प्रमुख पक्षी (जीव जन्तु जगत) - Study Search Point

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प्रमुख पक्षी (जीव जन्तु जगत)

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तोता /सुआ
तोता (Parrot) एक घरेलू पक्षी है। तोते का वैज्ञानिक नाम सिटाक्यूला क्रेमरी है। यह छोटे आकार का छरहरा और लंबी व पतली पूँछ वाला बीजभक्षी है। तोता, पक्षियों के सिटैसी गण के सिटैसिडी कुल का पक्षी है, जो गरम देशों का निवासी है। यह बहुत सुंदर पक्षी है। यह हरे रंग का 10-12 इंच लंबा पक्षी है, जिसके गले पर लाल कंठ होता है। तोता बहुत प्रिय व सुंदर पक्षी है। यह सबका मनोरंजन करता है। तोता एक लोकप्रिय पक्षी हैं। इसकी आवाज़ छोटे बच्चे भी पहचानते हैं। यह मनुष्यों की बोली की नक़ल बखूबी कर लेता है। तोते झुंड में रहने वाले पक्षी हैं, जिनके नर मादा एक जैसे होते हैं। इसकी मादा पेड़ के कोटर या तनों में सुराख काटकर 1 से 12 तक सफ़ेद अंडे देती है। तोते के मुख्य निवास स्थान ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड हैं, जहाँ के अनेक प्रकार के रंगीन तोते प्रति वर्ष पकड़कर विदेशों में भेजे जाते हैं। तोता पूरे भारत में कहीं भी आसानी से दिख जाता है चाहे वह हिमालय की तराई हो या राजस्थान के कम पेडों वाले इलाक़े, दक्षिण भारत से लेकर उत्तर भारत के मैदानी इलाक़ो तक पैराकीट दुनिया भर के सभी गर्म इलाक़ों में पाए जाते हैं।

ये भारत और श्रीलंका (भूतपूर्व सीलोन) से ऑस्ट्रेलिया तथा प्रशांत महासागर के द्वीपों, दक्षिण-पूर्व एशिया व उष्णकटिबंधीय अमेरिका में भी पाए जाते हैं। तोता पक्षियों के सिटैसी गण के सिटैसिडी कुल का पक्षी है। तोते बहुत सक्रिय होते हैं और इन्हें काफ़ी स्थान की आवश्यकता होती है। इनमें से अधिकांश अन्य पक्षियों के प्रति आक्रामक होते हैं। ख़ासतौर पर अगर ये जोड़े में हों। हालांकि इनकी आवाज़ पतली होती है, इनमें से कुछ अच्छे नक़लची बन जाते हैं। प्रकृति में स्वतंत्र रूप से और पक्षीगृहों में इनकी कई रंगों की क़िस्में तथा प्रजातियों पायी जाती है। छोटे आकार और चौड़ी पूँछ वाले तोते सेफ़ोटस की पाँच प्रजातियाँ हैं। जिनका कोई विशेष समूह नाम नहीं है। मादा रोज़ेल्ला नर की अपेक्षा सुस्त होती है। पिंजरे में रखने के लिए लोकप्रिय पक्षी रोज़ेल्ला मज़बूत और सुंदर होते हैं, लेकिन अन्य प्रजातियों के प्रति ये बहुत झगड़ालू होते हैं। तोते की उड़ान तेज़ गति वाली और सीधी एक दिशा में होती है। यह एक लोकप्रिय पालतू चिड़ियाँ है। लोग इसे पिंजरे में रखना पसंद करते हैं। यही इसका दुर्भाग्य है कि हर साल बहुत बडी संख्या में छोटे तोतों को पकड़ा और बेचा जाता है। इनकी सीखने की प्रवृति बहुत अधिक होती है। तोते में मनुष्य की आवाज़ की पिच पकड कर लगभग वैसा ही दोहराने की क्षमता होती है। यह खिलोने को लोड कर चलाने जैसा काम भी सीख जाते हैं, इसलिये सर्कस तथा ज़मीन पर तमाशा दिखाने वाले इस पक्षी का दुरूपयोग करते हैं।

