नमक सत्याग्रह आन्दोलन, - Study Search Point

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नमक सत्याग्रह आन्दोलन,

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नमक यात्रा कम से कम तीन कारणों से उल्लेखनीय थी -
  • यही वह घटना थी, जिसके चलते महात्मा गाँधी दुनिया की नज़र में आए। इस यात्रा को यूरोप और अमेरिकी प्रेस ने व्यापक कवरेज दी।
  • यह पहली राष्ट्रवादी गतिविधि थी, जिसमें औरतों ने भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। समाजवादी कार्यकर्ता कमलादेवी चट्टोपाध्याय ने गाँधीजी को समझाया कि वे अपने आंदोलनों को पुरुषों तक ही सीमित न रखें। कमलादेवी खुद उन असंख्य औरतों में से एक थीं, जिन्होंने नमक या शराब क़ानूनों का उल्लंघन करते हुए सामूहिक गिरफ़्तारी दी थी।
  • नमक यात्रा के कारण ही अंग्रेज़ों को यह अहसास हुआ था कि अब उनका राज बहुत दिन नहीं टिक सकेगा और उन्हें भारतीयों को भी सत्ता में हिस्सा देना पड़ेगा।


नमक सत्याग्रह राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी द्वारा चलाये गये आन्दोलनों में से एक था। गाँधीजी ने स्वतंत्रता दिवस मनाए जाने के तुरंत बाद घोषणा की कि वे ब्रिटिश भारत के सर्वाधिक घृणित क़ानूनों में से एक, जिसने नमक के उत्पादन और विक्रय पर राज्य को एकाधिकार दे दिया है, को तोड़ने के लिए एक यात्रा का नेतृत्व करेंगे। महात्मा गाँधी ने 'नमक एकाधिकार' के जिस मुद्दे का चयन किया था, वह गाँधीजी की कुशल समझदारी का एक अन्य उदाहरण था। प्रत्येक भारतीय घर में नमक का प्रयोग अपरिहार्य था, लेकिन इसके बावज़ूद उन्हें घरेलू प्रयोग के लिए भी नमक बनाने से रोका गया और इस तरह उन्हें दुकानों से ऊँचे दाम पर नमक ख़रीदने के लिए बाध्य किया गया। नमक पर राज्य का एकाधिपत्य बहुत अलोकप्रिय था। इसी को निशाना बनाते हुए गाँधीजी अंग्रेज़ी शासन के ख़िलाफ़ व्यापक असंतोष को संघटित करने की सोच रहे थे। महात्मा गाँधी ने असहयोग आंदोलन समाप्त होने के कई वर्ष बाद तक अपने को समाज सुधार कार्यों पर केंद्रित रखा। महात्मा गाँधी ने 1928 में पुन: राजनीति में प्रवेश करने की सोची। उस वर्ष सभी श्वेत सदस्यों वाले साइमन कमीशन, जो कि उपनिवेश की स्थितियों की जाँच-पड़ताल के लिए इंग्लैंड से भेजा गया था, उसके विरुद्ध अखिल भारतीय अभियान चलाया जा रहा था। गाँधीजी ने इस आंदोलन में स्वयं भाग नहीं लिया था, पर इस आंदोलन को उन्होंने अपना आशीर्वाद दिया था तथा इसी वर्ष बारदोली में होने वाले एक किसान आन्दोलन के साथ भी उन्होंने ऐसा किया था। 1929 में दिसंबर के अंत में कांग्रेस ने अपना वार्षिक अधिवेशन लाहौर शहर में किया। यह अधिवेशन दो दृष्टियों से महत्त्वपूर्ण था-
  • जवाहरलाल नेहरू का अध्यक्ष के रूप में चुनाव, जो युवा पीढ़ी को नेतृत्व की छड़ी सौंपने का प्रतीक था।
  • ‘पूर्ण स्वराज’ अथवा 'पूर्ण स्वतंत्रता की उद्घोषणा'।
गाँधीजी की इस चुनौती का महत्त्व अधिकांश भारतीयों को समझ में आ गया था किन्तु अंग्रेज़ी राज को नहीं। हालांकि गाँधीजी ने अपनी ‘नमक यात्रा’ की पूर्व सूचना वाइसराय इर्विन को दे दी थी, किन्तु इर्विन उनकी इस कार्यवाही के महत्त्व को न समझ सके। 12 मार्च 1930 को गाँधीजी ने साबरमती आश्रम में अपने आश्रम से समुद्र की ओर चलना शुरू किया। तीन हफ्तों बाद गाँधीजी अपने गंतव्य स्थान पर पहुँचे। वहाँ उन्होंने मुट्‌ठी भर नमक बनाकर स्वयं को क़ानून की निगाह में अपराधी बना दिया। असहयोग आन्दोलन की तरह अधिकॄत रूप से स्वीकॄत राष्ट्रीय अभियान के अलावा भी विरोध की असंख्य धाराएँ थीं। देश के विशाल भाग में किसानों ने दमनकारी औपनिवेशिक वन क़ानूनों का उल्लंघन किया, जिसके कारण वे और उनके मवेशी उन्हीं जंगलों में नहीं जा सकते थे, जहाँ एक जमाने में वे बेरोकटोक घूमते थे। कुछ कस्बों में फैक्ट्री कामगार हड़ताल पर चले गए, वक़ीलों ने ब्रिटिश अदालतों का बहिष्कार कर दिया और विद्यार्थियों ने सरकारी शिक्षा संस्थानों में पढ़ने से इन्कार कर दिया। सन् 1920-22 ई. की तरह इस बार भी गाँधीजी के आह्वान ने तमाम भारतीय वर्गों को औपनिवेशिक शासन के विरुद्ध अपना असंतोष व्यक्त करने के लिए प्रेरित किया। जवाब में सरकार असंतुष्टों को हिरासत में लेने लगी। नमक यात्रा की प्रगति को एक और बात से भी समझा जा सकता है। अमेरिकी समाचार पत्रिका टाइम को गाँधीजी की क़दकाठी पर हँसी आती थी। गाँधीजी के तकुए जैसे शरीर और मकड़ी जैसे पैरों का पत्रिका ने ख़ूब मजाक उड़ाया था। इस यात्रा के बारे में अपनी पहली रिपोर्ट में ही टाइम ने नमक यात्रा के मंज़िल तक पहुँचने पर अपनी गहरी शंका व्यक्त कर दी थी। उसने दावा किया कि गाँधीजी दूसरे दिन पैदल चलने के बाद ज़मीन पर पसर गए थे। पत्रिका को इस बात पर विश्वास नहीं था कि इस मरियल साधु के शरीर में और आगे जाने की ताकत बची है। लेकिन पत्रिका की सोच एक ही रात में बदल गई। टाइम ने लिखा कि इस यात्रा को जो भारी जनसमर्थन मिल रहा है उसने अंग्रेज़ शासकों को बेचैन कर दिया। 

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