जिस नीति के अनुसार किसी देश का मुद्रा प्राधिकारी मुद्रा की आपूर्ति का नियमन करता है उसे मौद्रिक नीति (Monetary policy) कहते हैं। इसका उद्देश्य राज्य का आर्थिक विकास एवं आर्थिक स्थायित्व सुनिश्चित करना होता है। मौद्रिक नीति के रूप में या तो एक विस्तारवादी नीति और अधिक तेजी से सामान्य से अर्थव्यवस्था में पैसे की कुल आपूर्ति बढ़ जाती है, और संकुचनकारी नीति सामान्य से अधिक धीरे धीरे पैसे की आपूर्ति बढ़ती है या यह भी सिकुड़ती जहां, विस्तार या संकुचनकारी होने के लिए जाना जाता है! विस्तारवादी नीति को पारंपरिक रूप से आसान ऋण विस्तार में व्यवसायों को लुभाने जाएगा कि उम्मीद में ब्याज दरों को कम करके एक मंदी के दौर में बेरोजगारी से निपटने के लिए प्रयास करने के लिए प्रयोग किया जाता है!
मौद्रिक नीति के उद्देश्य
मूल्य स्थिरता
- मूल्य स्थिरता की आवश्यकता आर्थिक विकास के साथ-साथ मूल्यों के बढ़ने की गति के ऊपर विराम लगाने के लिए अत्यंत जरुरी होता है! इस रणनीति के तहत उन पर्यावरणीय तथ्यों को बढ़ावा देना है जो न केवल वास्तुकला के विकास के लिए जरूरी हों बल्कि उनके विकास की गति को भी बनाये रख सकें, साथ ही मूल्य वृद्धि के तार्किक महत्व को समझ सकें!
- भारतीय रिजर्व बैंक के महत्वपूर्ण कार्यों में से एक उत्पादन को प्रभावित किए बिना उधार पर दिए जाने वाले ऋणों को कम करना है! साथ ही मौसमी आवश्यकताओं और उत्पादों को ध्यान में रखते हुए बैंक ऋण और मुद्रा आपूर्ति का नियंत्रित विकास करना है!
- गैर-जरूरी और निश्चित निवेश को सीमित करके निवेश की उत्पादकता को बढ़ाने के लिए योजना बनाना है!
- उत्पादों की भरमार और उनकी अधिकता एवं सामानों के अधिक मात्रा में आपूर्ति के कारण इकाईयां बीमार हो रही हैं! इसी समस्या के सन्दर्भ में केंद्रीय मौद्रिक प्राधिकरण नें सामानों के प्रवाह पर प्रतिबन्ध लगाने के लिए बहुत महत्वपूर्ण निर्णय लिया है! इस रणनीति के तहत कई कार्य किये गए हैं! जैसे सामानों के स्टॉक होने से बचना और संगठन के अंतर्गत सुस्त मुद्रा को रोकना!
- मौद्रिक नीति निर्यात को बढ़ावा देने और व्यापार की सुविधा सन्दर्भ में विशेष जोर देता है! यह मौद्रिक नीति का एक स्व-नियंत्रित उपाय है!
- मौद्रिक प्राधिकरण छोटे उधारकर्ताओं और प्राथमिक क्षेत्रकों को दिए जाने वाले ऋण के आवंटन से संबंधित फैसलों पर नियंत्रण करता है!
- रिजर्व बैंक की नीति के अंतर्गत अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों को समान लाभ का अवसर उपलब्ध कराया जाता है!
- यह वित्तीय प्रणाली के प्रभाव को बढ़ावा देता है! साथ ही संरचनात्मक परिवर्तनों जैसे ऋण वितरण प्रणाली में आसान परिचालन, व्याज दरों के वृद्धि पर नियंत्रण आदि स्थापित करता है! इसके अलावा मुद्रा के सन्दर्भ में बाज़ार में नए-नए मानदंडो को भी स्थापित करता है!
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