नीलकंठ पक्षी
नीलकंठ एक भारतीय पक्षी है। इसका आकार मैना के बराबर होता है। इसकी चोंच भारी होती है, वक्षस्थल लाल भूरा, उदर, तथा पुच्छ क अधोतल नीला होता है। पंख पर गहरे और धूमिल नीले रंग के भाग उड़ान के समय चमकीली पट्टियों के रूप मे दिखाई पड़ते हैं।

त्रावणकोर के दक्षिण भाग को छोड़कर शेष भारत में यह पक्षी पाया जाता है। नीलकंठ को देखने मात्र से भाग्य का दरवाज़ा खुल जाता है। यह पवित्र पक्षी माना जाता है। दशहरा पर लोग इसका दर्शन करने के लिए बहुत लालायित रहते हैं।हिंदू धर्म ग्रंथों में भगवान शिव को 'नीलकंठ' के नाम से पुकारा जाता है।

गौरैया पक्षी
घरेलू गौरैया (पासर डोमेस्टिकस) एक पक्षी है जो यूरोप और एशिया में सामान्य रूप से हर जगह पाया जाता है। इसके अतिरिक्त पूरे विश्व में जहाँ-जहाँ मनुष्य गया इसने उनका अनुकरण किया और अमरीका के अधिकतर स्थानों, अफ्रीका के कुछ स्थानों, न्यूज़ीलैंड और आस्ट्रेलिया तथा अन्य नगरीय बस्तियों में अपना घर बनाया। शहरी इलाकों में गौरैया की छह तरह ही प्रजातियां पाई जाती हैं। ये हैं हाउस स्पैरो, स्पेनिश स्पैरो, सिंड स्पैरो, रसेट स्पैरो, डेड सी स्पैरो और ट्री स्पैरो। इनमें हाउस स्पैरो को गौरैया कहा जाता है। यह शहरों में ज्यादा पाई जाती हैं।

आज यह विश्व में सबसे अधिक पाए जाने वाले पक्षियों में से है। लोग जहाँ भी घर बनाते हैं देर सबेर गौरैया के जोड़े वहाँ रहने पहुँच ही जाते हैं। गोरैया एक छोटी चिड़िया है। यह हल्की भूरे रंग या सफेद रंग में होती है। इसके शरीर पर छोटे-छोटे पंख और पीली चोंच व पैरों का रंग पीला होता है। नर गोरैया का पहचान उसके गले के पास काले धब्बे से होता है। 14 से 16 से.मी. लंबी यह चिड़िया मनुष्य के बनाए हुए घरों के आसपास रहना पसंद करती है। यह लगभग हर तरह की जलवायु पसंद करती है पर पहाड़ी स्थानों में यह कम दिखाई देती है। शहरों, कस्बों गाँवों और खेतों के आसपास यह बहुतायत से पाई जाती है। नर गौरैया के सिर का ऊपरी भाग, नीचे का भाग और गालों पर पर भूरे रंग का होता है। गला चोंच और आँखों पर काला रंग होता है और पैर भूरे होते है। मादा के सिर और गले पर भूरा रंग नहीं होता है। नर गौरैया को चिड़ा और मादा चिड़ी या चिड़िया भी कहते हैं।

कपोतक/डव
कपोतक (डव, Dove) एक पक्षी है, जो कबूतरों (कोलंबिडी गण, Order columbidae) का निकट संबंधी है। यह पँड़की, फाखता, पंडुक और सिरोटी के नाम से भी प्रसिद्ध है। कपोतक 12 इंच तक लंबे, भोले भाले पक्षी होते हैं। इनकी प्रकृति, स्वभाव तथा अन्य बातें कपोतों से मिलती जुलती होती हैं। कपोत (कबूतर) की तरह ये भी अनाज और बीज आदि से अपना पेट भरते हैं और इन्हीं की भाँति इनका अंडा देने का समय भी साल में दो बार आता है। तब मादा अपने मचान-नुमा, तितरे बितरे घोंसले में दो सफ़ेद अंडे देती है। वैसे तो इसकी कई जातियाँ सारे संसार में फैली हुई हैं, परंतु उनमें निम्नलिखित विशेष प्रसिद्ध हैं : -

