भारत का 26वाँ राज्य : छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh)., - Study Search Point

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भारत का 26वाँ राज्य : छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh).,

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 भारत में दो क्षेत्र ऐसे हैं जिनका नाम विशेष कारणों से बदल गया - एक तो 'मगध' जो बौद्ध विहारों की अधिकता के कारण "बिहार" बन गया और दूसरा 'दक्षिण कौशल' जो छत्तीस गढ़ों को अपने में समाहित रखने के कारण "छत्तीसगढ़" बन गया। किन्तु ये दोनों ही क्षेत्र अत्यन्त प्राचीन काल से ही भारत को गौरवान्वित करते रहे हैं। "छत्तीसगढ़" तो वैदिक और पौराणिक काल से ही विभिन्न संस्कृतियों के विकास का केन्द्र रहा है। यहाँ के प्राचीन मन्दिर तथा उनके भग्नावशेष इंगित करते हैं कि यहाँ पर वैष्णवशैवशाक्तबौद्ध के साथ ही अनेकआर्य तथा अनार्य संस्कृतियों का विभिन्न कालों में प्रभाव रहा है। छत्तीसगढ़ (Chhattisgarhभारत का 26वाँ राज्य है'छत्तीसगढ़' पौराणिक काल से ही विभिन्न संस्कृतियों के विकास का केन्द्र रहा है। यहाँ के प्राचीन मन्दिर तथा उनकेभग्नावशेष बताते हैं कि यहाँ वैष्णवशैवशाक्त और बौद्ध के साथ ही साथ अनेक आर्य तथा अनार्य संस्कृतियों का समय-समय पर प्रभाव रहा है। छत्तीसगढ़ राज्य का गठन 1 नवंबर 2000 को हुआ था।
    
छत्तीसगढ़ पूर्व में दक्षिणी झारखण्ड और उड़ीसा से, पश्चिम में मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र से, उत्तर में उत्तर प्रदेश और पश्चिमी झारखण्ड और दक्षिण में आंध्र प्रदेश से घिरा है।
छत्तीसगढ़ के उत्तर में उत्तर प्रदेश और उत्तर-पश्चिम में मध्यप्रदेश का शहडोल संभाग, उत्तर-पूर्व में उड़ीसा और झारखंड, दक्षिण में आंध्र प्रदेश और पश्चिम में महाराष्ट्रराज्य स्थित हैं। यह प्रदेश ऊँची नीची पर्वत श्रेणियों से घिरा हुआ घने जंगलों वाला राज्य है। यहाँ सालसागौन, साजा और बीजा और बाँस के वृक्षों की अधिकता है। छत्तीसगढ़ क्षेत्र के बीच में महानदी और उसकी सहायक नदियाँ एक विशाल और उपजाऊ मैदान का निर्माण करती हैं, जो लगभग 80 कि.मी. चौड़ा और 322 कि.मी. लम्बा है। समुद्र सतह से यह मैदान करीब 300 मीटर ऊँचा है। इस मैदान के पश्चिम में महानदी तथा शिवनाथ का दोआब है। इस मैदानी क्षेत्र के भीतर हैं रायपुरदुर्ग और बिलासपुर जिले के दक्षिणी भाग। धान की भरपूर पैदावार के कारण इसे धान का कटोरा भी कहा जाता है। मैदानी क्षेत्र के उत्तर में है मैकल पर्वत शृंखला। सरगुजा की उच्चतम भूमि ईशान कोण में है। पूर्व में उड़ीसा की छोटी-बड़ी पहाड़ियाँ हैं और आग्नेय में सिहावा के पर्वत शृंग है। दक्षिण में बस्तर भी गिरि-मालाओं से भरा हुआ है। छत्तीसगढ़ के तीन प्राकृतिक खण्ड हैं : उत्तर में सतपुड़ा, मध्य में महानदी और उसकी सहायक नदियों का मैदानी क्षेत्र और दक्षिण में बस्तर का पठार। राज्य की प्रमुख नदियाँ हैं - महानदी,शिवनाथखारुन, अरपा, पैरी तथा इंद्रावती नदी
छत्तीसगढ़ प्राचीनकाल के दक्षिण कोशल का एक हिस्सा है और इसका इतिहास पौराणिक काल तक पीछे की ओर चला जाता है। पौराणिक काल का 'कोशल' प्रदेश, कालान्तर में 'उत्तर कोशल' और 'दक्षिण कोशल' नाम से दो भागों में विभक्त हो गया था इसी का 'दक्षिण कोशल' वर्तमान छत्तीसगढ़ कहलाता है। इस क्षेत्र के महानदी (जिसका नाम उस काल में 'चित्रोत्पला' था) का मत्स्य पुराणमहाभारत के भीष्म पर्व तथा ब्रह्म पुराण के भारतवर्ष वर्णन प्रकरण में उल्लेख है। वाल्मीकि रामायण में भी छत्तीसगढ़ के बीहड़ वनों तथा महानदी का स्पष्ट विवरण है। स्थित सिहावा पर्वत के आश्रम में निवास करने वाले श्रृंगी ऋषि ने ही अयोध्या में राजा दशरथ के यहाँ पुत्र्येष्टि यज्ञ करवाया था जिससे कि तीनों भाइयों सहित भगवान श्री राम का पृथ्वी पर अवतार हुआ। राम के काल में यहाँ के वनों में ऋषि-मुनि-तपस्वी आश्रम बना कर निवास करते थे और अपने वनवास की अवधि में राम यहाँ आये थे।
इतिहास में इसके प्राचीनतम उल्लेख सन 639 ई० में प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्मवेनसांग के यात्रा विवरण में मिलते हैं। उनकी यात्रा विवरण में लिखा है कि दक्षिण-कौसल की राजधानी सिरपुर थी। बौद्ध धर्म की महायान शाखा के संस्थापक बोधिसत्व नागार्जुन का आश्रम सिरपुर (श्रीपुर) में ही था। इस समय छत्तीसगढ़ पर सातवाहन वंश की एक शाखा का शासन था। महाकवि कालिदास का जन्म भी छत्तीसगढ़ में हुआ माना जाता है। प्राचीन काल में दक्षिण-कौसल के नाम से प्रसिद्ध इस प्रदेश में मौर्यों, सातवाहनों, वकाटकों, गुप्तों, राजर्षितुल्य कुल, शरभपुरीय वंशों, सोमवंशियों, नल वंशियों, कलचुरियों का शासन था। छत्तीसगढ़ में क्षेत्रीय राजवंशो का शासन भी कई जगहों पर मौजूद था। 
छत्तीसगढ़ साहित्यिक परम्परा के परिप्रेक्ष्य में अति समृद्ध प्रदेश है। इस जनपद का लेखन हिन्दी साहित्य के सुनहरे पृष्ठों को पुरातन समय से सजाता-संवारता रहा है। छत्तीसगढ़ी और अवधी दोनों का जन्म अर्धमागधी के गर्भ से आज से लगभग 1080 वर्ष पूर्व नवीं-दसवीं शताब्दी में हुआ था।"
भाषा साहित्य पर और साहित्य भाषा पर अवलंबित होते है। इसीलिये भाषा और साहित्य साथ-साथ पनपते है। परन्तु हम देखते है कि छत्तीसगढ़ी लिखित साहित्य के विकास अतीत में स्पष्ट रुप में नहीं हुई है। अनेक लेखकों का मत है कि इसका कारण यह है कि अतीत में यहाँ के लेखकों ने संस्कृत भाषा को लेखन का माध्यम बनाया और छत्तीसगढ़ी के प्रति ज़रा उदासीन रहे। इसीलिए छत्तीसगढ़ी भाषा में जो साहित्य रचा गया, वह करीब एक हज़ार साल से हुआ है।
अनेक साहित्य को ने इस एक हजार वर्ष को इस प्रकार विभाजित किया है :
  • छत्तीसगढ़ी गाथा युग - सन् 1000 से 1500 ई. तक
  • छत्तीसगढ़ी भक्ति युग - मध्य काल, सन् 1500 से 1900 ई. तक
  • छत्तीसगढ़ी आधुनिक युग - सन् 1900 से आज तक
