बीसवीं शती में परमाणु के विभाजन पर कार्य हुआ अर्थात परमाणु के नाभिक का विखंडन किया गया। अनेक प्रकार के सूक्ष्म खंड मिले, जिनका अध्ययन इस युग में रसायन और भौतिकी का स्वतंत्र उपांग बन गया। इस विखंडन में द्रव्य का कभी-कभी लोप, या तिरोभाव देखा गया। आइंस्टाइन ने अपना प्रसिद्ध समीकरण बीसवीं शती के प्रथम दशक (1905 ई.) में ही दिया था। ऊर्जा(ऊ)= द्रव्य भार X (प्रकाश का वेग)2, अथवा ऊ=मप्र2, (म =द्रव्य भार, प्र= प्रकाश का वेग)। अतः पता चल गया कि द्रव्य का विलोप होने पर कितनी ऊर्जा प्राप्त हो सकती है। आज का युग इस नाभिक ऊर्जा के उपयोग का युग है। इसका ध्वंसकारी रूप परमाणु बम विस्फोट में हुआ। परमाणु नाभिकों के विखंडन से हमें निम्नलिखित खंड मिले :
- इलेक्ट्रॉन
इस पर 4.8'10-10 स्थि.वै.मा. (e.s.u.) अर्थात् एक इकाई ऋण आवेश है। इसका भार 9.1 '10-28 ग्राम (हाइड्रोजन परमाणु का 1/1837) है।
- पॉज़िट्रॉन
ऐंडरसन ने 1932 ई. में इसकी खोज की। इस पर एक इकाई धनात्मक आवेश है। शेष बातों में यह इलेक्ट्रॉन के समान है। हमारे विश्व में ये पॉज़िट्रॉन क्षणभंगुर हैं। इलेक्ट्रॉनों से अभिक्रिया कर दोनों विलुप्त हो जाते हैं, और इनसे विद्युच्चंबकीय विकिरण मिलते है।
- प्रोटॉन
इस पर एक इकाई, अर्थात धन आवेश रहता है। इसका भार ग्राम (1’00813 परमाणुभार इकाई) है। यह हाइड्रोजन परमाणु का नाभिक है।
- न्य़ूट्रॉन
1932 ई. में चैडविक ने इसकी खोज की। इस पर शून्य आवेश है। इसका (1’00893) परमाणु भार इकाई है। बेरिलियम और ऐल्फा कणों के संघात से यह उत्पन्न होता है। इसकी अंतः भेदकता बहुत अधिक है।
- न्यूट्रिनो
इस का भार भी लगभग शून्य है और आवेश भी शून्य है। इसकी कल्पना पाउलि ने प्रस्तुत की, जिसके आधार पर उसने बीटा कणों के अवह्रास के कणीय आवेग समंवय की व्याख्या की।
- मेसॉन
1935 ई. में यूकावा ने इनकी कल्पना प्रस्तुत की। मेसॉनों का भार इलेक्ट्रॉनों और प्रोट्रॉनों के बीच का है। कॉस्मिक या अंतरिक्ष किरणों में इनकी विद्यमानता पाई गई। मेसॉन कई प्रकार के हैं, जैसे पाई मेसॉन (π+,π-,π°) और म्यू मेसॉन (μ+, μ-)। धनात्मक पाई मेसॉन (π+) धन नाभिक से उतनी शीघ्र किया नहीं करेगा। जितना कि ऋणात्मक पाई मेसॉन (π-)। पाई मेसॉन इलेक्ट्रॉन से 285 गुना भारी होते हैं और म्यू मेसॉन 216 गुना।
- नाभिक रसायन का युग
इन परमाणु विखंडों द्वारा ऐसे अनेक नए तत्वों का संश्लेषण भी हुआ है, जो प्रकृति में पाए नहीं जाते, पर जिनके अस्तित्व की संभावना हो सकती थी। संश्लेषित तत्व निम्न हैं। कोष्ठक में इनके परमाणुभार दिए हैं।
- टेक्निशियम (43)
- प्रोमीथियम (85)
- फ्रैनशियम (86)
- नेप्चूनियम (93)
- ऐमेरिकियम (94)
- क्यूरियम (96)
- बर्केंलियम (96)
- कैलिफ़ोर्नियम (98)
- आइंस्टीनियम (99)
- फ़र्मियम (100)
- मेण्डेलेवियम(101)
- नियोबियम (102)
मेंडेलीफ के समय में उसकी आवर्त सारणी में कुछ स्थान रिक्त थे। अब न केवल वे सब भर गए हैं, बल्कि यूरेनियम के बाद भी 10 कृत्रिम तत्वों का इस सारणी में और समावेश किया गया है। ऐस्टन ने 1919 ई. में समस्थानिकों को पृथक कर प्राउट की उस कल्पना का समर्थन किया, जिसमें उन्होंने कहा था कि प्रत्येक तत्व हाइड्रोजन तत्व के संघनन से बना है और इसलिये उसका परमाणुभार पूर्णसंख्या होनी चाहिए। ऐस्टन के इन प्रयोगों के फलस्वरूप न केवल समस्थानिकों को पृथक करने का ही प्रयास किया गया, बल्कि उनके गुणधर्मों का अध्ययन भी किया। यूरि के प्रयोगों के फलस्वरूप साधारण हाइड्रोजन से बने हुए पानी के भीतर ही भारी हाइड्रोजन के भी अस्तित्व का पता चला 1929 ई.। हाइड्रोजन के तीन समस्थानिक, जिनको क्रमश: हाइड्रोजन ड्यूटीरियम, और ट्राइटियम (T) कहते हैं, क्रमश: 1,2, और 3, परमाणु भार के हैं, पर उन सब की परमाणुसंख्या 1 ही है (अर्थात नाभिक पर एक इकाई धनात्मक आवेश है, 1H1, 1D2, 1T3) भारी हाइड्रोजन और भारी पानी का महत्त्व इस परमाणु युग में बहुत बढ़ गया हैं, क्योंकि इनकी सहायता से न्यूट्रॉनों की गति में सामंजस्य लाया जा सकता है। न्यूट्रॉनों की सहायता से अनेक नए समस्थानिकों का सृजन भी कृत्रिम विधियों से किया गया है। कृत्रिम रेडियोऐक्टिव तत्व भी तैयार किए गए हैं, जैसे रेडियोऐक्टिव फॉस्फोरस, रेडियोऐक्टिव आयोडीन, कार्बन14 आदि, जिनका उपयोग चिकित्साकार्य में एवं रासायनिक अभिक्रियाओं के अध्ययन में बढ़ रहा है। कार्बन14 की सहायता से भूवैज्ञानिक युगों की तिथियों का निर्धारण करने में सहायता मिलती है। साधारणयूरेनियम 238 में थोड़ी सी मात्रा यूरेनियम-235 की भी मिलती है, जो यूरेनियम का ही एक समस्थानिक है। इस समस्थानिक का उपयोग परमाणु बम में किया गया। न्यूट्रॉनों के संघात से यह समस्थानिक बेरियम- 139 और क्रिप्ट्रॉन-94 में विखंडित हुआ, कुछ न्यूट्रॉन नाभिक में से बाहर निकले और कुछ द्रव्य का लोप हुआ, जिसकी ऊर्जा बनी।
एक-एक विखंडन क्रिया में 180-200 मिली इलेक्ट्रॉन बोल्ट, अर्थात (1. 8-20)X10 8 इलेक्ट्रॉन वोल्ट, ऊर्जा प्राप्त होती है। साधारण यूरेनियम में से यूरेनियम-235 का पृथक करना सरल कार्य न था, पर अतुल संपत्ति का व्यय करके द्वितीय महायुद्ध के समय यह श्रमसाध्य कार्य भी सफलापूर्वक संपन्न किया गया। नाभिकों के विखंडन का कार्य जितने महत्त्व का है, नाभिकों के संघनन का कार्य उससे कम नहीं है। हल्के तत्वों के परमाणु परस्पर संयुक्त होकर कुछ भारी तत्व भी दे सकते हैं। इन प्रक्रियाओं को संलयन प्रक्रिया, या संघनन प्रक्रिया कहते हैं। इन प्रक्रियाओं लाखों, करोड़ों डिगरी ताप की आवश्यकता होती है, पर एक बार प्रक्रिया का आरंभ होने पर प्रक्रिया में स्वतः उच्च ताप की ऊष्मा प्राप्त होने लगती है। इन्हीं प्रक्रियाओं के कारण सूर्य ऊष्मा का भंडार है। कार्बन द्वारा उत्प्रेरित होकर सूर्य में हाइड्रोजन से हीलियम बनता रहता है। जिन हाइड्रोजन बमों के आंतक की इस युग में इतनी चर्चा है, वह भी लगभग इसी प्रकार की नाभिक संघनन या नाभिक संलयन प्रक्रियाओं द्वारा बनते हैं, जिनमें भारी हाइड्रोजन, 1हा2, (1H2) के नाभिक भाग लेते हैं। हाइड्रोजन बम परमाणु विखंडन से प्राप्त बमों की अपेक्षा कहीं अधिक प्रबल और ध्वंसकारी हैं।
एक-एक विखंडन क्रिया में 180-200 मिली इलेक्ट्रॉन बोल्ट, अर्थात (1. 8-20)X10 8 इलेक्ट्रॉन वोल्ट, ऊर्जा प्राप्त होती है। साधारण यूरेनियम में से यूरेनियम-235 का पृथक करना सरल कार्य न था, पर अतुल संपत्ति का व्यय करके द्वितीय महायुद्ध के समय यह श्रमसाध्य कार्य भी सफलापूर्वक संपन्न किया गया। नाभिकों के विखंडन का कार्य जितने महत्त्व का है, नाभिकों के संघनन का कार्य उससे कम नहीं है। हल्के तत्वों के परमाणु परस्पर संयुक्त होकर कुछ भारी तत्व भी दे सकते हैं। इन प्रक्रियाओं को संलयन प्रक्रिया, या संघनन प्रक्रिया कहते हैं। इन प्रक्रियाओं लाखों, करोड़ों डिगरी ताप की आवश्यकता होती है, पर एक बार प्रक्रिया का आरंभ होने पर प्रक्रिया में स्वतः उच्च ताप की ऊष्मा प्राप्त होने लगती है। इन्हीं प्रक्रियाओं के कारण सूर्य ऊष्मा का भंडार है। कार्बन द्वारा उत्प्रेरित होकर सूर्य में हाइड्रोजन से हीलियम बनता रहता है। जिन हाइड्रोजन बमों के आंतक की इस युग में इतनी चर्चा है, वह भी लगभग इसी प्रकार की नाभिक संघनन या नाभिक संलयन प्रक्रियाओं द्वारा बनते हैं, जिनमें भारी हाइड्रोजन, 1हा2, (1H2) के नाभिक भाग लेते हैं। हाइड्रोजन बम परमाणु विखंडन से प्राप्त बमों की अपेक्षा कहीं अधिक प्रबल और ध्वंसकारी हैं।
अकार्बनिक रसायन
कार्बन का छोड़कर शेष सभी तत्वों और उनके योगिकों की मीमांसा करना अकार्बनिक रसायन का क्षेत्र है। बोरॉन, सिलिकन, जर्मेनियम आदि तत्व भी लगभग उसी प्रकार के विविध यौगिक बनाते हैं, जैसे कार्बन। पर इस पार्थिव सृष्टि में उनका उतना महत्व नहीं है जितना कार्बन यौगिकों का, इसलिए कार्बनिक रसायन का अन्य तत्वों से पृथक् रासायनिक क्षेत्र मान लिया गया है। मनुष्य एवं वनस्पतियों का जीवन कार्बन यौगिकों के चक्र पर निर्भर है, अत: कार्बनिक यौगिकों को एक अलग उपांग में रखना कुछ अनुचित नहीं है। यह कार्बन ही है जो पृथ्वी पर पाए जाने वाले सामान्य ताप (0° से 40°) पर अनेक स्थायी समावयवी यौगिक दे सकता है। अकार्बनिक रसायन में जिन तत्वों का उल्लेख है, उनमें से कुछ धातु हैं, और कुछ अधातु। अधातु तत्वों में कुछ मुख्य ये हैं :
- गैस
हाइड्रोजन, हीलियम, नाइट्रोजन, ऑक्सीजन, फ्लोरीन, निऑन, क्लोरीन, आर्गन, क्रिप्टॉन तथा ज़ेनॉन।
- ठोस
बोरोन, कार्बन, सिलिकन, फास्फोरस, गंधक, जर्मेनियम, आर्सेनिक, मोलिब्डेनम, टेल्यूरियम तथा आयोडिन।
- द्रव
ब्रोमिन
कार्बनिक रसायन
संयोजकताएँ (जिनके द्वारा अणु में परमाणु एक दूसरे के साथ संबद्ध होते हैं) दो प्रकार की होती हैं-
- वैद्युत् संयोजकता (Electrovalency)
- सहसंयोजकता (Covalency)