1. धवर (रिंग डव, Ring Dove)-यह कद में सब कपोतकों से बड़ा और राख के रंग का होता है जिसके गले में काला कंठा सा रहता है।
2. काल्हक (टर्टल डव, Turtle Dove)-यह धवर से कुछ छोटा और भूरे रंग का होता है। इसके ऊपरी भाग पर काली चित्तियाँ और चिह्न पड़े रहते हैं।
3. चितरोखा (स्पॉटेड डव, Spotted Dove)-यह काल्हक से कुछ छोटा, परंतु सबसे सुंदर होता है। इसके अगले ऊपरी काले भाग में सफेद बिंदियाँ और पिछले भूरे भाग में कत्थई चित्तियाँ पड़ी रहती हैं।
4. टूटरूँ (ब्राउन डव, Stock Dove)-यह उपर्युक्त तीनों कपोतकों से छोटा होता है। इसका ऊपरी भाग भूरा और छाती से नीचे का भाग सफेद रहता है। गले पर काली पट्टी रहती है जिसपर सफेद बिंदियाँ रहती हैं।
5. ईंटकोहरी (रेड टर्टल डव, Red Turtle Dove) - इसका रंग ईंट जैसा और कद सबसे छोटा होता है। पूँछ के नीचे का भाग सफेद और गले में काला कंठा रहता है।

सारस पक्षी
सारस विश्व का सबसे विशाल उड़ने वाला पक्षी है। इस पक्षी को क्रौंच के नाम से भी जानते हैं। पूरे विश्व में भारतवर्ष में इस पक्षी की सबसे अधिक संख्या पाई जाती है। सबसे बड़ा पक्षी होने के अतिरिक्त इस पक्षी की कुछ अन्य विशेषताएं इसे विशेष महत्व देती हैं। उत्तर प्रदेश के इस राजकीय पक्षी को मुख्यतः गंगा के मैदानी भागों और भारत के उत्तरी और उत्तर पूर्वी और इसी प्रकार के समान जलवायु वाले अन्य भागों में देखा जा सकता है। भारत में पाये जाने वाला सारस पक्षी यहां के स्थाई प्रवासी होते हैं और एक ही भौगोलिक क्षेत्र में रहना पसंद करते हैं।

सारस पक्षी का अपना विशिष्ट सांस्कृतिक महत्व भी है।विश्व के प्रथम ग्रंथ रामायण की प्रथम कविता का श्रेय सारस पक्षी को जाता है। रामायण का आरंभ एक प्रणयरत सारस-युगल के वर्णन से होता है। प्रातःकाल की बेला में महर्षि वाल्मीकि इसके द्रष्टा हैं तभी एक आखेटक द्वारा इस जोड़े में से एक की हत्या कर दी जाती है। जोड़े का दूसरा पक्षी इसके वियोग में प्राण दे देता है। ऋषि उस आखेटक को श्राप देते हैं। भारतीय उपमहाद्वीप में नामित सारस प्रजाति पश्चिम में सिंध से पूर्व में असम तक उत्तर में कश्मीर से दक्षिण में गोदावरी की द्रोणी तक पाई जाती थी। वर्तमान में यह उत्तर प्रदेशगुजरातराजस्थानमध्य प्रदेश,बिहार और उत्तरी महाराष्ट्र राज्यों में बहुतायत में पाई जाती है। किछ जोड़े हरियाणा और जम्मू-कश्मीर में भी देखे जा सकते हैं। भारत में ग्रस एंटिगोन शार्पीयाइ असम और मेघालय तक ही सीमित है।

बगुला पक्षी
बगुला (Herons) पक्षियों की एक प्रजाति है। इस परिवार में में 64 प्रजातियां हैं। धार्मिक ग्रंथों में बगुले से जुड़ी अनेक कथाओं का उल्लेख मिलता है। पंचतंत्र में एक कहानी है बगुला भगत। बगुला भगत पंचतंत्र की प्रसिद्ध कहानियों में से एक है जिसके रचयिता आचार्य विष्णु शर्मा हैं।

बगुला के नाम पर एक देवी का नाम भी है जिसे बगुलामुखी कहते हैं। बगुला ध्यान भी होता है अर्थात बगुले की तरह एकटक ध्यान लगाना। बगुले के संबंध में कहा जाता है कि ये जिस भी घर के पास ‍के किसी वृक्ष आदि पर रहते हैं वहां शांति रहती है और किसी प्रकार की अकाल मृत्यु नहीं होती।

