले जा रहे हैं। इंटरनेट और मोबाइल पर आने वाली सूचनाओं के आधार पर कॉलगर्ल्स की बुकिंग होती है। 
हाईप्रोफाइल लोगों का धंधा : देह व्यापार परंपरागत समाज, मुंबई के रेड लाइट या कोलकाता के सोनागाछी से निकलकर अब यह हाईप्रोफाइल लोगों का धंधा बन गया है। अब देह व्यापार आलीशान होटलों और बंगलों में चल रहा है। एक सर्वे के अनुसार कॉलेज और यूनिवर्सिटी की लड़कियों को इसमें आसानी से मनोवैज्ञानिक रूप से फंसाया जाता है। भारत के कुछ राज्यों के कुछ क्षेत्रों में आज भी देह व्यापार भले ही एक छोटी आबादी के लिए रोजी-रोटी का जरिया बना हुआ है लेकिन पिछले कुछ महीनों में जिस देह व्यापार के हाईप्रोफाइल मामले सामने आए हैं उससे यह बात तो साफ हो गई है कि देह व्यापार अब केवल मजबूरी न होकर धनवान बनने का एक हाईप्रोफाइल धंधा बन गया है। नेता, अभिनेता और धर्माचार्य भी इस धंधे को चला रहे हैं। मनोरंजन के नाम पर चल रहे इस उद्योग में रेस्तरां और मसाज पार्लर के अलावा डांस बार, छोटे होटल और लॉज भी शामिल हैं। यह देश के लिए बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है।
महिलाओं की तस्करी : नेपाल और बांग्लादेश की महिलाएं तो अक्सर आसानी से तस्करों के हाथ लग जाती हैं, लेकिन अब भारत के कई गरीब क्षेत्रों की महिलाओं को भी इस धंधे में तेजी से और बड़ी संख्या में धकेला जा रहा है। देह के बढ़ते व्यापार के चलते अब मासूम लड़कियों को अगवा कर दूसरे देशों में बेच दिया जाता है। कई लड़के प्रेम के जाल में फंसाकर लड़कियों को देह व्यापार में धकेल देते हैं। इसके बदले उनको मोटी रकम मिल जाती है।
कम उम्र की लड़कियां : देह व्यापार में कम उम्र की लड़कियों की मांग पिछले कुछ सालों में तेजी से बढ़ी है। दरअसल, इस बढ़ोतरी के पीछे ये धारणा है कि किशोर उम्र की लड़कियों को से यौन संबंध बनाने से एचआईवी संक्रमण का खतरा कम रहता है। सुंदर आकर्षक व अत्यंत कम उम्र की युवतियों से दोस्ती कर अपना अकेलापन दूर करने का विज्ञापन देकर बोल्ड रिलेशन के माध्यम से लोगों को ठगने व उनसे देह व्यापार कराने वाले कई गिरोह इस देश में सक्रिय हैं। 
महिलाओं की तस्करी : सामाजिक संस्‍था दासरा की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 1 करोड़ 60 लाख महिलाएं देह व्यापार का शिकार हैं। भारत में महिलाओं की तस्करी तेजी से बढ़ी है जिसमें 80 फीसदी महिलाओं को देह व्यापार के लिए बेचा जाता है। नेशनल क्राइम ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक 2008 में मानव तस्करी के तमाम प्रावधानों में मात्र 3030 केस ही दर्ज किए गए थे। 2013 में इस आंकड़े में मामूली-सा फर्क आया। ये बढ़कर 3940 हो गया। भारत की दासरा, ‌ब्रिटेन की हमिंगबर्ड ट्रस्ट और जापान की कामोनोहाशी प्रोजेक्ट ने अपने अध्ययन में पाया कि भारत में ट्रेफिकिंग के जरिए देह व्यापार में उतारी गईं 40 फीसदी लड़कियां किशोर उम्र की हैं। 