राज्यसभा चुनाव 2020 : परीक्षा विशेष अंक., - Study Search Point

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राज्यसभा चुनाव 2020 : परीक्षा विशेष अंक.,

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 भारतीय संसदीय प्रणाली में राज्यसभा की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण है।

 राज्यसभा के सदस्यों का कार्यकाल 6 वर्ष का होता हैलेकिन इसके एक तिहाई सदस्य प्रत्येक 2 वर्ष में सेवानिवृत्त हो जाते हैं।

 राज्यसभा की सीटों को भरने के लिए द्विवार्षिक चुनाव कराए जाते हैं।

 इन चुनाव का प्रावधान भारतीय संविधान के अनुच्छेद 83 (1) में किया गया है।

 अधिसूचना जारी होने के बाद रिक्त सीटों के लिए नामांकन भरने की प्रक्रिया शुरू की जाती है।

 हाल ही में राज्यसभा की 55 सीटों के लिए चुनाव होने हैंजो 17 राज्यों में कराए जाने है।

 इन चुनावओं लिए 6 मार्च को अधिसूचना जारी की गई, 13 मार्च तक नामांकन दाखिल किए जाएंगे। 16 मार्च को नामांकन पत्रों की जांच की जाएगीऔर उम्मीदवार 18 मार्च तक नाम वापस ले सकेंगे।

 राज्यसभा की 55 सीटों के लिए 26 मार्च को मतदान किया जाएगा।

 55 सीटों पर हो रहे चुनाव 17 राज्यों में होंगे। जिसमें सबसे ज्यादा महाराष्ट्र से 7 सीटेंतमिलनाडु से 6 सीटें, पश्चिम बंगाल तथा बिहार से पांच-पांच सीटेंउड़ीसाआंध्र प्रदेश और गुजरात से चार-चार सीटेंअसममध्य प्रदेश और राजस्थान से तीन-तीन सीटेंतेलंगानाछत्तीसगढ़हरियाणा तथा झारखंड से दो-दो सीटों पर और हिमाचलमणिपुर तथा मेघालय से एक-एक सीट पर चुनाव होना है।

 राज्यसभा की इन 55 सीटों में चुनाव होने वाली सीटों में 15 सदस्य बीजेपीतीन सदस्य जेडीयूचार सदस्य ए.आई.ए.डी.एम.के तथा बी.जे.डी. के दो सदस्य और वहीं कांग्रेस के 13 सदस्यों का कार्यकाल समाप्त हो रहा है। 18 सदस्य अन्य दलों के सदस्य हैं।

 राज्यसभा में वर्तमान में सर्वाधिक सदस्य बीजेपी के 82, कांग्रेस के 46, तृणमूल कांग्रेस के 13, ए.आई.ए.डी.एम.के. के 11 ,समाजवादी पार्टी के 9 सदस्यजेडीयू तथा टी.आर.एस के 6-6 सदस्य हैं।

राज्यसभा के सदस्यों का चुनाव -

 राज्यसभा राज्यों की परिषद हैइसमें केंद्र शासित प्रदेशों तथा राज्यों से चुने सदस्य अप्रत्यक्ष रूप से जनता का प्रतिनिधित्व करते हैं।

 संविधान की चौथी अनुसूची के तहत अनुच्छेद 80(4) के तहत राज्य सभा के सदस्यों का चुनाव राज्य विधानसभा के निर्वाचित सदस्यों द्वारा आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति के अनुसार एकल संक्रमणीय मत प्रणाली से होता है।

 जिसका मकसद अल्पसंख्यक समुदायों तथा दलों के लिए प्रतिनिधित्व की व्यवस्था करना है।

 संविधान के अनुच्छेद 83(1) के तहत राज्य सभा एक स्थाई निकाय (सदन) हैइसे समाप्त नहीं किया जा सकता है।
राज्यसभा के सदस्य की योग्यता -

 संविधान के अनुच्छेद 84 में संसद की योग्यताएं निर्धारित की गई है जिसमें मुख्य रुप से (संविधान के अनुच्छेद 102 में यह निर्धारित किया गया है कि कोई व्यक्ति संसद के किसी सदन का सदस्य चुने जाने के लिए और सदस्य होने के लिए निरर्हित ) -

 सदस्य भारत का नागरिक हो।

 30 वर्ष की आयु पूरी कर चुका हो।

 किसी लाभ के पद पर ना हो।

 पागल या दिवालिया ना हो।

 संविधान द्वारा अन्य निर्धारित योग्यताएं को धारण करता हो।

राज्यसभा के सदस्यों की चुनाव प्रक्रिया -

 संविधान की चौथी अनुसूची में राज्यसभा के सीटों के आवंटन का प्रावधान किया गया है।

 सीटों का आवंटन प्रत्येक राज्य की आबादी के आधार पर होता है।

 अंडमान निकोबार द्वीपसमूहचंडीगढ़दादरा नागर हवेलीदमन दीवलक्ष्यद्वीप केंद्र शासित प्रदेशों का राज्यसभा में कोई भी प्रतिनिधित्व नहीं है।

