प्राचीन भारतीय इतिहास का महत्व., - Study Search Point

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प्राचीन भारतीय इतिहास का महत्व.,

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प्राचीन भारतीय संस्कृति की विलक्षणता - उत्तर से दक्षिण और पूर्व से पश्चिम तक समेकित होना है।
आर्य सांस्कृतिक उपादान उत्तर में वैदिक और संस्कृत मूलक संस्कृति के अंग थे।
प्राक आर्यजाति उपादान दक्षिण की द्रविड और तमिल संस्कृति से आए।
द्रविड़ तथा संस्कृतेतर भाषाओं के अधिक शब्द वैदिक ग्रंथों से आए हैं, जिसका काल 1500 ईसा पूर्व से 500 ईसा पूर्व का बीच रहा है, जो वैदिकेत्तर भारत के निवासी होने का द्योतक हैं।
पाली भाषा तथा संस्कृत भाषा के शब्द गंगा के मैदान में विकसित हुए जो कि लगभग 300 ईसा पूर्व से 600 ईसा पूर्व के संगम ग्रंथ (तमिल ग्रंथों) में मिलते हैं।
पूर्वांचल में बसे प्राक्-आर्य लोग मुंडा या कोल भाषा बोलते थे, मुंडा संस्कृति का पुरावशेष उतना पुराना नहीं जितना कि द्रविड़ संस्कृति का है।
ईसा पूर्व तीसरी सदी में अशोक ने अपना साम्राज्य सुदूर दक्षिणांचल को छोड़कर सारे देश में फैलाया।
ईसा की चौथ सदी में समुद्रगुप्त की विजय पताका गंगा घाटी से तमिल देश के छोर तक पहुंची।
सातवीं सदी में चालुक्य राजा पुलकेशिन द्वितीय ने हर्षवर्धन को हराकर संपूर्ण उत्तर भारत का अधिपति बना।
विदेशी सर्वप्रथम सिंधु तट वासियों के संपर्क में आए उन्होंने पूरे देश को ही सिंधु या इंडस नाम दिया।
हिंद शब्द संस्कृत के सिंधु से जो कि बाद में इंडिया नाम से मशहूर हुआ। यह इंडस शब्द यूनानी का पर्याय है, तथा हिंद अरबी तथा फारसी भाषाओं से भी विदित होता है।
ईसा पूर्व तीसरी सदी में प्राकृत देशभर में संपर्क की भाषा (लिंगुआ फ्रैंका) का काम करती थी, चौथी सदी में आकर यह और भी बढ़ी तथा मजबूत हुई, जो संस्कृत का काल बना था वह गुप्त काल रहा।
गुप्तकाल के बाद अनेक छोटे-छोटे राज्य बने लेकिन संस्कृत राजकीय दस्तावेज के रूप में ही प्रचलित रही।
भारतीय इतिहास में एक विचित्र प्रकार की सामाजिक व्यवस्था उदित हुई उत्तर भारत में वर्ण व्यवस्था (जाति प्रथा) सारे देश में व्याप्त हो गई।
वर्ण व्यवस्था ने ना केवल अन्य धर्मों को प्रभावित किया बल्कि धर्म परिवर्तन का कारण भी बनी।
प्राचीन, मध्य तथा उत्तर काल से ही बहुत सी रूढ़िवादी परम्परा वर्तमान समय तक चली आ रही है।
जिसको विकास के भीतर अवरोध के तौर पर उपनिवेश काल में जानबूझकर बढ़ावा दिया गया।
प्राचीन इतिहास को ना केवल उन्हें ही जानना चाहिए जो उस पर फिर से लौटना चाहते हैं, बल्कि देश की प्रगति एवं विकास के लिए भी भारतीय प्राचीन इतिहास को जानना आवश्यक है।

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