कुछ प्रमुख स्तनधारी जीव - Study Search Point

निरंतर कर्म और प्रयास ही सफलता की कुंजी हैं।

कुछ प्रमुख स्तनधारी जीव

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कुत्ता : - 
कुत्ता या श्वान भेड़िया प्रजाति की एक उपप्रजाति है। यह मनुष्य के पालतू पशुओं में से एक महत्त्वपूर्ण प्राणी है। इनके द्वारा तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करने वाली एक भयंकर बीमारी रेबीज होती है। इसकी मादा को कुतिया और शावक कोपिल्ला कहते हैं। कुत्ते 11-16,000 साल पहले पश्चिमी यूरोप में भेड़िया को पालतू बनाने से शुरू हुए थे। यह समय जब मानव शिकारी थे के दौरान का है। हो सकता है की आद्य-कुत्ते प्रारंभिक मानव द्वारा शिकार के बाद छोड़ दिये गये शवों का लाभ लेते थे, साथ ही शिकार लो पकड़ने में सहायता प्रदान करते थे और बड़े शिकारियों से रक्षा प्रदान करते थे।
प्रारंभिक मानव के लिए कुत्तों का मूल्य, कुत्तों को दुनिया भर के संस्कृतियों में सर्वव्यापी बनाने मे सहायक था। मानव समाज पर कुत्तों प्रभाव से कुत्तों को उपनाम "आदमी का सबसे अच्छा दोस्त" मिला।

प्रारंभिक भूमिका

भेड़ियों और उनके कुत्ते वंशज, मानव शिविरों के पास रहने से उनका महत्त्वपूर्ण लाभ प्राप्त होगा जैसे- अधिक सुरक्षा, अधिक विश्वसनीय भोजन स्रोत और अधिक मौका प्रजनन करने का। साथ ही मनुष्य को भी अपने शिविरों के पास रहने वाले कुत्तों से भारी लाभ प्राप्त हुआ होगा। कुत्ते बर्बाद खाने की सफाई करते थे और वे शिकारियों या अजनबियों की उपस्थिति के बारे में शिविर को सतर्क कर देते होगे। मानवविज्ञानी यह विश्वास करते हैं कि प्रारंभिक मानव को शिकार मे कुत्तो की संवेदनशील सूंघने की शक्ति का महत्वपूर्ण लाभ मिला होगा। आपसी सहअस्तित्व से प्रारंभिक मानव और आद्य-कुत्तों की जीवित रहने की संभावना बहुत बढ़ी। साइबेरिया से उत्प्रवासी संभावना साथी के रूप में कुत्तों के साथबेरिंग जलसन्धि को पार किये होगे। मूल अमेरिकी आदिवासीयो मे कुत्तों का महत्व अधिक था, वे वजन ले जाने के लिए उन्हें इस्तेमाल किया करते थे।

विशेष लक्षण

कुत्ते छोटे बड़े सभी प्रकार के होते हैं। इनकी सुनने और सूँघने की शक्ति बड़ी तीव्र होती है। ब्लड हाउंट (Bluood Hound) जाति के कुत्ते तो किसी का पदचिह्न 48 घंटे बाद सूँघकर उसके पास पहुँच जाते हैं। कुत्तों की देखने की शक्ति मनुष्यों से दुर्बल होती है। वे केवल सफ़ेदकाली और स्लेटी वस्तुएँ ही देख सकते हैं। कुछ जाति के कुत्ते आज भी जंगलों में पाए जाते हैं। इनमेंआस्ट्रेलिया का डिंगो और भारत के सोनहा और डोल प्रमुख हैं। अफ्रीका में भी कुछ जंगली कुत्ते पाए जाते हैं। इनका पालतू कुत्तों के साथ लैंगिक संबंध होते तो देखा गया है किंतु वे पालतू नहीं बनाए जा सकते।

सियार : -
सियार अथवा शियार लोमड़ी की तरह दिखने वाला एक जानवर है। यह भारत के जंगलों और गन्ने आदि के खेतों में आमतौर से पाया जाने वाला मध्यम आकार का पशु है। सियार श्वान वंश कैनिस की भेड़िया जैसी विभिन्न मांसाहारी प्रजातियों में से एक, कैनिडी कुल का लकड़बग्घे के समान, डरपोक जानवर के रूप में प्रसिद्ध है।

प्रजाति

सामान्यत: इसकी तीन प्रजातियों की पहचान की गई है-
  1. सुनहरा या इशियाई सियार (सी. ओरियस), जो पूर्वी यूरोप और पूर्वोत्तर अफ़्रीका से दक्षिण-पूर्वी एशिया तक पाया जाता है।
  2. काला पीठ वाला (सी. मेसोमेलस)
  3. बग़लों में धारी वाला (सी. एडस्टस) सियार, जो दक्षिणी तथा पूर्वी अफ़्रीका में पाए जाते हैं।

आकार
सियार लगभग 85 से 95 सेमी की लंबाई तक बढते हैं, जिसमें उनकी 30-35 सेमी लंबी पूंछ शामिल है। इनका वज़न लगभग 7-11 किग्रा होता है। सुनहरा सियार पीतवर्णी होता है। काली पीठ वाले सियार का रंग धूसर लाल और पीठ काली होती है। बगलों में धारी वाले सियार का रंग स्लेटी होता है और इसकी पूंछ की छोर सफ़ेद होती है तथा दोनों तरफ़ अस्पष्ट धारी होती है। सियार खुले इलाक़ों में निवास करते हैं। ये निशाचर प्राणी दिन के समय सामान्यत: घनी झाड़ियों में छिपे रहते हैं और सूर्य के डूबने के बाद शिकार के लिए निकलते हैं। ये अकेले, जोड़ों में या झंडों में रहते हैं और जो भी छोटा जानवर, वनस्पति या सड़ा-गला मांस इन्हें मिलता है, ये उसी पर गुज़ारा कर लेते हैं। ये सिंहों और अन्य बड़े विडालों का पीछा करते हैं तथा उनके द्वारा शिकार के भोजन के बाद बचे हुए मांस को खाते हैं। जब से झुंडों में शिकार करते हैं, तो हिरनबारहसिंगा या भेड़ जैसे बड़े जंतु को भी मार गिराते हैं।
अपने वंश के अन्य सदस्यों की तरह सियार शाम के समय आवाज़ें निकालते हैं। लकड़बग्घे के मुक़ाबले इनकी चीख़ मनुष्यों को कम परेशान करती है। इनकी पूंछ के आधार के पास स्थित एक ग्रंथि से निकलने वाले स्त्राव के कारण इनसे एक दुर्गंध आती है। यह ज़मीन में बने हुए बिलों या खोहों में बच्चे देते हैं और एक बार में इनके दो से सात शावक जन्म लेते हैं। गर्भावधि 57 से 70 दिनों की होती है।भेडियों और काइयोट (उत्तर अमेरिकी भेड़िया) के समान सियार भी पालतू कुत्तों के साथ अंतर- प्रजनन करते हैं। हाइनेनिडी कुल के भू-वृक को कभी-कभी मेड़ या धूसर सियार कहा जाता है। दक्षिण अमेरिकी लोमड़ी को भी कभी-कभी सियार की संज्ञा दी जाती है।
सूअर : - 
सूअर (Pig) आर्टियोडेक्टिला गण (Order Artiodactyla) के सुइडी कुल (family Suidae) के जीव, जिनमें संसार के सभी जंगली और पालतू सूअर सम्मिलित हैं, इसके अंतर्गत आते हैं। इन खुर वाले प्राणियों की खाल बहुत मोटी होती है और इनके शरीर जो थोड़े बहुत बाल रहते हैं वे बहुत कड़े होते हैं। इनका थूथन आगे की ओऱ चपटा रहता है जिसके भीतर मुलायम हड्डी का एक चक्र सा रहता है जो थूथन को कड़ा बनाए रखता है। इसी थूथन के सहारे ये जमीन खोद डालते हैं और भारी-भारी पत्थरों को आसानी से उलट देते हैं।
सुअरों के कुकुरदंत उनकी आत्मरक्षा के हथियार हैं। ये इतने मजबूत और तेज होते हैं कि उनसे ये घोड़ों तक का पेट फाड़ डालते हैं। ऊपर के कुकुरदंत तो बाहर निकलकर ऊपर की ओर घूमे रहते हैं लेकिन नीचे के बड़े और सीधे रहते हैं। जब ये अपने जबड़ों को बंद करते हैं तो ये दोनों आपस में रगड़ खाकर हमेशा तेज और नुकीले बने रहते हैं।
सूअरों के खुर चार हिस्सों में बँटे होते हैं जिनमें से आगे के दोनों खुर बड़े और पीछे के छोटे होते हैं। पीछे के दोनों खुर टाँगों के पीछे की ओर लटके भर रहते हैं और उनसे इन्हें चलने में किसी प्रकार की मदद नहीं मिलती। इन जीवों की घ्राणशक्ति बहुत तेज होती है जिनकी सहायता से ये पृथ्वी के भीतर की स्वादिष्ट जड़ों आदि का पता लगा लेते हैं। इनका मुख्य भोजन कंद-मूल, गन्ना और अनाज है लेकिन इनके अलावा ये कीड़े-मकोड़े और छोटे सरीसृपों को भी खा लेते हैं। कुछ पालतू सुअर विष्ठा भी खाते हैं।
जातियाँ
पालतू सूअर संसार के प्राय: सभी देशों में फैले हुए हैं और भिन्न-भिन्न देशों में इनकी अलग-अलग जातियाँ पाई जाती हैं। यहाँ उनमें से केवल कुछ जातियों का संक्षिप्त वर्णन दिया जा रहा है जो बहुत प्रसिद्ध हैं।
1. बर्क शायर (Berkshire)-इस जाति के सूअर काले रंग के होते हैं जिनका चेहरा, पैर और दुम का सिरा सफेद रहता है। यह जाति इंग्लैंड में बनाई गई है। जहाँ से यह अमरीका में फैली। इनका माँस बहुत स्वादिष्ट होता है।
