हुमायूँ का मकबरा इमारत परिसर मुगल वास्तुकला से प्रेरित मकबरा स्मारक है। यह नई दिल्ली के दीनापनाह अर्थात् पुराने किले के निकट निज़ामुद्दीन पूर्व क्षेत्र में मथुरा मार्ग के निकट स्थित है। गुलाम वंश के समय में यह भूमि किलोकरी किले में हुआ करती थी और नसीरुद्दीन (1268-1287) के पुत्र तत्कालीन सुल्तान केकूबाद की राजधानी हुआ करती थी। यहाँ मुख्य इमारत मुगल सम्राट हुमायूँ का मकबरा है और इसमें हुमायूँ की कब्र सहित कई अन्य राजसी लोगों की भी कब्रें हैं। यह समूह विश्व धरोहर घोषित है, एवं भारत में मुगल वास्तुकला का प्रथम उदाहरण है। इस मक़बरे में वही चारबाग शैली है, जिसने भविष्य में ताजमहल को जन्म दिया। यह मकबरा हुमायूँ की विधवा बेगम हमीदा बानो बेगम के आदेशानुसार 1562 में बना था। इस भवन के वास्तुकार सैयद मुबारक इब्न मिराक घियाथुद्दीन एवं उसके पिता मिराक घुइयाथुद्दीन थे जिन्हें अफगानिस्तान के हेरात शहर से विशेष रूप से बुलवाया गया था। मुख्य इमारत लगभग आठ वर्षों में बनकर तैयार हुई और भारतीय उपमहाद्वीप में चारबाग शैली का प्रथम उदाहरण बनी। यहां सर्वप्रथम लाल बलुआ पत्थर का इतने बड़े स्तर पर प्रयोग हुआ था।1993 में इस इमारत समूह को युनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया।
इस परिसर में मुख्य इमारत मुगल सम्राट हुमायूँ का मकबरा है। हुमायूँ की कब्र के अलावा उसकी बेगम हमीदा बानो तथा बाद के सम्राट शाहजहां के ज्येष्ठ पुत्र दारा शिकोह और कई उत्तराधिकारी मुगल सम्राट जहांदर शाह, फर्रुख्शियार, रफी उल-दर्जत, रफी उद-दौलत एवं आलमगीर द्वितीय आदि की कब्रें स्थित हैं। इस इमारत में मुगल स्थापत्य में एक बड़ा बदलाव दिखा, जिसका प्रमुख अंग चारबाग शैली के उद्यान थे। ऐसे उद्यान भारत में इससे पूर्व कभी नहीं दिखे थे और इसके बाद अनेक इमारतों का अभिन्न अंग बनते गये। ये मकबरा मुगलों द्वारा इससे पूर्व निर्मित हुमायुं के पिता बाबर के काबुल स्थित मकबरे बाग ए बाबर से एकदम भिन्न था। बाबर के साथ ही सम्राटों को बाग में बने मकबरों में दफ़्न करने की परंपरा आरंभ हुई थी। अपने पूर्वज तैमूर लंग के समरकंद (उज़्बेकिस्तान) में बने मकबरे पर आधारित ये इमारत भारत में आगे आने वाली मुगल स्थापत्य के मकबरों की प्रेरणा बना। ये स्थापत्य अपने चरम पर ताजमहल के साथ पहुंचा।
राजधानी दिल्ली में हुमायूं का मकबरा महान मुगल वास्तुकला का एक उत्कृष्ट नमूना है। वर्ष 1570 में निर्मित यह मकबरा विशेष रूप से सांस्कृतिक महत्व रखता है, क्योंकि यह भारतीय उप महाद्वीप पर प्रथम उद्यान - मकबरा था। इसकी अनोखी सुंदरता को अनेक प्रमुख वास्तुकलात्मक नवाचारों से प्रेरित कहा जा सकता है, जो एक अजुलनीय ताजमहल के निर्माण में प्रवर्तित हुआ। कई प्रकार से भव्य लाल और सफेद सेंड स्टोन से बनी यह इमारत उतनी ही भव्य है जितना की आगरा का प्रसिद्ध प्रेम स्मारक अर्थात ताजमहल। यह ऐतिहासिक स्मारक हुमायूं की रानी हमीदा बानो बेगम (हाजी बेगम) ने लगभग 1.5 मिलियन की लागत पर निर्मित कराया था। ऐसा माना जाता है कि इस मकबरे की संकल्पना उन्होंने तैयार की थी।
