त्रिपुरा स्थापना दिवस 21 जनवरी को मनाया जाता है। 21 जनवरी 1972 को त्रिपुरा ने पूर्ण राज्य का दर्जा प्राप्त किया।
मुख्य लेख : त्रिपुरा -
त्रिपुरा भारत का एक राज्य है। त्रिपुरा दक्षिण एशिया के पूर्वोत्तर भाग में स्थित है। त्रिपुरा उत्तर, पश्चिम व दक्षिण में बांग्लादेश, पूर्व में मिज़ोरम और पूर्वोत्तर में असम राज्य से घिरा है। त्रिपुरा का क्षेत्रफल सिर्फ़ 10,486 वर्ग किमी है और यह गोवा तथा सिक्किम के बाद भारत का तीसरा सबसे छोटा राज्य है। देश के बाक़ी हिस्से से अलग-थलग रहने, पहाड़ी भूभाग व जनजातीय आबादी के आरण त्रिपुरा में भी भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्रों की समस्याएँ मौजूद हैं। त्रिपुरा की राजधानी अगरतला है। त्रिपुरा का इतिहास बहुत पुराना और लंबा है। इसकी अपनी अनोखी जनजातीय संस्कृति और दिलचस्प लोकगाथाएं है। बंगाली और त्रिपुरी भाषा (कोक बोरोक) यहाँ मुख्य रूप से बोली जाती हैं। ऐसा माना जाता है कि राजा त्रिपुर, जो ययाति वंश का 39 वाँ राजा था, उनके नाम पर ही इस राज्य का नाम त्रिपुरा पड़ा । एक मत के अनुसार स्थानीय देवी त्रिपुर सुन्दरी के नाम पर इसका नाम त्रिपुरा पड़ा। यह हिन्दू धर्म की 51 शक्ति पीठों में से एक है। इस राज्य के इतिहास को ‘राजमाला’ गाथाओं और मुसलमान इतिहासकारों के वर्णनों से जाना जा सकता है। महाभारत और पुराणों में भी त्रिपुरा का उल्लेख मिलता है। 'राजमाला' के अनुसार त्रिपुरा के शासकों को ‘फा’ उपनाम से पुकारा जाता था जिसका अर्थ ‘पिता’ होता है। 14वीं शताब्दी में बंगाल के शासकों द्वारा त्रिपुरा नरेश की मदद किए जाने का भी उल्लेख मिलता है। त्रिपुरा की स्थापना 14वीं शताब्दी में 'माणिक्य' नामक इंडो-मंगोलियन आदिवासी मुखिया ने की थी, जिसने हिन्दू धर्म अपनाया था। त्रिपुरा के शासकों को मुग़लों के बार-बार आक्रमण का भी सामना करना पडा जिसमें आक्रमणकारियों को कम ही सफलता मिलती थी। कई लड़ाइयों में त्रिपुरा के शासकों ने बंगाल के सुल्तानों को हराया। 19वीं शताब्दी में 'महाराजा वीरचंद्र किशोर माणिक्य बहादुर' के शासनकाल में त्रिपुरा में नए युग का सूत्रपात हुआ। उन्होंने अपने प्रशासनिक ढांचे को ब्रिटिश भारत के नमूने पर बनाया और कई सुधार लागू किए। उनके उत्तराधिकारों ने 15 अक्तूबर, 1949 तक त्रिपुरा पर शासन किया। इसके बाद त्रिपुरा भारत संघ में शामिल हो गया। प्रारम्भ में यह भाग - सी के अंतर्गत आने वाला राज्य था और 1956 में राज्यों के पुनर्गठन के बाद यह केंद्रशासित प्रदेश बना। 1972 में इसने पूर्ण राज्य का दर्जा प्राप्त किया। त्रिपुरा बांग्लादेश तथा म्यांमार की नदी घाटियों के बीच स्थित है। इसके तीन तरफ बांग्लादेश है और केवल उत्तर-पूर्व में यह असमऔर मिज़ोरम से जुड़ा हुआ है। अगरतला त्रिपुरा प्रान्त की राजधानी है।