चाहा पक्षी
चाहा पक्षी समुद्र तटीय पक्षियों के कुल 'स्कोलोपेसाइडी' की लगभग 20 प्रजातियों में से एक। विश्व भर के शीतोष्ण और गर्म इलाक़े के नम चरागाहों और दलदल में चाहा पक्षी पाए जाते हैं। ये छोटे पैर, लंबी चोंच वाले गठीले पक्षी होते हैं, जिन पर भूरीकाली व सफ़ेद धारियां और लकीरें होती हैं। इन पक्षियों के पंख नुकीले और इकहरे तथा आंखें पीछे की तरफ़ होती हैं। इनकी चोंच लचीली होती है, जो कीचड़ में कीड़े ढूंढ़ने के काम आती है। चाहा प्रजनन के समय एकांत पसंद करते हैं, लेकिन प्रवास करते समय पंक मैदानों में अन्य तटीय पक्षियों के साथ समूह में दिखाई देते हैं। अधिकतम जातियों में प्रणय निवेदन करने वाला नर गोल-गोल घूमता हुआ ऊंचा उड़ता है और फिर अपनी पूंछ के पंखों को हवा में फड़फड़ाते हुए ज़मीन पर स्थित मादा की तरफ़ तेज़ी से आता है। प्रणय निवेदन सामान्यत: शाम के धुंधलके, चांदनी रात या बदली भरे दिनों में होता है। शीतोष्ण इलाक़ों में रहने वाली प्रजातियों में उत्तरी अमेरिका की विल्संस चाहा, यूरेशियाई चाहा और दक्षिण अमेरिकी चाहा शामिल हैं। उत्तरी यूरोप का बड़ा चाहा भारी बदन का होता है और इसके अंदरूनी हिस्सों में धारियां होती हैं। अन्य जातियों में भारत का तीखी पूंछ चाहा और यूरेशिया का जैक चाहा शामिल हैं।

हंस पक्षी
हंस (Swan) एक पक्षी है। भारतीय साहित्य में इसे बहुत विवेकी पक्षी माना जाता है। और ऐसा विश्वास है कि यह नीर-क्षीर विवेक (जल और दूध को अलग करने वाला विवेक) से युक्त है। यह विद्या की देवी सरस्वती का वाहन है। जब कोई व्यक्ति सिद्ध हो जाता है तो उसे कहते हैं कि इसने हंस पद प्राप्त कर लिया और जब कोई समाधिस्थ हो जाता है, तो कहते हैं कि वह परमहंस हो गया। परमहंस सबसे बड़ा पद माना गया है। पक्षियों में हंस एक ऐसा पक्षी है जहां देव आत्माएं आश्रय लेती हैं। यह उन आत्माओं का ठिकाना हैं जिन्होंने अपने ‍जीवन में पुण्यकर्म किए हैं और जिन्होंने यम-नियम का पालन किया है।

कुछ काल तक हंस योनि में रहकर आत्मा अच्छे समय का इंतजार कर पुन: मनुष्य योनि में लौट आती है या फिर वह देवलोक चली जाती है। हंस पक्षी प्यार और पवित्रता का प्रतीक है। यह बहुत ही विवेकी पक्षी माना गया है। आध्यात्मिक दृष्टि मनुष्य के नि:श्वास में 'हं' और श्वास में 'स' ध्वनि सुनाई पड़ती है। मनुष्य का जीवन क्रम ही 'हंस' है क्योंकि उसमें ज्ञान का अर्जन संभव है। अत: हंस 'ज्ञान' विवेक, कला की देवी सरस्वती का वाहन है। यह पक्षी अपना ज्यादातर समय मानसरोवर में रहकर ही बिताते हैं या फिर किसी एकांत झील और समुद्र के किनारे। यह पक्षी दांप‍त्य जीवन के लिए आदर्श है।