15 फीसदी लड़कियों की उम्र 15 साल से भी कम है। ग्लोबल मार्च अगेंस्ट चाइल्ड लेबर की एक रिपोर्ट के मुताबिक‌, देह व्यापार से मुक्त कराई गईं 60 फीसदी महिलाओं ने बताया कि उन्होंने नौकरी की तलाश में घर छोड़ा था लेकिन उन्हें वेश्यावृत्ति के दलदल में ढकेल दिया गया। 40 फीसदी ने बताया कि उन्हें शादी, प्यार और बेहतर जिंदगी का वादा करके या अपहरण करके इस धंधे में उतारा गया।

अनावश्यक दलाली : आजकल हर कहीं दलाल नजर आते हैं। जहां दलाल नहीं होना चाहिए वहां भी। इन दलालों के चलते देश में व्यवस्थाएं ठप हैं और लोगों में असंतोष फैला हुआ है। दलालों के कारण कई जगह असंवेदनशीलता की हदें पार हो गई हैं। दलालों के कारण ही देश में खाद्य वस्तुओं और प्रॉपर्टी के रेट आसमान पर हैं। लाखों प्रकार के दलाल आपको दिखाई दे जाएंगे। वायदा बाजार के दलाल, शेयर बाजार के दलाल और सरकारी विभागों के दलालों के बारे में तो सभी जानते हैं कि ये क्या करते हैं? स्कूल या कॉलेज में एडमिशन के लिए तो दलाल हैं ही लेकिन आजकल अस्पतालों में मरीजों की भर्ती को बढ़ाने के लिए भी दलाल हैं। हालांकि ये नजर नहीं आते फिर भी ये काम करते हैं। ये दलाल मरीजों को कन्वींस करते हैं कि फलां-फलां अस्पताल अच्छा है और बहुत कम में आपका काम हो जाएगा। ऐसे में किसी व्यक्ति की किडनी खराब नहीं हो तब भी डायलिसिस करवा दिया जाता है। ऑक्सीजन की जरूरत नहीं हो तब भी ऑक्सीजन लगाकर उसका अलग से चार्ज लिया जाता है। आखिर दलाल के पैसे जो निकालना है। अस्पताल के अहाते में स्थित मेडिकल की दुकान में दवाइयों के भाव और बाजार में मिलने वाली दवाइयों के भावों में भारी फर्क देखने को मिलता है। हां आप दलाओं के माध्यम से दवाइयां लेंगे तो आपको सस्ती मिल सकती है। कई अस्पताल दलालों के हवाले हैं। मरीजों को फांसकर दलालों के हवाले कर दिया जा रहा है। उनका आर्थिक शोषण किया जाता है। इस तंत्र में डॉक्टर, निजी सेंटर, दवा के दुकानदार, सुरक्षा गार्ड और कई कर्मचारी भी शामिल रहते हैं। कई दलाल तो सरकारी अस्पतालों में घुमते रहते हैं। वे मरीजों को प्राइवेट अस्पताल ले जाने के लिए दबाव बनाते हैं। दलाल के इस खेल में अस्पताल के कई कर्मचारी भी शामिल रहते हैं। ये दलाल सस्ते में जांच और इलाज का वादा करके मरीजों को ले उड़ते हैं और अंतत: मरीज उनके जाल में फंसकर खुद को लुटा देते हैं। दलाओं की महिमा अपरंपार है। यदि किसी ट्रक को जल्दी माल खाली करना हो तो दलाल से संपर्क करके फैक्ट्री में माल खाली करवा सकता है। यातायात विभाग के हाल तो आप जानते ही हैं। हालांकि आजकल लाइसेंस की प्रक्रिया ऑनलाइन होने लगी है फिर भी दलाली तो बनती है। दलाली कहां नहीं है?