इस स्मारक की भव्यता यहां आने पर दो मंजिला प्रवेश द्वार से अंदर प्रवेश करते समय ही स्पष्ट हो जाती है। यहां की ऊंची छल्लेदार दीवारें एक चौकोर उद्यान को चार बड़े वर्गाकार हिस्सों में बांटती हैं, जिनके बीच पानी की नहरें हैं। प्रत्येक वर्गाकार को पुन: छोटे मार्गों द्वारा छोटे वर्गाकारों में बांटा गया है, जिससे एक प्रारूपिक मुहर उद्यान, चार बाग बनता है। यहां के फव्वारों को सरल किन्तु उच्च विकसित अभियांत्रिकी कौशलों से बनाया गया है जो इस अवधि में भारत में अत्यंत सामान्य है। अंतिम मुगल शासक, बहादुर शाह जफर ।। ने 1857 में स्वतंत्र के प्रथम संग्राम के दौरान इसी मकबरे में आश्रय लिया था। मुगल राजवंश के अनेक शासकों को यहीं दफनाया गया है। हुमायूं की पत्नी को भी यहीं दफनाया गया था।
यहां केन्द्रीय कक्ष में मुख्य इमारत मुस्लिम प्रथा के अनुसार उत्तर - दक्षिण अक्ष पर अभिविन्यस्त है। पारम्परिक रूप से शरीर को उत्तर दिशा में सिर, चेहरे को मक्का की ओर झुका कर रखा जाता है। यहां स्थित संपूर्ण गुम्बद एक पूर्ण अर्ध गोलाकार है जो मुगल वास्तुकला की खास विशेषता है। यह संरचना लाल सेंड स्टोन से निर्मित की गई है, किन्तु यहां काले और सफेद संगमरमर का पत्थर सीमा रेखाओं में उपयोग किया गया है। यूनेस्को ने इस भव्य मास्टर पीस को विश्व विरासत घोषित किया है।
पाषाण निर्मित विशाल इमारत में प्रवेश के लिये दो 16 मीटर ऊंचे दुमंजिले प्रवेशद्वार पश्चिम और दक्षिण में बने हैं। इन द्वारों में दोनों ओर कक्ष हैं एवं ऊपरी तल पर छोटे प्रांगण है। मुख्य इमारत के ईवान पर बने सितारे के समान ही एक छः किनारों वाला सितारा मुख्य प्रवेशद्वार की शोभा बढ़ाता है। मकबरे का निर्माण मूलरूप से पत्थरों को गारे-चूने से जोड़कर किया गया है और उसे लाल बलुआ पत्थर से ढंका हुआ है। इसके ऊपर पच्चीकारी, फर्श की सतह, झरोखों की जालियों, द्वार-चौखटों और छज्जों के लिये श्वेत संगमर्मर का प्रयोग किया गया है। मकबरे का विशाल मुख्य गुम्बद भी श्वेत संगमर्मर से ही ढंका हुआ है। मकबरा 8मीटर ऊंचे मूल चबूतरे पर खड़ा है, 12000 वर्ग मीटर की ऊपरी सतह को लाल जालीदार मुंडेर घेरे हुए है। इस वर्गाकार चबूतरे के कोनों को छांटकर अष्टकोणीय आभास दिया गया है। इस चबूतरे की नींव में 56 कोठरियां बनी हुई हैं, जिनमें 100 से अधिक कब्रें बनायी हुई हैं। यह पूरा निर्माण एक कुछ सीढियों ऊंचे चबूतरे पर खड़ा है।
फारसी वास्तुकला से प्रभावित ये मकबरा 47 मी. ऊंचा और 300 फीट चौड़ा है। इमारत पर फारसी बल्बुअस गुम्बद बना है, जो सर्वप्रथम सिकंदर लोधी के मकबरे में देखा गया था। यह गुम्बद 42.5 मीटर के ऊंचे गर्दन रूपी बेलन पर बना है। गुम्बद के ऊपर 6 मीटर ऊंचा पीतल का किरीट कलश स्थापित है और उसके ऊपर चंद्रमा लगा हुआ है, जो तैमूर वंश के मकबरों में मिलता है। गुम्बद दोहरी पर्त में बना है, बाहरी पर्त के बाहर श्वेत संगमर्मर का आवरण लगा है और अंदरूनी पर्त गुफा रूपी बनी है। गुम्बद के शुद्ध और निर्मल श्वेत रूप से अलग शेष इमारत लाल बलुआ पत्थर की बनी है, जिसपर श्वेत और काले संगमर्मर तथा पीले बलुआ पत्थर से पच्चीकारी का काम किया गया है। ये रंगों का संयोजन इमारत को एक अलग आभा देता है।
साभार - विकिपीडिया
राजधानी दिल्ली में हुमायूं का मकबरा महान मुगल वास्तुकला का एक उत्कृष्ट नमूना है। वर्ष 1570 में निर्मित यह मकबरा विशेष रूप से सांस्कृतिक महत्व रखता है, क्योंकि यह भारतीय उप महाद्वीप पर प्रथम उद्यान - मकबरा था। इसकी अनोखी सुंदरता को अनेक प्रमुख वास्तुकलात्मक नवाचारों से प्रेरित कहा जा सकता है, जो एक अजुलनीय ताजमहल के निर्माण में प्रवर्तित हुआ। कई प्रकार से भव्य लाल और सफेद सेंड स्टोन से बनी यह इमारत उतनी ही भव्य है जितना की आगरा का प्रसिद्ध प्रेम स्मारक अर्थात ताजमहल। यह ऐतिहासिक स्मारक हुमायूं की रानी हमीदा बानो बेगम (हाजी बेगम) ने लगभग 1.5 मिलियन की लागत पर निर्मित कराया था। ऐसा माना जाता है कि इस मकबरे की संकल्पना उन्होंने तैयार की थी।
