गुजरात, भारत का अत्यंत महत्वपूर्ण राज्य है। कच्छ, सौराष्ट्र और गुजरात उसके प्रादेशिक सांस्कृतिक अंग हैं। इनकी लोक संस्कृति और साहित्य का अनुबन्ध राजस्थान, सिंध और पंजाब, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश के साथ है। विशाल सागर तट वाले इस राज्य में इतिहास युग के आरम्भ होने से पूर्व ही अनेक विदेशी जातियाँ थल और समुद्र मार्ग से आकर स्थायी रूप से बसी हुई हैं। इसके उपरांत गुजरात में अट्ठाइस आदिवासी जातियां हैं। जन-समाज के ऐसे वैविध्य के कारण इस प्रदेश को भाँति-भाँति की लोक संस्कृतियों का लाभ मिला है। गुजरात (Gujarat) पश्चिमी भारत में स्थित एक राज्य है। इसकी उत्तरी-पश्चिमी सीमा जो अन्तर्राष्ट्रीय सीमा भी है, पाकिस्तान से लगी है। प्राचीनता एवं ऐतिहासिकता की दृष्टि से गुजरात, भारत का अत्यंत महत्त्वपूर्ण राज्य है। इसकी उत्तरी-पश्चिमी सीमा पाकिस्तान से लगी है। गुजरात का क्षेत्रफल 1,96,024 वर्ग किलोमीटर है।
यहाँ मिले पुरातात्विक अवशेषों से प्राप्त जानकारी के अनुसार इस राज्य में मानव सभ्यता का विकास 5 हज़ार वर्ष पहले हो चुका था। कहा जाता है कि ई. पू. 2500 वर्ष पहले पंजाब से हड़प्पा वासियों ने कच्छ के रण पार कर नर्मदा की उपत्यका में मौजूदा गुजरात की नींव डाली थी। गुजरात ई.पू. तीसरी शताब्दी मेंमौर्य साम्राज्य में शामिल था। जूनागढ़ के अभिलेख से इस बात की पुष्टि होती है। पाँचवीं शताब्दी में हूणों के आक्रमण के बाद उत्तराखंड से गुर्जरों का इस क्षेत्र में आगमन हुआ। गुजरात पर चौथी-पाँचवीं शताब्दी के दौरान गुप्त वंश का शासन रहा। नौवीं शताब्दी में सोलंकी वंश का शासन रहा। 10 वीं शताब्दी में मूलराज सोलंकी ने आधुनिक गुजरात की स्थापना की।
गुजरात का इतिहास ईस्वी पूर्व लगभग 2,000 साल पुराना है। यह भी मान्यता है कि भगवान कृष्ण मथुरा छोड़कर सौराष्ट्र के पश्चिमी तट पर जा बसे थे, जो द्वारकाअर्थात 'प्रवेशद्वार' कहलाया। बाद के वर्षों में मौर्य, गुप्त, प्रतिहार तथा अन्य अनेक राजवंशों ने इस प्रदेश पर शासन किया। चालुक्य, सोलंकी राजाओं का शासन काल गुजरात के लिए प्रगति और समृद्धि का युग था। महमूद ग़ज़नवी की लूटपाट के बाद भी चालुक्य राजाओं ने यहाँ के लोगों की समृद्धि और भलाई का पूरा ध्यान रखा। इस गौरवपूर्ण काल के पश्चात गुजरात को मुसलमानों, मराठों और ब्रिटिश शासन के दौरान बुरे दिनों का सामना करना पड़ा। आज़ादी से पहले आज का गुजरात मुख्य रूप से दो भागों में विभाजित था-
गुजरात का इतिहास ईस्वी पूर्व लगभग 2,000 साल पुराना है। यह भी मान्यता है कि भगवान कृष्ण मथुरा छोड़कर सौराष्ट्र के पश्चिमी तट पर जा बसे थे, जो द्वारकाअर्थात 'प्रवेशद्वार' कहलाया। बाद के वर्षों में मौर्य, गुप्त, प्रतिहार तथा अन्य अनेक राजवंशों ने इस प्रदेश पर शासन किया। चालुक्य, सोलंकी राजाओं का शासन काल गुजरात के लिए प्रगति और समृद्धि का युग था। महमूद ग़ज़नवी की लूटपाट के बाद भी चालुक्य राजाओं ने यहाँ के लोगों की समृद्धि और भलाई का पूरा ध्यान रखा। इस गौरवपूर्ण काल के पश्चात गुजरात को मुसलमानों, मराठों और ब्रिटिश शासन के दौरान बुरे दिनों का सामना करना पड़ा। आज़ादी से पहले आज का गुजरात मुख्य रूप से दो भागों में विभाजित था-