ग्रह-नक्षत्रों का व्यापार : यहां उस ज्योतिष विद्या का कोई विरोध नहीं जिसका उल्लेख वेदों में मिलता है और जो एक खगोल विज्ञान है। जिसके दम पर मौसम का ज्ञान हासिल किया जाता है। हम जानते हैं कि ज्योतिष एक विज्ञान है, लेकिन वर्तमान में इसका जो प्रचलित रूप है इससे लोगों में भ्रम और वहम ही ज्यादा फैल रहा है। इस विद्या के माध्यम से लोग ठगे जा रहे हैं। आजकल तो महान ज्योतिषाचार्य लोगों से 10 हजार रुपए तक वसूलते हैं और अंतत: होता-जाता कुछ नहीं। ज्योतिष को धर्म से अलग करके देखने की जरूरत है। आजकल यह एक सामाजिक बुराई बन गई है। एक शहर में कम से कम हजार से ज्यादा एस्ट्रोलॉजर या टेरो कार्ड विशेषज्ञ होंगे, जो संपूर्ण शहर को आत्मविश्‍वास की कमी से ग्रसित करने में सक्षम हैं। तथाकथित ज्योतिषियों के कारण यह देश वहमपरस्तों और अंधविश्वासियों का देश बन गया है। ऐसे देश के लोगों से एकसाथ किसी विषय पर उठ खड़े होने की अपेक्षा नहीं की जा सकती है। ज्योतिष या ग्रह-नक्षत्रों को मानने वाला व्यक्ति ईश्वर या खुद पर कभी विश्‍वास या आस्था नहीं रखता। ऐसे देश में कभी क्रांतियां नहीं होतीं। ज्योतिष की विद्या धीरे-धीरे असल धर्म को खा जाती है। 

शिक्षा का व्यवसायीकरण : प्राचीन भारत में शिक्षा कैसी थी? मध्यकाल में किस तरह शिक्षा का धार्मिकीकरण किया गया और फिर अंग्रेज काल में किस तरह संस्कृत पाठशालाओं को बंद कर कॉन्वेंट स्कूल ‍शुरू कर शिक्षा का व्यवसायीकरण किया गया? उक्त सभी प्रश्नों पर चर्चा छोड़ दें तो आज की शिक्षा के दुष्‍परिणाम पर चर्चा करेंगे तो ज्यादा उचित होगा।
अराष्ट्रीय शिक्षा : कहते हैं कि जिस राष्ट्र में राष्ट्रीय शिक्षा का अभाव हो, वह राष्ट्र कभी शक्तिशाली, खुशहाल, सपन्न एवं सुरक्षित नहीं रहता, क्योंकि ऐसे राष्ट्र में इन सबका स्थान स्वार्थ ले लेता हैं। तब ऐसे में देश का हर संस्थान, संगठन और विभाग भ्रष्ट होकर अपने-अपने स्वार्थ में लगा रहता है। ऐसे राष्ट्र की स्थिति का विदेशी लोग फायदा उठाकर अपने विचार, भाषा, संस्कृति और प्रॉडक्ट को लादकर उस राष्ट्र को मानसिक तौर पर गुलाम बना लेते हैं। क्या भारत में यही हो रहा है। 
शिक्षक नहीं, सेठ के भरोसे शिक्षा : शिक्षा का व्यवसायीकरण एक चुनौतीभरा मुद्दा है। शिक्षा में आरक्षण उससे भी बड़ा मुद्दा है और फर्जी परीक्षा देकर डॉक्टर बन जाना उससे भी बड़ा मुद्दा है। आजकल नए भर्ती हुए डॉक्टरों को तो डॉक्टरी का ए, बी, सी, डी भी नहीं आता। व्यापमं घोटाला हमारे सामने सबसे ताजा उदाहरण है।1990 के बाद दुनिया में वैश्वीकरण की हवा चली जिसको एलपीजी (लिबरेलाइजेशन, प्राइवेटाइजेशन, ग्लोबलाइजेशन) भी कहा गया जिसका शिक्षा पर भी प्रभाव हुआ। सरकारें उच्च शिक्षा से अपना हाथ खींचने लगी। शुरू में व्यावसायिक महाविद्यालय सरकार द्वारा खुलना बंद हुआ जिसके परिणामस्वरूप स्ववित्तपोषित शैक्षिक संस्थान खुलने लगे। इसके कई प्रकार के स्वरूप बनने लगे। डीम्ड विश्वविद्यालय, स्वायत्त (ऑटोनॉमस) महाविद्यालय, निजी विश्वविद्यालय आदि। ये सब नाम अलग-अलग थे लेकिन उन सबका स्ववित्तपोषित संस्थान का स्वरूप था। जिस पर सरकार का किसी भी प्रकार का नियंत्रण नहीं था। देश में शिक्षा का स्तर यही है तभी तो देश, दुनिया से कई मामलों में पीछे है। अधिकतर वे लोग जो सफल हैं, उन्हें यह कहने में कोई गुरेज नहीं कि वे भारतीय शिक्षण संस्थाओं में पढ़कर सफल