2. चेस्टर ह्वाइट (Chester white)-इस जाति के सूअरों का रंग सफेद होता है और खाल गुलाबी रहती है। यह जाति अमरीका के चेस्टर काउन्टी में बनाई गई और केवल अमरीका में ही फैली है।
3. ड्यूराक (Duroc)- यह जाति भी अमरीका से ही निकली है। इस जाति के सूअर लाल रंग के होते हैं जो काफी भारी और जल्द बढ़ जाने वाले जीव हैं।
4. हैंपशायर (Hampshire)-यह जाति इंग्लैंड में निकाली गई है लेकिन अब यह अमरीका में भी काफी फैल गई है। इस जाति के सूअर काले होते हैं जिनके शरीर के चारों और एक सफेद पट्टी पड़ी रहती है। यह बहुत जल्द बढ़ते और चरबीले हो जाते हैं।
5. हियरफोर्ड (Hereford)- यह जाति भी अमरीका में निकाली गई है। ये लाल रंग के सूअर हैं जिनका सिर, कान, दुम का सिरा और शरीर का निचला हिस्सा सफेद रहता है। ये कद में अन्य सूअरों की अपेक्षा छोटे होते हैं और जल्द ही प्रौढ़ हो जाते हैं।
6. लैंडरेस (Landrace)-इस जाति के सूअर डेनमार्क, नार्वे, स्वीडन, जर्मनी और नीदरलैंड में फैले हुए हैं। ये सफेद रंग के सूअर हैं जिनका शरीर लंबा और चिकना रहता है।
7. लार्ज ब्लैक (Large Black)- इस जाति के सूअर काले होते हैं जिनके कान बड़े और आँखों के ऊपर तक झुके रहते हैं। यह जाति इंग्लैंड में निकाली गई और ये वहीं ज्यादातर दिखाई पड़ते हैं।
8. मैंगालिट्जा (Mangalitza) -यह जाति बाल्कन स्टेट में निकाली गई है और इस जाति के सूअर हंगरी, रूमानियाँ और यूगोस्लाविया आदि देशों में फैले हुए हैं। ये या तो घुर सफेद होते या इनके शरीर का ऊपरी भाग भूरापन लिए काला और नीचे का सफेद रहता है। इनको प्रौढ़ होने में लगभग दो वर्ष लग जाते हैं और इनकी मादा कम बच्चे जनती है।
9. पोलैंड चाइना (Poland China)-यह जाति अमर को ओहायो (Ohio) प्रदेश की बट्लर और वारेन (Butler and Warren) काउंटी में निकाली गई है। ड्यूराक जाति की तरह यह सूअर भी अमरीका में काफी संख्या में फैले हुए हैं। ये काले रंग के सूअर हैं जिनकी टाँगें, चेहरा और दुम का सिरा सफेद रहता है। ये भारी कद के सूअर हैं जिनका वजन 12-13 मन तक पहुँच जाता है। इनकी छोटी, मझोली और बड़ी तीन जातियाँ पाई जाती हैं।
10. स्पाटेड पोलैंड चाइना (Spotted Poland China)-यह जाति भी अमरीका में निकाली गई है और इस जाति के सूअर पोलैंड चाइना के अनुरूप ही होते हैं। अंतर सिर्फ यही रहता है कि इन सूअरों का शरीर सफेद चित्तियों से भरा रहता है।
11. टैम वर्थ (Tam Worth)-यह जाति इंग्लैंड में निकाली गई जो शायद इस देश की सबसे पुरानी जाति है। इस जाति के सूअरों का रंग लाल रहता है। इसका सिर पतला और लंबोतरा, थूथन लंबे और कान खड़े और आगे की ओर झुके रहते हैं। इस जाति के सूअर इंग्लैंड के अलावा कैनाडा और यूनाइटेड स्टेट्स में फैले हुए हैं।
12. वैसेक्स सैडल बैक (Wessex Saddle Back)-यह जाति भी इंग्लैंड में निकाली गई हैं। इस जाति के सूअरों का रंग काला होता है और उनकी पीठ का कुछ भाग और अगली टाँगें सफेद रहती हैं। ये अमरीका के हैंपशायर सूअरों से बहुत कुछ मिलते-जुलते और मझोले कद के होते हैं।
13. यार्कशायर (Yorkshire)-यह प्रसिद्ध जाति वैसे तो इंग्लैंड में निकाली गई है लेकिन इस जाति के सूअर सारे यूरोप, कैनाडा और यूनाइटेड स्टेट्स में फैल गए हैं। ये सफेद रंग के बहुत प्रसिद्ध सूअर हैं जिनकी मादा काफी बच्चे जनती है। इनका मांस बहुत स्वादिष्ट होता है।
जंगली सूअर : - 
जंगली सूअर (Wild Boar) प्रजाति सुस स्क्रोफ़ा, सुइडी कुल का जंगली सदस्य है। पालतू सूअरों, गिनी पिग और कई अन्य स्तनधारी प्राणियों के नरों के लिए भी 'बोर' (जंगली सूअर) शब्द का उपयोग होता है। यूरोपीय देशों में जंगली सूअर को 'वाइल्ड बोर' भी कहा जाता है, यह जंगली सूअरों में सबसे बड़ा होता है। यह पश्चिमी और उत्तरी यूरोपउत्तरी अफ़्रीकाभारतअंडमान द्वीप समूह और चीन में पाया जाता है। इसे अमेरिका और न्यूज़ीलैंड भी ले जाया गया है (जहाँ यह स्थानीय जंगली प्रजातियों में घुलमिल गया है)।

रूप

इसके शरीर पर कड़े बाल होते हैं, रंग धूसर, काला या भूरा होता है और कंधे तक इसकी ऊँचाई 90 सेमी तक होती है। अकेले रहने वाले बूढ़े नरों को छोड़कर, जंगली सूअर झुड़ों में ही निवास करते हैं। ये तेज़, निशाचर, सर्वभक्षी और अच्छे तैराक होते हैं। इनके दाँत पैने और बाहर की ओर निकले होते हैं। हालांकि यह आक्रामक जानवर नहीं है, फिर भी ख़तरनाक साबित हो सकता है।
अपनी शक्ति, गति और भयंकरता के कारण पुराने ज़माने से ही जंगली सूअर पीछा करके शिकार किया जाने वाला सबसे पसंदीदा जानवर रहा है। यूरोप और भारत के कुछ हिस्सों में अब भी कुत्तों की मदद से इसका शिकार किया जाता है, लेकिन भालों का स्थान अब बंदूकों ने ले लिया है। यूरोप में जंगली सूअर राजसी शिकार के चार पशुओं में से एक है और यह इंग्लैंड के राजा रिचर्ड 3 का विशेष चिन्ह है। काफ़ी समय तक खाद्य पदार्थ के रूप में जंगली सूअर के सिर को विशिष्ट व्यंजन का दर्जा प्राप्त था।

गोरिल्ला : -
गोरिल्ला प्राइमेट गण का सबसे प्रसिद्ध और सबसे कद्दावर वानर है, जो अफ्रीका में विषुवत रेखा के आसपास के घने जंगलों में कैमरून्स से कांगो तक पाया जाता है। गोरिल्ला छोटे छोटे गिरोहों अथवा परिवारों में रहते हैं। परिवार में एक नर और कई मादाएँ तथा बच्चे और जवान रहते हैं। इसके नर और मादा एक ही रंगरूप के होते हैं, लेकिन मादा कद में नर से कुछ छोटी होती है। खड़े होने पर नर की ऊँचाई 6 फुट तक हो जाती है। इसका वजन भी 6 मन (240 किग्रा) से कुछ अधिक ही होता है। इसके शरीर का रंग कलछौंह, चेहरे की नंगी और सिकुड़नदार खाल काली और शरीर पर के बाल भी काले ही होते हैं। पुराने हो जाने पर इनके सर पर एक प्रकार की ललाई और पीठ पर सिलेटी झलक आ जाती है।

गोरिल्ला चिंपैंजी का निकट संबंधी है। यह बड़े पेड़ों पर डालियों का मचाननुमा घर बनाता है, पर इसका अधिक समय जमीन पर ही बीतता है। चिड़ियाखानों में यह ज्यादा दिनों तक जिंदा नहीं रह पाता। गोरिल्ला बहुत ही ताकतवर जंतु है, जो स्वभाव का सीधा और शरमीला होने के कारण मनुष्यों पर अकारण हमला नहीं करता, लेकिन घायल या क्रुद्ध हो जाने पर यह बहुत ही भंयकर हो जाता है। गुस्सा होने पर ऐसा चिल्लाता है कि सारा जंगल काँप उठता है। यह बड़ा मजबूत होता है। बंदूक की नली को दाँतों के बीच में दबा कर सींक की तरह यह मोड़ डालता है। गोरिल्ला फलाहारी जीव है, जिसका मुख्य भोजन गन्नाकेलेअनन्नास आदि फल, तरकारी और जड़ें आदि हैं।

जाति

गोरिल्ला चारों टाँगों के बल चलता है। इसका सर बड़ा, चेहरा भयानक और आँखें भीतर की ओर धँसी रहती है। गर्दन तो इसके जैसे होती ही नहीं। देखने में यह बहुत भद्दा लगता है। अब तक इसकी कई जातियों का पता चल चुका है, जिनमें सबसे प्रसिद्ध और बड़ा गोरिल्ला (Gorilla gorilla) सन्‌ 1861 ई. में पहली बार देखा गया। सन्‌ 1903 ई. में बेलजियम कांगो के पूर्वी भाग में दूसरे गोरिल्ला (Gorilla beringei) का लोगों ने पता लगाया, जिसके बाल पहले से बड़े होते हैं। यह 10,000 फुट की ऊँचाई पर रहता है। इसके बाद तीसरा गोरिल्ला, जो पहाड़ी गोरिल्ला (Mountain gorilla) कहलाता है, उसी देश में पाया गया। यह दोनों से अधिक बुद्धिमान होता है।