यह विभाजन किसी प्रवृत्ति की सापेक्षिक अधिकता को देखकर किया गया है। एक और उल्लेखनीय बत यह है कि दूसरे आर्यभाषाओं के जैसे छत्तीसगढ़ी में भी मध्ययुग तक सिर्फ पद्यात्मक रचनाएँ हुई है।
अर्थव्यव्स्था -
छत्तीसगढ़ भारत के खनिज समृद्ध राज्यों में से एक है। यहाँ पर चूना- पत्थर, लौह अयस्क, तांबा, फ़ॉस्फेट, मैंगनीज़, बॉक्साइट, कोयला, एसबेस्टॅस और अभ्रक के उल्लेखनीय भंडार हैं। तांबे की सर्वाधिक मात्रा बिलासपुर ज़िले से प्राप्त होती है। छ्त्तीसगढ़ में लगभग 52.5 करोड़ टन का डोलोमाइट का भंडार है, जो पूरे देश के कुल भंडार का 24 प्रतिशत है। यहाँ बॉक्साइट का अनुमानित 7.3 करोड़ टन का समृद्ध भंडार है और टिन अयस्क का 2,700 करोड़ से भी ज़्यादा का उल्लेखनीय भंडार है। छत्तीसगढ़ में ही कोयले का 2,690.8 करोड़ टन का भंडार है। स्वर्ण भंडार लगभग 38,05,000 किलो क्षमता का है। यहाँ भारत का सर्वोत्तम लौह अयस्क मिलता है, जिसका 19.7 करोड़ टन का भंडार है। बैलाडीला, बस्तर, दुर्ग और जगदलपुर में लोहा मिलता है। बैलाडीला में सर्वाधिक लौह अयस्क निकाला जाता है। यहाँ से प्राप्त लौह अच्छी किस्म और उच्च कोटि का होता है। भिलाई में भारत के बड़े इस्पात संयंत्रों में से एक स्थित है। राज्य में 75 से भी ज़्यादा बड़े और मध्यम इस्पात उद्योग हैं, जो गर्म धातु, कच्चा लोहा, भुरभुरा लोहा (स्पंज आयरन), रेल-पटरियों, लोहे की सिल्लियों और पट्टीयों का उत्पादन करते हैं। 'भिलाई इस्पात संयत्र' की स्थापना सन् 1957 में की गई थी। यह देश एक बड़ा तथा महत्त्वपूर्ण इस्पात सयंत्र है। खनिज संपदा से ही छ्त्तीसगढ़ को सालाना 600 करोड़ रुपये से ज़्यादा का राजस्व प्राप्त होगा। आदिवासी कला काफी पुरानी है। प्रदेश की आधिकारिक भाषा हिन्दी है और लगभग संपूर्ण जनसंख्या उसका प्रयोग करती है। राज्य में 80 प्रतिशत आबादी कृषि और उससे जुडी गतिविधियों में लगी है। 137.9 लाख हेक्टेयर भौगोलिक क्षेत्र में से कुल कृषि क्षेत्र कुल क्षेत्र का लगभग 35 प्रतिशत है। खेती का प्रमुख मौसम ख़रीफ हैं। चावल यहाँ की मुख्य फ़सल है। राज्य में धान का सर्वाधिक भंडार मौजूद है, शायद यही मुख्य कारण है कि राज्य को 'धान का कटोरा' कहकर सम्मानित किया गया है। यहाँ प्रति हेक्टेयर 14 क्विंटल धान का उत्पादन होता है। राज्य की अन्य महत्त्वपूर्ण फ़सलें हैं- मक्कागेंहूँ कच्चा अनाज, मूँगफली और दलहन। कोरिया छत्तीसगढ़ राज्य के प्रमुख क्षेत्रों में से एक है, जहाँ पर मक्के की खेती सबसे ज़्यादा की जाती है। लगभग 3.03 लाख हेक्टेयर में बागवानी फ़सलें उगाई जाती हैं। छत्तीसगढ़ में 'इंदिरा गाँधी कृषि विश्वविद्यालय' प्रमुख कृषि कार्य के बारे में विस्तारपूर्वक शोध करता है। विश्वविद्यालय की स्थापना 20 जनवरी, सन् 1987 को की गई थी। यह कृषि विश्वविद्यालय कृषि शिक्षा प्रदान करता है। यह कृषि विश्वविद्यालय 9 महाविद्यालयों, 8 अनुसंधान केन्द्रों तथा 4 कृषि विज्ञान केन्द्रों के माध्यम से काम कर रहा है। इस विश्वविद्यालय का लक्ष्य है - 'कृषि शिक्षा अनुसंधान और प्रसार'