मध्य एवं उत्तरी त्रिपुरा एक पहाड़ी क्षेत्र है, जिसे पूर्व से पश्चिम की ओर चार प्रमुख घाटियाँ, धर्मनगर, कैलाशहर, कमालपुर और खोवाई, काटती हैं। ये घाटियाँ उत्तर की ओर बहने वाली नदियों (जूरी, मनु व देव, ढलाई और खोवाई) द्वारा निर्मित हैं। पश्चिम व दक्षिण की निचली घाटियाँ खुली व दलदली हैं, हालांकि दक्षिण में भूभाग बहुत अधिक कटा हुआ और घने जंगलों से ढका है। उत्तर से दक्षिण की ओर उन्मुख श्रेणियाँ घाटियों को अलग करती हैं। धर्मनगर घाटी के पूर्व में जमराई त्लंग की ऊँचाई 600 और 900 मीटर के बीच है। पश्चिम की ओर क्रमश: सखान त्लंग, लंगतराई और आर्थरमुरा पर्वतश्रेणियों की ऊंचाई घटते क्रम में है। सुदूर पश्चिम में स्थित पहाड़ी देवतामुरा की ऊँचाई सिर्फ़ 244 मीटर है। देवतामुरा पर्वतश्रेणी के पश्चिम में अगरतला मैदान है, जो गंगा-ब्रह्मपुत्र निम्नभूमि का विस्तार है तथा इसकी ऊँचाई 61 मीटर से कम है। इस क्षेत्र को कई नदियाँ अपवाहित करती हैं, जिनमें सबसे बड़ी नदी गुमटी का उद्गम पूर्वी पहाड़ियों राधाकिशोरपुर के निकट एक खड़े किनारों वाली घाटी में स्थित है। लगभग आधा राज्य जंगलों से ढका है; हालांकि खेती के लिए इनकी व्यापक कटाई हुई है, इनमें अब भी महत्त्वपूर्ण वृक्ष पाए जाते हैं, जिनमें मज़बूत लकड़ी है। यहाँ (शोरिया रोबस्टा) शामिल है, जो सागौन के बाद सबसे अधिक क़ीमती लकड़ी है। यहाँ के प्राणियों मेंबाघ, तेंदुआ, हाथी, सियार, जगंली कुत्ते, जगंली सुअर, गयाल सांड़ जगंली भैंस तथा गौर शामिल हैं। त्रिपुरा की जलवायु कम गर्म तथा आर्द्र होती है। त्रिपुरा राज्य की जलवायु आदर्श बारिश के लिए अनुकूल हैं। जून से सितंबर तक रहने वाले मॉनसून के मौसम में 2,000 मिमी से अधिकवर्षा होती है। निचले इलाक़ों में ग्रीष्म ऋतु में अधिकतम औसत तापमान 35° से. होता है, हालांकि पहाड़ों में मौसम ठंडा होता है।
सांस्कृतिक जीवन -
जनजातीय रीति-रिवाज, लोककथाएं व लोकगीत त्रिपुरा की संस्कृति के महत्त्वपूर्ण तत्त्व हैं। दो प्रमुख वार्षिक उत्सव गडिया (अप्रॅल) और कास (जून या जुलाई) हैं, जिनमें पशुओं की बलि चढ़ाई जाती है। हर समुदाय का अपना नृत्य है, जैसे रियांग का होजागिरि, त्रिपुरी का गडिया, झूम, मालमिता, मसक सुमनी और लेबांग बूमनी, चकमा का बीजू, लुसाई का केर और वेल्कम, मलसुम का हाई-हाक, गारो का वंगाला, मोग का संगरैका चिमिथांग, पडिशा और अभंगमा, कटई और जमतिया का गडिया, बंगाली समुदाय का गंजन, धमैल, सरी और रबींद्र संगीत, मणिपुरी समुदाय का बसंत राश और पुंगचलाम, प्रमुख संगीत वाद्य खंब, बाँसुरी, लेबांग, सरिंदा, दोतारा और खेंगरोंग हैं। सचिन देव बर्मन और राहुल देव बर्मन जैसे प्रसिद्ध संगीतकार इसी राज्य की देन हैं। राज्य से 15 बांग्ला व दो अंग्रेज़ी दैनिक समाचार पत्र प्रकाशित होते हैं।
पर्यटन -
त्रिपुरा हर दृष्टि से पर्यटन के लिए उपयुक्त राज्य है। त्रिपुरा में अनेक स्थल हैं। यहाँ देखने तथा घूमने-फिरने के लिए कई स्थान एवं स्थल हैं। राज्य संस्कृति की दृष्टि से भी संपन्न है। यह राज्य पूर्वोत्तर राज्यों के मुकाबले पर्यटन की अधिक संभावनाओं से पूर्ण है। यहां पूर्वोत्तर के राज्यों के अलावा बांग्लादेश जाने वाले पर्यटक भी आकर्षित होते हैं। होटल उद्योग के विकास के साथ ही यहां पर्यटन की संभावनाएं भी बढ़ी हैं। मई 1995 में देशी व विदेशी पर्यटकों के लिए प्रतिबंधित क्षेत्र अनुमति-पत्र की समाप्ति के बाद 1996 में यहाँ लगभग दो लाख पर्यटक आए। राज्य में और अधिक पर्यटकों को आकर्षित करने की क्षमता है। कोलकाता व गुवाहाटी से राजधानी अगरतला तक वायुमार्ग द्वारा पहुँचा जा सकता है। खोवाल, कमालपुर और कैलाशहर तीन छोटे हवाई अड्डे हैं।