नहीं हुए। उनकी सफलता के पीछे और भी कई कारण हैं। कई छात्र आजकल विदेशी स्कूलों में पढ़ रहे हैं तो यह भी शिक्षा के व्यवसायीकरण का एक वृहद हिस्सा है। छात्र का जीवन शुरू हो, उससे पहले ही उसे लाखों के कर्ज से लाद दिया जाता है। आज शिक्षा केवल धनाढ्य परिवारों के बच्चों की बपौती बनकर रह गई है जिसके चलते इसके दुष्परिणाम भी सामने आने लगे हैं। आजकल की शिक्षा से क्या हासिल हो रहा है? क्या व्यक्ति नैतिक बन रहा है? समाज के प्रति जिम्मेदार बन रहा है और क्या वह किसी कार्य को करने में सक्षम बन रहा है? हम देश को किस ओर ले जाना चाहते हैं? क्या हम देश में अयोग्य लोगों की फौज खड़ी करना चाहते हैं जिस पर कोई भी शासन कर सकता है और जिसे किधर भी हांका जा सकता है। यही तो हो रहा है आजकल। भारतीय लोगों का आईक्यू क्या है? उनका बौद्धिक स्तर जांचने की जरूरत है।
शिक्षा का सांप्रदायिकरण : मदरसे तो पहले से ही चल ही रहे हैं और वे खुद को बदलना भी नहीं चाहते थे और न ही उनकी किसी गैरमुस्लिम को पढ़ाने में रुचि है। लेकिन क्रिश्चियन कम्युनिटी इस तरह नहीं सोचती, क्योंकि उनको तो संपूर्ण भारत को पश्‍चिमी सभ्यता में ढालना है। जब कॉन्वेंट का क्रेज समाप्त हुआ, तब देशभर में नए सिरे से क्रिश्‍चियनों ने स्कूल खोलना शुरू किए और आज देशभर में उनके सबसे ज्यादा स्कूल हैं। इसके एवज में हिन्दुओं ने भी सरस्वती शिक्षा केंद्र नाम से स्कूल शुरू किए। लेकिन इस सबका परिणाम क्या हुआ? हमने तीनों ही तरह के स्कूलों में किस तरह का भविष्य निर्माण किया? सचमुच हमने इन स्कूलों में दाखिला करके बच्चों की आत्मा को मार दिया है। भारत के भविष्य को अंधकार में धकेलने का कार्य किया किया है। संविधान की धारा 29, 30 के तहत अल्पसंख्यक समुदाय को अपने शैक्षिक संस्थान स्थापित करने का अधिकार दिया गया था। लेकिन इस धारा का इस प्रकार से दुरुपयोग होगा यह किसी ने सोच नहीं था। 
प्रांत, भाषा, जाति और सांप्रदाय की राजनीति : राजनीति पहले देशसेवा होती थी, फिर एक दौर ऐसा आया जबकि यह पेशा बन गई और अब यह अपराध में बदल गई है। यदि हम साक्षी महाराज, साध्वी प्राची, उद्धव ठाकरे, सुब्रह्मण्यम स्वामी, प्रवीण तोगड़िया, महंत आदित्यनाथ और असदुद्दीन ओवैसी बंधुओं की बात करें तो कहना होगा कि देश में कभी भी राष्ट्रीय राजनीति का विकास नहीं हो सकता।

जहां तक सांप्रदायिक राजनीति की बात करें तो यह भारत विभाजन से ही जारी है। विभाजन भी सांप्रदायिक आधार पर ही हुआ था। भारत की राजनीति की शुरुआत में ही सांप्रदायिकता के बीच बो दिए गए थे। आजकल राजनीति का दूसरा नाम विश्वासघात है। विश्वासघात जनता के साथ, देश के साथ और अपने धर्म के साथ। जिन पार्टियों को हम धर्मनिरपेक्ष पार्टी मानते हैं सबसे ज्यादा सांप्रदायिक राजनीति उन्होंने ही की है। इसके ढेर सारे प्रमाण और तर्क जुटाएं जा सकते हैं। कांग्रेस और कम्युनिष्ट पार्टी का इतिहास तो सबसे ज्यादा खराब रहा है। भाजपा ने भी अपनी शुरुआत में हिन्दुत्व का दामन थामा था लेकिन अब वे सबका साथ और सबका विकास की बातें करते हैं। हालांकि ये कितना सही है यह तो वे ही जानते होंगे। 