कौआ पक्षी
कौआ काले रंग का एक पक्षी है। राजस्थानी भाषा में इसे 'कागला' तथा मारवाड़ी में 'हाडा' कहा जाता है। यह कबूतर के आकार का काला पक्षी है, जो कर्ण कर्कश ध्वनि 'काँव-काँव' करता है। कौए को बहुत उद्दंड, धूर्त तथा चालाक पक्षी माना जाता है। कौआ एक विस्मयकारक पक्षी है। इनमें इतनी विविधता पाई जाती है कि इस पर एक 'कागशास्त्र' की भी रचना की गई है। भारत में कई स्थानों पर काला कौआ अब दिखाई नहीं देता। बिगड़ रहे पर्यावरण की मार कौओं पर भी पड़ी है। स्थिति यह है कि श्राद्ध में अनुष्ठान पूरा करने के लिए कौए तलाशने से भी नहीं मिल रहे हैं। कौए के विकल्प के रूप में लोग बंदरगाय और अन्य पक्षियों को भोजन का अंश देकर अनुष्ठान पूरा कर रहे हैं। कौए की छः प्रजातियाँ भारत में मिलती हैं। भारत के ख्याति प्राप्त पक्षी विज्ञानी सालिम अली ने हैन्डबुक में दो का ही ज़िक्र किया है- एक जंगली कौआ (कोर्वस मैक्रोरिन्कोस) तथा दूसरा घरेलू कौआ (कोर्वस स्प्लेन्ड़ेंस)। जंगली कौआ पूरी तरह से काले रंग का होता है, जबकि घरेलू कौआ गले में एक भूरी पट्टी लिए हुए होता है। 

शायद इसी को देखकरतुलसीदास ने 'काग भुशुंडि' नाम के अमर मानस पात्र की संकल्पना की हो, जिसके गले में कंठी माला सी पडी है। वर्तमान समय में कौआ भी पक्षियों की संकटग्रस्त प्रजातियों में सम्मिलित हो गया है। पहले कौओं के झुण्ड के झुण्ड दिखाई देते थे, लेकिन अब इन्हें देख पाना कठिन हो गया है। आने वाले समय में शायद इस कहावत का कोई अर्थ नहीं रह जायेगा कि- "झूठ बोले कौआ काटे"। 'अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी' के वन्य जीव विभाग के डॉ. अफीफउल्ला कहते हैं कि प्रदूषण के साथ-साथ सिमट रही बायोडायवर्सिटी के कारण भी कौओं की संख्या तेजी से घटी है। वातावरण असंतुलन के कारण ही गौरैया और बया की तरह कौए लुप्त होने की कगार पर आ गए हैं। मानव की खान-पान की आदतें बदली हैं। कौए गंदगी खाते हैं। कूड़ा अब पालीथिन में फेंका जाता है।

गोडावण पक्षी
गोडावण (ग्रेट इंडियन बस्टर्ड ; वैज्ञानिक नाम : Ardeotis nigriceps) एक बड़े आकार का पक्षी है जो भारत के राजस्थान तथा सीमावर्ती पाकिस्तान में पाया जाता है। उडने वाली पक्षियों में यह सबसे अधिक वजनी पक्षियों में है। बड़े आकार के कारण यह शुतुरमुर्ग जैसा प्रतीत होता है। यह राजस्थान का राज्य पक्षी है। यह जैसलमेर के मरू उद्यान, सोरसन (बारां) व अजमेर के शोकलिया क्षेत्र में पाया जाता है। यह पक्षी अत्यंत ही शर्मिला है और सघन घास में रहना इसका स्वभाव है। यह पक्षी 'सोहन चिडिया' तथा 'शर्मिला पक्षी' के उपनामों से भी प्रसिद्ध है। गोडावण का अस्तित्व वर्तमान में खतरे में है तथा इनकी बहुत कम संख्या ही बची हुई है अर्थात यह प्रजाति विलुप्ति की कगार पर है। यह सर्वाहारी पक्षी है।

