गंगा नहर, एक नहर प्रणाली है जिसका प्रयोग गंगा नदी और यमुना नदी के बीच के दोआब क्षेत्र की सिंचाई के लिए किया जाता है। यह नहर मुख्य रूप से एक सिंचाई नहर है, हालांकि इसके कुछ हिस्सों को नौवहन के लिए भी इस्तेमाल किया गया था, मुख्यतः इसकी निर्माण सामग्री के परिवहन हेतु। इस नहर प्रणाली में नौकाओं के लिए जल यातायात सुगम बनाने के लिए अलग से जलपाश युक्त नौवहन वाहिकाओं का निर्माण किया गया था। नहर का प्रारंभिक निर्माण 1842 से 1854 के मध्य, 6000 फीट³/ सेकण्ड के निस्सरण के लिए किया गया था। उत्तरी गंगा नहर को तब से समय के साथ आज के निस्सरण 10500 फुट³/सेकण्ड (295 मी³/सेकण्ड) के अनुसार धीरे धीरे बढ़ाया गया है। नहर प्रणाली में 272 मील लम्बी मुख्य नहर और 4000 मील लंबी वितरण वाहिकायें समाहित हैं। इस नहर प्रणाली से उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के दस जिलों की लगभग 9000 किमी² उपजाऊ कृषि भूमि सींची जाती है। आज यह नहर प्रणाली इन राज्यों में कृषि समृद्धि का मुख्य स्रोत है और दोनो राज्यों के सिंचाई विभागों द्वारा इसका अनुरक्षण बड़े मनोयोग से किया जाता है। प्रशासनिक रूप से गंगा नहर को ऊपरी गंगा नहर जो अपनी कई शाखाओं के साथ हरिद्वार से लेकर अलीगढ़ तक है और, निचली गंगा नगर जो अलीगढ़ से नीचे के भाग में स्थित है, में विभाजित किया गया है।
इतिहास : -
1837-38 में पड़े भीषण अकाल, के बाद चले राहत कार्यों में खर्च हुए लगभग दस मिलियन (एक करोड़) रुपये और इस कारण से ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी को हुई राजस्व हानि के बाद, एक सुचारू सिंचाई प्रणाली की आवश्यकता महसूस की गयी। गंगा नहर को अस्तित्व में लाने का श्रेय कर्नल प्रोबी कॉटली को जाता है, जिन्हें पूरा विश्वास था कि एक 500 किलोमीटर लंबी नहर का निर्माण किया जा सकता है। उनकी इस परियोजना के विरोध में बहुत सी बाधायें और आपत्तियां आयीं जिनमें से ज्यादातर वित्तीय थीं, लेकिन कॉटली ने लगातार छह महीने तक किये गये पूरे इलाके का दौरे और सर्वेक्षण के बाद अंतत: ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी को इस परियोजना को प्रायोजित करने के लिए राजी कर लिया।
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यह राजस्थान नहर के नाम से भी जानी जाती है, जो राजस्थान प्रदेश के उत्तर-पश्चिम भाग में बहती है। इन्दिरा गाँधी नहर राजस्थान की प्रमुख नहर हैं। इसका पुराना नाम "राजस्थान नहर" था। राजस्थान की महत्वाकांक्षी इंदिरा गांधी नहर परियोजना से मरूस्थलीय क्षेत्र में चमत्कारिक बदलाव आ रहा है और इससे मरूभूमि में सिंचाई के साथ ही पेयजल और औद्योगिक कार्यो के लिए भी पानी मिलने लगा है। नहर निर्माण से पूर्व लोगों को कई मील दूर से पीने का पानी लाना पडता था। लेकिन अब परियोजना के अंतर्गत बारह सौ क्यूसेक पानी केवल पेयजल उद्योग, सेना एवं ऊर्जा परियोजनाओं के लिए आरक्षित किया गया है। विशेषतौर से चुरू,श्रीगंगानगर, हनुमानगढ़, बीकानेर, जैसलमेर, बाडमेर और नागौर जैसे रेगिस्तानी जिलों के निवासियों को इस परियोजना से पेयजल सुविधा उपलब्ध कराने के प्रयास जारी हैं।
केन नदी नहरयह उत्तर प्रदेश की एक नहर है। यह नहर यमुना की सहायक केन नदी से पन्ना (मध्य प्रदेश) के निकट से निकाली गई है। यह उत्तर प्रदेश के बाँदा ज़िले और मध्य प्रदेश के छतरपुर ज़िले की लगभग 1.4 लाख एकड़ भूमि को सींचती है। इसकी शाखाओं और प्रशाखाओं सहित लम्बाई 640 किलोमीटर है।
अर्जुन बाँध की नहर उत्तर प्रदेश राज्य की कई नहरों में से एक है। हमीरपुर ज़िले में चरखारी से 2 किलोमीटर दक्षिण में अर्जुन नदी पर अर्जुन बाँध बनाया गया है। इस बाँध से कई नहरें निकाली गई हैं, जो हमीरपुर ज़िले की 26,27000 भूमि को सींचती है।
यह नहर सोन नदी की सहायक घाघरा नदी से निकाली गई है।
इसकी दो शाखाएँ हैं—
- मरीहम तथा
- घोरायल।
कोम्मापुर नहर
कोम्मापुर नहर को 'बकिंघम नहर' भी कहा जाता है। यह दक्षिण-पूर्वी भारत के पूर्वी आंध्र प्रदेश और पूर्वोत्तर तमिलनाडु राज्य की नहर है। वर्ष 1806 से 1882 के बीच कोरोमंडल तट के पश्चजल के किनारे विभिन्न चरणों में इस नहर का निर्माण किया गया। कोम्मापुर नहर कुमारी अंतरीप से उत्तर दिशा मे कृष्णा और गोदावरी नदी डेल्टाओं में 1,100 कि.मी तक फैली हुई है। यद्यपि 1880 के बाद इस नहर का व्यापक पुनर्निर्माण हुआ, लेकिन इसकी निर्माण कारीगरी कमज़ोर है और मरम्मत का खर्च हमेशा बहुत अधिक रहा है। इस नहर को एक मीटर से अधिक गहराई तक डूबने वाली नौकाओं के परिचालन के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। इसके बावजूद, तमिलनाडु के चेन्नई नगर में ईंधन, नमक और सूखी मछली जैसे भारी सामान की ढुलाई के लिए यही एकमात्र लाभप्रद रास्ता है।
अहरौरा बाँध नहर
उत्तर प्रदेश की नहर है। वाराणसी ज़िले में गडई नदी पर अहरौरा नामक स्थान पर एक बाँध बनाया गया है। जिससे निकाली गई नहरें वाराणसी और मिर्ज़ापुर ज़िले की सिंचाई व्यवस्था में सहायक हैं।