भारतीय राजवंश और उनके योगदान., - Study Search Point

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भारतीय राजवंश और उनके योगदान.,

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भारत का इतिहास बहुत व्यापक है जो कई राजवंशों के उत्थान और पतन का गवाह रहा है| भारत का इतिहास बहुत व्यापक है जो कई राजवंशों के उत्थान और पतन का गवाह रहा है| प्राचीन काल में भारत पर कई राजवंशों ने शासन किया था जिनमें प्रमुख राजवंश महाजनपद, नंद राजवंश, मौर्य राजवंश, पांड्य राजवंश, चेर राजवंश, चोल राजवंश, पल्लव राजवंश, चालुक्य राजवंश आदि थे जिन्होंने लम्बे समय तक भारत की धरती पर शासन किया था| 

महाजनपद (600– 325 ई.पू.) -

महाजनपद का शाब्दिक अर्थ “महान राज्य” है| प्राचीन भारत में इस प्रकार के सोलह राज्य या कुलीन गणराज्य थे|
भौगोलिक क्षेत्र और राजधानी -

अंग -

यह बिहार के वर्तमान मुंगेर और भागलपुर जिले में स्थित था| इसकी राजधानी “चम्पा”/“चम्पानगरी” थी|
अस्सक या अस्मक -
यह दक्षिण भारत या “दक्षिणापथ” में गोदावरी और नर्मदा नदी के बीच स्थित था| इसकी राजधानी “पोतन” या “पोटली” थी जिसे महाभारत में “पौदन्या” के रूप में वर्णित किया गया है|
अवन्ति -
इसे “मालवा” के नाम से भी जाना जाता है और इसे “वेत्रवती” नदी द्वारा उत्तर एवं दक्षिण दो भागों में बाँटा गया था| उत्तरी अवन्ति की राजधानी “उज्जैन” और दक्षिणी अवन्ति की राजधानी “महिष्मति” थी|
चेदि -
यह वर्तमान बुन्देलखण्ड क्षेत्र में “कुरू” और “वत्स” साम्राज्य के बीच यमुना नदी के किनारे स्थित था| इसकी राजधानी “शक्तिमति” या “सोत्थिवती” थी|
गांधार -
यह वर्तमान पाकिस्तान और अफगानिस्तान के पश्चिमी भाग में स्थित था| इसकी राजधानी “तक्षशिला” (रावलपिंडी, पाकिस्तान के नजदीक) और पुष्कलावती राजपुर या हाटक थी|
काशी -
यह वर्तमान उत्तरप्रदेश के वाराणसी जिले में स्थित था| इसकी राजधानी “वाराणसी” थी|
कम्बोज -
यह पाकिस्तान के “हजारा” जिले में स्थित था| इसकी राजधानी राजपुर या हाटक थी|
कोसल -
यह वर्तमान उत्तरप्रदेश के फैजाबाद, गोंडा और बहराइच जिले में स्थित था| उत्तरी कोसल की राजधानी श्रावस्ती या सहेत-महेत और दक्षिणी कोसल की राजधानी साकेत या अयोध्या थी|
कुरू -
यह वर्तमान हरियाणा और दिल्ली क्षेत्र में स्थित था| इसकी राजधानी इन्द्रप्रस्थ (आधुनिक दिल्ली)   थी|
मगध -
यह साम्राज्य मोटे तौर पर आधुनिक दक्षिणी बिहार के पटना और गया जिलों एवं पूर्व में बंगाल के कुछ हिस्सों में फैला हुआ था| इसकी राजधानी गिरिव्रज, राजगृह/राजगीर, पाटलिपुत्र और वैशाली थी|
मल्ल -
यह वर्तमान उत्तरप्रदेश के देवरिया, बस्ती, गोरखपुर और सिद्धार्थनगर जिले में स्थित था| इसकी राजधानी कुशीनगर या पावा थी|
मच्छ या मत्स्य -
यह वर्तमान राजस्थान के अलवर, भरतपुर और जयपुर के क्षेत्र में स्थित था| इसकी राजधानी विराटनगर थी|
पांचाल -
यह वर्तमान पश्चिमी उत्तरप्रदेश के रूहेलखण्ड क्षेत्र में स्थित था| उत्तरी पांचाल की राजधानी अहिच्छत्र और दक्षिणी पांचाल की राजधानी काम्पिल्य थी|
शूरसेन -
यह वर्तमान व्रजमंडल के क्षेत्र में स्थित था| इसकी राजधानी मथुरा थी|
वज्जि -
यह वर्तमान बिहार के मुजफ्फरपुर और वैशाली जिले में स्थित था| इसकी राजधानी विदेह, मिथिला, वैशाली थी|
वत्स या वम्स -
यह वर्तमान उत्तरप्रदेश के इलाहाबाद और मिर्जापुर जिले में स्थित था| इसकी राजधानी कौशाम्बी थी|
स्रोत - https://www.jagranjosh.com
हर्यक राजवंश (544 - 492 ई.पू.)
शासक / योगदान और उपलब्धियां  -
बिम्बिसार - हर्यक राजवंश का संस्थापक था| / उसने मगध साम्राज्य के विस्तार के क्रम में “अंग” को हड़पा और कोसल एवं वैशाली महाजनपदों के साथ वैवाहिक संबंध स्थापित किया था| / वह बुद्ध का समकालीन था| / इसकी राजधानी राजगीर (गिरिव्रज) थी|
अजातशत्रु - वह अपने पिता की हत्या कर सिंहासन पर बैठा| / उसने राजगृह में एक किले का निर्माण करवाया था| साथ ही गंगा नदी के किनारे दुश्मनों पर निगरानी रखने के लिए “जलदुर्ग” नामक किला का निर्माण करवाया था|
उदायिन - उसने गंगा और सोन नदी के संगम पर पाटलिपुत्र नामक नगर की स्थापना की थी|