इसकी खाद्य आदतों में गेहूँ, ज्वार, बाजरा आदि अनाजों का भक्षण करना शामिल है किंतु इसका प्रमुख खाद्य टिड्डे आदि कीट है। यह साँप, छिपकली, बिच्छू आदि भी खाता है। यह पक्षी बेर के फल भी पसंद करता है।  गोडावण भारी होने के कारण उड़ नहीं सकता, लेकिन लंबी और मजबूत टांगों के सहारे बहुत तेजी से दौड़ सकता है। इस विशाल पक्षी को बचाने के लिए राजस्थान सरकार ने हाल ही में एक प्रोजेक्ट तैयार किया है। प्रोजेक्ट का विज्ञापन "मेरी उड़ान न रोकें" जैसे मार्मिक वाक्यांश से किया गया है। गोडावण को बचाने का यह प्रोजेक्ट है- 'ग्रेट इंडियन बस्टर्ड'। गोडावण की रक्षा और संरक्षण के लिए इस प्रोजेक्ट के रूप में कार्य आरंभ करने वालाराजस्थान पहला राज्य बन चुका है। गोडावण का अस्तित्व वर्तमान में खतरे में है तथा इनकी बहुत कम संख्या ही बची हुई है, अर्थात यह प्रजाति विलुप्ति की कगार पर है।

चातक पक्षी
चातक एक पक्षी है। इसके सिर पर चोटीनुमा रचना होती है। भारतीय साहित्य में इसके बारे में ऐसा माना जाता है कि यह वर्षा की पहली बूंदों को ही पीता है। अगर यह पक्षी बहुत प्यासा है और इसे एक साफ़ पानी की झील में डाल दिया जाए तब भी यह पानी नहीं पिएगा और अपनी चोंच बंद कर लेगा ताकि झील का पानी इसके मुहं में न जा सके। यह पक्षी मुख्यतः एशिया और अफ्रीका महाद्वीप पर पाया जाता है।

इसे मारवाडी भाषा मेँ 'मेकेवा' कहा जाता हैँ|  चातक लगभग 15 इंच लंबा काले रंग का पक्षी है, जिसका निचला भाग श्वेत रहता है। इसके स्वाति नक्षत्र में होने वाली वर्षा की सिर्फ पहली बूंदों को ही पीता है। यह कथा केवल साहित्य की मान्यता है, वास्तविकता इसमें कुल भी नहीं है। अपने कुल के कोयल, पपीहा , कुक्कू, काफल पाक्को, फूपूआदि पक्षियों की तरह इसकी मादा भी दूसरी चिड़ियों के घोसलों में अपना एक-एक अंडा रख आती है। इस कुल के पक्षी संसार के प्राय: सभी गरम देशों में पाए जाते हैं। इन पक्षियों की पहली और चौथी उँगलियाँ पीछे की ओर मुड़ी रहती हैं। चातक का मुख्य भोजन कीड़े मकोड़े और इल्लियाँ हैं।

कुररी प्रसिद्ध पक्षी
कुररी (Tern) पक्षियों के 'वीचीकाक वंश' (Laridae) के प्रसिद्ध पक्षी हैं। ये पक्षी सामुद्रिक गंगाचिल्ली से कद में छोटे होकर भी उसी के निकट संबंधी हैं। ये पानी के निकट रहने वाले स्लेटी रंग के पक्षी हैं।[1] कुररी के पैर छोटे और जालपाद युक्त होते हैं, चोंच बड़ी और तीक्ष्ण तथा डैने नुकीले होते हैं। इन पक्षियों का माथा और सिर गर्मियों में काले रंग के हो जाते हैं, मानो इन्होंने काले मखमल की टोपी पहन रखी हो। इस पक्षी की कई जातियाँ विश्व में पाई जाती हैं, किंतु उनके स्वभाव में अधिक भेद नहीं होता। कुररी लगभग एक फुट की लम्बाई वाली चिड़िया है, जो पानी के किनारे झुँड में रहती है। इस पक्षी का मुख्य भोजन मछली है, जिसकी तलाश में यह पानी की सतह से चोंच मिलाकर उड़ती रहती है। सैकड़ों कुररियाँ एक साथ रेत में अंडे देती हैं। यदि कोई इनके निकट चला जाए तो ये बहुत जोर-जोर से शोर मचाती हैं।

कपोत पक्षी
कपोत कोलंबिडी गण के प्रसिद्ध पक्षी हैं। इनकी दो जंगली जातियों- नील शैलकपोत तथा शैल कपोतक से मनुष्यों ने बहुत-सी पालतू जातियाँ निकाली हैं, जो चार श्रेणियों में विभक्त की जा सकती हैं-
  • बुद्बुदक कपोत
  • वाहक कपोत
  • त्यजनपुच्छ
  • श्रृंगवाकु