नीलगिरि तहर :- 
नीलगिरि तहर Nilgiri tahr (Nilgiritragus hylocriusभारत के तमिल नाडु और केरल राज्यों में नीलगिरि पर्वत औरपश्चिमी घाट के दक्षिणी भाग में रहने वाला जंगली प्राणी है जिसके निकट सम्बन्धी जंगली बकरी और भेड़ हैं। इसे स्थानीय बोल-चाल में नीलगिरि साकिन (ibex) या केवल साकिन के नाम से भी जाना जाता है। यह एक संकटग्रस्त जाति है। इसका निवास स्थान दक्षिणी पश्चिमी घाट के पर्वतीय वर्षा वनों के खुले पर्वतीय चारागाह हैं।
ये चारागाह कम ऊंचाई पर घने जंगलों से घिरे रहते हैं। यह पहले बड़े झुण्डों में इन घास के मैदानों में चरते थे लेकिन उन्नीसवीं सदी में इनके आखेट और अवैध शिकार की वजह से बीसवीं सदी की शुरुआत में इसकी संख्या महज़ 100 रह गई थी जो अब बढ़कर 2000 हो गई है और इसी कारण से यह जाति आई यू सी एन द्वारा संकटग्रस्त घोषित करी गई है। इनका आवास क्षेत्र उत्तर से दक्षिण में 400 किलोमीटर में फैला हुआ है और एराविकुलम राष्ट्रीय उद्यान इसकी सबसे बड़ी आबादी का घर है।
वर्गीकरण
तमिल भाषा में इसके नाम का अर्थ है खाई की बकरी जबकि हाल के अनुसंधानों से यह पता चला है कि यह बकरी से अधिक भेड़ का सम्बन्धी है। सन् 2005 तक इसे अन्य तहर की श्रेणी हॅमिट्रैगस के साथ रखा गया था लेकिन अब इसकी प्रजाति को एक नया नाम नीलगिरिट्रैगस दे दिया गया है।

तहर या 'ताहर' : -
तहर या 'ताहर' एक प्रकार का पहाड़ी बकरा है। यह वास्तव में भेड़ और बकरे दोनों का ही बहुत क़रीबी रिश्तेदार है। ताहर में भेड़ और बकरे दोनों से अलग कुछ ऐसी विलक्षण विशेषताएं पाई जाती हैं, जो न भेड़ों में और न ही बकरों में होती हैं। इसीलिए इसे सामान्य भेड़ों और बकरों से अलग समझा जाता है।

वैज्ञानिक वर्गीकरण के आधार पर ताहर वंश 'हेमीट्रेगस', कुल 'बोवाइडी' और गण 'आर्टिओडैक्टाइला' के अंतर्गत आता है। प्रजाति के अनुसार कंधे तक इनकी ऊँचाई 60 से 100 सेमी होती है। नर और मादा, दोनों के सींग छोटे होते हैं, जो पार्श्व से समतल होते हुए पीछे की ओर मुड़े होते हैं। यह चौकन्ने और संधे पांव वाले जंगली बकरों में से एक है। विश्व में ताहर की तीन जातियाँ पाई जाती हैं-
  1. अरबी ताहर
  2. हिमालयी ताहर
  3. नीलगिरि ताहर
संकटकालीन प्रजाति
इनमें से अंतिम दो जातियाँ भारत में पाई जाती हैं। भारत में ताहर की स्थिति बड़ी ही चिंताजनक है और यह विलुप्त प्राय प्रजातियों में शामिल है। एक समय भारत में इनकी संख्या एक लाख से भी अधिक हुआ करती थी, लेकिन अब इनकी संख्या चार सौ के आस-पास ही रह गई है।

प्रजातियाँ

हिमालयी तहर (हेमीट्रेगस जेम्लेहीकसकश्मीर से सिक्किम तक पाया जाता है, जो लाल-भूरे से लेकर गहरे भूरे रंग का हो सकता है, नर की गर्दन और आगे के हिस्से में फैली भरी-पूरी अयाल होती है। दक्षिण भारत का नीलगिरि तहर (जंगली या पहाड़ी बकरा) या नीलगिरि साकिन (एच.हाइलोक्रिअस) भूरा, धूसर पीठ वाला होता है। इन तीनों प्रजातियों में सबसे छोटा अरबी तहर (एच. जयकारी) स्लेटी-भूरा, नाजुक व अपेक्साकृत छोटी खाल वाला होता है।

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