अकार्बनिक लवणों में अणु में परमाणु, या मूलक, बहुधा विद्युत् संयोजकता द्वारा संबद्ध रहते हैं और ये अणु न केवल विलयनों में ही आयनों में विभक्त हो जाते हैं, बल्कि ठोस क्रिस्टलों में भी इनके आयन विशेष स्थिति में विद्यमान् रहते हैं। कार्बन परमाणु की बाह्यतम परिधि पर चार इलेक्ट्रॉन (.) हैं। यह अपने चारों ओर चार और इलेक्ट्रॉन लेकर अपना अष्टक पूरा कर सकता है। एककार्बन परमाणु इस प्रकार चार हाइड्रोजनों से भी संयुक्त हो सकता है, या क्लोरीन के चार परमाणुओं से। यह संयोजन विद्युत् संयोजन से भिन्न है। न तो कार्बन टेट्राक्लोराइड विलयनों में विभाजित होकर क्लोराइड आयन देता है और मेथेन विभाजित होकर हाइड्रोजन आयन। दो दो इलेक्ट्रॉनों के भागीदार बनने पर एक एक बंध बनता है। अत: कार्बन की सहसंयोजकता 4 है। कई कार्बन परमाणु भी सहसंयोजकताओं द्वारा आपस में उत्तरोत्तर क्रम से संयुक्त हो सकते हैं। इसी प्रकार साइक्लोपेंटेन, का5हा10 (C5H10), में 5 कार्बनों का बंद वलय, और साइक्लोहेक्सेन, का6हा12 (C6H12), में 6 कार्बनों का बंद वलय है। कभी कभी अणुओं में असंतृप्त संयोजकताएँ होती हैं। यदि दो कार्बन परमाणुओं के बीच में 4 इलेक्ट्रॉनों की भागीदारी हो, तो कहा जाएगा कि इनके बीच में एक द्विबंध है, और 6 इलेक्ट्रॉनों की भागीदारी हो तो कहेंगे कि इनके बीच में त्रिबंध हैं। एकबंध (:) द्विबंध (::) की अपेक्षा और द्विबंध त्रिबंध (:::) की अपेक्षा अधिक प्रबल है। जिन यौगिकों में द्विबंध हैं, वे अधिक अस्थायी और अधिक असंतृप्त हैं। बेन्ज़ीन, का6हा6 (C6H6), बाद वलय का एक यौगिक है। इसमें तीन द्विबंध भी माने जा सकते हैं, पर यह विशेष रूप से स्थायी है। इसके प्रत्येक दो कार्बनों के बीच का एक बंध अनुनादी माना जाता है, जिसके कारण बेन्ज़ीन वलय को विशेष स्थायित्व प्राप्त होता है। इस प्रकार के अनुनादी गुणों के कारण ऐरोमैटिक नाभिक (जैसा बेन्ज़ीन में है) ऐलिफैटिक की अपेक्षा भिन्न समझे जाते हैं। कार्बनिक यौगिकों की विशेषता उनकी विस्तृत समावयता के कारण है। एक ही अणु के विभिन्न गुणवाले अनेक यौगिक होते हैं। साइक्लोप्रोपेन और प्रोपिलीन दोनों का एक ही अणु सूत्र का3हा6 (C3H6) है। दिग्विन्यास समावयता के कारण् भी कार्बनिक यौगिकों में बहुत भिन्नता पाई जाती है। मलेइक अम्ल (सिस रूप) और फूमैरिक अम्ल (ट्रान्स रूप) में इसी कारण अंतर है। दोनों अम्लां के भौतिक और रासायनिक गुणों में अंतर है।
भौतिक रसायन
द्रव्य की अविनाशिता के नियम के साथ ही साथ भौतिक रसायन की नींव पड़ी, यद्यपि 19वीं शती के अंत तक भौतिक रसायन को रसायन का पृथक् अंग नहीं माना गया। वांट हाफ, विल्हेल्म ऑस्टवाल्ड और आरिनियस के कार्यें ने भौतिक रसायन की रूपरेखा निर्धारित की। स्थिर अनुपात और गुणित अनुपात एवं परस्पर अनुपात के नियमों ने, और बाद को आवोगाड्रो निय, गेलुसैक नियम आदि ने परमाणु और अणु की कल्पना को प्ररय दिया। परमाणुभार और अणुभार निकालने की विविध पद्धतियों का विकास किया गया। गैस संबंधी बॉयल और चार्ल्स के नियमों ने और ग्राहम के अविसरण नियमों ने इसमें सहायता दी। विलयनों की प्रकृति समझने में परासरण दाब संबंधी विचारों ने एक नवीन युग को जन्म दिया। पानी में घुलकर शक्कर के अणु उसी प्रकार अलग अलग हो जाते हैं जैसे शून्य स्थान में गैस के अणु। राउल्ट (Raoult) का वाष्पदाब संबंधी समीकरण विलयनों के संबंध में बड़े काम का सिद्ध हुआ।
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