इस स्मारक की भव्यता यहां आने पर दो मंजिला प्रवेश द्वार से अंदर प्रवेश करते समय ही स्पष्ट हो जाती है। यहां की ऊंची छल्लेदार दीवारें एक चौकोर उद्यान को चार बड़े वर्गाकार हिस्सों में बांटती हैं, जिनके बीच पानी की नहरें हैं। प्रत्येक वर्गाकार को पुन: छोटे मार्गों द्वारा छोटे वर्गाकारों में बांटा गया है, जिससे एक प्रारूपिक मुहर उद्यान, चार बाग बनता है। यहां के फव्वारों को सरल किन्तु उच्च विकसित अभियांत्रिकी कौशलों से बनाया गया है जो इस अवधि में भारत में अत्यंत सामान्य है। अंतिम मुगल शासक, बहादुर शाह जफर ।। ने 1857 में स्वतंत्र के प्रथम संग्राम के दौरान इसी मकबरे में आश्रय लिया था। मुगल राजवंश के अनेक शासकों को यहीं दफनाया गया है। हुमायूं की पत्नी को भी यहीं दफनाया गया था।
यहां केन्द्रीय कक्ष में मुख्य इमारत मुस्लिम प्रथा के अनुसार उत्तर - दक्षिण अक्ष पर अभिविन्यस्त है। पारम्परिक रूप से शरीर को उत्तर दिशा में सिर, चेहरे को मक्का की ओर झुका कर रखा जाता है। यहां स्थित संपूर्ण गुम्बद एक पूर्ण अर्ध गोलाकार है जो मुगल वास्तुकला की खास विशेषता है। यह संरचना लाल सेंड स्टोन से निर्मित की गई है, किन्तु यहां काले और सफेद संगमरमर का पत्थर सीमा रेखाओं में उपयोग किया गया है। यूनेस्को ने इस भव्य मास्टर पीस को विश्व विरासत घोषित किया है।
पाषाण निर्मित विशाल इमारत में प्रवेश के लिये दो 16 मीटर ऊंचे दुमंजिले प्रवेशद्वार पश्चिम और दक्षिण में बने हैं। इन द्वारों में दोनों ओर कक्ष हैं एवं ऊपरी तल पर छोटे प्रांगण है। मुख्य इमारत के ईवान पर बने सितारे के समान ही एक छः किनारों वाला सितारा मुख्य प्रवेशद्वार की शोभा बढ़ाता है। मकबरे का निर्माण मूलरूप से पत्थरों को गारे-चूने से जोड़कर किया गया है और उसे लाल बलुआ पत्थर से ढंका हुआ है। इसके ऊपर पच्चीकारी, फर्श की सतह, झरोखों की जालियों, द्वार-चौखटों और छज्जों के लिये श्वेत संगमर्मर का प्रयोग किया गया है। मकबरे का विशाल मुख्य गुम्बद भी श्वेत संगमर्मर से ही ढंका हुआ है। मकबरा 8मीटर ऊंचे मूल चबूतरे पर खड़ा है, 12000 वर्ग मीटर की ऊपरी सतह को लाल जालीदार मुंडेर घेरे हुए है। इस वर्गाकार चबूतरे के कोनों को छांटकर अष्टकोणीय आभास दिया गया है। इस चबूतरे की नींव में 56 कोठरियां बनी हुई हैं, जिनमें 100 से अधिक कब्रें बनायी हुई हैं। यह पूरा निर्माण एक कुछ सीढियों ऊंचे चबूतरे पर खड़ा है।
फारसी वास्तुकला से प्रभावित ये मकबरा 47 मी. ऊंचा और 300 फीट चौड़ा है। इमारत पर फारसी बल्बुअस गुम्बद बना है, जो सर्वप्रथम सिकंदर लोधी के मकबरे में देखा गया था। यह गुम्बद 42.5 मीटर के ऊंचे गर्दन रूपी बेलन पर बना है। गुम्बद के ऊपर 6 मीटर ऊंचा पीतल का किरीट कलश स्थापित है और उसके ऊपर चंद्रमा लगा हुआ है, जो तैमूर वंश के मकबरों में मिलता है। गुम्बद दोहरी पर्त में बना है, बाहरी पर्त के बाहर श्वेत संगमर्मर का आवरण लगा है और अंदरूनी पर्त गुफा रूपी बनी है। गुम्बद के शुद्ध और निर्मल श्वेत रूप से अलग शेष इमारत लाल बलुआ पत्थर की बनी है, जिसपर श्वेत और काले संगमर्मर तथा पीले बलुआ पत्थर से पच्चीकारी का काम किया गया है। ये रंगों का संयोजन इमारत को एक अलग आभा देता है।
साभार - विकिपीडिया
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