- राज्यों के पुनर्गठन के कारण सौराष्ट्र के राज्यों और कच्छ के केंद्र शासित प्रदेश के साथ पूर्व ब्रिटिश गुजरात को मिलाकर द्विभाषी मुंबई राज्य का गठन हुआ। पहली मई, 1060 को वर्तमान गुजरात राज्य अस्तित्व में आया। गुजरात भारत के पश्चिमी तट पर स्थित है। इसके पश्चिम में अरब सागर, उत्तर में पाकिस्तान तथा उत्तर-पूर्वी सीमा पर राजस्थान, दक्षिण-पूर्वी सीमा पर मध्य प्रदेश और दक्षिण में महाराष्ट्र है।एक ब्रिटिश क्षेत्र और
- दूसरा देसी रियासतें। गुजरात राज्य का इतिहास सिन्धु घाटी सभ्यता के समकालीन है अर्थात इसका इतिहास लगभग 2000 ई. पू. पुराना है। हाल के पुरातात्विक उत्खनन (द्वारका में) से मिथक बने श्री कृष्ण की ऐतिहासिकता सिद्ध हो गयी है, जिसका समय 3000 ई. पू. से भी पुराना माना जाता है। गुजरात में सिन्धु घाटी सभ्यता का महत्त्वपूर्ण केन्द्र लोथल था, जो उस समय का एक महत्त्वपूर्ण बन्दरगाह था। सिंधु सभ्यता से संबंधित स्थल सुतकोतड़ा भी इसी प्रदेश में था। आधुनिक खुदाई से सिन्धु सभ्यता से संबंधित एक प्रमुख स्थल धौलावीरा प्रकाश में आया है जो इसी प्रदेश में था। गुजरात पर क्रमशः मौर्य, गुप्त, प्रतिहार तथा उनके परवर्ती राजवंशों ने शासन किया, किंतु गुजरात में प्रगति तथा समृद्धि चालुक्य (सोलंकी) राजाओं के समय में हुईं। इसलिए इस काल को गुजरात के इतिहास में स्वर्णिम काल कहा जाता है। गुप्त सेनापति भट्टारक द्वारा वल्लभी में पाँचवीं शताब्दी के अंतिम चरण में एक नये राजवंश की नींव रखी गई जिसे मैत्रक राजवंश के नाम से जाना जाता है। 475 ई. में मैत्रकों के सरदार भट्टारक की नियुक्ति वहाँ सेनापति के पद पर हुई थी। भट्टारक तथा उसके पुत्र दोनों ने अपने साथ सेनापति की पदवी का ही इस्तेमाल किया! भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में गुजरात के अनेक स्वतंत्रता सेनानियों ने योगदान दिया है जिसमें से प्रमुख हैं - कस्तूरबा गाँधी,महात्मा गाँधी, अश्विनी कुमार दत्त, सरदार पटेल, जीवराज मेहता, हंसा मेहता, गणेश वासुदेव मावलंकर, विट्ठलदास झवेरभाई पटेल, महादेव देसाई, मनीभाई देसाई आदि।
गुजरात को तीन भौगोलिक क्षेत्रों में बाँटा गया है जैसे -
- सौराष्ट्र प्रायद्वीप- जो मूलतः एक पहाड़ी क्षेत्र है, बीच-बीच में मध्यम ऊँचाई के पर्वत हैं।
- कच्छ- जो पूर्वोत्तर में उजाड़ और चट्टानी है। विख्यात कच्छ का रन इसी क्षेत्र में है।
- गुजरात का मैदान- जो कच्छ के रन और अरावली की पहाड़ियों से लेकर दमन गंगा तक फैली है।