शिशुनाग राजवंश -

1. इस राजवंश का संस्थापक शिशुनाग था जो हर्यक वंश के शासक नागदशक का मंत्री था|
2. इस राजवंश की सबसे बड़ी उपलब्धि अवन्ति का विनाश था।
3. इस राजवंश के शासक कालाशोक (काकवर्ण) के शासनकाल में 383 ई.पू. में द्वितीय बौद्ध संगीति का आयोजन वैशाली में किया गया था|

नंद राजवंश -

1. शिशुनाग वंश को समाप्त कर इस राजवंश की स्थापना महापद्म ने की थी| महापद्म को “सर्वक्षत्रान्तक” अर्थात सभी क्षत्रियों का नाश करने वाला और “उग्रसेन” अर्थात विशाल सेना का मालिक कहा जाता था|
2. महापद्म को "भारतीय इतिहास का पहला साम्राज्य निर्माता" के रूप में वर्णित किया गया था। पुराणों में उसे “एकराट” कहा गया है जिसका अर्थ एकमात्र सम्राट होता है।
3. धनानंद के शासनकाल के दौरान 326 ईसा पूर्व में उत्तर-पश्चिम भारत में सिकंदर ने आक्रमण किया था|

मौर्य राजवंश -

शासक / योगदान और उपलब्धियां  -
चन्द्रगुप्त मौर्य - इसने कौटिल्य की मदद से 322 ईसा पूर्व में अंतिम नंद शासक धनानंद को गद्दी से हटाकर पाटलिपुत्र पर कब्जा कर लिया था| / इसने 306 ईसा पूर्व में सेल्यूकस निकेटर को पराजित किया था|
इसके दरबार में यूनानी राजदूत “मेगास्थनीज” आया था| 
बिन्दुसार - यूनानी लेखकों ने इसे “अमित्रोचेड्रस” नाम दिया है जो संस्कृत शब्द से लिया गया है जिसका अर्थ “दुश्मनों का हत्यारा” होता है| / इसने आजिवकों को संरक्षण प्रदान किया था|
अशोक - अपने प्रशासनिक कार्यों और धम्म के सिद्धांत के लिए जाना जाता है|
अपने साम्राज्य में शांति और अधिकार बनाए रखने के लिए उसने एक बड़ी और शक्तिशाली सेना का गठन किया था| अशोक ने एशिया और यूरोप के कई राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित किया था और बौद्ध मठों का निर्माण करवाया था| / महेंद्र, तिवरा / तिवला (केवल एक शिलालेख में उल्लेख किया गया है), कुणाल और तालुक अशोक के प्रमुख पुत्र थे, जबकि संघमित्रा और चारूमती नामक दो पुत्री थी|

इंडो-ग्रीक राजवंश -

1. इंडो-ग्रीक शासकों में सबसे प्रसिद्ध शासक “मिनान्डर” (165-145 ई.पू.) था जिसे “मिलिन्द” के नाम से भी जाना जाता है|
2. पाली ग्रन्थ “मिलिन्दपन्हो” के अनुसार मिलिन्द ने “नागसेन” की सलाह पर बौद्ध धर्म को स्वीकार किया था|
3. भारत में सर्वप्रथम सोने के सिक्के ग्रीक शासकों ने जारी किया था|
4. ग्रीक शासकों ने भारत में यूनानी कला की शुरूआत की थी|