 राज्यों के पुनर्गठन तथा नए राज्यों के गठन से आवंटित सीटों में बदलाव होता रहा है वर्ष 1952 में आवंटित सीटों की संख्या अब तक समय-समय पर बदलती रही है।

 उम्मीदवार को न्यूनतम मान्य वोट मिलने पर ही राज्यसभा में चुना जा सकता है।

 वोटों की गिनती सीटों की संख्या पर निर्भर करती है।

 सदस्यों का चुनाव राज्य विधानसभा के निर्वाचित सदस्यों द्वारा किया जाता हैइसमें विधान परिषद के सदस्य वोट नहीं डालते।

 नामांकन दाखिल करने के लिए न्यूनतम 10 सदस्यों की सहमति होनी आवश्यक होती है।

 सदस्यों का चुनाव एकल हस्तांतरण मत के द्वारा होता हैइसके तहत राज्य विधानसभा की सीटों को राज्यसभा के सदस्यों की संख्या में एक जोड़कर विभाजित किया जाता है। और फिर विभाजित से प्राप्त संख्या में एक जोड़ लिया जाता है।

इसे हम कुछ इस तरह समझ सकते हैं -

 माना महाराष्ट्र विधानसभा में 288 (सीटें) विधायक हैंऔर वहां से 7 राज्यसभा सीटों में चुनाव होना हैतो इसमें एक जोड़कर यह संख्या 7 से 8 होगी।

 अब कुल सदस्य विधायक 288 हैं तो इसे 8 से विभाजित करने पर 36 प्राप्त होफिर उसमें एक जोड़ने पर यह संख्या 37 हो जाती है। अतः महाराष्ट्र से राज्यसभा सांसद बनने के लिए उम्मीदवार को 37 प्राथमिक वोटों की जरूरत होगी।

 उम्मीदवार का मत ट्रांसफरेबल होता हैविधायक सदस्य को प्रत्येक उम्मीदवार को एक वरीयता क्रम देना होता है। मतदाता अन्य वरीयता क्रम दे या ना दे परंतु  वरीयता क्रम एक देना जरूरी होता है।

 पहली वरीयता के न्यूनतम वोट प्राप्त करने वाला व्यक्ति विजयी माना जाता है।

 यदि सदस्यों के लिए वोटिंग होती हैतो सबसे कम वोट मिलने वाले उम्मीदवार के वोट को दूसरी वरीयता के आधार पर अन्य उम्मीदवारों में ट्रांसफर कर दिए जाते हैं। यह सिलसिला तब तक चलता रहता हैजब तक उम्मीदवार विजयी ना हो जाए।

 इसीलिए चुनाव के दौरान विधायकों के द्वारा दिए गए वरीयता क्रम का महत्व और अधिक बढ़ जाता है।

राज्यसभा की संरचना -

 राज्यसभा को काउंसिल ऑफ स्टेट भी कहा जाता है।

 राज्यसभा का गठन संघीय व्यवस्था में राज्यों के हितों की रक्षा के लिए किया गया है।

 संरचना तथा निर्वाचन पद्धति के अनुसार यह लोकसभा से भिन्न है।

 राज्यसभा की संरचना का आशय एक ऐसी सभा से हैजिसका निर्वाचन राज्य तथा केंद्र शासित प्रदेशों की विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्यों द्वारा किया जाता है।

 राज्यसभा में निर्वाचित सदस्यों के अलावा 12 सदस्यों को राष्ट्रपति द्वारा नामित करने का उपबंध भी किया गया है।

 राज्यसभा की सदस्यता के लिए 30 वर्ष की आयु को निर्धारित किया गया है।

राज्यसभा का गठन -

 राज्यसभा का गठन अप्रैल 1952 में किया गया।

 23 अप्रैल 1954 में राज्यसभा नाम की घोषणा की गई।

 13 मई 1952 को राज्यसभा की पहली सत्र बैठक आयोजित की गई।

 संविधान के अनुच्छेद 80 के तहत राज्य सभा के सदस्यों की संख्या 250 निर्धारित की गई हैजिसमें 12 सदस्य राष्ट्रपति द्वारा नामित किए जाते हैं, 238 सदस्य संघ क्षेत्र तथा राज्यों से चुने जाते हैं।

 राज्यसभा के सदस्यों की वर्तमान संख्या 245 हैजिनमें से 233 सदस्य राज्यों तथा केंद्र शासित प्रदेश दिल्लीपांडुचेरी से हैंऔर 12 सदस्य राष्ट्रपति द्वारा साहित्यविज्ञानकला तथा समाज सेवा के विषयों से संबंध विशेष ज्ञान या विशेषज्ञता रखने वाले व्यक्ति नामित किए जाते हैं।

 काउंसिल ऑफ स्टेट (राज्यसभा) की गरिमा तथा प्रतिष्ठा को बनाए रखने के लिए भारत के उपराष्ट्रपति को राज्यसभा का पदेन सभापति बनाए जाने का प्रावधान किया गया है।

 राज्य सभा अपने सदस्यों में से एक उपसभापति का चयन भी करती है।

 राज्यसभा में उपसभा अध्यक्षों का भी एक पैनल होता है।

राज्यसभा की शक्तियां -

 राज्यसभा लोकसभा की सहयोगी एवं सहायक सदन के रूप में कार्य करती है।

 लोकसभा की तरह ही राज्यसभा को विधायी शक्तियां प्रदान की गई है।

 धन विधेयक को छोड़कर राज्यसभा को सामान्य विधायकों में लोकसभा के समान ही अधिकार प्राप्त हैं।

 मतभेद की स्थिति में संविधान के अनुच्छेद 108 के तहत संयुक्त बैठक के माध्यम से विधेयक पर विचार तथा बहुमत के आधार पर फैसला लेने का प्रावधान किया गया है।

 संविधान संशोधन के मामले में राज्यसभा को लोकसभा के समान शक्तियां प्राप्त हैंसंशोधन विधेयकों में संयुक्त बैठक की व्यवस्था करने का प्रावधान नहीं किया गया है। (यानी कि जिन विधेयकों में दो तिहाई बहुमत की आवश्यकता होती है उनमें संयुक्त बैठक का प्रावधान नहीं किया गया है।)

 संविधान के अनुच्छेद 110 धन विधेयक के मामले में राज्यसभा को लोकसभा से कम शक्तियां प्राप्त हैंधन विधेयक लोकसभा में ही पेश किया जा सकता है।

 धन विधेयक राज्यसभा के पास भेजे जाने के दिन से 14 दिनों के अंदर उसे लौटाना आवश्यक होता हैअन्यथा धन विधेयक दोनों सदनों से पारित माना जाता है।

 धन विधेयक पर राज्यसभा के संशोधन संबंधी प्रस्ताव लोकसभा पर बाध्यकारी नहीं होता है।

राज्यसभा की कार्यपालिका शक्तियां -

 कार्यपालिका की शक्तियों में भी राज्यसभा और लोकसभा में समानता पाई जाती है।

 जिस तरह मंत्रिपरिषद लोकसभा के प्रति उत्तरदाई होती है, (अनुच्छेद 75 (3) में वर्णित) उसी तरह राज्यसभा के सदस्य भी राज्यसभा के प्रति उत्तरदाई होते हैं।

 सदस्यों को मंत्री से प्रश्न पूछने तथा आलोचना करने का अधिकार होता है।

 संसद के द्वारा राज्यसभा को कई मामलों में विशेष शक्तियां प्रदान की गई हैं।

 मंत्री संसद के किसी भी सभा से हो सकते हैं। इस संबंध में संविधान सभाओंं के बीच कोई भेद नहीं करता है।

 प्रत्येक सदस्य को किसी भी सभा में बोलने तथा उसकी कार्यवाही में भाग लेने का अधिकार होता हैलेकिन वह उसी सदन में मत देने का हकदार होता हैजिसका वह सदस्य हो

 राज्यसभा को राष्ट्रपति के निर्वाचन एवं महाभियोगउपराष्ट्रपति के निर्वाचन का अधिकारआपातकाल की उद्घोषणा के अनुमोदन का अधिकार राज्यों में संवैधानिक तंत्र की विफलता से संबंधित उद्घोषणा और वित्तीय  आपातकाल के अलावा कुछ विशेष विधायी शक्तियां भी दी गई है।

 सविधान के अनुच्छेद 67 (ब) उपराष्ट्रपति को हटाने वाला प्रस्ताव राज्यसभा में ही लाया जा सकेगा।
 राज्यसभा सविधान के अनुच्छेद 249 के तहत दो तिहाई बहुमत से एक संकल्प पारित कर संसद को राज्य सूची के विषय में कानून बनाने के लिए अधिकृत करने का अधिकार भी देता है।

 संविधान केअनुच्छेद 312  के तहत राज्यसभा संघ तथा राज्यों की आवश्यकता की पूर्ति के लिए नए अखिल भारतीय सेवा के निर्माण से जुड़ा संकल्प पारित करने का भी अधिकार रखती है।

 हमारी लोकतांत्रिक प्रक्रिया में राज्यसभा ने रचनात्मक और प्रभावी भूमिका निभाई है विधायी क्षेत्र तथा सरकारी नीतियों को प्रभावित करने के मामले में राज्यसभा का कार्य निष्पादन प्रभावी रहा है।

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