मुझ को शिकस्त-ए-दिल का मज़ा याद आ गया; तुम क्यों उदास हो गए क्या याद आ गया; कहने को ज़िन्दगी थी बहुत मुख्तसर मगर; कुछ यूँ बसर हुई कि खुदा याद आ गया।
जिस से चाहा था, बिखरने से बचा ले मुझको; कर गया तुन्द हवाओं के हवाले मुझ को; मैं वो बुत हूँ कि तेरी याद मुझे पूजती है; फिर भी डर है ये कहीं तोड़ न डाले मुझको।
वो सो जाते हैं अकसर हमें याद किए बगैर; हमें नींद नहीं आती उनसे बात किए बगैर; कसूर उनका नहीं कसूर तो हमारा ही है; क्योंकि उन्हें चाहा भी तो उनकी इज़ाज़त लिए बगैर। |
कदम कदम पे बहारों ने साथ छोड़ दिया; पड़ा जब वक़्त तब अपनों ने साथ छोड़ दिया; खायी थी कसम इन सितारों ने साथ देने की; सुबह होते देखा तो इन सितारों ने साथ छोड़ दिया।
|
तेरे पास आने को जी चाहता है; फिर से दर्द सहने को जी चाहता है; आज़मा चुके हैं अब ज़माने को हम; बस तुझे आज़माने को जी चाहता है।
सुकून मिल गया मुझको बदनाम होकर; आपके हर एक इल्ज़ाम पे यूँ बेजुबान होकर; लोग पढ़ ही लेंगें आपकी आँखों में मेरी मोहब्बत; चाहे कर दो इनकार यूँ ही अनजान होकर।
कोई चला गया दूर तो क्या करें; कोई मिटा गया सब निशान तो क्या करें; याद आती है अब भी उनकी हमें हद से ज्यादा; मगर वो याद ना करें तो क्या करें।
वक़्त बदलता है ज़िन्दगी के साथ; ज़िन्दगी बदलती है वक़्त के साथ; वक़्त नहीं बदलता अपनों के साथ; बस अपने बदल जाते हैं वक़्त के साथ। |
जहाँ दरिया कहीं अपने किनारे छोड़ देता है; कोई उठता है और तूफाँ का रुख मोड़ देता है; मुझे बे-दस्त-ओ-पा कर के भी खौफ उसका नहीं जाता; कहीं भी हादसा गुज़रे वो मुझसे जोड़ देता है।
कभी उसने भी हमें चाहत का पैगाम लिखा था; सब कुछ उसने अपना हमारे नाम लिखा था; सुना है आज उनको हमारे जिक्र से भी नफ़रत है; जिसने कभी अपने दिल पर हमारा नाम लिखा था। |
|
|
रास्ते में पत्थरों की कमी नहीं है; मन में टूटे सपनो की कमी नहीं है; चाहत है उनको अपना बनाने की मगर; मगर उनके पास अपनों की कमी नहीं है।
|
मेरा इल्ज़ाम है तुझ पर कि तू बेवफा था; दोष तो तेरा था मगर तू हमेशा ही खफा था; ज़िन्दगी की इस किताब में बयान है तेरी मेरी कहानी; यादों से सराबोर उसका एक एक सफा था।
ज़ख़्म देने की आदत नहीं हमको; हम तो आज भी वो एहसास रखते हैं; बदले बदले से तो आप हैं जनाब; जो हमारे अलावा सबको याद रखते हैं। |
|
|
|
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें