भौतिक विज्ञान शब्दकोश : परिभाषा भाग - 3, - Study Search Point

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भौतिक विज्ञान शब्दकोश : परिभाषा भाग - 3,

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भौतिक राशि किसे कहते है?

भौतिक राशि वस्तुतः कोई भौतिक गुण है जिसे मापा जा सकता है अर्थात कोई आंकिक मान दिया जा सकता है।
अन्तरराष्ट्रीय मापन शब्दावली की परिभाषा के अनुसार -
भौतिक राशि किसी वस्तु, पदार्थ या परिघटना का गुण है तथा इस गुण को संख्यात्मक मान एवं कोई मानक सन्दर्भ प्रदान किया जा सकता है।
अतः किसी भौतिक राशि Q को एक संख्यात्मक मान तथा एक इकाई (या मात्रक) के गुणनफल के रूप में अभिव्यक्त किया जाता है।
Q = N x U
उदाहरण के लिए, 'के मूल्यों' तापमान ',' मात्रा ',' दबाव, 'आणविक' मास 'और' आंतरिक 'ऊर्जा भौतिक किसी भी गैस की सीमित मात्रा में राज्य का वर्णन कर रहे हैं,' मौजूदा 'तीव्रता बदल जाता है की संख्या,' और ' चुंबकीय 'permittivity भौतिक पूरी तरह से' चुंबकीय क्षेत्र 'तीव्रता का वर्णन एक solenoid के केन्द्र में मात्रा रहे हैं। विभिन्न भौतिक राशियों के बीच गणितीय कार्य करने के लिये परिमाण कलन (quantity calculus) का उपयोग किया जाता है। कम घनत्व गैसों के बाद से (कम से सामान्य वायुमंडलीय दबाव) अपने तापमान के साथ उनकी आनुपातिक मात्रा का विस्तार, वे थर्मामीटर के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। इस तरह के एक गैस एक छाया हुआ ग्लास अपनी टोपी के माध्यम से कहा कि हवा में फैली कटोरी (में रखा जा सकता है) एक केशिका ट्यूब पारा की एक बूंद के अंदर जो भागने से गैस सीमित होगा.
अब हम सेल्सियस डिग्री और सेल्सियस पैमाने पर परिभाषित कर सकते हैं : -
कांच का कटोरा के बाद पारा ड्रॉप की केशिका स्तर पर मार्क लंबे समय पर्याप्त बर्फ के पानी में 'शनिवार है। मार्क कांच का कटोरा के बाद पारा ड्रॉप स्तर काफी देर तक उबलते पानी में 'शनिवार है। इस अंक से ऊपर पिछले जाएगा. 100 में केशिका ट्यूब पर 2 चिह्नों के बीच अंतराल को समान रूप से विभाजित अंतराल या डिवीजनों दूर. एक 'डिग्री सेल्सियस अब' या 'डिग्री' सेल्सियस डिग्री सेल्सियस या '1 'कटोरा-सीमित गैस है कि सिर्फ एक प्रभाग द्वारा कि पारा ड्रॉप वृद्धि कर देगा तापमान में परिवर्तन है। हम [टी] = '1 ° 'सी' के रूप में तापमान के लिए अंतर्राष्ट्रीय इकाई के लिए कम लिखने सेल्सियस 'की डिग्री है। अगर 30 प्रभागों द्वारा पारा ड्रॉप उगता है, तापमान 30 × 1 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई है
इस उदाहरण से एक भौतिक 'मात्रा क्यू' को एक संख्यात्मक मूल्य () क्यू और माप की एक इकाई [क्यू] के बीच उत्पाद के रूप में व्यक्त किया है।
क्यू क्यू = () × [क्यू] ... यह स्पष्ट हो जाता है जब या उसके गुणजों इकाइयों के उपगुणक में एक भौतिक मात्रा (equivalently) व्यक्त करते हैं - उदाहरण के लिए है लंबाई मीटर या [एल] = 1 मी द्वारा मापा और किलोमीटर की दूरी (किमी) एक मीटर से अधिक है, जबकि 'मिलीमीटर '(मिमी) एक submultiple, कि इस तरह के 1 मी = 0,001 किमी = 1000 मिमी है। अगर एक फुटबॉल की गेंद के व्यास है, कहते हैं, 0.3 मी = 0.3 × 1000 मिमी तो = 300 मिमी जो एक ही मात्रा में है, लेकिन अलग अलग इकाइयों में व्यक्त किया। इसी तरह अगर 'एफिल टॉवर 324 मीटर ऊँचा है तो 324 मीटर = 324 × 0,001 किमी = 0.324 किमी है।

मापन किसे कहते है?
किसी भौतिक राशि का परिमाण संख्याओं में व्यक्त करने को मापन कहा जाता है। मापन मूलतः तुलना करने की एक प्रक्रिया है। इसमें किसी भौतिक राशि की मात्रा की तुलना एक पूर्वनिर्धारित मात्रा से की जाती है। इस पूर्वनिर्धारित मात्रा को उस राशि-विशेष के लिये मात्रक कहा जाता है। उदाहरण के लिये जब हम कहते हैं कि किसी पेड़ की उँचाई 10 मीटर है तो हम उस पेड़ की उचाई की तुलना एक मीटर से कर रहे होते हैं। यहाँ मीटर एक मानक मात्रक है जो भौतिक राशि लम्बाई या दूरी के लिये प्रयुक्त होता है। इसी प्रकार समय का मात्रकसेकण्ड, द्रव्यमान का मात्रक किलोग्राम आदि हैं। 
लॉर्ड केल्विन का निम्नलिखित कथन मापन के महत्व को प्रतिपादित करता है -
" When you can measure what you are speaking about and express it in numbers you know something about it; but when you cannot express it in numbers, your knowledge is of a meagre and unsatisfactory kind." -- (Lord Kelvin 1883)
हिन्दी अर्थ -
" जिस चीज के बारे में आप बात कर रहे हैं, यदि आप उसे माप सकते हैं और उसे संख्याओं में व्यक्त कर सकते हैं, तो आप उसके बारे में कुछ जानते हैं ; लेकिन यदि आप उसे संख्याओं में अभिव्यक्त नहीं कर सकते तो आपका ज्ञान तुच्छ और असंतोषजनक है। " -- (लॉर्ड केल्विन, 1883 में)
  1. जिसे मापा नहीं जा सकता उसे संख्याओं में व्यक्त नहीं किया जा सकता। बिना संख्यात्मक मान के विज्ञान या प्रौद्योगिकी नहीं हो सकती।
  2. यदि किसी भौतिक राशि का नियन्त्रण करना है तो उसे मापे बिना सम्भव नही है। बिना शुद्धतापूर्वक मापे, किसी राशि का शुद्धतापूर्वक नियन्त्रण भी नहीं हो सकता।
  3. विभिन्न प्रक्रमों का उपयोग करके चीजों का उत्पादन किया जाता है। इन प्रक्रियाओं से प्राप्त उत्पादों की गुणवत्ता इस बात पर निर्भर करती है कि उस प्रक्रिया में निहित भौतिक राशियों को कितनी शुद्धता से नियंत्रित किया गया था।
  4. प्रकृति के रहस्यों को जानने के लिये भी मापन जरूरी है। मापन करने से ही पता चलता है कि विभिन्न राशियों में क्या सम्बन्ध है। इसी से नये नियम और सिद्धान्त दिये जाते हैं।
  5. पदार्थों की उपयोगिता उनके गुणधर्मों पर आधारित है। इसके लिये विभिन्न पदार्थों के गुणधर्म का विस्तार से ज्ञान होना जरूरी है। इसके लिये मापन जरूरी है।
  6. मापन का उपयोग इंजीनियरी, भौतिकी एवं अन्य विज्ञानों के अलावा मनोविज्ञानस्वास्थ्य आदि में भी होने लगा है।

उर्जा किसे कहते है?
किसी भी कार्यकर्ता के कार्य करने की क्षमता को उर्जा (Energy) कहते हैं।
ऊर्जा की सरल परिभाषा देना कठिन है। ऊर्जा वस्तु नहीं है। इसको हम देख नहीं सकते, यह कोई जगह नहीं घेरती, न इसकी कोई छाया ही पड़ती है। संक्षेप में, अन्य वस्तुओं की भाँति यह द्रव्य नहीं है, यद्यापि बहुधा द्रव्य से इसका घनिष्ठ संबंध रहता है। फिर भी इसका अस्तित्व उतना ही वास्तविक है जितना किसी अन्य वस्तु का और इस कारण कि किसी पिंड समुदाय में, जिसके ऊपर किसी बाहरी बल का प्रभाव नहीं रहता, इसकी मात्रा में कमी बेशी नहीं होती। विज्ञान इसका महत्वपूर्ण स्थान है। कार्य की किसी भी मात्रा को हम कार्य का एकक मान सकते हैं। उदाहरणत: एक किलोग्राम भार को पृथ्वी के आकर्षण के विरुद्ध एक मीटर ऊँचा उठाने में जितना कार्य करना पड़ता है उसे एकक माना जा सकता है। परंतु पृथ्वी का आकर्षण सब जगह एक समान नहीं होता। इसका जो मान चेन्नै में है वह दिल्ली में नहीं है। इसलिए यह एकक असुविधापूर्ण है। फिर भी बहुत से देशों में इंजीनियर ऐसे ही एकक का उपयोग करते हैं। जिसे फुट-पाउंड कहते हैं। यह उस कार्य की मात्रा है जो लंदन के अक्षांश में समुद्रतट पर एक पाउंड को एक दूसरे ही एकक का प्रयोग किया जाता है जो सेंटीमीटर-ग्राम-सेंकड के ऊपर निर्भर है। इसमें बल के एकक को "डाइन" (Dyne) कहते हैं। डाइन बल का वह एकक है जो एक ग्राम के पिंड में एक सेकंड में एक सेंटीमीटर प्रति सेकंड का वेग उत्पन्न कर सकता है। इस बल के क्रियाबिंदु को इसके विरुद्ध एक सें. मी. हटाने में जितना कार्य करना पड़ता है उसे वर्ग कहते हैं। परंतु व्यावहारिक दृष्टि से कार्य का यह एकक बहुत छोटा है। अतएव दैनिक व्यवहार में एक दूसरा एकक उपयोग में लाया जाता है। इसमें लंबाई का एकक सेंटीमीटर के स्थान पर मीटर है तथा द्रव्यमान का एकक ग्राम के स्थान पर किलोग्राम है। इसमें बल का एकक "न्यूटन" है। न्यूटन बल का वह एकक है जो एक किलोग्राम के पिंड में एक सेकंड में एक मीटर प्रति सेकंड का वेग उत्पन्न कर सकता है। इस तरह न्यूटन 100000 डाइन के बराबर होता है। इस बल के क्रियाबिंदु को उसके विरुद्ध एक मीटर तक हटाने में जितना कार्य करना पड़ता है उसे जूलकहते हैं। एक जूल 107 अर्गो के बराबर होता है।

स्थितिज ऊर्जा किसे कहते है?

एक किलोग्राम भार के एक पिंड को पृथ्वी के आकर्षण के विरुद्ध एक मीटर ऊँचा उठाने में जो कार्य करना पड़ता है उसे हम किलोग्राम-मीटर कह सकते हैं और यह लगभग 981 जूलों के बराबर होता है। यदि हम एक डोर लेकर ओर उसे एक घिरनी के ऊपर डालकर उसके दोनों सिरों से लगभग एक किलोग्राम के पिंड बाँधे और उन्हें ऐसी अवस्था में छोड़ें कि वे दोनों एक ही ऊँचाई पर न हों और ऊँचे पिंड को बहुत धीरे-से नीचे आने दें तो हम देखेंगे कि एक किलोग्राम के पिंड को एक मीटर ऊँचा उठा देगा। घिरनी में घर्षण जितना ही कम होगा दूसरा पिंड भार में उतना ही पहले पिंड के भार के बराबर रखा जा सकेगा। इसक अर्थ यह हुआ कि यदि हम किसी पिंड को पृथ्वी से ऊँचा बढ़ जाती है। एक किलोग्राम भार के पिंड को यदि 5 मीटर ऊँचा उठाया जाए तो उसमें 5 किलोग्राम-मीटर कार्य करने की क्षमता आ जाती है, एवं उसकी ऊर्जा पहले की अपेक्षा उसी परिमाण में बढ़ जाती है। यह ऊर्जा पृथ्वी तथा पिंड की आपेक्षिक स्थिति के कारण होती है और वस्तुत: पृथ्वी एवं पिंड द्वारा बने तंत्र (सिस्टम) की ऊर्जा होती है। इसीलिए इसे स्थितिज ऊर्जा कहते हैं। जब कभी भी पिंडों के किसी समुदाय की पारस्परिक दूरी अथवा एक ही पिंड के विभिन्न भागों की स्वाभाविक स्थिति में अंतर उत्पन्न होता है तो स्थितिज ऊर्जा में भी अंतर आ जाता है। कमानी को दबाने से अथवा धनुष को झुकाने से उनमें स्थितिज ऊर्जा आ जाती है। नदियों में बाँध बाँधकर पानी को अधिक ऊँचाई पर इकट्ठा किया जाए तो इस पानी में स्थितिज ऊर्जा आ जाती है।

गतिज ऊर्जा किसे कहते है?

न्यूटन ने बल की यह परिभाषा दी कि बल संवेग (मोमेंटम) के परिवर्तन की दर के बराबर होता है। यदि m किलोग्राम का कोई पिंड प्रारंभ में स्थिर हो और उसपर एक नियत बल F, t सेंकड तक कार्य करके जो वेग उत्पन्न करे उसका मान v मीटर प्रति सेकंड हो तो बल का मान \frac{mv}{t} न्यूटन होगा। इसी समय में पिंड जो दूरी तै करे वह यदि d मीटर हो तो बल द्वारा किया गया कार्य F.d जूल के बराबर होगा।
अर्थात m द्रव्यमानवालें पिंड का वेग यदि v हो तो उसकी ऊर्जा \frac{1}{2}mv^{2} होगी। यह ऊर्जा उस पिंड में उसकी गति के कारण होती है और गतिज ऊर्जा कहलाती है। जब हम धनुष को झुकाकर तीर छोड़ते हैं तो धनुष की स्थितिज ऊर्जा तीर की गतिज ऊर्जा मे परिवर्तन हो जाती है। स्थितिज ऊर्जा एवं गतिज ऊर्जा के पारस्परिक परिवर्तन का सबसे सुंदर उदाहरण सरल लोलक है। जब हम लोलक के गोलक को एक ओर खींचते हैं तो गोलक अपनी साधारण स्थिति से थोड़ा ऊँचा उठ जाता है और इसमें स्थितिज ऊर्जा आ जाती है। जब हम गोलक को छोड़ते हैं तो गोलक इधर उधर झूलने लगता है। जब गोलक लटकने की साधारण स्थिति में आता है तो इसमें केवल गतिज ऊर्जा रहती है। संवेग के कारण गोलक दूसरी ओर चला जाता है और गतिज ऊर्जा पुन: स्थितिज ऊर्जा में परिवर्तित हो जाती है। साधारणत: वायु के घर्षण के विरुद्ध कार्य करने से गोलक की ऊर्जा कम होती जाती है और इसकी गति कुछ देर में बंद हो जाती है। यदि घर्षण का बल न हो तो लोलक अनंत काल तक चलता रहेगा।

 उष्मीय ऊर्जा किसे कहते है?
गति विज्ञान में ऊर्जा-अविनाशिता-सिद्धांत के प्रमाणित हो जाने के बाद भी इसके दूसरे स्वरूपों का ज्ञान न होने के कारण यह समझा जाता था कि कई स्थितियों में ऊर्जा नष्ट भी हो सकती है; जैसे, जब किसी पिंडसमुदाय के विभिन्न भागों में अपेक्षिक गति हो तो घर्षण के कारण स्थितिज और गतिज ऊर्जा कम हो जाती है। वस्तुत: ऐसी स्थितियों में ऊर्जा नष्ट नहीं होती वरन् उष्मा ऊर्जा में परिवर्तन हो जाती है। परंतु 18वीं शताब्दी तक उष्मा को ऊर्जा का ही एक स्वतंत्र स्वरूप नहीं समझा जाता था। उस समय तक यह धारणा थी कि उष्मा एक द्रव्य है। 19वीं शताब्दी में प्रयोगों द्वारा यह निर्विवाद रूप से सिद्ध कर दिया गया कि उष्मा भी ऊर्जा का ही एक दूसरा रूप है। यों तो प्रागैतिहासिक काल में भी मनुष्य लकड़ियों को रगड़कर अग्नि उत्पन्न करता था, परंतु ऊर्जा एवं उष्मा के घनिष्ठ संबंध की ओर सबसे पहले बेंजामिन टामसन (काउंट रुमफर्ड) का ध्यान गया। यह संयुक्त राज्य (अमरीका) के मैसाचूसेट्स प्रदेश का रहनेवाला था। परंतु उस समय यह बवेरिया के राजा का युद्धमंत्री था। ढली हुई पीतल की तोप की नलियों को छेदते समय इसने देखा कि नली बहुत गर्म हो जाती है तथा उससे निकले बुरादे और भी गरम हो जाते हैं। एक प्रयोग में तोप की नाल के चारों ओर काठ की नाँद में पानी भरकर उसने देखा कि खरादने से जो उष्मा उत्पन्न होती है उससे ढाई घंटे में सारा पानी उबलने के ताप तक पहुँच गया। इस प्रयोग में उसका वास्तविक ध्येय यह सिद्ध करना था कि उष्मा कोई द्रव नहीं है जो पिंडों में होती है और दाब के कारण वैसे ही बाहर निकल आती है जैसे निचोड़ने से कपड़े में से पानी; क्योंकि यदि ऐसा होता तो किसी पिंड में यह द्रव एक सीमित मात्रा में ही होता, परंतु छेदनेवाले प्रयोग से ज्ञात होता है कि जितना ही अधिक कार्य किया जाए उतनी ही अधिक उष्मा उत्पन्न होगी। रुमफर्ड ने यह प्रयोग सन् 1798 ई. में किया। इसके 20 वर्ष पहले ही लाव्वाजिए तथा लाग्राँज़ ने यह देखा था कि जानवरों में भोजन से उतनी ही उष्मा उत्पन्न होती है जितनी रासायनिक क्रिया द्वारा उस भोजन से प्राप्त हो सकती है।
सन् 1819 में फ्रांसीसी वैज्ञानिक ड्यूलों ने देखा कि किसी गैस के संपीडन से उसमें उष्मा उसी अनुपात में उत्पन्न होती है जितना संपीडन में कार्य किया जाता है। सन् 1842 ई. में इसी भावना का उपयोग जूलियस राबर्ट मायर ने, जो उस समय केवल 28 वर्ष का था और जर्मनी के हाइलब्रॉन नगर में डॉक्टर था, इस बात की गणना के लिए किया कि एक कलरी उष्मा उत्पन्न करने के लिए कितना कार्य आवश्यक है। हम जानते हैं कि प्रत्येक गैस की दो विशिष्ट उष्माएँ होती है : एक नियत आयतन पर तथा दूसरी नियत दाब पर। पहली अवस्था में गैस कोई कार्य नहीं करती। दूसरी अवस्था में गैस को बाह्य दबाव के विरुद्ध कार्य करना पड़ता है और दोनों विशिष्ट उष्माओं में जो अंतर होता है वह इसी कार्य के समतुल्य होता है। इस तरह मायर को उष्मा के यांत्रिक तुल्यांक का जो मान प्राप्त हुआ वह लगभग उतना ही था जितना काउंट रुमफ़ोर्ड को प्राप्त हुआ था।इसी समय इंग्लैंड में जेम्स प्रेसकाट जूल भी उष्मा का यांत्रिक तुल्यांक निकालने में लगा हुआ था। इसके प्रयोग सन् 1842 ई. से सन् 1852 ई. तक चलते रहे। अपने प्रयोग में इसने एक ताँबे के उष्मामापी में पानी लिया और उसे एक मथनी से मथा। मथनी को दो घिरनियों पर से लटके हुए दो भारों पर चलाया जाता था। जिस डोर से ये भार लटके हुए थे वह इस मथनी के सिरे में लपेटी हुई थी और जब ये भार नीचे की ओर गिरते थे तो मथनी घूमती थी। जब ये भार नीचे गिरते थे तो इनकी स्थितिज ऊर्जा कम हो जाती थी। इस कमी का कुछ भाग भारों की गतिज ऊर्जा में परिणत होता था और कुछ भाग मथनी को घुमाने में व्यय होता था। इस तरह यह ज्ञात किया जा सकता था कि मथनी को घुमने में कितना कार्य किया जा रहा था। उष्मामापी के पानी के ताप में जितनी वृद्धि हुई उससे यह ज्ञात हो सकता था कि कितनी उष्मा उत्पन्न हुई; और तब उष्मा का यांत्रिक तुल्यांक ज्ञात किया जा सकता था। जूल ने ये प्रयोग पानी तथा पारा दोनों के साथ किए।
सन् 1847 ई. में हरमान फान हेल्महोल्ट्स ने एक पुस्तक लिखी जिसमें उष्मा, चुंबक, बिजली, भौतिक रसायन आदि विभिन्न क्षेत्रों के उदाहरणों द्वारा उष्मा-अविनाशिता-सिद्धांत का प्रतिपादन किया गया था। जूल ने प्रयोग द्वारा वैद्युत ऊर्जा तथा उष्मा-ऊर्जा की समानता सिद्ध की।

वेग किसे कहते है?
भौतिकी में वेग का अर्थ किसी दिशा में चाल होता है। यह एक सदिश राशि है। एक वस्तु का वेग अलग-अलग दिशाओं में अलग अलग हो सकता है। किसी वस्तु के स्थिति बदलने की दर को वेग कहते हैं। चाल यदि दिशा के साथ लिखी जाए तो वो वेग के तुल्य ही होती है, उदाहरण के लिए 60 किमी/घण्टा उत्तर की तरफ। वेग गतिकी का एक महत्वपूर्ण भाग है, जो यांत्रिकी की एक शाखा है जिसमे वस्तुओ के गति का अध्ययन किया जाता है।
वेग एक सदिश भौतिक मात्रा है ; दोनों परिमाण और दिशा इसे परिभाषित करने के लिए आवश्यक हैं। वेग के अदिश निरपेक्ष मूल्य ( परिमाण ) चाल को SI ( मैट्रिक ) प्रणाली में मीटर प्रति सेकेण्ड (मी/से॰) में मापा जाता है। उदाहरण के लिए , "5 मीटर प्रति सेकेण्ड" एक अदिश है, जबकि "5 मीटर प्रति सेकेण्ड पूर्वी दिशा में" सदिश राशि है।

चाल और वेग किसे कहते है?

किसी वस्तु की एक खास दिशा में जो चाल होती है उसे उस वस्तु का उस दिशा में वेग कहा जाता है। छात्रों में एक सामान्य अवधारणा पाई जाती है कि वेग सिर्फ उसी दिशा में ही निकाला जाता है किस दिशा में वस्तु चलती हुई प्रतीत होती है। ऐसा नहीं है, वेग उस दिशा में भी निकाला जा सकता है जिस दिशा में वस्तु की चाल प्रतीत नहीं होती है। जबकि चाल वेग का परिमाण होता है।

 संवेग किसे कहते है?
किसी वस्तु के द्रव्यमान व वेग के गुणनफल को संवेग (momentum) कहते हैं:
\vec{p} = m\vec{v}
संवेग के कई आधुनिक परिभाषाएँ हैं। यह एक सदिश राशि है क्योंकि इसका एक परिमाण होता है और एक दिशा भी होती है। एक संबंधित राशि कोणीय संवेग है। संवेग एक संरक्षित राशि है। अर्थात किसी वियुक्त निकाय में कुल संवेग स्थिर रहता है।रेखीय संवेग का संरक्षण का नियम (law of conservation of linear momentum) प्रकृति का मूलभूत सिद्धान्त है। इसके अनुसार,
पिण्डों के किसी बन्द निकाय (सिस्टम) पर कोई वाह्य बल न लगाया जाय तो उस निकाय का कुल संवेग नियत बना रहता है। इस नियम का एक परिणाम यह है कि वस्तुओं के किसी भी निकाय का द्रव्यमान केन्द्र (center of mass) एक नियत वेग से चलता रहेगा जब तक उस पर कोई वाह्य बल न लगाया जाय।
संवेग की एक विशेष बात यह है कि यह सभी स्थितियों में संरक्षित रहता है - यहाँ तक कि संघट्टों (collisions) में, तथा विस्फोटक बलों के कारण होने वाली गति की दशा में भी। जबकि गतिज ऊर्जा संघट्ट की दशा में संरक्षित नहीं होती है यदि संघट्ट अप्रत्यास्थ (inelastic) होंगे। चूंकि संवेग संरक्षित रहता है, इस तथ्य का उपयोग संघट्ट के उपरान्त वस्तुओं के वेग ज्ञात करने के लिये किया जा सकता है।

 विस्थापन किसे कहते है?
दो बिन्दुओं के मध्य की निम्नतम दूरी को विस्थापन  Displacement) कहते हैं। अतः यह काल्पनिक सीधे पथ की लम्बाई है, अतः यह कण द्वारा तय की गई कुल दूरी से अलग हो सकता है। एक विस्थापन सदिश इस काल्पनिक सीधी रेखा की लम्बाई का परिमाण व दिशा को प्रदर्शित करती है। स्थिति सदिश s जो कि समय t का फलन है का अवकलज t के सापेक्ष किया जा सकता है। इन अवकलजों का सामान्य उपयोग शुद्ध गतिविज्ञान, नियंत्रण सिद्धान्त और अन्य विज्ञान व अभियांत्रिकी के क्षेत्रों में किया जाता है।
वेग
\boldsymbol{v}=\frac{\text{d}\boldsymbol{s}}{\text{d}t} (जहाँ ds' अनन्त सुक्ष्म विस्थापन है।)
त्वरण
\boldsymbol{a}=\frac{\text{d}\boldsymbol{v}}{\text{d}t}=\frac{\text{d}^2\boldsymbol{s}}{\text{d}t^2}

विमीय सूत्र किसे कहते है?
भौतिक राशियों के व्युत्पन्न मात्रक निकालने के लिए मात्रकों पर जो घातें लगानी पड़ती हैं, उन्हें उस राशि की विमाएँ कहते हैं। यदि किसी राशि की विमाएँ लम्बाई में <math>\mathbf{a}</math>, द्रव्यमान में <math>\mathbf{b}</math>, समय में <math>\mathbf{c}</math> तथा ताप में <math>\mathbf{d}</math> हो तो उस राशि की विमाओं को निम्नलिखित प्रकार से प्रदर्शित किया जाता है—
(<math>\mathbf{L}</math><math>\mathbf{a}</math> <math>\mathbf{M}</math><math>\mathbf{b}</math> <math>\mathbf{T}</math><math>\mathbf{c}</math> <math>\mathbf{Q}</math><math>\mathbf{d}</math>)
उपर्युक्त सूत्र को इस राशि का विमीय सूत्र कहते हैं।

तापमापी किसे कहते है?
तापमापी या थर्मामीटर वह युक्ति है जो ताप या 'ताप की प्रवणता' को मापने के काम आती है। 'तापमिति' (Thermometry) भौतिकी की उस शाखा का नाम है, जिसमें तापमापन की विधियों पर विचार किया जाता है। तापमापी अनेक सिद्धान्तों के आधार पर निर्मित किये जा सकते हैं। द्रवों का आयतन ताप ग्रहण कर बढ़ जाता है तथा आयतन में होने वाली यह वृद्धि तापक्रम के समानुपाती होता है। साधारण थर्मामीटर इसी सिद्धान्त पर काम करते हैं।

अंतर्राष्ट्रीय ताप पैमाना किसे कहते है?
आदर्श गैस तापमापी से ताप निकालने में अथक परिश्रम और समय की आवश्यकता होती है। अनेक कारणों से पाठ में त्रुटियाँ होना संभव है और इनके लिये प्राप्त फलों में संशोधन करना होता है। कुछ त्रुटियाँ तो तापमापी की बनावट में उचित परिवर्तन करके दूर की जाती हैं और कुछ के लिये लंबी गणना करनी होती है। इससे यह सिद्ध है कि गैस तापमापी प्रयोगशाला में दैनिक कार्य के लिये उपयुक्त नहीं हो सकता। इसलिये अंतर्राष्ट्रीय निश्चय के अनुसार कुछ पदार्थों के गलनांक(melting points) और क्वथनांक (boiling points) प्राथमिक मानक के रूप में प्रयुक्त होते हें। ये अंक आदर्श गैस-पैमाने से बहुत परिश्रम के पश्चात्‌ ठीक रूप से माप लिए गए हैं और उनके मान अंतर्राष्ट्रीय स्वीकृति पा चुके हैं।
नियतांक - सैलसियस ताप डिग्री सें0
1. पानी का त्रिकबिंदु : 0.01 (मूल मानक)
2. आक्सीजन का क्वथनांक (आक्सीजन विंदु) : -182.97 (मानक)
3. हिम और वायुसंतृप्त पानी का साम्य (हिमबिंदु) : 0 (मानक)
4. पानी का क्वथनांक (भापबिंदु) : 100 (मानक)
5. गंधक का क्वथनांक (गंधक बिंदु) : 444.6 (मानक)
6. एंटिमनी का गलनांक (एंटिमनी बिंदु) : 630.5 (मानक)
7. रजत का गलनांक (रजत बिंदु) : 960.8 (मानक)
8. स्वर्ण का गलनांक (स्वर्ण बिंदु) : 1063 (मानक)
इसके अतिरिक्त और भी कुछ नियत बिंदु द्वितीय मानक के रूप में निश्चित किए गए हैं। प्रयोगशाला में काम आनेवाले तापमापी इनसे मिलाकर शुद्ध कर लिए जाते हैं। नियत बिंदुओं के मध्यवर्ती ताप अंतर्वेशन (interpolation) द्वारा ज्ञात किए जाते हैं। अंतरराष्ट्रीय पैमाने के लिये निम्नलिखित अंतर्वेशन विधियाँ चुनी गई है :
(1) 0 - 180 सें.° सेलसियस तक :
इस तापविधि में प्लैटिनम प्रतिरोध तापमापी का प्रयोग किया जाता है। तार शुद्ध प्लैटिनम का और उसका व्यास 0.05 और 0.20 मिमी. के भीतर होना आवश्यक है। ताप निम्नलिखित अंतर्वेशन विधियाँ चुनी गई है :
R1 = R0 { 1+ At+ Bt2+ C (t - 100) t3}
इसमें (t°) सें. और 0.00° सें. ताप पर विद्युत प्रतिरोध क्रमश: R1 और R0 है। (A,B,C) स्थिरांक हैं, जो भाप, गंधक और ऑक्सीजन बिंदुओं के प्रतिरोधों द्वारा निकाले जाते हैं।
(2) 0° से 660° सें तक :
इसमें भी उपर्युक्त तापमापी प्रयुक्त होता है, किंतु इसका अंतर्वेशन समीकरण निम्नलिखित है :
Rt = R0 (1+ At+ Bt2)
A और B हिम, भाप और गंधक बिंदुओं पर तापमापी के प्रतिरोधों द्वारा निकाले जाते हैं।
(3) 660° से0 1063° से0 तक
इसके लिये एक तापांतर युग्म (thermocouple) का प्रयोग किया जाता है, जिसका एक तार प्लैटिनम का और दूसरा 90 प्रतिशत प्लैटिनम के साथ 10 प्रतिशत रोडियम की मिश्रधातु का बना होता है। तारों का व्यास 0.35 और 0.65 मिमी0 के भीतर होता है तथा एक जोड़ 0° सें° पर रखा जाता है। अतंर्वेशन सूत्र यह है:
E = a + b t + Ct2
(E) तापांतर युग्म में विकसित विद्युतद्वाहक बल (E.M.F.)) और (t) सें° पैमाने में ताप है। स्थिरांक (a) (b) और (c) एंटिमनी, रजत और स्वर्ण बिंदुओं पर वि0 वा0 ब0 का मान ज्ञात करके निकाले जाते हैं।
(4) 1063° से ऊपर के ताप विकरण तापमापियों द्वारा मापे जाते हैं

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