चिन्तन (सूक्तियाँ) एक झलक : अगस्त
- प्रिय शब्द स्वयं कह कर दूसरों के शब्दों के प्रयोजन को हृदयंगम करना निर्मल स्वभाव वाले महान व्यक्तियों का सिद्धांत है। ~ तिरुवल्लुवर
- अहिंसा अच्छी चीज़ है इसमें कोई शक नहीं, लेकिन शत्रुहीन और बड़ी बात है। ~ विमल मित्र
- शत्रु की कृपा से मित्र का अत्याचार अधिक अच्छा है। ~ हाफिज
- उपकार मित्र होने का फल है तथा अपकार शत्रु होने का लक्षण। ~ अज्ञात
- नम्रता कठोरता से अधिक शक्तिशाली है, जल चट्टान से अधिक शक्तिशाली है, प्रेम बल से अधिक शक्तिशाली है। ~ हरमन हेस
- यदि मनुष्य रामनाम स्मरण करता है परंतु उसके आचरण सदोष हैं तो उसकी भक्ति, श्रवण व मनन वृथा हैं। ~ एकनाथ
- अपनी शांति के लिए तपस्या करना सबसे बड़ा स्वार्थ है। औरों की शांति के लिए अशांत होना ही सच्ची साधना है। ~ हजारीप्रसाद द्विवेदी
- पथिक को बहुत दूर नहीं चलना है। हां, उसके मार्ग में विघ्न बाधाएं अवश्य बहुत हैं। ~ शब्सतरी
- यह साढ़े तीन हाथ का छोटा सा शरीर रूपी मंदिर है। मूर्ख लोग इसमें प्रवेश नहीं कर सकते। इसी में निरंजन वास करता है। निर्मल होकर उसे खोजो। ~ मुनि रामसिंह
- अकेला साधक ब्रह्मा के समान होता है, दो देवता के समान हैं, तीन गांव के समान हैं, इससे अधिक तो केवल कोलाहल और भीड़ है। ~ थेर गाथा
- बीते हुए का शोक नहीं करते। आने वाले भविष्य की चिंता नहीं करते। जो है, उसी में निर्वाह करते हैं। इसी से साधकों का चेहरा खिला रहता है। ~ संयुत्तनिकाय
- बार-बार मोहग्रस्त होने वाला साधक न इस पार रहता है न उस पार। ~ आचारांग
- साधक को न कभी दीन होना चाहिए और न अभिमानी। ~ आचारांगचूर्णि
- जो साधक चरित्र के गुण से हीन है, वह बहुत से शास्त्र पढ़ लेने पर भी संसार-समुद्र में डूब जाता है। ~ आचार्य भद्रबाहु
- हाथी अपने पैरों से भार अनुभव करता है और चींटी अपने पैरों से। सब अपनी-अपनी समस्याओं से ग्रस्त रहते हैं। ~ हिंदी लोकोक्ति
- जो मनुष्य नाश होने वाले सब प्राणियों में सम भाव से रहने वाले अविनाशी परमेश्वर को देखता है, वही सत्य को देखता है। ~ वेदव्यास
- सफल मनुष्य वह है जो दूसरे लोगों द्वारा अपने पर फेंकी गई ईंटों से एक सुदृढ़ नींव डाल सकता है। ~ अज्ञात
- पृथ्वी पर ये तीनों व्यर्थ हैं- प्रतिभाशून्य की विद्या, कृपण का धन और डरपोक का बाहुबल। ~ बल्लाल
- समुद्रों में वृष्टि निरर्थक है, तृप्तों को भोजन देना वृथा है, धनाढ्यों को धन देना तथा दिन के समय दिए का जला लेना निरर्थक है। ~ चाणक्यनीति
- अपात्र को दिया गया दान व्यर्थ है। अज्ञानी के प्रति भलाई व्यर्थ है। गुणों को न समझने वाले के लिए गुण व्यर्थ है। कृतघ्न के लिए उदारता व्यर्थ है। ~ अज्ञात
- विपत्तियों से मूर्च्छित मनुष्य चुल्लू भर पानी से होश में आ जाता है। प्राणहीन मनुष्य पर हजारों घड़े पानी डालो, तो भी कुछ नहीं होता। ~ मुनि रामसिंह
- गुणी पुरुषों के संपर्क से छोटा व्यक्ति भी गुरुता प्राप्त कर लेता है। ~ क्षेमेंद्र
- सत्य की सरिता अपनी भूलों की वाहिकाओं से होकर बहती है। ~ रवींद्रनाथ ठाकुर
- कोई वाद जब विवाद का रूप धारण कर लेता है तो वह अपने लक्ष्य से दूर हो जाता है। ~ प्रेमचंद
- नम्रता कठोरता से अधिक शक्तिशाली है, जल चट्टान से अधिक शक्तिशाली है, प्रेम बल से अधिक शक्तिशाली है। ~ हरमन हेस
- शब्दों का अर्थ हमेशा स्पष्ट होता है जब तक कि हम जानबूझ कर उनको झूठा अर्थ न प्रदान करें। ~ तोलस्तोय
- मैं विश्वास का आदर करता हूं परंतु शंका ही है जो तुम्हें शिक्षा प्राप्त कराती है। ~ विलसन मिजनर
- सबसे प्रेम करो, कुछ पर विश्वास करो, अन्याय किसी के साथ मत करो। ~ शेक्सपियर
- कटा हुआ वृक्ष भी बढ़ता है। क्षीण हुआ चंद्रमा भी पुन: बढ़कर पूरा हो जाता है। इस बात को समझकर संत पुरुष विपत्ति में भी नहीं घबराते। ~ भर्तृहरि
- वाक्पटु, निरालस्य व निर्भीक व्यक्ति से विरोध करके उससे कोई नहीं जीत सकता। ~ तिरुवल्लुवर
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