शक राजवंश -

1. इस राजवंश के शासक “रूद्रदामन I” (130-150 ईस्वी) ने काठियावाड़ क्षेत्र में स्थित “सुदर्शन झील” का जीर्णोद्धार करवाया था|
2. शक शासकों ने सर्वप्रथम संस्कृत भाषा में अभिलेख (जूनागढ़ अभिलेख) जारी किये थे|

कुषाण राजवंश -

1. इन्हें “येची” या “तोचारियन” भी कहा जाता है और ये लोग “स्टेपी घास के मैदानों” में रहनेवाले खानाबदोश लोग थे|
2. कुषाण राजवंश का सबसे महान राजा “कनिष्क” था जिसने 78 ईस्वी में “शक संवत” की शुरूआत की थी| 
3. कनिष्क के दरबार में पार्श्व, वसुमित्र, अश्वघोष, नागार्जुन, चरक (चिकित्सक) और माथर जैसे विद्वानों को संरक्षण प्राप्त था|

शुंग राजवंश -

1. इस राजवंश की स्थापना मौर्यवंश के अंतिम शासक के ब्राह्मण सेनापति “पुष्यमित्र शुंग” ने की थी|
2. “महाभाष्य” के लेखक ‘पतंजलि’ का जन्म मध्य भारत में “गोनार्दा” नामक स्थान पर हुआ था| पुष्यमित्र शुंग द्वारा किए गए 2 यज्ञों के पुरोहित पतंजलि थे|
3. भरहुत स्तूप शुंग कालीन सबसे प्रसिद्ध स्मारक है|
4. शुंग कालीन कला: भज (पुणे) का विहार, चैत्य और स्तूप, अमरावती का स्तूप और नासिक का चैत्य|

कण्व राजवंश -

1. इस राजवंश की स्थापना शुंग राजवंश के मंत्री “वासुदेव” ने शुंग राजवंश के अंतिम शासक “देवभूति” की हत्या करके की थी|

सातवाहन राजवंश -

1. इस राजवंश की स्थापना “सिमूक” (60-37 ई.पू.) ने की थी|
2. सातवाहन राजवंश के शासनकाल में उत्तर-पश्चिमी दक्कन या महाराष्ट्र में चट्टानों को काटकर कई चैत्यों (पूजाघर) और विहारों (मठों) का निर्माण किया गया था जिनमें नासिक, कन्हेरी और कार्ले के चैत्य और विहार प्रसिद्ध हैं|

पांड्य राजवंश -

1. इस राजवंश का वर्णन सर्वप्रथम “मेगास्थनीज” ने किया था|
2. पांड्य राजवंश के शासनकाल में रोम से व्यापार होता था| पांड्य शासको ने “अगस्तस” के दरबार में अपने राजदूत भेजे थे|

चोल राजवंश -

1. इसे “चोलमंडलम” भी कहा जाता है जो “पांड्य” साम्राज्य के उत्तर-पूर्व में “पेन्नार” और “वेल्लार” नदी के बीच स्थित था|
2. इसकी राजधानी “कावेरीपट्टनम” या “पुहार” थी|

चेर राजवंश -

1. इस राजवंश की राजधानी “वन्जी” थी जिसे अब केरल कहा जाता है|
2. इस राजवंश के शासनकाल में रोम से व्यापार होता था|

संगम युग -

1. यह युग मोर्योत्तर काल एवं पूर्व-गुप्तकाल के समकालीन था|
2. संगम तमिल कवियों की एक कॉलेज या शाही संरक्षण के तहत आयोजित होने वाली एक सभा थी|
3. “तिरूवल्लुवर” ने “कुरल” नामक ग्रन्थ लिखा था जिसे 'पंचम वेद' या 'तमिल भूमि की बाइबल' कहा जाता है|

तीन संगमों का आयोजन स्थल : -

मदुरै, जिसकी अध्यक्षता “अगस्त्य” ने की थी|
कपाटपुरम, जिसकी अध्यक्षता “तोल्काप्पियर” ने की थी|
मदुरै, जिसकी अध्यक्षता “नक्कीरर” ने की थी|

