सत्याग्रह आन्दोलन 1920 ई., - Study Search Point

निरंतर कर्म और प्रयास ही सफलता की कुंजी हैं।

सत्याग्रह आन्दोलन 1920 ई.,

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सत्याग्रह, उन्नीसवीं शताब्दी के अंतिम दशक में गांधी जी के दक्षिण अफ्रीका के भारतीयों के अधिकारों की रक्षा के लिए कानून भंग शुरु करने तक संसार" नि:शस्त्र पतिकार' अथवा निष्क्रिय प्रतिरोध (पैंसिव रेजिस्टेन्स) की युद्धनीति से ही परिचित था। यदि प्रतिपक्षी की शक्ति हमसे अधिक है तो सशस्त्र विरोध का कोई अर्थ नहीं रह जाता। सबल प्रतिपक्षी से बचने के लिए "नि:शस्त्र प्रतिकार' की युद्धनीति का अवलंबन किया जाता था। इंग्लैंड में स्त्रियों ने मताधिकार प्राप्त करने के लिए इसी "निष्क्रिय प्रतिरोध' का मार्ग अपनाया था। इस प्रकार प्रतिकार में प्रतिपक्षी पर शस्त्र से आक्रमण करने की बात छोड़कर उसे दूसरे हर प्रकार से तंग करना, छल कपट से उसे हानि पहुँचाना, अथवा उसके शत्रु से संधि करके उसे नीचा दिखाना आदि उचित समझा जाता था। गांधी जी को इस प्रकार की दुर्नीति पसंद नहीं थी। दक्षिण अफ्रीका में उनके आंदोलन की कार्यपद्धति बिल्कुल भिन्न थी उनका सारा दर्शन ही भिन्न था अत: अपनी युद्धनीति के लिए उनको नए शब्द की आवश्यकता महसूस हुई। सही शब्द प्राप्त करने के लिए उन्होंने एक प्रतियोगिता की जिसमें स्वर्गीय मगनलाल गांधी ने एक शब्द सुझाया "सदाग्रह' जिसमें थोड़ा परिवर्तन करके गांधी जी ने "सत्याग्रह' शब्द स्वीकार किया।
अमरीका के दार्शनिक थोरो ने जिस सिविल डिसओबिडियेन्स (सविनय अवज्ञा) की टेकनिक का वर्णन किया है, "सत्याग्रह' शब्द उस प्रक्रिया से मिलता जुलता था। "सत्याग्रह' का मूल अर्थ है सत्य के प्रति आग्रह (सत्य अ आग्रह) सत्य को पकड़े रहना। अन्याय का सर्वथा विरोध करते हुए अन्यायी के प्रति वैरभाव न रखना, सत्याग्रह का मूल लक्षण है। हमें सत्य का पालन करते हुए निर्भयतापूर्वक मृत्य का वरण करना चाहिए और मरते मरते भी जिसके विरुद्ध सत्याग्रह कर रहे हैं, उसके प्रति वैरभाव या क्रोध नहीं करना चाहिए।' "सत्याग्रह' में अपने विरोधी के प्रति हिंसा के लिए कोई स्थान नहीं है। धैर्य एवं सहानुभूति से विरोधी को उसकी गलती से मुक्त करना चाहिए, क्योंकि जो एक को सत्य प्रतीत होता है, वहीं दूसरे को गलत दिखाई दे सकता है। धैर्य का तात्पर्य कष्टसहन से है। इसलिए इस सिद्धांत का अर्थ हो गया, "विरोधी को कष्ट अथवा पीड़ा देकर नहीं, बल्कि स्वयं कष्ट उठाकर सत्य का रक्षण।
महात्मा गांधी ने कहा था कि सत्याग्रह में एक पद "प्रेम' अध्याहत है। सत्याग्रह मध्यमपदलोपी समास है। सत्याग्रह यानी सत्य के लिए प्रेम द्वारा आग्रह (सत्य + प्रेम + आग्रह = सत्याग्रह)

भारत में सत्याग्रह

भारत में पहला सत्याग्रह आन्दोलन 1917 ई. में नील की खेती वाले चम्पारण ज़िले में हुआ। इसके बाद के वर्षों में सत्याग्रह के तरीक़ों के रूप में उपवास और आर्थिक बहिष्कार का उपयोग किया गया। व्यावहारिक दृष्टि से एक सार्वभौमिक दर्शन के रूप में सत्याग्रह की प्रभावोत्पादकता पर प्रश्नचिह्न लगाए गए हैं। सत्याग्रह अप्रत्यक्ष रूप से यह स्वीकार करता जान पड़ता है कि विरोधी पक्ष किसी न किसी स्तर की नैतिकता का पालन करेगा, जिसे सत्याग्रही का सत्य अन्तत: शायद प्रभावित कर जाए। लेकिन स्वयं गांधी जी का मानना था कि सत्याग्रह कहीं भी सम्भव है, क्योंकि यह किसी को भी परिवर्तित कर सकता है। 1920 ई. के राष्ट्रीय आन्दोलन में इसका प्रयोग भारत में अंग्रेज़ शासन के विरुद्ध अहिंसात्मक असहयोग आन्दोलन के रूप में हुआ। तत्पश्चात इसका स्वरूप सविनय अवज्ञा आन्दोलन में परिवर्तित हो गया। निश्चय ही इस आन्दोलन ने भारतीयों को अंग्रेज़ी शासन का अन्त करने के लिए कृतसंकल्प किया। इस प्रकार भारत की स्वतंत्रता प्राप्ति में इसका ठोस योगदान रहा है।
अन्यायी और अन्याय के प्रति प्रतिकार का प्रश्न सनातन है। अपनी सभ्यता के विकासक्रम में मनुष्य ने प्रतिकार के लिए प्रमुखत: चार पद्धतियों का अवलंबन किया है-
(1) पहली पद्धति है बुराई के बदले अधिक बुराई। इस पद्धति से दंडनीति का जन्म हुआ जब इससे समाज और राष्ट्र की समस्याओं के निराकरण का प्रयास हुआ तो युद्ध की संस्था का विकास हुआ।
(2) दूसरी पद्धति है, बुराई के बदले समान बुराई अर्थात् अपराध का उचित दंड दिया जाए, अधि नहीं। यह अमर्यादित प्रतिकार को सीमित करने का प्रयास है।
(3) तीसरी पद्धति है, बुराई के बदले भलाई। यह बुद्ध, ईसा, गांधी आदि संतों का मार्ग है। इसमें हिंसा के बदले अहिंसा का तत्व अंतर्निहित है।
(4) चौथी पद्धति है बुराई की उपेक्षा।
अचार्य विनोबा कहते हैं - "बुराई का प्रतिकार मत करो बल्कि विरोधी की समुचित चिंतन में सहायता करो। उसके सद्विचार में सहकार करो। शुद्ध विचार करने, सोचने समझने, व्यक्तिगत जीवन में उसका अमल करने और दूसरों को समझाने में ही हमारे लक्ष्य की पूर्ति होनी चाहिए। सामनेवाले के सम्यक् चिंतन में मदद देना ही सत्याग्रह का सही स्वरूप है।' इसे ही विनोबा सत्याग्रह को सौम्यतर और सौम्यतम प्रक्रिया कहते हैं। सत्याग्रह प्रेम की प्रक्रिया है। उसे क्रम-क्रम, अधिकाधिक निखरते जाना चाहिए।

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