चिन्तन (सूक्तियाँ) एक झलक : जुलाई
- अगर तुम्हारे एक शब्द से भी किसी को पीड़ा पहुंचती है, तो तुम अपनी सब नेकी नष्ट हुई समझो। ~ तिरुवल्लुवर
- कोई व्यक्ति सच्चाई, ईमानदारी तथा लोेक-हितकारिता के राजपथ पर दृढ़तापूर्वक रहे तो उसे कोई भी बुराई क्षति नहीं पहुंचा सकती। ~ हरिभाऊ उपाध्याय
- जिसमें दया नहीं है, वह तो जीते जी ही मुर्दे के समान है। दूसरे का भला करने से ही अपना भला होता है। ~ अज्ञात
- अगर सिर्फ तजुर्बों से ही अक्लमंद हो जाता तो लंदन के अजायब घर के पत्थर इतने वर्षों बाद संसार के बड़े से बड़े बुद्धिमानों से ज्यादा बुद्धिमान होते। ~ बर्नाड शॉ
- बुद्धिमान विवेक से, साधारण मनुष्य अनुभव से, अज्ञानी आवश्यकता से और पशु स्वभाव से सीखते हैं। ~ सिसरो
- बुद्धिमान की बुद्धि आइने के समान है। वह स्वर्ग का प्रकाश लेकर उसे दूसरों को दे देती है। ~ हेयर
- बुद्धिमान मनुष्य का एक दिन मूर्ख के जीवन भर के बराबर होता है। ~ एक कहावत
- बेवकूफ को उससे बड़ा बेवकूफ उसकी प्रशंसा करने वाला मिल जाता है। ~ वाइलो
- शिक्षित मूर्ख, अशिक्षित की अपेक्षा अधिक बेवकूफ होता है। ~ मौलियर
- जो अपने को बुद्धिमान समझता है वह सबसे बड़ा बेवकूफ है। ~ वाल्टेयर
- अधिक धन-संपन्न होने पर भी जो असंतुष्ट रहता है, वह सदा निर्धन है। धन से रहित होने पर भी जो संतुष्ट है, वह सदा धनी है। ~ अश्वघोष
- जो जिसके हृदय में स्थित है, वह दूर होते हुए भी उसके समीप है, हृदय से निकला हुआ व्यक्ति समीप होने पर भी दूर ही है। ~ शौनकीयनीतिसार
- समृद्धि शक्ति भर दुर्गुणों को और विपत्ति शक्ति भर गुणों को खोज निकालती है। ~ बेकन
- महासागर पत्थर फेंकने से चंचल नहीं होता। जो साधक खिन्न हो जाए वह अभी थोड़े पानी में है। ~ शेख सादी
- अविचारशील मनुष्य दुख को प्राप्त होते हैं। ~ ऋग्वेद
- आत्म-विजय अनेक आत्मोत्सर्गों से भी श्रेष्ठतर है। ~ स्वामी रामतीर्थ
- अनाथ बच्चों का हृदय उस चित्र की भांति होता है जिस पर एक बहुत ही साधारण परदा पड़ा हुआ हो। पवन का साधारण झकोरा भी उसे हटा देता है। ~ प्रेमचन्द्र
- यदि कुछ न हो तो प्रेमपूर्वक बोलकर ही अतिथि का सत्कार करना चाहिए। ~ हितोपदेश
- अपना केंद्र अपने से बाहर मत बनाओ, अन्यथा ठोकरें खाते रहोगे। ~ अज्ञात
- अति से अमृत भी विष बन जाता है। ~ लोकोक्ति
- अभावों में अभाव है- बुद्धि का अभाव। दूसरे अभावों को संसार अभाव नहीं मानता। ~ तिरुवल्लुवर
- अभिमान करना अज्ञानी का लक्षण है। ~ सूत्रकृतांग
- बिना जाने हठ पूर्वक कार्य करने वाला अभिमानी विनाश को प्राप्त होता है। ~ सोमदेव
- अचल निष्ठा ही महान कार्यो की जननी है। ~ विवेकानंद
- मनुष्य के मन में जब किसी व्यक्ति के प्रति श्रद्धा बढ़ती है तब उसी अनुपात में स्वार्थपरता घट जाती है। ~ सुभाषचंद
- स्वार्थपरता और प्रेम परस्पर विरोधी हैं। जहां स्वार्थपरता है, वहां प्रेम नहीं। ~ अश्विनीकुमार दत्त
- मनुष्य दूसरे के जिस कर्म की निंदा करे उसको स्वयं भी न करे। जो दूसरे की निंदा करता है किंतु स्वयं उसी निंद्य कर्म में लगा रहता है, वह उपहास का पात्र होता है। ~ वेदव्यास
- केवल शरर के मैल उतार देने से ही मनुष्य निर्मल नहीं हो जाता। मानसिक मैल का परित्याग करने पर ही वह भीतर से निर्मल बनता है। ~ स्कंदपुराण
- भक्ति और प्रेम से मनुष्य नि:स्वार्थी बन सकता है। मनुष्य के मन में जब किसी व्यक्ति के प्रति श्रद्धा बढ़ती है तब उसी अनुपात में स्वार्थपरता घट जाती है। ~ सुभाषचंद बसु
- जितना दिखाते हो जिनके भीतर आचरण की दृढ़ता रहती है, वे ही विचार में निर्भीक और स्पष्ट हुआ करते हैं। ~ हजारीप्रसाद द्विवेदी
- जंग लग कर नष्ट होने की अपेक्षा जीर्ण होकर नष्ट होना अधिक अच्छा है। ~ बिशप रिचर्ड कंबरलैंड
- परिश्रमी धीर व्यक्ति को इस जगत में कोई वस्तु अप्राप्य नहीं है। ~ कन्हैयालाल मिश्र 'प्रभाकर'
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