यदि हम प्रांतवादी राजनीति की बात करें तो इसका जोर महाराष्ट्र सहित दक्षिण भारत में ज्यादा देखने को मिलता है। हर प्रांत में क्षेत्रिय पार्टियां हैं लेकिन उनमें से कई किसी भाषा या प्रांत की राजनीति के आधार पर खड़ी नहीं हुई है। शिवसेना की बात करें तो वे पहले तमिलों को मुंबई बाहर करने की राजनीति करते थे फिर दौर बदला तो उन्होंने हिन्दुत्व को मुद्दा बनाया और फिर से जब दौर बदला तो उन्होंने मराठी माणुष के मुद्दे को सबसे आगे रखा। तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश और पूर्वोत्तर राज्य में भी प्रांतवादी राजनीति का जोर है। सवाय यह उठता है कि देश में राष्ट्रीय भावना का विकास कब होगा? प्रत्येक राजनीतिक पार्टी प्रांत, भाषा और संप्रदाय की राजनीति करती है। बहुजन समाज पार्टी का पहले नारा था तिलक तराजू और तलवार इनको मारो जुते जार। हालांकि अब उन्होंने इस नारे को छोड़ दिया है। अब वे ब्राह्मणों की राजनीति भी करती है। पिछले लोकसभा चुनाव में उनके फिर से सुर बदल गए अब वे मानते हैं कि दलितों और मुस्लिमों के वोट मिल जाए तो आसानी से सत्ता में फिर से आ सकते हैं।

लुटती धरती, सिसकते लोग : यदि हम आज के भारत का नक्शा बनाएं तो आपको दुख होगा क्योंकि यह तो हमारे भारत का नक्शा नहीं है जो आजादी के समय हमें मिला था। आजादी के बाद हजारों किलोमीटर के भारतीय भू-भाग पर चीन, पाकिस्तान और बांग्लादेश का कब्जा है, जिसे कभी भी भारत ने वापस लेने का कोई ठोस प्रयास नहीं किया। जब आजादी के बाद जो हमें मिला उसे ही सहेज के नहीं रख नाए तो अखंड भारत वाली तो कल्पना ही छोड़ दीजिए। ऐसा लगता है कि हम धीरे धीरे अपनी आजादी खो रहे हैं।
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खतरे में है भारत की सीमाएं : पड़ोसी मुल्क भारत को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से निगलते जा रहे हैं। इसके लिए वे बकायदा नकली नोट बनाते हैं, उग्रवादी तैयार करते हैं और तस्करों की फौज को सपोट करते हैं। तमाम तरह की घुसपैठ कराने में उनकी सेना हर संभव मदद भी करती है। बांग्लादेश के साथ यदि सीमा विवाद हल भी हो गया तो क्या हम 3 करोड़ से ज्यादा बांग्लादेशियों को भारत से बाहर निकालने में सक्षम हैं? लाखों बांग्लादेशी और पाकिस्तानी सीमावर्ती इलाकों में भूमि दबाए बैठे हैं। यही हाल अन्य पड़ोसी मुल्कों ने भी कर रखा है। खतरे में है भारत की सीमाएं लेकिन इसके प्रति राज्य और केंद्र दोनों ही सरकारें कुंभकर्ण की नींद में है। आज भी भारत-पाक सीमा विवाद, भारत-चीन सीमा विवाद और भारत-बांग्लादेश सीमा विवाद हमारे गले की हड्डी बना हुआ है। चीन के साथ 1962 का युद्ध, पाकिस्तान के साथ 1947, 1965 और 1971 का युद्ध और 1999 के कारगिल का युद्ध हमें गहरे दर्द दे गया है। भारत के 5 राज्यों पश्चिम बंगाल, मेघालय, मिजोरम, असम और त्रिपुरा की 4,095 किलोमीटर लंबी सीमा बांग्लादेश के साथ जुड़ी हुई है। बांग्लादेश ने सभी राज्यों में उग्रवाद फैलाने के लिए सैंकड़ों संगठनों का सपोट कर रखा है। इस्लामिक और कम्युनिष्ट संगठनों के बीच सांठगांठ के चलते यह सभी राज्य बुरी तरह से परेशान है। इस सबके बावजूद भारतीय नेतृत्व अपनी सीमाओं के प्रति सजग नहीं है और सीमाओं पर लगातार हो रही घुसपैठ ने सीमाओं पर खतरे को और बढ़ा दिया है। आजादी के बाद से भारत लगातार सीमाओं पर मार खाता रहा है। शहीदों की लिस्ट बढ़ती जा रही है और सरकार संसद में बहस करने में लगी है। पूरा देश बहस और बयान में उलझा है लेकिन कोई ठोस कार्रवाई नहीं होती।