इनकी ग्रासनली बड़ी और अन्नगृह से अलग रहती है। अन्नगृह को फुलाकर ये बड़ा कर सकते हैं।  लगभग 3,000 ई. पू. से मनुष्यों द्वारा कबूतरों के पालने का पता चलता है। उसके बाद ईरानबग़दाद तथा अरब के अन्य देशों में भी कबूतर पालने का प्रचलन था। सन् 1848 की फ़्राँस की क्रांति में कबूतरों का उपयोग संदेश वाहक के रूप में किया गया था। विज्ञान के इस युग में भी इनकी उपयोगिता कम नहीं हुई है और इनकी टाँगों अथवा पीठ पर एक पोली नली में पत्र रखकर आज भी लड़ाई में इनका उपयोग होता है। शांतिदूत के रूप में भी सफ़ेद रंग के कबूतर उड़ाए जाते हैं। संसार भर में बेल्जियम कबूतरों का सबसे अधिक शौकीन देश है। वहाँ इनकी उड़ान पर घोड़ों के समान बाजी लगती है। लगभग सभी गाँवों में कबूतरों के क्लब स्थापित हैं। भारत में भी गिरहबाज, लक्का, मुक्खीलोटन, अंबरसरे, चीना, शिराजी, गोला आदि अनेक जातियों के कबूतरों को शौकीन लोग पालते हैं। 

एक अन्य जाति के कबूतर सन्‌ 1914 ई. तक पाए जाते थे, परंतु अब वे पृथ्वी से लुप्त हो गए हैं। ये यात्री कबूतर कहलाते थे। जब ये हजारों के बड़े-बड़े समूहों में उड़ते थे, तो आकाश काला हो जाता था। ये फाख्ता के बराबर होते थे और इनका रंग गाढ़ा सिलेटी तथा पूँछ लंबी होती थी। कबूतरों के ही वर्ग के 'हारिल' भी चिरपरिचित पक्षी हैं, जो हरे और धानी रंग के तथा बहुत सुंदर होते हैं।


तीतर जैसी पूंछ वाला जल-कपोत पक्षी
तीतर जैसी पूंछ वाला जल-कपोत (हाइड्रोफेसियानस चिरुरगस) एक प्रतिरुपी प्रजाति हाइड्रोफेसियानस में आनेवाला एक जल-कपोत है। जल-कपोत, जकानिडे परिवार के लम्बे पैरों वाले पक्षी (वेडर) हैं, जिन्हें इनके बड़े पंजों द्वारा पहचाना जाता है जो इन्हें अपने पसंदीदा प्राकृतिक वास, छिछली झीलों में तैरती हुई वनस्पतियों पर चलने में समर्थ बनाते हैं। तीतर जैसी पूंछ वाला जल-कपोत तैर भी सकता है, हालांकि सामान्यतया यह वनस्पतियों पर चलना ही पसंद करता है। इस प्रजाति की मादाएं, नर की अपेक्षा अधिक रंगबिरंगी होती हैं और बहुनरगामी होती हैं।

जल-कपोत एक Linnæus' की ब्राजीलियाई पुर्तगाली जकाना (इस पक्षी के टूपी नाम से लिया गया) के लिए मिथ्या लैटिन गलत वर्तनी है जिसका उच्चारण लगभग जैसा होता है। तीतर जैसी पूंछ वाले यह जल-कपोत भारत में, दक्षिणपूर्वी एशिया और इंडोनेशिया में प्रजनन करते हैं। यह अपनी अधिकांश श्रृंखला में निष्क्रिय रहते हैं लेकिन दक्षिण चीन और हिमालय क्षेत्र के उत्तरी प्रजनक प्रायद्वीपीय भारत और दक्षिणपूर्व एशिया में प्रवास कर जाते हैं। यह ताइवान में भी पाई जाती है, जहां इसे लुप्तप्राय माना जाता है। ऑस्ट्रेलिया में इसे घुमक्कड़ पक्षी माना जाता है।

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