गोविंद बल्लभ पंत : स्वतंत्रता सेनानी, - Study Search Point

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गोविंद बल्लभ पंत : स्वतंत्रता सेनानी,

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गोविंद बल्लभ पंत (Govind Ballabh Pant, जन्म:10 सितम्बर 1887 - मृत्यु: 7 मार्च 1961उत्तर प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री एवं स्वतंत्रता सेनानी थे। इनका मुख्यमंत्री कार्यकाल 15 अगस्त 1947 से 27 मई 1954 तक रहा। बाद में ये भारत के गृहमंत्री भी (1955 -1961) बने। भारतीय संविधान में हिन्दी भाषा को राष्ट्रभाषा का दर्जा दिलाने और जमींदारी प्रथा को खत्म कराने में उनका महत्वपूर्ण योगदान था। भारत रत्न का सम्मान उनके ही गृहमन्त्रित्व काल में आरम्भ किया गया था। अपने संकल्प और साहस के मशहूर पंत जी का जन्म 10 सितम्बर 1887 ई. वर्तमान उत्तराखंड राज्य के अल्मोड़ा ज़िले के खूंट (धामस) नामक गाँव में ब्राह्मणपरिवार में हुआ था।
इस परिवार का सम्बन्ध कुमाऊँ की एक अत्यन्त प्राचीन और सम्मानित परम्परा से है। पन्तों की इस परम्परा का मूल स्थान महाराष्ट्र काकोंकण प्रदेश माना जाता है और इसके आदि पुरुष माने जाते हैं जयदेव पंत। गोविन्द बल्लभ पंत के पिता का नाम श्री 'मनोरथ पन्त' था। श्री मनोरथ पंत गोविन्द के जन्म से तीन वर्ष के भीतर अपनी पत्नी के साथ पौड़ी गढ़वाल चले गये थे। बालक गोविन्द दो-एक बार पौड़ी गया परन्तु स्थायी रूप से अल्मोड़ा में रहा। उसका लालन-पोषण उसकी मौसी 'धनीदेवी' ने किया। गोविन्द ने 10 वर्ष की आयु तक शिक्षा घर पर ही ग्रहण की। 1897 में गोविन्द को स्थानीय 'रामजे कॉलेज' में प्राथमिक पाठशाला में दाखिल कराया गया। 1899 में 12 वर्ष की आयु में उनका विवाह 'पं. बालादत्त जोशी' की कन्या 'गंगा देवी' से हो गया, उस समय वह कक्षा सात में थे। गोविन्द ने लोअर मिडिल की परीक्षा संस्कृत, गणित, अंग्रेज़ी विषयों में विशेष योग्यता के साथ प्रथम श्रेणी में पास की। गोविन्द इण्टर की परीक्षा पास करने तक यहीं पर रहे।

  • दिसम्बर 1920 में 'कुमाऊं परिषद' का 'वार्षिक अधिवेशन' काशीपुर में हुआ। जहां 150 प्रतिनिधियों के ठहरने की व्यवस्था काशीपुर नरेश की कोठी में की गई। पंतजी ने बताया कि परिषद का उद्देश्य कुमाऊं के कष्टों को दूर करना है न कि सरकार से संघर्ष करना।
  • 23 जुलाई, 1928 को पन्त जी 'नैनीताल ज़िला बोर्ड' के चैयरमैन चुने गये। 1920-21 में भी चैयरमैन रह चुके थे।
  • पंत जी का राजनीतिक सिद्धान्त था कि अपने क्षेत्र की राजनीति की कभी उपेक्षा नहीं की जानी चाहिए। 1929 में गांधी जी कोसानी से रामनगर होते हुए काशीपुर भी गये। काशीपुर में गांधी जी लाला नानकचन्द खत्री के बाग़ में ठहरे थे। पंत जी ने काशीपुर में एक चरखा संघ की विधिवत स्थापना की।
  • 10 अगस्त, 1931 को भवाली में उनके सुपुत्र श्रीकृष्ण चन्द्र पंत का जन्म हुआ।
  • नवम्बर, 1934 में गोविन्द बल्लभ पंत 'रुहेलखण्ड-कुमाऊं' क्षेत्र से केन्द्रीय विधान सभा के लिए निर्विरोध चुन लिये गये।
  • 17 जुलाई, 1937 को गोविन्द बल्लभ पंत 'संयुक्त प्रान्त' के प्रथम मुख्यमंत्री बने जिसमें नारायण दत्त तिवारी संसदीय सचिव नियुक्त किये गये थे।
  • पन्त जी 1946 से दिसम्बर 1954 तक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। पंत जी को भूमि सुधारों में पर्याप्त रुचि थी। 21 मई, 1952 को जमींदारी उन्मूलन क़ानून को प्रभावी बनाया। मुख्यमंत्री के रूप में उनकी विशाल योजना नैनीताल तराई को आबाद करने की थी।
  • पंत जी एक विद्वान क़ानून ज्ञाता होने के साथ ही महान नेता व महान अर्थशास्त्री भी थे। कृष्णचन्द्र पंत उनके सुयोग्य पुत्र केन्द्र सरकार में विभिन्न पदों पर रहते हुए योजना आयोग के उपाध्यक्ष भी रहे।
  • इलाहाबाद के तत्कालीन 'म्योर सेण्ट्रल कॉलेज' से स्नातक एवं वकालत की उपाधियाँ प्राप्त कीं।
  • सन 1909 में इलाहाबाद हाईकोर्ट में एडवोकेट बने और नैनीताल में वकालत प्रारम्भ की।
  • सन 1916 में 'कुमायूँ परिषद' की स्थापना की और इसी वर्ष 'अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी' के सदस्य चुने गये।
  • 1923 में 'स्वराज्य पार्टी' के टिकट पर उत्तर प्रदेश 'विधान परिषद के लिए निर्वाचित हुए।
  • सन 1927 में उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रहे।
  • नवम्बर, 1928 में लखनऊ में साइमन कमीशन का बहिष्कार किया।
  • सन 1921, 1930, 1932 और 1934 के स्वतंत्रता संग्रामों में लगभग 7 वर्ष जेलों में रहे।
  • सन 1937 से 1939 एवं 1954 तक अर्थात मृत्यु पर्यन्त केन्द्रीय सरकार के स्वराष्ट्र मंत्री रहे
909 में गोविन्द बल्लभ पंत को क़ानून की परीक्षा में विश्वविद्यालय में सर्वप्रथम आने पर 'लम्सडैन' स्वर्ण पदक प्रदान किया गया। 1910 में गोविन्द बल्लभ पंत ने अल्मोड़ा में वकालत आरम्भ की। अल्मोड़ा के बाद पंत जी ने कुछ महीने रानीखेत में वकालत की, फिर पंत जी वहाँ से काशीपुर आ गये। उन दिनों काशीपुर के मुक़दमें एस.डी.एम. (डिप्टी कलक्टर) की कोर्ट में पेश हुआ करते थे। यह अदालत ग्रीष्म काल में 6 महीने नैनीताल व सर्दियों के 6 महीने काशीपुर में रहती थी। इस प्रकार पंत जी का काशीपुर के बाद नैनीताल से सम्बन्ध जुड़ा। सन 1912-13 में पंतजी काशीपुर आये उस समय उनके पिता जी 'रेवेन्यू कलक्टर' थे। श्री 'कुंजबिहारी लाल' जो काशीपुर के वयोवृद्ध प्रतिष्ठित नागरिक थे, का मुक़दमा पंत' जी द्वारा लिये गये सबसे 'पहले मुक़दमों' में से एक था। इसकी फ़ीस उन्हें 5 रु० मिली थी। 1909 में पंतजी के पहले पुत्र की बीमारी से मृत्यु हो गयी और कुछ समय बाद पत्नी गंगादेवी की भी मृत्यु हो गयी। उस समय उनकी आयु 23 वर्ष की थी। वह गम्भीर व उदासीन रहने लगे तथा समस्त समय क़ानून व राजनीति को देने लगे। परिवार के दबाव पर 1912 में पंत जी का दूसरा विवाह अल्मोड़ा में हुआ। उसके बाद पंतजी काशीपुर आये। पंत जी काशीपुर में सबसे पहले 'नजकरी' में नमक वालों की कोठी में एक साल तक रहे। गोविन्द बल्लभ पंत जी का मुक़दमा लड़ने का ढंग निराला था, जो मुवक़्क़िल अपने मुक़दमों के बारे में सही जानकारी नहीं देते थे, पंत जी उनका मुक़दमा नहीं लेते थे। काशीपुर में एक बार गोविन्द बल्लभ पंत जी धोती, कुर्ता तथा गाँधी टोपी पहनकर कोर्ट चले गये। वहां अंग्रेज़ मजिस्ट्रेट ने आपत्ति की। पन्त जी की वकालत की काशीपुर में धाक थी और उनकी आय 500 रुपए मासिक से भी अधिक हो गई। पंत जी के कारण काशीपुर राजनीतिक तथा सामाजिक दृष्टियों से कुमाऊँके अन्य नगरों की अपेक्षा अधिक जागरुक था।
भारत रत्न सम्मान उनके ही काल में आरम्भ किया गया। सन् 1957 में गणतन्त्र दिवस पर महान देशभक्त, कुशल प्रशासक, सफल वक्ता, तर्क का धनी एवं उदारमना पन्त जी को भारत की सर्वोच्च उपाधि 'भारत रत्न' से विभूषित किया गया। आज उनकी याद में उनके जन्म स्थान पर एक स्मारक का निर्माण किया गया है।

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