बिलग्राम का युद्ध मुग़ल बादशाह हुमायूँ और सूर साम्राज्य के संस्थापक शेरशाह के मध्य हुआ था। यह युद्ध वर्ष 1540 ई. में लड़ा गया था। इस युद्ध के परिणामस्वरूप हुमायूँ शेरशाह सूरी द्वारा पराजित हुआ। बिलग्राम का युद्ध जीतने के बाद शेरशाह ने हुमायूँ को भारत छोड़ने के लिए विवश कर दिया। उत्तर भारत में द्वितीय अफ़ग़ान साम्राज्य के संस्थापक शेरशाह द्वारा बाबर के चंदेरी अभियान के दौरान कहे गये ये शब्द अक्षरशः सत्य सिद्ध हुए कि- "अगर भाग्य ने मेरी सहायता की और सौभाग्य मेरा मित्र रहा, तो मै मुग़लों को सरलता से भारत से बाहर निकाला दूँगा।"
हुमायूँ के सेनापति हिन्दूबेग चाहते थे कि वह गंगा के उत्तरी तट से जौनपुर तक अफगानों को वहाँ से खदेड़ दे, परन्तु हुमायूँ ने अफगानो की गतिविधियों पर बिल्कुल ध्यान नहीं दिया। शेर खाँ ने एक अफगान को दूत बनाकर भेजा जिससे उसकी सेना की दुर्व्यवस्था की सूचना मिल गई। फलस्वरुप उसने अचानक रात में हमला कर दिया। बहुत से मुगल सैनिक गंगा में कूद पड़े और डूब गये या अफगानों के तीरों के शिकार हो गये। हुमायूँ स्वयं डूबते-डूबते बच गया। इस प्रकार चौसा का युद्ध में अफगानों को विजयश्री मिली।
इस समय अफगान अमीरों ने शेर खाँ से सम्राट पद स्वीकार करने का प्रस्ताव किया। शेर खाँ ने सर्वप्रथम अपना राज्याअभिषेक कराया। बंगाल के राजाओं के छत्र उसके सिर के ऊपर लाया गया और उसने शेरशाह आलम सुल्तान उल आदित्य की उपाधि धारण की। इसके बाद शेरशाह ने अपने बेटे जलाल खाँ को बंगाल पर अधिकार करने के लिए भेजा जहाँ जहाँगीर कुली की मृत्यु एवं पराजय के बाद खिज्र खाँ बंगाल का हाकिम नियुक्त किया गया। बिहार में शुजात खाँ को शासन का भार सौंप दिया और रोहतासगढ़ को सुपुर्द कर दिया, फिर लखनऊ, बनारस, जौनपुर होते हुए और शासन की व्यवस्था करता हुआ कन्नौज पहुँचा। कन्नौज (बिलग्राम 1540 ई.) का युद्ध- हुमायूँ चौसा के युद्ध में पराजित होने के बाद कालपीहोता आगरा पहुँचा, वहाँ मुगल परिवार के लोगो ने शेर खाँ को पराजित करने का निर्णय लिया। शेरशाह तेजी से दिल्ली की और बढ़ रहा था फलतः मुगल बिना तैयारी के कन्नौज में आकर भिड़ गये। तुरन्त आक्रमण के लिए दोनों में से कोई तैयार नहीं था। शेरशाह ख्वास खाँ के आने की प्रतीक्षा में था। हुमायूँ की सेना हतोत्साहित होने लगी। मुहम्मद सुल्तान मिर्जा और उसका शत्रु रणस्थल से भाग खड़े हुए। कामरान के 3 हजार से अधिक सैनिक भी भाग खड़े हुए फलतः ख्वास खाँ, शेरशाह से मिल गया। शेरशाह ने 5 भागों में सेना को विभक्त करके मुगलों पर आक्रमण कर दिया।
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