गुजरात की सबसे ऊँची चोटी गिरिनार पहाड़ियों में स्थित गोरखनाथ की चोटी है, जो 1117 मीटर ऊँची है। गुजरात की जलवायु ऊष्ण प्रदेशीय और मानसूनी है। वर्षा की कमी के कारण इस प्रदेश में रेतीली और बलुई मिट्टी पायी जाती है। प्रदेश में पूर्व की ओर उत्तरी गुजरात में वर्षा की मात्र 50 सेमी तक होती है। इसके दक्षिण की ओर मध्य गुजरात में मिट्टी कुछ अधिक उपजाऊ है तथा जलवायु भी अपेक्षयता आर्द्र है। वर्षा 75 सेमी तक होती है। नर्मदा, ताप्ती, साबरमती, सरस्वती, माही, भादर, बनास, और विश्वामित्र इस प्रदेश की सुपरिचित नदियाँ हैं। 'सरदार सरोवर' दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा बांध है। नर्मदा नदी पर स्थित यह बाँध 800 मीटर ऊँचा है। नर्मदा नदी पर बनने वाले 30 बांधों में सरदार सरोवर और महेश्वर दो सबसे बड़ी बांध परियोजनाएं हैं, किन्तु इनका हर बार विरोध होता रहा है। इन परियोजनाओं का उद्देश्य गुजरात के सूखाग्रस्त इलाक़ों में पानी पहुंचाना और मध्य प्रदेश के लिए बिजली पैदा करना है। कर्क रेखा इस राज्य की उत्तरी सीमा से होकर गुजरती है, अतः यहाँ गर्मियों में खूब गर्मी तथा सर्दियों में खूब सर्दी पड़ती है। शहरीकरण की प्रक्रिया ने राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न कुछ स्वरूप धारण किए हैं। गुजरात अत्यधिक विषमता वाला राज्य है। इसके पश्चिमी तट और मुंबई (भूतपूर्व बंबई) के उत्तर में नम उर्वर चावल उत्पादक मैदानों से लेकर पश्चिमोत्तर में कच्छ के लगभग वर्षाविहीन लवणीय रेगिस्तान हैं। कच्छ ज़िला दक्षिण में कच्छ की खाड़ी तथा उत्तर व पूर्व में पाकिस्तान व मुख्य भारतीय भूमि से कच्छ के रण द्वारा विभाजित है, जिसका वर्णन लगभग 20,720 वर्ग किमी क्षेत्र में विस्तृत एक विशाल लवणीय दलदल के रूप में बेहतर तरीके से किया जा सकता है। वर्षा के मौसम में, चाहे कितनी भी कम वर्षा क्यों न हुई हो, रण में बाढ़ आ जाती है। और कच्छ एक द्वीप में परिवर्तित हो जाता है; शुष्क मौसम में यह आंधियों से भरा एक रेतीला नमकीन मैदान है। कच्छ के दक्षिण में काठियावाड़ (सौराष्ट्र) का एक बड़ा प्रायद्वीप है, जो कच्छ की खाड़ी और खंभात की खाड़ी के बीच में है। यह भी एक बंजर क्षेत्र है, जिसके समुद्र तट से ऊपर उठते हुए केंद्र में विरल झाड़ीदार वनों वाला निचला लहरदार पर्वतीय क्षेत्र है। यहाँ के प्रमुख नगर अपेक्षाकृत उर्वर क्षेत्र में स्थित हैं, जो पहले छोटे-छोटे राज्यों की राजधानी थे।
जलवायु संबंधी प्रतिकूल परिस्थियाँ, मृदा और जल की लवणता और चट्टानी इलाक़े ऐसी भौतिक समस्याएँ हैं, जिन्होंने गुजरात की कृषि गतिविधियों को अवरुद्ध किया। राज्य ज़्यादातर सिंचाई पर निर्भर है। भूजल की उपयोगी को बढ़ाने की आवश्यकता है, क्योंकि भूमिगत जल स्तर लगातार गिरता जा रहा है। यह आवश्यक है कि नर्मदा नहर प्रणाली का परिचालन सिंचाई के लिए हो। मुख्य खाद्य फ़सलों में ज्वार-बाजरा, चावल और गेहूँ शामिल हैं। गुजरात में नक़दी फ़सलों का उत्पादन महत्त्वपूर्ण है। गुजरात कपास, तंबाकू और मूँगफली का उत्पादन करने वाले देश का प्रमुख राज्य है तथा यह कपड़ा तेल और साबुन जैसे महत्त्वपूर्ण उद्योगों के लिएकच्चा माल उपलब्ध कराता है। दिसम्बर 2002 में राज्य में पंजीकृत चालू फैक्टरियों की संख्या 19,696 थी, जिनमें औसत 8.4 लाख