असम की राजधानी दिसपुर के पास कामाख्या मंदिर, - Study Search Point

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असम की राजधानी दिसपुर के पास कामाख्या मंदिर,

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कामाख्या मंदिर असम की राजधानी दिसपुर के पास गुवाहाटी से 8 किलोमीटर दूर कामाख्या मे है। कामाख्या से भी 10 किलोमीटर दूर नीलाचल पव॑त पर स्थित हॅ। यह मंदिर शक्ति की देवी सती का मंदिर है। यह मंदिर एक पहाड़ी पर बना है व इसका महत् तांत्रिक महत्व है। प्राचीन काल से सतयुगीन तीर्थ कामाख्या वर्तमान में तंत्र सिद्धि का सर्वोच्च स्थल है। पूर्वोत्तर के मुख्य द्वार कहे जाने वाले असम राज्य की राजधानी दिसपुर से 6 किलोमीटर की दूरी पर स्थित नीलांचल अथवा नीलशैल पर्वतमालाओं पर स्थित मां भगवती कामाख्या का सिद्ध शक्तिपीठ सती के इक्यावन शक्तिपीठों में सर्वोच्च स्थान रखता है। यहीं भगवती की महामुद्रा (योनि-कुण्ड) स्थित है।
विश्व के सभी तांत्रिकों, मांत्रिकों एवं सिद्ध-पुरुषों के लिये वर्ष में एक बार पड़ने वाला अम्बूवाची योग पर्व वस्तुत एक वरदान है। यह अम्बूवाची पर्वत भगवती (सती) का रजस्वला पर्व होता है। पौराणिक शास्त्रों के अनुसार सतयुग में यह पर्व 16 वर्ष में एक बार, द्वापर में 12 वर्ष में एक बार, त्रेता युग में 7 वर्ष में एक बार तथा कलिकाल में प्रत्येक वर्ष जून माह में तिथि के अनुसार मनाया जाता है। इस बार अम्बूवाची योग पर्व जून की 22, 23, 24 तिथियों में मनाया गया।
कामाख्‍या मंदिर, जो नीलाचल पर्वत या कामगिरी पर्वत पर गुवाहाटी शहर में पहाड़ी की ऊंची चोटी पर स्थित है, अनेक धार्मिक स्‍थलों में से एक है, जो असम राज्‍य के समृद्ध ऐतिहासिक विवरण की कहानी स्‍वयं कहता है। यह पवित्र मंदिर असम शहर का हृदय है जो देखने वालों की आंखों को बांध लेता है। कामाख्‍या मंदिर का निर्माण देवी कामाख्‍या या सती के लिए किया गया था जो देवी दुर्गा या देवी शक्ति के अनेक अवतारों में से एक थीं।
यह मंदिर गुवाहाटी रेलवे स्‍टेशन से कुछ किलो मीटर की दूरी पर है और यह पूरे साल दर्शकों के लिए खुला रहता है। इस मंदिर के इतिहास के साथ एक कहानी जुड़ी हुई है, जो धार्मिक युग में हमें पीछे की ओर ले जाती है। इस कथा के अनुसार भगवान शिव की पत्‍नी सती (हिन्‍दु धर्म में एक पवित्र अवतार) ने अपना जीवन उस यज्ञ के आयोजन में समर्पित कर दिया जो उनके पिता दक्ष द्वारा आयोजित किया गया था, क्‍योंकि उन्‍होंने अपने पिता द्वारा अपने पति के अपमान को सहन नहीं किया। यह समाचार सुनने पर कि उनकी पत्‍नी की मृत्‍यु हो गई है, भगवान शिव जो सभी का नाश भी कर सकते हैं, आवेश में आए और उन्‍होंने दक्ष को दण्‍ड दिया तथा उनके सिर के स्‍थान पर बकरे का सिर लगा दिया। दुख और आवेश से पीडित शिव ने अपनी पत्‍नी सती का शरीर उठाया और विनाश का नृत्‍य अर्थात तांडव किया। विनाशकर्ता का आवेश इतना सघन था कि अनेक देवता उनके क्रोध को शांत करने के लिए तत्‍पर हुए। इस संघर्ष के बीच में भगवान विष्‍णु के हाथ में स्थित चक्र से सती के पार्थिव शरीर के 51 हिस्‍से हो गए (जो हिन्‍दु धर्म में एक अन्‍य महत्‍वपूर्ण देवता हैं) और उनका प्रजनन अंग या योनि उस स्‍थान पर गिरी जहां आज कामाख्‍या मंदिर स्थित है और आज यह उनके शरीर के अन्‍य हिस्‍सों के साथ एक शक्ति पीठ बन गया है।
कूच बिहार के राजा नर नारायण ने 1665 में इस मंदिर का दोबारा निर्माण कराया, जब इस पर विदेशी आक्रमणकारियों ने हमला कर नुकसान पहुंचाया। इस मंदिर में सात अण्‍डाकार स्‍पायर हैं, जिनमें से प्रत्‍येक पर तीन सोने के मटके लगे हुए हैं और प्रवेश द्वारा सर्पिलाकार है जो एक घुमावदार रास्‍ते से थोड़ी दूर पर खुलता है, जो विशेष रूप से मुख्‍य सड़क को मंदिर से जोड़ता है। मंदिर के शिल्‍पकला से बनाए गए कुछ पैनलों पर प्रसन्‍नता की स्थिति में कुछ हिन्‍दु देवी और देवताओं के चित्र हैं। कच्‍छुए, बंदर और बड़ी संख्‍या में कबूतरों ने इस मंदिर को अपना घर बनाया है तथा ये इसके परिसर में घुमते रहते हैं, जिन्‍हें मंदिर के प्राधिकारियों द्वारा तथा दर्शकों द्वारा भोजन कराया जाता है। मंदिर का शांत और कलात्‍मक वातावरण कुल मिलाकर दर्शकों के मन को एक अनोखी शांति देता है और उनके मन में एक सात्विक भावना उत्‍पन्‍न होती है, यही कारण है कि यहां काफी लोग आते हैं।
इसकी रहस्‍यमय भव्‍यता और देखने योग्‍य स्‍थान के साथ कामाख्‍या मंदिर न केवल असम बल्कि पूरे भारत का चकित कर देने वाला मंदिर है।

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