अरुणाचल, सिक्किम, लेह-लद्दाख, कश्मीर और अक्साई चिन के एक बहुत बड़े भू-भाग पर चीन और पाकिस्तान का कब्जा है। सन 1950 में चीन ने तिब्बत पर कब्जा कर लिया। इसके बाद वर्ष 1959 में तिब्बत में हुए तिब्बती विद्रोह के बाद जब भारत ने दलाई लामा को शरण दी तो चीन भड़क गया और भारत-चीन सीमा पर हिंसक घटनाओं होना शुरू हो गई।
भारत-चीन युद्ध में 1383 भारतीय सैनिक मारे गए, जबकि 1047 घायल हुए। इसके अलावा 1700 सैनिक आज तक लापता हैं और 3968 सैनिकों को चीन ने गिरफ्तार कर लिया था। वहीं दूसरी ओर चीन के कुल 722 सैनिक मारे गए और 1697 घायल हुए। इस युद्ध में भारत की ओर से मात्र बारह हजार सैनिक चीन के 80 हजार सैनिकों से मुकाबला कर रहे थे। चीन जम्मू-कश्मीर के लद्दाख से अक्साई चिन तक तथा पूर्वोत्तर में अरुणाचल प्रदेश को वह अपना हिस्सा मानता है। लगभग स्वीटजरलैंड के बराबर वाले भाग अक्साई चिन के कुछ हिस्सों पर चीन ने अधिकार कर रखा है जबकि यह भारत का हिस्सा है। उसने 1957 में अक्साई चिन में निर्माण कार्य भी किया जिसका पता भारत को करीब एक साल बाद चीन का नक्शा देखकर चला। चीन ने काराकोरम पास के जरिए तिब्बत और जिनसियांग प्रांत को जोड़ने वाले एकमात्र माग पर भी कब्जा कर लिया है। 1963 में पाकिस्तान ने चीन को कश्मीर का 4000 किलोमीटर का हिस्सा सौंप दिया था, जिस पर चीन ने कराकोरम हाइवे बनाया था। अक्साई चिन नामक क्षेत्र जो पूर्व जम्मू एवं कश्मीर राज्य का भाग था, पाक अधिकृत कश्मीर में नहीं आता है। ये 1962 से चीनी नियंत्रण में है। जम्मू एवं कश्मीर को अक्साई चिन क्षेत्र से अलग करने वाली वास्तविक नियंत्रण रेखा कहलाती है- LAC...। पाक अधिकृत कश्मीर की सीमाएं पाकिस्तानी पंजाब एवं उत्तर पश्चिमी सीमांत प्रांत से पश्चिम में, उत्तर-पश्चिम में अफगानिस्तान के वाखान गलियारे से, चीन के जिन्जियांग उयघूर स्वायत्त क्षेत्र से उत्तर और भारतीय कश्मीर से पूर्व में लगती हैं। कश्मीर के उत्तरी इलाके पर पाकिस्तान का कब्जा है जिसे गिलगिट-बाल्टिस्तान का नाम दिया गया है। पाकिस्तान सरकार इस बात पर हमेशा अड़ी रही है कि 72,000 किलोमीटर का यह इलाका महाराजा हरि सिंह के राज्य जम्मू-कश्मीर का हिस्सा कभी नहीं था। पाकिस्तान 1935 की संधि का हवाला देते हुए कहता है कि महाराजा हरि सिंह ने इसे ब्रिटिश भारत को लीज पर 60 साल के लिए दिया था। लेकिन पाकिस्तान भूल जाता है कि माउंटबेटन ने इस संधि को आजादी से एक महीने पहले जुलाई 1947 में भंग कर दिया था और महाराजा हरि सिंह को गिलगिट सौंप दिया था। 
गिलगिट-बाल्टिस्तान (5,135 वर्ग मील) में लगभग 40 लाख लोग रहते हैं जिसमें पाकिस्तान के अन्य इलाकों से लाकर पाकिस्तानी लोग बसा दिए गए हैं। तथाकथित आजाद कश्मीर की राजधानी मुजफ्फराबाद है और इसमें 8 जिले, 19 तहसीलें और 182 संघीय काउंसिलें हैं।
कारगिल युद्ध : एलओसी पर लगातर घुसपैठ और राज्य तथा केंद्र शासन की उदासीनता के चलते भारत के भीतर द्रास-कारगिल की पहाड़ियों पर पाकिस्तानी सेना और मुजाहिदीन कब्जा करके बैठ गए थे। कश्मीर के कारगिल क्षेत्र में नियंत्रण रेखा के पार घुसपैठ करने की साजिश के पीछे तत्कालीन पाकिस्तानी सैन्य प्रमुख परवेज मुशर्रफ को जिम्मेदार माना जाता है। आमतौर पर कारगिल युद्ध को भी 1947-48 तथा 1965 में पाकिस्तानी सेना द्वारा कबाइलियों की मदद से कश्मीर पर कब्जा करने की कोशिशों के तहत देखा जाता है।

संकलन WEBDUNIA )

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