गुप्त राजवंश -

शासक / योगदान और उपलब्धियां -
चन्द्रगुप्त I (319-334 ईस्वी) -
पहला गुप्त शासक जिसने “महराजाधिराज” की उपाधि धारण की थी| / इसने “मगध”, “प्रयाग” और “साकेत” पर गुप्तों का आधिपत्य स्थापित किया| / इसने 319-20 ईस्वी में “गुप्त संवत” की शुरूआत की थी|
समुद्रगुप्त (335-380 ईस्वी) / इसे “भारत का नेपोलियन” कहा जाता है|
श्रीलंका के शासक “मेघवर्मन” ने गया में बौद्ध मंदिर के निर्माण हेतु आज्ञा लेने के लिए एक “धर्म-प्रचारक” को समुद्रगुप्त के दरबार में भेजा था| / “इलाहाबाद के स्तंभलेख” से हमें समुद्रगुप्त के बारे में विस्तृत जानकारी मिलती है| / इसने “कविराज” और “विक्रम” की उपाधि धारण की थी|
चन्द्रगुप्त II (380-414 ईस्वी) -
महरौली में कुतुबमीनार के नजदीक स्थित “लौह स्तंभलेख” चन्द्रगुप्त II से संबंधित है| / इसका दरबार “नवरत्नों” से सुसज्जित था जिसके प्रमुख कालिदास और अमरसिंह थे| / इसके शासनकाल में “चीनी यात्री फाह्यान” (399-414 ईस्वी में) भारत आया था| / इसने पश्चिम भारत के “शक क्षत्रपों” पर विजय के उपलक्ष्य में “विक्रमादित्य” की उपाधि धारण की थी|
कुमारगुप्त I (415-455 ईस्वी) -
वह “भगवान कार्तिकेय” का भक्त था| / इसने “नालन्दा महाविहार” की स्थापना की थी और उसे एक “वृहद शिक्षाकेन्द्र” के रूप में विकसित किया था|
स्कंदगुप्त (455-467 ईस्वी) - इसने शासनकाल में “हूणों” ने आक्रमण किया था| / “भीतरी स्तंभलेख” स्कंदगुप्त से संबंधित है|

पुष्यभूति राजवंश -

1. इस राजवंश का सबसे महान शासक “हर्षवर्धन” था जिसने “कन्नौज” को अपनी राजधानी बनाया था|
2. हर्षवर्धन के शासनकाल में “ह्वेनसांग” भारत आया था|
3. हर्षवर्धन ने “नालन्दा” में एक विशाल मठ की स्थापना करवाई थी|
4. हर्षवर्धन के दरबारी कवि “बाणभट्ट” ने “प्रियदर्शिका”, “रत्नावली” और “नागानन्द” नामक पुस्तकों की रचना की थी|    

राष्ट्रकूट राजवंश -

1. इस राजवंश की स्थापना “दन्तिदुर्ग” ने की थी|
2. इस वंश के शासक “कृष्ण I” ने एलोरा में स्थित “कैलाश मंदिर” का निर्माण करवाया था|
3. इस वंश के शासक “अमोघवर्ष” ने पहली कन्नड़ कविता “कविराजमार्ग” लिखी थी|
4. एलिफेंटा के “गुहा मंदिरों” (शिव को समर्पित) के निर्माण का श्रेय “राष्ट्रकूटों” को जाता है|

गंग राजवंश -

1. इस वंश के शासक “नरसिंहदेव” ने कोणार्क में स्थित “सूर्य मंदिर” का निर्माण करवाया था|
2. इस वंश के शासक “अनन्तवर्मन” ने पुरी में स्थित “जगन्नाथ मंदिर” का निर्माण करवाया था|
3. इस वंश के शासक “केसरी” ने भुवनेश्वर में स्थित “लिंगराज मंदिर” का निर्माण करवाया था|

पल्लव राजवंश -

1. इस राजवंश का संस्थापक “सिंहविष्णु” था|
2. इस राजवंश का सबसे महान शासक “नरसिंहवर्मन” था जिसने “मामल्ल्पुरम” (वर्तमान “महाबलीपुरम”) नामक शहर की स्थापना की थी एवं चट्टानों को काटकर रथों एवं मंदिरों का निर्माण करवाया था|

Note  - यहाँ हम "प्राचीन भारतीय राजवंश और उनके योगदान” का संक्षिप्त विवरण दे रहे हैं जो UPSC, SSC, State Services, NDA, CDS और Railways जैसी प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे छात्रों के लिए बहुत ही उपयोगी है| (साभार - जागरण जोश)

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