चिंतन (सूक्तियाँ) एक झलक : दिसम्बर
- सबसे पहले आत्मविश्वास करना सीखो। आत्मविश्वास सरीखा दूसरा कोई मित्र नहीं। आत्मविश्वास ही भावी उन्नति की सीढ़ी है। ~ स्वामी विवेकानंद
- राज्य का अस्तित्व अच्छे जीवन के लिए होता है, केवल जीवन के लिए नहीं। ~ अरस्तू
- धर्म का पालन धैर्य से होता है। ~ महात्मा गांधी
- मन की दशा ठीक कर लोगे तो अपनी दशा स्वयं ठीक हो जाएगी। ~ सुधांशु जी महाराज
- बुरे विचार ही हमारी सुख-शांति के दुश्मन हैं। ~ स्वेट मॉर्डन
- आत्मविश्वास बढ़ाने का तरीका यह है कि तुम वह काम करो जिसे तुम करते हुए डरते हो। इस प्रकार ज्यों-ज्यों तुम्हें सफलता मिलती जाएगी तुम्हारा आत्मविश्वास बढ़ता जाएगा। ~ डेल कारनेगी
- जो मनुष्य आत्मविश्वास से सुरक्षित है वह उन चिंताओं और आशंकाओं से मुक्त रहता है जिनसे दूसरे आदमी दबे रहते हैं। ~ स्वेट मार्डेन
- आत्मविश्वास, आत्मज्ञान और आत्मसंयम-केवल यही तीन जीवन को परमसंपन्न बना देते हैं। ~ टेनीसन
- जिस प्रकार दूसरों के अधिकार की प्रतिष्ठा करना मनुष्य का कर्त्तव्य है, उसी प्रकार अपने आत्मसम्मान की हिफाजत करना भी उसका फर्ज है। ~ स्पेंसर
- केवल वही जीवन में उन्नति करता है, जिसका हृदय कोमल और मस्तिष्क तेज होता है और जिसके मन को शांति मिलती है। ~ रस्किन
- जो मनुष्य दूसरे का उपकार करता है वह अपना भी उपकार न केवल परिणाम में बल्कि उसी कर्म में करता है क्योंकि अच्छा कर्म करने का भाव अपने आप में उचित पुरस्कार है। ~ सेनेका
- शत्रु को उपहार देने योग्य सर्वोत्तम वस्तु है- क्षमा, विरोधी को सहनशीलता, मित्र को अपना हृदय, शिशु को उत्तम दृष्टांत, पिता को आदर और माता को ऐसा आचरण जिससे वह तुम पर गर्व करे, अपने को प्रतिष्ठा और सभी मनुष्य को उपकार। ~ वालफोर
- हर सुधार का कुछ न कुछ विरोध अनिवार्य है। परंतु विरोध और आंदोलन, एक सीमा तक, समाज में स्वास्थ्य के लक्षण होते हैं। ~ महात्मा गांधी
- जो मनुष्य न किसी से द्वेष करता है, और न किसी चीज़ की अपेक्षा करता है, वह सदा ही सन्न्यासी समझने के योग्य है। ~ वेदव्यास
- सच्ची संस्कृति मस्तिष्क, हृदय और हाथ का अनुशासन है। ~ शिवानंद
- सच हज़ार ढंग से कहा जा सकता है, फिर भी उसका हर ढंग सच हो सकता है। ~ विवेकानंद
- आप सभी मनुष्यों को बराबर नहीं कर सकते, लेकिन हम सबको कम से कम समान अवसर तो दे सकते हैं। ~ जवाहरलाल नेहरू
- जिसने विद्या पढ़ी और आचरण नहीं किया वह उसके समान है जिसने बैल जोता है और बीज नहीं बिखेरा। ~ शेख सादी
- आपदा ही एक ऐसी वस्तु है, जो हमें अपने जीवन को गहराइयों में अंतर्दृष्टि प्रदान करती है। ~ विवेकानंद
- मनुष्य जिस बात के सत्य होने को वरीयता देता है, उसी में विश्वास को भी वरीयता देता है। ~ बेकन
- यदि दूसरों से अपने प्रतिकूल नहीं चाहते हो तो अपने मन को दूसरों के प्रतिकूल कामों से हटा लो। ~ अज्ञात
- परोपकार संतों का स्वभाव होता है। वे वृक्ष के समान होते हैं जो अपने पत्तों, फूल-फल, छाल, जड़ और छाया से सबका उपकार करते हैं। ~ एकनाथ
- संत संचय नहीं करता। प्रत्येक वस्तु को दूसरे की वस्तु समझते हुए दूसरों को देते हुए भी उसके स्वयं के पास उसका आधिक्य है। ~ लाओ-त्से
- जो आघात सहन करता है, वहीं संत है। ~ तुकाराम
- महात्माओं का क्रोध क्षण में ही शांत हो जाता है। पापी जन ही ऐसे हैं, जिसका कोप कल्पों तक भी दूर नहीं होता। ~ देवीभागवत
- आचरण के अभाव में ज्ञान नष्ट हो जाता है। ~ अज्ञात
- मनुष्य दूसरे के जिस कर्म की निंदा करे उसको स्वयं भी न करे। जो दूसरे की निंदा करता है किंतु स्वयं उसी निंद्य कर्म में लगा रहता है, वह उपहास का पात्र होता है। ~ वेदव्यास
- तुमने निंदायुक्त वचनों को उत्तम मानकर जो यहां कहा है उनसे कोई कार्य तो सिद्ध हुआ नहीं, केवल तुम्हारे स्वरूप का स्पष्टीकरण हो गया है। ~ कालिदास
- पूर्णतया निंदित या पूर्णतया प्रशंसित पुरुष न था, न होगा, न आजकल है। ~ धम्मपद
- जो अपने मत की प्रशंसा, दूसरों के मत की निंदा करने में ही अपना पांडित्य दिखाते हैं, वे एकांतवादी संसार-चक्र में ही भटकते रहते हैं। ~ सूत्रकृतांग
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें