प्रसिद्ध दर्रे और घाटियाँ.., - Study Search Point

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प्रसिद्ध दर्रे और घाटियाँ..,

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नाथुला दर्रा
नाथुला दर्रा भारत के सिक्किम में डोगेक्या श्रेणी में स्थित है। यह दर्रा महान हिमालय के अन्तर्गत पड़ता है। इस दर्रे के द्वारा दार्जिलिंग तथा चुम्बी घाटी से होकर तिब्बत जाने का मार्ग बनता है। वर्तमान समय में भारत एवं चीन के बीच व्यापार इसी मार्ग से होता है। भारत-चीन युद्ध के समय यह दर्रा काफ़ी चर्चित रहा था। नाथूला हिमालय का एक पहाड़ी दर्रा है जो भारत के सिक्किम राज्य और दक्षिण तिब्बत में चुम्बी घाटी को जोड़ता है।
यह 14 हजार 200 फीट की ऊंचाई पर है। भारत और चीन के बीच 1962 में हुए युद्ध के बाद इसे बंद कर दिया गया था। इसे वापस जूलाई 5,2006 को व्यापार के लिए खोल दिया गया है। बीसवीं सदी की शुरुआत में भारत और चीन के होनेवाले व्यापार का 80 प्रतिशत हिस्सा नाथू ला दर्रे के ज़रिए ही होता था। यह दर्रा प्राचीन रेशम मार्ग की एक शाखा का भी हिस्सा रहा है। 'ला' शब्द तिब्बती भाषा में 'दर्रे' का अर्थ रखता है। यह दर्रा गंगटोक के पूर्व की ओर 54 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। यह अत्‍यधिक बर्फबारी के कारण सर्दियों के दौरान बंद रहता है। इस क्षेत्र की सड़क के रखरखाव का काम 'भारतीय सेना विंग-सीमा सड़क संगठन' को सौंपा गया है। नाथू ला दर्रे से निकटतम रेलवे स्टेशन 'न्यू जलपाईगुड़ी स्टेशन' है।
पन सौंग दर्रा
पांगसौ दर्रा अथवा 'पन सौंग दर्रा' अरुणाचल प्रदेश के दक्षिण म्यांमार सीमा पर स्थित है। पांगसौ दर्रा समुद्री तल से 1,136 मीटर की ऊंचाई पर है। इस दर्रे से होकर डिब्रूगढ़ से म्यांमार के लिए मार्ग जाता हे। यह दर्रा म्यांमार से पश्चिम में असम के मैदानी इलाक़ों तक पहुँचने का सबसे सरल मार्ग है। इतिहासकार अनुमान लगाते हैं कि असम में 13वीं सदी में आकर बसने वाले अहोम लोगों ने इसी दर्रे से भारत में प्रवेश किया था। इस दर्रे का नाम म्यांमार के एक ग्राम 'पंगसौ' के नाम पर पड़ा है, जो दर्रे से दो कि.मी. पूर्व में बसा हुआ है। भारत को म्यांमार से जोड़ने वाला 'लेडो मार्ग' इसी दर्रे से निकलता है।
ज़ोजिला दर्रा
ज़ोजिला जम्मू और कश्मीर में जास्कर श्रेणी में स्थित एक प्रसिद्ध दर्रा है। यह दर्रा हिमालय के अन्तर्गत आता है। इसके द्वारा श्रीनगर और लेह सड़क मार्ग से जुड़ते हैं। ज़ोजिला दर्रे पर भूस्खलन के कारण सड़क खिसकने का डर सदा बना रहता है। यह दर्रा समुद्र तल से लगभग 3528 मीटर (11575 फीट) की ऊँचाई पर स्थित है। ज़ोजिला दर्रा श्रीनगर को कारगिल और लेह से जोड़ता है।
अत्यधिक बर्फ़बारी के कारण यह दर्रा शीत ऋतु में बंद रहता है। इस दर्रे की देखभाल और इस पर से बर्फ हटाने के लिए 'सीमा सड़क संगठन' द्वारा एक 'बीकॅान फोर्स' की स्थापना भी की गयी है। श्रीनगर-ज़ोजिला मार्ग को केंद्र सरकार द्वारा 'राष्ट्रीय राजमार्ग-1डी' के रूप में घोषणा की गयी है। सन 1948 में पाकिस्तान ने इस दर्रे पर क़ब्ज़ा कर लिया था, परन्तु भारतीय सेना ने आश्चर्यजनक रूप से इतनी ऊंचाई पर टैंको का इस्तेमाल करते हुए ऑपरेशन 'बाइसन' के तहत इस पर पुनः कब्ज़ा कर लिया।
