➲ मौर्य
राजवंश की स्थापना चंद्रगुप्त मौर्य के द्वारा की गई थी, ब्राह्मण
परंपरा के अनुसार उसकी माता शूद्र जाति की मूरा नामक स्त्री थी, जो
नंदों के रनवास में निवास करती थी।
➲ एक
पुरानी बौद्ध परंपरा से ज्ञात होता है कि नेपाल की तराई से लगे गोरखपुर में मौर्य
नामक क्षत्रिय कुल के लोग निवास करते थे।
➲ चंद्रगुप्त
के शत्रुओं के विरुद्ध चाणक्य ने जो चालें चली उनकी विस्तृत कथाएं तथा मुद्राराक्षस नामक नाटक में
वर्णित की गई है, जिसकी रचना विशाखदत्त ने नौवीं सदी में की है।
➲ जस्टिन
नामक यूनानी लेखक के अनुसार चंद्रगुप्त ने अपनी 6 लाख की फौज से सारे भारत को
रौंदा दिया, और
पश्चिमोत्तर भारत को सेल्यूकस की गुलामी से मुक्त कराया।
➲ सेल्यूकस
ने चंद्रगुप्त से 500 हाथी
लेकर उसके बदले उसे पूर्वी अफगानिस्तान, बलूचिस्तान और सिंध के
पश्चिमी क्षेत्र दे दिए थे।
➲ मौर्य
साम्राज्य केवल तमिलनाडु तथा पूर्वोत्तर भारत के कुछ भागों को छोड़कर सारे भारतीय
उपमहाद्वीप में फैला हुआ था।
मौर्य साम्राज्य का
संगठन -
➲ मौर्य
प्रशासन तंत्र की जानकारी हमें मेगस्थनीज की पुस्तक इंडिका और कौटिल्य
(विष्णुगुप्त) की पुस्तक अर्थशास्त्र से मिलती है।
➲ मेगस्थनीज
यूनान का राजदूत था उसे सेल्यूकस ने चंद्रगुप्त के दरबार में भेजा था।
➲ मेगास्थनीज
लिखित विवरण वर्तमान तक पूरा पूरा नहीं बच पाया है, इससे लिए उद्धरण कई यूनानी
लेखों की पुस्तकों में देखने को मिलते हैं। इन सारे टुकड़ों को इकट्ठा कर पुस्तक
के रूप में इंडिका नाम से
प्रकाशित किया गया है
➲ चंद्रगुप्त
मौर्य स्वेच्छाचारी शासक रहा था, और सारे अधिकार अपने ही हाथों में
रखें हुए था।
➲ चंद्रगुप्त
मौर्य का कथन था कि प्रजा के सुख में ही राजा का सुख है प्रजा का दुख ही राजा का
दुख है।
➲ मेगास्थनीज
के अनुसार राजा की सहायता करने के लिए एक परिषद गठित की जाती थी। राजा का इस समिति
की बात मानने की बाध्यता का कोई प्रमाण नहीं मिलता है।
➲ साम्राज्य
अनेक प्रांतों में विभक्त किया गया था, हर एक प्रांत एक एक राजकुमार
के जिम्मे में रखा जाता था।
ग्रामांचल और नगरांचल दोनों के
प्रशासन की व्यवस्था की गई थी।
➲ पाटलिपुत्र, कौशांबी, उज्जयिनी
तथा तक्षशिला चोटी के नगरों में गिने जाते थे।
➲ मौर्य
राजधानी पाटलिपुत्र का प्रशासन 6 समितियों के द्वारा किया जाता था, एक
समिति में पांच पांच सदस्य नियुक्त किए जाते थे।
➲ केंद्रीय
प्रशासन के राज्य के दो दर्जन से अधिक विभाग थे, जो कम से कम राजधानी के
निकटवर्ती क्षेत्रों में सामाजिक और आर्थिक गतिविधियों पर नियंत्रण रखते थे।
➲ प्लिनी
नामक यूनानी लेखक के अनुसार चंद्रगुप्त की सेना में 6 लाख
पैदल सिपाही 30 हजार
घुड़सवार और 9 हजार
हाथी थे। लगता है कि मौर्यों के पास नौसेना भी थी।
➲ मेगस्थनीज
के अनुसार सैनिक प्रशासन के लिए 30 अधिकारियों की एक परिषद थी, जो
पांच पांच सदस्यों की 6 समितियों
में विभक्त की गई थी।
➲ मौर्य
सेना नंद सेना से तीन गुनी बड़ी रही थी।
➲ कौटिल्य
के अनुसार लगता है कि साम्राज्य की सीमाओं के भीतर होने वाले लगभग सारे आर्थिक
कार्यकलाप पर राजकीय नियंत्रण था।
➲ राज्य
ने खेतिहरों और शूद्र मजदूरों की सहायता से परती जमीन तोड़कर कृषि क्षेत्र को
बढ़ाया था।
➲ प्रवेश
द्वार पर चुंगी, खान, मदय की
बिक्री, हथियारों
का निर्माण आदि पर राज्य का एकाधिकार था जिससे राजकोष समृद्ध होता था।
अशोक (273 ईसा पूर्व से 232 ईसा पूर्व) -
➲ चंद्रगुप्त
के बाद उसका पुत्र बिंदुसार गद्दी पर बैठा। जिसके शासन की महत्वपूर्ण बातें हैं
यूनानी राजाओं के साथ निरंतर संबंध रहा है।
➲ बिंदुसार
का पुत्र अशोक मौर्य राजाओं में सबसे महान शासक हुआ।
➲ बौद्ध
परंपरा के अनुसार वह अपने आरंभिक जीवन में परम क्रूर था, जिसने
अपने 99 भाइयों
का कत्ल करके गद्दी में बैठा था।
अभिलेख -
➲ अशोक
पहला भारतीय राजा हुआ जिसने अपने अभिलेखों के सहारे सीधे अपनी प्रजा को संबोधित
किया।
➲ अशोक के
अभिलेखों को 5 श्रेणियों
में बांटा गया है। दीर्घ शिलालेख, लघु शिलालेख, प्रथक शिलालेख, दीर्घ स्तंभलेख, और लघु स्तंभ लेख।
➲ अशोक
का नाम केवल प्रथम लघु शिलालेख की प्रतियों में मिलता है, और यह
कर्नाटक के तीन स्थान और मध्य प्रदेश के एक स्थान से मिलता है। अन्य सभी अभिलेखों
में देवानाम प्रिय (प्रियदर्शी, देवों का प्यारा) उसकी
उपाधि के रूप में वर्णित मिलता है।
➲ अशोक
कालीन अभिलेख अफगानिस्तान से भी मिलते हैं, अब तक 45 स्थानों
से कुल 182 पाठांतर
में यह अभिलेख पाए गए हैं।
➲ प्राकृत
भाषा में रचे यह अभिलेख साम्राज्य भर के अधिकांश भागों में ब्राह्मी लिपि में
लिखित है, किंतु
पश्चिमोत्तर भारत में यह खरोष्ठी और आरामाइक लिपियों में लिखे गए हैं।
➲ अफगानिस्तान
में इनकी भाषा और लिपि आरामाइक और यूनानी दोनों में है।
➲ अशोक
के अभिलेख प्राचीन राजमार्गों के किनारे स्थापित किए गए मिलते हैं।
कलिंग युद्ध का
प्रभाव -
➲ अशोक
की गृह और विदेश नीति बौद्ध धर्म के आदर्शों से प्रेरित रही थी।
➲ राजगद्दी
पर बैठने के आठवें वर्ष अशोक ने केवल एक युद्ध किया जो कलिंग के युद्ध के नाम से
प्रसिद्ध है।
➲ कलिंग
के युद्ध में मारे गए लोगों के लिए अशोक के अभिलेखों में सतसहस्त्र शब्द का प्रयोग
कहावत के तौर पर किया गया लगता है।
➲ कलिंग
के भारी नरसंहार के बाद अशोक को गहरी व्यथा और पश्चाताप हुआ, इसलिए
उसने दूसरे राज्यों पर भौतिक विजय छोड़कर सांस्कृतिक विजय पाने की नीति अपनाई।
➲ अशोक भेरी- घोष के बदले धम्म घोष की नीति अपनाने लगा।
➲ अशोक
के ये शब्द उसके 13 वें
मुख्य शिलालेख में एक उद्धरण से मिलते है। जिसमें लिखा है कि - देवों का प्रिय
निष्ठा पूर्वक धम्म का पालन, धम्म की कामना और धम्म का उपदेश करने
लगा। देवताओं का प्रिय धम्म विजय को ही सर्वश्रेष्ठ विजय समझता है।
➲ अशोक
कलिंग के स्वतंत्र राज्यों के प्रजाजनों से कहता है कि वह राजा को पिता के तुल्य
समझकर उसकी आज्ञा का पालन करें, उस पर विश्वास रखें।
➲ अशोक
ने पश्चिम एशिया और यूनानी राज्यों में अपने शांति दूत भेजे।
➲ कलिंग
युद्ध ने अशोक को नितांत शांतिवादी बना दिया, उसने हर हाल में शांति के लिए
शांति की नीति नहीं ग्रहण की।
➲ प्रत्युततर
में वह अपने साम्राज्य को सुदृढ़ करने की व्यवहारिक नीति पर चलता रहा।
➲ अपने
साम्राज्य के भीतर उसने एक तरह के अधिकारियों की नियुक्ति की जो राजूक कहलाते थे।
इन्हें प्रथा प्रजा को न केवल पुरस्कार ही बल्कि दंड देने का भी अधिकार सौंपा गया
था।
➲ कंधार
अभिलेख से मालूम होता है कि उसकी इस नीत की सफलता बहेलियां और मछुआरों पर भी हुई, उन्होंने
जीव हत्या छोड़कर स्थिर कृषक जीवन अपना लिया।
आंतरिक नीत और
बौद्ध धर्म -
➲ अशोक
ने बौद्ध धर्म को अपार धन दिया, तथा बौद्ध धर्म स्थलों की यात्रा की।
➲ इसका
वृतांत (संकेत) उसके अभिलेखों में आए धम्म यात्रा शब्द से मिलता है।
➲ अशोक ने बौद्ध धर्म का तीसरा सम्मेलन (संगीत)
आयोजित किया।
➲ ईसा
पूर्व दूसरी और पहली सदियों में ब्राह्मी लिपि के अभिलेख श्रीलंका से भी मिलते
हैं।
➲ अशोक
ने नारी सहित, समाज
के विभिन्न वर्गों के बीच धर्म का प्रचार करने के लिए धम्ममहामात्र बहाल (नियुक्त)
किए।
➲ अपने
साम्राज्य में न्याय कार्य के लिए राजूको को भी नियुक्त किया।
➲ अशोक
कर्मकांडों का विशेषत: स्त्रियों में प्रचलित अनुष्ठानों या रस्मो का विरोधी रहा
था। इसने तड़क-भड़क वाले सामाजिक समारोह पर रोक लगा दी थी।
➲ परंतु
अशोक का धर्म संकुचित नहीं था, इसे हम संप्रदायवादी नहीं कह सकते।
➲ अशोक
ने लोगों को जियो और जीने दो का पाठ पढ़ाया, जीवो के प्रति दया तथा बाधओं
के प्रतिशत व्यवहार की सीख दी।
➲ अशोक
के उपदेशों का उद्देश्य सहिष्णुता के आधार पर तत्कालीन समाज व्यवस्था को बनाए रखना
रहा था।
इतिहास तथा अशोक का
स्थान -
➲ अशोक
ने राजनीतिक एकता स्थापित कर, एक धर्म, एक
भाषा, और
प्रायः एक लिपि के सूत्र में सारे देश को बांध दिया।
➲ धर्म
प्रचार के कार्य में अशोक का अपार उत्साह था, उसने साम्राज्य के सुदूर
भागों में भी अपने अधिकारियों को तैनात किया, इससे प्रशासन कार्य में लाभ
हुआ और साथ ही विकसित गंगा के मैदान और पिछड़े दूरवर्ती प्रदेशों के बीच
सांस्कृतिक संपर्क बढ़ा।
➲ सबसे
बढ़कर इतिहास में अशोक का नाम उसकी शांति अन आक्रमण और सांस्कृतिक विजय की नीति के
लिए अमर है।
➲ भारतीय
इतिहास में इस तरह की नीति को अपनाने वाला अशोक के सामने कोई आदर्श नहीं था, भले ही
मिस्र इसका एक अपवाद हो जहां अखनातन ने ईसा
पूर्व 14वीं सदी में
शांतिवादी नीति को अपनाया। लेकिन अशोक को इस मिस्री चिंतक की
जानकारी नहीं थी।
➲ जब
अशोक का राज्य काल 232 ईसा
पूर्व में समाप्त हुआ तब से 30 वर्षो के अंदर ही पड़ोसी राजा उसके
साम्राज्य की उत्तरी पश्चिमी सीमा पर झपट पड़े।
अगले अंक में पढ़ें :
मौर्य शासन का महत्व।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें