व्यपगत का सिद्धांत एक साम्राज्यवाद समर्थक उपागम था जिसका उद्देश्य भारत में ब्रिटिश राज्यक्षेत्र का विस्तार करना था| इस सिद्धांत का प्रारंभ लॉर्ड डलहौजी द्वारा किया गया था| इस सिद्धांत के अनुसार वे राज्य, जिनका कोई उत्तराधिकारी नहीं था, अपने शासन करने के अधिकार खो देते थे |साथ ही उत्तराधिकारी को गोद लेने पर भी उनके राज्य वापस प्राप्त नहीं किया जा सकता था| सतारा(1848 ई.) जयपुर(1849 ई.) संभलपुर(1849 ई.) बाहत(1850 ई.) उदयपुर(1852 झाँसी(1853 ई.) नागपुर(1854 ई.) ऐसे भारतीय राज्य थे जिनका डलहौजी द्वारा व्यपगत के सिद्धांत के आधार पर ब्रिटिश साम्राज्य में विलय कर लिया गया था|
व्यपगत का सिद्धांत एक साम्राज्यवाद समर्थक उपागम था जिसका उद्देश्य भारत में ब्रिटिश राज्यक्षेत्र का विस्तार करना था| इस सिद्धांत का प्रारंभ लॉर्ड डलहौजी द्वारा किया गया था| इस सिद्धांत के अनुसार वे राज्य, जिनका कोई वंशानुगत उत्तराधिकारी नहीं था, अपने शासन करने के अधिकार खो देते थे| साथ ही उत्तराधिकारी को गोद लेने पर भी उनके राज्य को वापस प्राप्त नहीं किया जा सकता था|
1818 ई. से पूर्व ,ईस्ट इंडिया कंपनी की नीतियाँ और गतिविधियाँ व्यापारिक थी न कि एक संप्रभु शासक की लेकिन उसके बाद उनकी महत्वाकांक्षा संपूर्ण भारत पर शासन करने की इच्छा में बदल गयी, जिसकी परिणति पहले सहायक संधि प्रणाली और अब व्यपगत सिद्धांत के रूप में देखने को मिली | इन नीतियों को अपनाने का उद्देश्य राज्य के संपूर्ण अधिकारों पर नियंत्रित स्थापित कर उन्हें ब्रिटिश उपनिवेश बनाना था| मुख्य जटिलता उन राज्यों को लेकर थी जिनका का कोई उत्तराधिकारी नहीं था | व्यपगत की नीति ऐसे ही राज्यों को हड़पने के लिए बनायीं गयी थी | इस नीति के तहत ऐसे राज्यों से ,उत्तराधिकारी न होने के आधार पर, शासन करने का अधिकार छीन लिया गया | डलहौजी द्वारा व्यपगत के सिद्धांत के आधार पर निम्नलिखित राज्यों का ब्रिटिश साम्राज्य में विलय कर लिया गया था-
• सतारा(1848 ई.)
• जयपुर(1849 ई.)
• संभलपुर(1849 ई.)
• बाहत(1850 ई.)
• उदयपुर(1852 ई.)
• झाँसी(1853 ई.)
• नागपुर(1854 ई.)
लेकिन कुछ समय बाद इस नीति के प्रावधानों के कारण जनता के मध्य काफी रोष पैदा हो गया और उड़ीसा के महान क्रांतिकारी सुरेन्द्र देसाई ने व्यपगत के सिद्धांत के विरोध में आवाज उठाई| आगे चलकर इसी रोष ने 1857 ई. के विद्रोह का आधार तैयार किया|
व्यपगत के सिद्धांत के मुख्य बिंदु -
• साम्राज्यवादी-समर्थक उपागम के आधार पर भारत में ब्रिटिश क्षेत्र का विस्तार करने की नीति,
• यदि किसी राज्य में कोई उत्तराधिकारी नहीं है,तो उसका विलय ब्रिटिश साम्राज्य में कर लेना,
• उत्तराधिकार हेतु संतान को गोद लेने पर प्रतिबन्ध,
• शासकों द्वारा गोद ली गयी संतान को उपाधि और पेंशन देने पर प्रतिबन्ध,
• गोद ली गयी संतान को शासक की केवल निजी संपत्ति ही उत्तराधिकार में प्राप्त होना,
• उपाधियों और पेंशन की समाप्ति,
निष्कर्ष : हालाँकि ,ब्रिटिश भारत में व्यापार के उद्देश्य से आये थे लेकिन संसाधनों पर एकाधिकार प्राप्त करने की उनकी महत्वाकांक्षा ने उन्हें भारत में शक्तिशाली बना दिया |व्यपगत का सिद्धांत वास्तव में विस्तारवादी नीति थी, जो किसी भी तरह से अन्य राज्यों का ब्रिटिश भारत में विलय कर भारत में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया के राज्यक्षेत्र में विस्तार करना चाहती थी| इस नीति का प्रारंभ डलहौजी द्वारा किया गया था ताकि अन्य राज्यों को अपना उपनिवेश बनाने की शक्ति ईस्ट इंडिया कंपनी को प्रदान की जा सके और कंपनी के राजस्व में भी वृद्धि हो सके| इस नीति के कारण एक तरफ तो जनता के मध्य ब्रिटिशों की छवि ख़राब हुई तो दूसरी तरफ इस नीति ने विभिन्न राज्यों के शासकों को ब्रिटिशों का घोर विरोधी बना दिया ,बाद में यही 1857 ई. की क्रांति का एक मुख्य कारण बना|
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