निति दर्रा
निति दर्रा भारत के उत्तराखंड राज्य को तिब्बत से जोड़ने वाला हिमालय का एक प्रमुख दर्रा हैं। यह 5068 मी. की ऊंचाई पर स्थित हो।  नीति दर्रे से होकर मानसरोवर और कैलाश घाटी जाने का मुख्य मार्ग गुजरता है।
जेलेपला दर्रा
जेलेपला दर्रा भारत के सिक्किम में स्थित है। इस दर्रे के द्वारा दार्जिलिंग और चुम्बी घाटी होकर तिब्बत जाने का मार्ग बनता है। भारत एवं चीन के बीच व्यापार इस दर्रे से भी किया जाता है। जेलेपला दर्रा 4,270 मीटर (14,009 फीट) की ऊंचाई पर पूर्वी सिक्किम में स्थित है। यह दर्रा सिक्किम को ल्हासा से जोड़ता है। यह चुम्बी घाटी में स्थित है। भारत और तिब्बती पठार पर चुम्बी घाटी में यह रोडोडेंड्रोन के जंगलों के साथ एक बहुत ही सुंदर मार्ग है। अंतरराष्ट्रीय सीमा की भारतीय तरफ़ इस दर्रे के चरणों में प्रसिद्ध मेनमेचो झील स्थित है।'ला' शब्द तिब्बती भाषा में 'दर्रे' का अर्थ रखता है। वैसे इस दर्रे को 'जेलेप दर्रा' या 'जेलेप ला' कहना चाहिये। इसे 'जेलेप ला दर्रा' कहना 'दर्रे' शब्द को दोहराने जैसा है, लेकिन यह प्रयोग फिर भी प्रचलित है।
नाणेघाट दर्रा
नाणेघाट महाराष्ट्र के पुणे ज़िले में स्थित एक ऐतिहासिक स्थान और दर्रा है। इसके समीप एक गुफ़ा में सातवाहननरेश शातकर्णि द्वितीय की रानी नायानिका (नागानिका) का एक अभिलेख है, जिसमें उसके द्वारा अश्वमेधराजसूययज्ञों सहित कई यज्ञ किये जाने तथा ब्राह्मणों को विभिन्न दान दिये जाने के उल्लेख हैं। यहाँ के अभिलेख में इन्द्रसंकर्षणवासुदेवचन्द्र सूर्ययमवरुण तथा कुबेर का देवताओं के रूप मे आह्वान किया गया है। इस अभिलेख में द्वितीय शताब्दी के लगभग बौद्धमत के उत्कर्ष काल के पश्चात् हिन्दू धर्म के पुनरुत्थान की प्रथम झलक मिलती है। अभिलेख में शातकर्णि की सफलताओं और विजयों का वर्णन किया गया है उसे 'सिमुक वंश का धन' कहा गया है। उसे 'अप्रतिहत चकदक्षिणापथपति' कहा गया है। नाणेघाट के अभिलेख से यह भी ज्ञात होता है कि शातकर्णि की मृत्यु के अनंतर उसकी रानी नायानिका, जो अंगीय कुलीन महारथी त्रणकयिरो की दुहिता थी, उसने राजकार्य सम्भाला। उसके दो पुत्र 'शाक्तिश्री' और 'वेदश्री' अभी अल्पवयस्क थे, अत: रानी ने उनकी संरक्षिका के रूप में शासन की बागडोर सम्भाली।
कराकोरम दर्रा 
कराकोरम दर्रा जम्मू कश्मीर के लद्दाख क्षेत्र में हिमालय के कराकोरम श्रेणियों के मध्य स्थित है। हिमालय पर्वत श्रेणी का यह सर्वाधिक ऊंचाई पर स्थित दर्रा है, जो 5,654 मीटर ऊंचा है। प्राचीन काल में इस दर्रे से होकर यारकंद को मार्ग जाता था। इस दर्रे से होकर चीन के लिए एक सड़क बनायी गयी है। वर्तमान में इस दर्रे पर चीन द्वारा अतिक्रमण कर लिया गया है।
कराकोरम दर्रा अत्यंत ऊँचाई पर है और दूर-दूर तक कोई वनस्पति नहीं उगती, जिससे यहाँ से गुज़रते कारवाँ में बहुत से जानवर दम तोड़ देते हैं। इस कारण राह पर जानवरों की हड्डियाँ बिखरी रहती हैं। यह दर्रा दो पहाड़ों के बीच के कन्धे पर स्थित है। यहाँ तापमान बहुत गिरता है और तेज़ हवाएँ चलती हैं, लेकिन यही तीव्र हवाएँ यहाँ हिम नहीं टिकने देती, जिस वजह से यह अधिकतर बर्फ़ मुक्त रहता है। फिर भी समय-समय पर बर्फ़बारी होती रहती है। इस दर्रे की चढ़ाई कठिन नहीं मानी जाती और हिममुक्त होने से इसे सालभर प्रयोग में लाया जा सकता है। भारत-चीन तनाव के कारण यह दर्रा वर्तमान में आने-जाने के लिए बंद है।
ख़ैबर दर्रा
'ख़ैबर' में 'ख़' अक्षर के उच्चारण पर ध्यान दें क्योंकि यह बिना बिन्दु वाले 'ख' से ज़रा भिन्न है। इसका उच्चारण 'ख़राब' और 'ख़रीद' के 'ख़' से मिलता है। ख़ैबर दर्रा या दर्र-ए-ख़ैबर (Khyber Pass) एक ऐतिहासिक पहाड़ी दर्रा है जो 1,070 मीटर (3,510 फ़ुट) की ऊँचाई पर सफ़ेद कोह शृंखला में एक प्राकृतिक कटाव है। इस दर्रे के ज़रिये भारतीय उपमहाद्वीप और मध्य एशिया के बीच आया-जाया सकता है और इसने दोनों क्षेत्रों के इतिहास पर गहरी छाप छोड़ी है। वर्तमान राजनैतिक परिस्थिति में यह दर्रा पाकिस्तान को अफ़्ग़ानिस्तान से जोड़ता है। ख़ैबर दर्रे का सबसे ऊँचा स्थान पाकिस्तान के संघ-शासित जनजातीय क्षेत्र की लंडी कोतल (Landi Kotal) नामक बस्ती के पास पड़ता है।
इस दर्रे के इर्द-गिर्द पश्तून लोग बसते हैं। ऐतिहासिक रूप से इस दर्रे पर जिसका भी नियंत्रण होता है उसे भारतीय उपमहाद्वीप और मध्य एशिया दोनों में दख़ल देने की क्षमता होती है। इस वजह से इसपर हमेशा खींचातानी रही है और समय-समय पर इसपर मौर्य साम्राज्य, पार्थिया, मुग़ल साम्राज्य, सिख साम्राज्य, ब्रिटिश राज, वग़ैराह का क़ब्ज़ा रहा है। इसके ज़रिये हख़ामनी साम्राज्य के कुरोश, यूनानी साम्राज्य के सिकंदर, स्किथी लोग,कुषाण, मुहम्मद ग़ोरी, मुग़ल साम्राज्य का संस्थापक बाबर और बहुत से अन्य आक्रामक भारत में दाख़िल हुए हैं। विपरीत दिशा में मौर्य, सिख और ब्रिटिश आक्रामकों ने इस से गुज़रकर भारत से अफ़्ग़ानिस्तान पर धावा बोला है। अति-प्राचीन काल में, मनुष्यों के अफ़्रीका में उत्पन्न होने के बाद, जब वे अफ़्रीका से एशिया में फैले तो भी उन्होंने ख़ैबर और बोलन दर्रों के प्रयोग से भारत में प्रवेश किया। बहुत से भारतीय और दक्षिण-पूर्वी एशिया के लोग इन दर्रों से गुज़रे हुए लोगों के वंशज हैं।
थालघाट दर्रा 
थालघाट प्रायद्वीपीय भारत का प्रमुख दर्रा है। यह दर्रा पश्चिमी घाट (सह्याद्रि) में स्थित है। इस दर्रे से नासिक और भुसावल के रास्ते इन्दौर तथा भोपाल का जुड़ाव है। यहाँ से होकर मुम्बई-कोलकाता मार्ग गुजरता हैं ।
पालघाट दर्रा
पालघाट दर्रा पश्चिमी घाट पर्वत श्रेणी का एक बड़ा दर्रा है। यह प्रायद्वीपीय भारत का प्रमुख दर्रा हैं, जो केरल को तमिलनाडु तथा कर्नाटक से जोड़ता हैं। यह दर्रा दक्षिण भारत के मध्य केरल राज्य में स्थित है। नीलगिरि पहाड़ियों (उत्तर) व अन्नामलाई पहाड़ियों (दक्षिण) के बीच में स्थित यह दर्रा लगभग 32 कि.मी. चौड़ा है और केरल-तमिलनाडु सीमा पर स्थित है। केरल तथा तमिलनाडु दोनों राज्यों के बीच यह दर्रा यातायात के लिए प्रमुख मार्ग की भूमिका निभाता है। पालघाट दर्रा से होकर गुज़रने वाले राजमार्ग और रेलमार्ग केरल में पालक्काड् को तमिलनाडु में कोयंबत्तुर तथा पोल्लाची से जोड़ते हैं। दक्षिण भारत की जलवायु को प्रभावित करने में भी यह दर्रा विशेष भूमिका निभाता है। दक्षिणी-पश्चिम मानसून तथा बंगाल की खाड़ी से उठने वाले तूफ़ान इसी मार्ग से पर्वतीय क्षेत्र को पार करते हैं।

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