हिन्दी शायरी ( ज़िन्दगी अपनी तेरी चाहत में संवार लूँ - अपनी मोहब्बत बना के देख ) - Study Search Point

निरंतर कर्म और प्रयास ही सफलता की कुंजी हैं।

हिन्दी शायरी ( ज़िन्दगी अपनी तेरी चाहत में संवार लूँ - अपनी मोहब्बत बना के देख )

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अपनी ज़िन्दगी में मुझ को करीब समझना;
कोई ग़म आये तो उस ग़म में भी शरीक समझना;
दे देंगे मुस्कुराहट आँसुओं के बदले;
मगर हज़ारों में मुझे थोड़ा अज़ीज़ समझना।




वो कभी मिल जाएं तो क्या कीजिये;
रात दिन सूरत को देखा कीजिये;
चाँदनी रातों में एक एक फूल को;
बेखुदी कहती है सज़दा कीजिये।

कुछ मतलब के लिए ढूँढते हैं मुझको;
बिन मतलब जो आए तो क्या बात है;
कत्ल कर के तो सब ले जाएँगे दिल मेरा;
कोई बातों से ले जाए तो क्या बात है।




अपनी ज़िन्दगी का अलग उसूल है;
प्यार की खातिर तो काँटे भी कबूल हैं;
हँस के चल दूँ काँच के टुकड़ों पर;
अगर तू कह दे ये मेरे बिछाये हुए फूल हैं।




ज़रा साहिल पे आकर वो थोड़ा मुस्कुरा देती;
भंवर घबरा के खुद मुझ को किनारे पर लगा देता;
वो ना आती मगर इतना तो कह देती मैं आँऊगी;
सितारे, चाँद सारा आसमान राह में बिछा देता।


जब कोई ख्याल दिल से टकराता है;
दिल ना चाह कर भी खामोश रह जाता है;
कोई सब कुछ कह कर प्यार जताता है;
तो कोई कुछ ना कह कर प्यार निभाता है।



वो चांदनी का बदन ख़ुशबुओं का साया है;
बहुत अज़ीज़ हमें है मगर पराया है;
उतर भी आओ कभी आसमाँ के ज़ीने से;
तुम्हें ख़ुदा ने हमारे लिये बनाया है।




तेरे हर ग़म को अपनी रूह में उतार लूँ;
ज़िन्दगी अपनी तेरी चाहत में संवार लूँ;
मुलाक़ात हो तुझसे कुछ इस तरह मेरी;
सारी उम्र बस एक मुलाक़ात में गुज़ार लूँ।




ना जाने कब वो हसीन रात होगी;
जब उनकी निगाहें हमारी निगाहों के साथ होंगी;
बैठे हैं हम उस रात के इंतज़ार में;
जब उनके होंठों की सुर्खियां हमारे होंठों के साथ होंगी।




हम उस से थोड़ी दूरी पर हमेशा रुक से जाते हैं;
न जाने उस से मिलने का इरादा कैसा लगता है;
मैं धीरे धीरे उन का दुश्मन-ए-जाँ बनता जाता हूँ;
वो आँखें कितनी क़ातिल हैं वो चेहरा कैसा लगता है।




मेरी चाहत को अपनी मोहब्बत बना के देख;
मेरी हँसी को अपने होंठो पे सज़ा के देख;
ये मोहब्बत तो हसीन तोहफा है एक;
कभी मोहब्बत को मोहब्बत की तरह निभा कर तो देख।

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