दैनिक मज़दूरों को रोज़गार मिला हुआ था। लघु उद्योग क्षेत्र में सितम्बर 2003 तक राज्य में 2.83 लाख लघु औद्योगिक इकाइयों का पंजीकरण हो चुका था। दिसम्बर 2003 तक गुजरात औद्योगिक विकास निगम ने 241 औद्योगिक संपदाएं स्थापित की थीं। गुजरात पैट्रोलियम के उत्पादन में तीसरा बड़ा क्षेत्र है। यहाँ के मुख्य पेट्रोलियम उत्पादक क्षेत्र खम्भात की खाड़ी अंकलेश्वर, बड़ोदरा, मेहसाना तथा अहमदाबाद हैं। गुजरात राज्य का भारत में कपास और मूँगफली उत्पादन में प्रथम और तम्बाकू उत्पादन में द्वितीय स्थान है। हालांकि ज़्यादातर लोग कृषि में संलग्न हैं, पर यहाँ एक सुगठित और अपेक्षाकृत समद्ध वाणिज्यिक समुदाय भी है, जो व्यापार और वाणिज्य में तरक़्क़ी कर रहा है। व्यापार में संलग्न गुजराती लोग देश भर और विदेशों में भी फैले हुए हैं, भारत की औद्योगिक अर्थव्यवस्था में गुजरात का स्थान अग्रणी है। यह राज्य चूना-पत्थर, मैंगनीज़ जिप्सम, कैल्साइट और बॉक्साइट जैसी खनिज संपदा से समृद्ध है। यहाँ पर लिग्नाइट, क्वार्टज़ युक्त रेत, गोमेद (एगेट) और फ़ेल्सपार के भी भंडार हैं। असम के साथ गुजरात भी एक प्रमुख पेट्रोलियम उत्पादक राज्य है। सोडा ऐश और नमक के मामले में कुल राष्ट्रीय उत्पाद का सर्वाधिक हिस्सा यहीं से आता है। सीमेंट, वनस्पति तेल, रसायन और सूती वस्त्र के उद्योग महत्त्वपूर्ण हैं। औषधि उद्योग वडोदरा, अहमदाबाद और अतुल (वलसाड) में केंद्रित है, जो भारत के कुल उत्पादन के एक बड़े हिस्से का निर्माण करते हैं।
राज्य के औद्योगिक ढांचे में धीरे-धीरे विविधता आती जा रही है। यहाँ रसायन, पेट्रो-रसायन, उर्वरक, इंजीनियरिंग, इलेक्ट्रॉनिक्स आदि उद्योगों का विकास रहा है। 2004 के अंत में राज्य में पंजीकृत फैक्टरियों की संख्या 21,536 (अस्थाई) थी जिनमें औसतन 9.27 लाख दैनिक मज़दूरों को रोज़गार मिला हुआ था। मार्च, 2005 तक राज्य में 2.99 लाख लघु औद्योगिक इकाइयों का पंजीकरण हो चुका था। गुजरात औद्योगिक विकास निगम को ढांचागत सुविधाओं के साथ औद्योगिक संपदाओं के विकास की भूमिका सौंपी गई है।
गुजरात की अधिकांश लोक संस्कृति और लोकगीत हिन्दू धार्मिक साहित्य पुराण में वर्णित भगवान कृष्ण से जुड़ी किंवदंतियों से प्रतिबिंबित होती है। कृष्ण के सम्मान में किया जाने वाला रास नृत्य और रासलीला प्रसिद्ध लोकनृत्य "गरबा" के रूप में अब भी प्रचलित है। यह नृत्य देवी दुर्गा के नवरात्र पर्व में किया जाता है। एक लोक नाट्य भवई भी अभी अस्तित्व में है। गुजरात में शैववाद के साथ-साथ वैष्णववाद भी लंबे समय से फलता-फूलता रहा है, जिनसे भक्ति मत का उद्भव हुआ। गुजरात की संस्कृति में मुख्यत: शीशे का काम तथा 'गरबा' एवं 'रास' नृत्य पूरे भारत में प्रसिद्ध है। प्रदेश का सर्वप्रमुख लोक नृत्य गरबा तथा डांडिया है। गरबा नृत्य में स्त्रियाँ सिर पर छिद्रयुक्त पात्र लेकर नृत्य करती हैं, जिस के भीतर दीप जलता है। डांडिया में अक्सर पुरुष भाग लेते हैं परंतु कभी-कभी स्त्री-पुरुष दोनों मिलकर करते हैं। प्रदेश के