चिंतन (सूक्तियाँ) एक झलक : अक्टूबर
- ऐसे भी लोग हैं जो देते हैं जो देते हैं, लेकिन देने में कष्ट का अनुभव नहीं करते, न वे उल्लास की अभिलाषा करते हें और न पुण्य समझकर ही कुछ देते हैं। इन्हीं लोगों की हाथों द्वारा ईश्वर बोलता है। ~ खलील जिब्रान
- दुखकातर व्यक्तियों को दान देना ही सच्चा पुण्य है। ~ तुकाराम
- तम्हें जो दिया था वह तो तुम्हारा ही दिया दान था। जितना ही तुमने ग्रहण किया है, उतना ही मुझे ऋणी बनाया है। ~ रवींद्रनाथ ठाकुर
- अभयदान ही सर्वश्रेष्ठ दान है। ~ सूत्रकृतांग
- अनर्थ अवसर की ताक में रहते हैं। ~ कालिदास
- विपत्ति में पड़े हुए मनुष्यों का प्रिय करने वाले दुर्लभ होते हैं। ~ शूदक
- जब विनाश का समय आता है, जब जीवन पर संकट आता है, तब प्राणी पास के पड़े हुए जाल और फंदे को भी नहीं देखता। ~ जातक
- विपत्ति में प्रकृति बदल देना अच्छा है, पर अपने आश्रय के प्रतिकूल चेष्टा करना अच्छा नहीं। ~ अभिनंद
- विपत्ति में ही लोगों की असल परीक्षा होती है, समृद्धि में नहीं। ~ अज्ञात
- जिस देह से श्रम नहीं होता, पसीना नहीं निकलता, सौंदर्य उस देह को छोड़ देता है। ~ लक्ष्मीनारायण मिश्र
- संतुष्ट मन वाले के लिए सभी दिशाएं सुखमयी हैं। जैसे जूता पहने वाले के लिए कंकड़- कांटे आदि से दुख नहीं होता। ~ भागवत
- वासनाओं से अलग रहकर जो कर्म किया जाता है, वही सुकर्म है। ~ वृंदावनलाल वर्मा
- बड़ा काम करने के लिए बड़ा हृदय होना चाहिए। ~ हजारी प्रसाद द्विवेदी
- महान लोग खेल में भी ऐसा शब्द नहीं कहते, जिससे चैतन्यशील उपदेश न लें। ~ शेख सादी
- शिक्षित व्यक्ति यदि चरित्रहीन हो, तब क्या उसे विद्वान कहेंगे? कभी नहीं। ~ सुभाषचंद बोस
- सीखे गए को भूल जाने पर जो कुछ बच रहता है, वही शिक्षा है। ~ स्किनर
- अनुभव तर्कातीत है। श्रद्धा अनुभव के आधार पर रहनेवाली, पर उससे भी परे की वस्तु है। ~ विनोबा
- मनुष्य जैसा नित्य यत्न करता है, जिसमें तन्मय होकर जैसी भावना करता है और जैसा होना चाहता है, वैसा ही हो जाता है, अन्य प्रकार का नहीं। ~ योगवशिष्ठ
- सज्जनों की यह कोई बड़ी कठोर चित्तता है कि वे उपकार करके, प्रत्युपकार के भय से बहुत दूर हट जाते हैं। ~ अज्ञात
- अपने अहंकार पर विजय पाना ही प्रभु की सेवा है। ~ गांधी
- प्रेम करने वाला पड़ोसी दूर रहने वाले भाई से कहीं उत्तम है। ~ चाणक्य
- प्राप्त हुए धन का उपयोग करने में दो भूलें हुआ करती हैं, जिन्हें ध्यान में रखना चाहिए। अपात्र को धन देना और सुपात्र को धन न देना। ~ वेद व्यास
- वैरी भी अद्भुत कार्य करने पर प्रशंसा के पात्र बन जाते हैं। ~ सोमेश्वर
- युवक नियमों को जानता है, परंतु वृद्ध मनुष्य अपवादों को जानता है। ~ ओलिवर वेंडेल होल्म्स
- जो अत्याचारी के प्रति विद्रोह करता है, उसका साथ सब देना चाहते हैं। ~ माखनलाल चतुर्वेदी
- अत्याचार जब निरंकुश होकर नग्न तांडव करने लगता है, तब बलिवेदी पर चढ़ने को तैयार होने के सिवा और कोई भी उपाय नहीं रह जाता। ~ हिंदू पंच
- अनाचार और अत्याचार सिर झुकाकर वे ही सहन करते हैं जिनमें नैतिकता और चरित्र का अभाव हुआ करता है। ~ एक कहावत
- अन्यायी और अत्याचारी की करतूतें मनुष्यता के नाम खुली चुनौती हैं जिसे वीर पुरुषों को स्वीकार करना ही चाहिए। ~ श्रीराम शर्मा आचार्य
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें