आज का चिंतन : नवम्बर, - Study Search Point

निरंतर कर्म और प्रयास ही सफलता की कुंजी हैं।

आज का चिंतन : नवम्बर,

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चिंतन (सूक्तियाँ) एक झलक : नवम्बर


  • जीवन को नियम के अधीन कर देना आलस्य पर विजय पाना और प्रमाद को सदा के लिए विदा कर देना है। ~ स्वामी अखंडानंद
  • जिज्ञासा बिना ज्ञान नहीं होता। दुख बिना सुख नहीं होता। ~ महात्मा गांधी
  • ईश्वर बड़े-बड़े साम्राज्यों से विमुख हो जाता है लेकिन छोटे-छोटे पुष्पों से कभी खिन्न नहीं होता। ~ रवींद्रनाथ टैगोर
  • जब शरीर में सात्विक रस रूपी मेघ बरसते हैं तब आयु रूपी नदी दिन-दिन बढ़ती जाती है। ~ संत ज्ञानेश्वर
  • मनुष्य की सबसे बड़ी महानता विपत्तियों को सह लेने में है। ~ अज्ञात
  • आलस्य में दरिद्रता का वास है। मगर जो आलस्य नहीं करता उसके परिश्रम में कमला बसती हैं। ~ संत तिरुवल्लुवर
  • आलस्य ही मनुष्य के शरीर में रहने वाला सबसे बड़ा शत्रु है। उद्यम के समान मनुष्य का कोई बंधु नहीं है जिसके करने से मनुष्य दुखी नहीं होता। ~ अज्ञात
  • आलस्य आपके लिए मृत्यु के समान है। केवल उद्योग ही आपके लिए जीवन है। ~ स्वामी रामतीर्थ
  • आलस्य वह राजरोग है जिसका रोगी कभी संभल नहीं पाता। ~ प्रेमचंद
  • आराम उनके प्रति विश्वासघात है जो इस संसार से चले गए हैं और जाते समय स्वतंत्रता का दीप प्रज्वलित रखने के लिए हमें दे गए हैं। यह उस ध्येय के प्रति विश्वासघात है जिसे हमने अपनाया है और जिसे प्राप्त करने की हमने प्रतिज्ञा की है। यह उन लाखों के प्रति विश्वासघात है जो कभी आराम नहीं करते। ~ जवाहरलाल नेहरू


  • समकालीन व्यक्ति गुण की अपेक्षा मनुष्य की प्रशंसा करते हैं, आने वाले समय में पीढ़ियां मनुष्य की अपेक्षा उसके गुणों का सम्मान किया करेंगी। ~ कोल्टन
  • गुण ग्राहकता और चापलूसी में अंतर है। गुण ग्राहकता सच्ची होती है और चापलूसी झूठी। गुणग्राहकता ह्रदय से निकलती है और चापलूसी दांतों से। एक नि:स्वार्थ होती है और दूसरी स्वार्थमय। एक की संसार में सर्वत्र प्रशंसा होती है और दूसरे की सर्वत्र निंदा। ~ डेल कारनेगी
  • आलोचना एक भयानक चिंगारी है- ऐसी चिंगारी, जो अहंकार रूपी बारूद के गोदाम में विस्फोट उत्पन्न कर सकती है और वह विस्फोट कभी-कभी मृत्यु को शीघ्र ले आता है। ~ डेल कारनेगी
  • जो मनुष्य दूसरे का उपकार करता है वह अपना भी उपकार न केवल परिणाम में अपितु उसी कर्म में करता है, क्योंकि अच्छा कर्म करने का भाव ही स्वयं उचित पुरस्कार है। ~ सेनेका
  • प्रसन्नता न हमारे अंदर है और न बाहर बल्कि यह ईश्वर के साथ हमारी एकता स्थापित करने वाला एक तत्व है। ~ पास्कल
  • गरीब वह नहीं है जिसके पास धन नहीं है बल्कि वह है जिसकी अभिलाषाएं बढ़ी हुई हैं। ~ डेनियल
  • जब तक तुममें दूसरों को व्यवस्था देने या दूसरों के अवगुण ढूंढने, दूसरों के दोष ही देखने की आदत मौजूद है, तब तक तुम्हारे लिए ईश्वर का साक्षात्कार करना कठिन है। ~ स्वामी रामतीर्थ
  • कभी - कभी आलोचना अपने मित्र को भी शत्रु के शिविर में भेज देती है। ~ अज्ञात
  • आशा अमर है, उसकी आराधना कभी निष्फल नहीं होती। ~ महात्मा गांधी
  • निरर्थक आशा से बंधा मानव अपना हृदय सुखा डालता है और आशा की कड़ी टूटते ही वह झट से विदा हो जाता है। ~ रवीन्द्र

  • किसी का सहारा लिए बिना कोई ऊंचे नहीं चढ़ सकता, अत: सबको किसी प्रधान आश्रय का सहारा लेना चाहिए। ~ वेदव्यास
  • अमीर जो गरीबों के समान नम्र हैं और गरीब जो कि अमीरों के समान उदार हैं, वही ईश्वर के प्रिय पात्र होते हैं। ~ शेख सादी
  • दूसरों में दोष न निकालना, दूसरों को उतना उन दोषों से नहीं बचाता जितना अपने को बचाता है। ~ स्वामी रामतीर्थ
  • स्वस्थ आलोचना मनुष्य को जीवन का सही मार्ग दिखाती है। जो व्यक्ति उससे परेशान होता है, उसे अपने बारे में गंभीरता से सोचना चाहिए। ~ महात्मा गांधी
  • आलोचना से परे कोई भी नहीं है। न साहूकार और न मज़दूर। आलोचना से हर कोई सबक ले सकता है। ~ गणेश शंकर विद्यार्थी
  • आलोचना और दूसरों की बुराइयां करने में बहुत फ़र्क़ है। आलोचना क़रीब लाती है और बुराई दूर करती है। ~ प्रेमचंद
  • कभी कभी आलोचना अपने मित्र को भी शत्रु के घर भेज देती है। ~ अज्ञात
  • आतंकवाद से लड़ना गोलकीपर के काम जैसा है। आप सैकड़ों शानदार बचाव कर लें लेकिन लोगों को सिर्फ वही शॉट याद रहता है, जो आपको छकाता हुआ गोल में जा पड़ा। ~ पॉल विल्किंसन
  • आतंकवाद किसी असंभव चीज़ को मांगने की कार्यनीति है, वह भी बंदूक की नोक पर। ~ क्रिस्टोफर हिचेंस
  • आतंकवाद का सबसे भयानक पहलू यह है कि अंतत: यह उन्हीं को नष्ट करता है, जो इस पर अमल करते हैं। इधर वे लोगों की ज़िंदगी की लौ बुझाने की कोशिश करते हैं, उधर उनके भीतर की रोशनी धीरे-धीरे लेकिन निश्चित रूप से मरती जाती है। ~ टेरी वेइट
  • किसी तथाकथित राजनीतिक उद्देश्य के लिए कोई जब निर्दोष लोगों की जान लेता है तो वह उद्देश्य ठीक उसी क्षण अनैतिक और अन्यायपूर्ण हो जाता है। ऐसे लोगों को किसी भी गंभीर चर्चा से तत्काल बाहर कर दिया जाना चाहिए। ~ रुडॉल्फ गिउलियानी

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