रहन-सहन और पहनावे पर राजस्थान का काफ़ी प्रभाव देखा जा सकता है। प्रदेश का भवई लोकनाट्य काफ़ी लोकप्रिय है। स्थापत्य शिल्प की दृष्टि से प्रदेश काफ़ी समृद्ध है। इस दृष्टि से रुद्र महालय, सिद्धपुर, मातृमूर्ति पावागढ़, शिल्पगौरव गलतेश्वर, द्वारिकानाथ का मंदिर, शत्रुंजय पालीताना के जैन मंदिर, सीदी सैयद मस्जिद की जालियाँ, पाटन की काष्ठकला इत्यादि काफ़ी महत्त्वपूर्ण हैं। हिन्दी में जो स्थान सूरदास का है गुजराती में वही स्थान नरसी मेहता का है।
गुजरात की वास्तुकला शैली अपनी पूर्णता और अलंकारिकता के लिए विख्यात है, जो सोमनाथ, द्वारका, मोधेरा, थान, घुमली, गिरनार जैसे मंदिरों और स्मारकों में संरक्षित है। मुस्लिम शासन के दौरान एक अलग ही तरीक़े की भारतीय-इस्लामी शैली विकसित हुई। गुजरात अपनी कला व शिल्प की वस्तुओं के लिए भी प्रसिद्ध है। इनमें जामनगर की बांधनी (बंधाई और रंगाई की तकनीक), पाटन का उत्कृष्ट रेशमी वस्त्र पटोला, इदर के खिलौने, पालनपुर का इत्र कोनोदर का हस्तशिल्प का काम और अहमदाबाद व सूरत के लघु मंदिरों का काष्ठशिल्प तथा पौराणिक मूर्तियाँ शामिल हैं।
पर्यटन स्थल -
राज्य में द्वारका, सोमनाथ, पालीताना, पावागढ़, अंबाजी भद्रेश्वर, शामलाजी, तरंगा और गिरनार जैसे धार्मिक स्थलों के अलावा महात्मा गांधी की जन्मभूमि पोरबंदर तथा पुरातत्व और वास्तुकला की दृष्टि से उल्लेखनीय पाटन, सिद्धपुर, घुरनली, दभेई, बडनगर, मोधेरा, लोथल और अहमदाबाद जैसे स्थान भी हैं। अहमदपुर मांडवी, चारबाड़ उभारत और तीथल के सुंदर समुद्री तट, सतपुड़ा पर्वतीय स्थल, गिर वनों के शेरों का अभयारण्य और कच्छ में जंगली गधों का अभयारण्य भी पर्यटकों के आकर्षण का केद्र हैं। गुजरात का द्वारका शहर वह स्थान है जहाँ 5000 वर्ष पूर्व भगवान कृष्ण ने मथुरा छोड़ने के बाद द्वारका नगरी बसाई थी। जिस स्थान पर उनका निजी महल 'हरि गृह' था वहाँ आज प्रसिद्ध द्वारकाधीश मंदिर है। इसलिए कृष्ण भक्तों की दृष्टि में यह एक महान तीर्थ है। वैसे भी द्वारका नगरी आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित देश के चार धामों में से एक है। यही नहीं द्वारका नगरी पवित्र सप्तपुरियों में से एक है! श्री सोमनाथ ज्योतिर्लिंग गुजरात (सौराष्ट्र) के काठियावाड़ क्षेत्र के अन्तर्गत प्रभास में विराजमान हैं। इसी क्षेत्र में लीला पुरुषोत्तम भगवान श्रीकृष्णचन्द्र ने यदु वंश का संहार कराने के बाद अपनी नर लीला समाप्त कर ली थीं। ‘जरा’ नामक व्याध (शिकारी) ने अपने बाणों से उनके चरणों (पैर) को बींध डाला था। गिर वन राष्ट्रीय उद्यान और अभयारण्य, गुजरात राज्य, पश्चिम- मध्य भारत में स्थित है। जूनागढ़ नगर से 60 किलोमीटर दक्षिण-पश्चिम में शुष्क झाड़ीदार पर्वतीय क्षेत्र में स्थित इस उद्यान का क्षेत्रफल लगभग 1,295 वर्ग किलोमीटर है। यहाँ की वनस्पति में सागौन, साल और ढाक (ब्यूटिया फ्रोंडोसा) जैसे पर्णपाती वृक्षों सहित कांटेदार जंगल शामिल हैं।
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