एक विस्तृत और लहरदार प्रदेश छ्त्तीसगढ़ में चावल और अनाज की खेती होती है। निम्नभूमि में चावल बहुतायत में होता है, जबकि उच्चभूमि में मक्का और मोटे अनाज की खेती होती है। क्षेत्र की महत्त्वपर्ण नक़दी फ़सलों में कपास और तिलहन शामिल हैं। बेसिन में आधुनिक कृषि तकनीकों का प्रचलन धीमी गति से हो रहा है। कृषि की दृष्टि से यह एक बेहद उपजाऊ क्षेत्र है। यह देश का 'धान का कटोरा' कहलाता है और 600 से ज़्यादा चावल मिलों को अनाज की आपूर्ति करता है। कुल क्षेत्र का आधे से कम क्षेत्र कृषि योग्य है, हालांकि स्थलाकृति, वर्षा और मिट्टी में विविधता के कारण इसका वितरण असमान है। यहाँ की कृषि की विशेषता कम उत्पादन और खेती की पारंपरिक विधियों का प्रयोग है। प्रदेश की आदिवासी जनसंख्या हिन्दी की एक उपभाषा छत्तीसगढ़ी बोलती है। छत्तीसगढ़ की संस्कृति में गीत एवं नृत्य का बहुत महत्व है। यहाँ के लोकगीतों में विविधता है। गीत आकार में अमूमन छोटे और गेय होते है एवं गीतों का प्राणतत्व है - भाव प्रवणता। छत्तीसगढ़ के प्रमुख और लोकप्रिय गीतों में से कुछ हैं: भोजलीपंडवानीजस गीतभरथरी लोकगाथाबाँस गीतगऊरा गऊरी गीतसुआ गीतदेवार गीतकरमा, ददरिया, डण्डा, फाग, चनौनी, राउत गीत और पंथी गीत। इनमें से सुआ, करमा, डण्डा व पंथी गीत नाच के साथ गाये जाते हैं। छत्तीसगढ़ मॆं कई जातियां और जनजातियां हैं। जनगणना 2011 के अनुसार छत्तीसगढ़ राज्य की कुल जनसंख्या में से 30.62 प्रतिशत (78.22 लाख) जनसंख्या अनुसूचित जनजातियों की है। गोंड, कंवर, उरांव, हल्बा, भतरा, सवरा आदि प्रमुख जनजातियॉ है। अबूझमाड़िया, कमार, बैगा, पहाड़ी कोरवा तथा बिरहोर राज्य के विशेष पिछड़ी जनजातियाँ है, इनके अतिरिक्त अन्य जनजाति समूह भी है, जिनकी जनसंख्या अपेक्षाकृत कम है। छत्तीसगढ़ में आग्नेय, कायांतरित और तलछटी क्षेत्रों में अनेक प्रकार के खनिज पाए जाते हैं। कोयला, कच्चा लोहा, चूना पत्थरबॉक्साइट, डोलोमाइट तथा टिन के विशाल भंडार राज्य के विभिन्न हिस्सों में हैं। रायपुर ज़िले में डाइमंडीफैरस किंबरलाइट्स में से बहुत मात्रा में हीरा प्राप्त किया जाता हैं। इसके अलावा सोना, आधार धातुओं, बिल्लौरी पत्थर, चिकना पत्थर, सेटाइट, फ्लूरोराइट, कोरूंडम, ग्रेफाइट, लेपिडोलाइट, उचित आकार की एम्लीगोनाइट के विशाल भंडार मिलने की संभावना है। राज्य में देश के कुल उत्पादन का 20 प्रतिशत इस्पात और सीमेंट का उत्पादन किया जाता है। कच्चे टिन का उत्पादन करने वाला यह देश का एकमात्र राज्य है।
पर्यटन -
छत्तीसगढ़ राज्य गठन के समय यहाँ सिर्फ 16 जिले थे पर बाद में 2 नए जिलो की घोषणा की गयी। जो कि नारायणपुर व बीजापुर थे, पर इसके बाद छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह ने 15 अगस्त 2011 को 9 और नए जिलो कि और घोषणा कि जो 1 जनवरी 2012 से अस्तित्व में आ गये, इस तरह अब छत्तीसगढ़ में कुल 27 जिले हैं।
भारत के हृदय में स्थित छत्तीसगढ में समृद्ध सांस्कृतिक पंरपरा और आकर्षक प्राकृतिक विविधता है। राज्य में प्राचीन स्मारक, दुर्लभ वन्यजीव, नक़्क़ाशीदार मंदिर, बौद्धस्थल, महल, जल-प्रपात, पर्वतीय पठार, रॉक पेंटिंग और गुफ़ाएं हैं। बस्तर अपनी अनोखी सांस्कृतिक और भौगोलिक पहचान के साथ पर्यटकों को एक नई ताजगी प्रदान करता हो। चित्रकोट के जल-प्रपात जहां इंद्रावती नदी का पानी 96 फुट ऊंचाई से गिरता है। कांगेर नदी के सौ फुट की ऊंचाई से गिरने से बने तीरथगढ़ जलप्रपात नयनभिराम दृश्य उपस्थित करते हैं। अन्य प्रमुख स्थल हैं : केशकल घाटी, कांगेरघाट राष्ट्रीय पार्क, कैलाश गुफ़ाएं और कुडंबसर गुफ़ाएं जो अपने प्राकृतिक सौंदर्य के लिए जानी जाती हैं। जंगल, पहाड़, पाताल भेदी झरनों के साथ-साथ प्राकृतिक सौन्दर्य शौक़ीनों के लिए छत्तीसगढ़ में बहुत कुछ है। राज्य की इसी ख़ासियत को लेकर ईयर एंड वेकेशंस के लिए राज्य का पर्यटन विभाग कई योजनाएँ चला रहा है। राज्य में 3 राष्ट्रीय पार्क और 11 वाइल्ड लाइफ़ सेंचुरी हैं। जहाँ शीत ऋतु के लिए जंगल सफारी और कैंपिंग सुविधा उपलब्ध कराई गई है। इसके अतिरिक्त छत्तीसगढ़ राज्य में कांकेर घाटी, अचानकमार, बारनवापारा और चित्रकोट, मैनपाट जैसे स्थल एडवेंचर के लिए विकसित किए जा रहे हैं। छत्तीसगढ़ राज्य में पहाड़ी मैना को राजकीय पक्षी का गौरव प्रदान किया गया है। बारनवापारा राज्य का प्रथम पक्षी विहार था, जिसे ब्रिटिशकाल में विकसित किया गया था। राज्य में पैरासेलिंग, पैराग्लाइडिंग, पैपलिंग, रॉक क्लाइंबिंग और वॉटर स्पोर्ट्स जैसी सुविधाओं की भी तैयारी की गयी है। छत्तीसगढ़ के जशपुर ज़िले से 15 किमी. दूर 'रानीदाह जलप्रपात' स्थित है। मान्यता है कि उड़ीसा की किसी रानी ने यहाँ कूदकर आत्महत्या कर ली थी। इसीलिए इसका नाम रानीदाह पड़ा। रानीदाह के निकट महाकालेश्वर मंदिर स्थित है। रानीदाह जलप्रपात से एक किमी. दूर दक्षिण में ऐतिहासिक स्थल पंचभैया प्राचीन शिवमंदिर है। इस जलप्रताप से आगे बिहार की रामरेखा की प्रसिद्ध गुफ़ाएँ एवं प्राचीन मंदिर जाने का मार्ग है। इसलिए रानीदाह का इस राज्य में विशेष महत्त्व है।बिलासपुर में रतनपुर का महामाया मंदिर, डूंगरगढ में बंबलेश्वरी देवी मंदिर, दांतेवाडा में दंतेश्वरी देवी मंदिर और छठी से दसवीं शताब्दी में बौद्ध धर्म का प्रमुख केंद्र रहा सिरपुर भी महत्त्वपूर्ण पर्यटन स्थल हैं। महाप्रभु वल्लभाचार्य का जन्मस्थान चंपारण, खूटाघाट जल प्रपात, मल्लाहार में डिंडनेश्वरी देवी मंदिर, अचानकमार अभयारण्यरायपुर के पास उदंति अभयारण्य, कोरबा ज़िले में पाली और कंडई जल प्रपात भी पर्यटकों के मनपसंद स्थल हैं। खरोड जंजगीर चंपा का साबरी मंदिर, शिवरीनारायण का नरनारायण मंदिर, रंजिम का राजीव लोचन और कुलेश्वर मंदिर, सिरपुर का लक्ष्मण मंदिर और जंजगीर का विष्णु मंदिर महत्त्वपूर्ण धार्मिक स्थलों में हैं।

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