हरिचंद्र (हरिश्चंद्र) दिगंबर जैन संप्रदाय के कवि थे। इन्होंने माघ की शैली पर धर्मशर्माभ्युदय नामक इक्कीस सर्गों का महाकाव्य रचा, जिसमें पंद्रहवें तीर्थंकर धर्मनाथ का चरित वर्णित है। ये महाकवि बाण द्वारा उद्धृत गद्यकार भट्टार हरिचंद्र से भिन्न थे, क्योंकि कि ये महाकाव्यकार थे, गद्यकाव्यकार थे, गद्यकार नहीं।हरिचंद्र का समय ईसा की ग्यारहवीं शताब्दी माना जाता है। सौभाग्य से इस महाकवि ने अंत में कुछ श्लोकों में स्वयं अपना भी परिचय दिया है। हरिचंद्र नोमकवंश के कायस्थकूल में उत्पन्न हुए थे। इनके पिता परमगुणशाली आदिदेव तथा माता रथ्या थीं।
सर्गक्रम से धर्मशर्माभ्युदय का कथानक इस प्रकार है - रत्नपुर नगरवर्णन; रत्नपुराधीश इक्ष्वाकुवंशीय नरेश महासेन, महारानी सुव्रता, राजा की पुत्र-प्राप्ति-चिंता तथा दिव्यमुनि प्राचेतस का आगमन; मुनि महीपाल समागम तथा मुनि द्वारा पंद्रहवें तीर्थंकर धर्मनाथ का पुत्ररूप में अवतार लेने का आश्वासन; पुत्ररूप में अवतार लेनेवाले धर्मनाथ का पूर्वजन्म में धातकीखंड द्वीप में वत्सदेश के राजा दशरथ के रूप में वर्णन; राजा महासेन के यहँ दिव्यांगनाओं का महेंद्र की आज्ञा से रानी की सेवा के लिए उपस्थित होना, रानी का स्वप्न तथा गर्भधारण; गर्भ एवं उत्पत्तिवर्णन; शची द्वारा मायाशिशु देकर धर्मनाथ को इंद्र को देना, इंद्र द्वारा उन्हें सुमेरु पर ले जाना; सुमेरु और धर्मनाथ का इंद्रादि देवों द्वारा अभिषक एवं स्तुति तथा पुन: उसका महासेन की महिषी की गोदी में आना; धर्मनाथ का स्वयंवर के लिए विडर्भदेशगमन; विंध्याचलवर्णन; षड्ऋतु; पुष्पावचय; नर्मदा से जलक्रीडा; सायंकाल, अंधकार, चंद्रोदय आदि वर्णन; पानगोष्ठी रात्रिक्रीड़ा; प्रभातवर्णन एवं धर्मनाथ द्वारा कुंडिनपुरप्राप्ति; स्वयंवर तथा राजकुमारी द्वारा वरण, विवाह, एवं पुन: कुबेरप्रेषित विमान पर चढ़कर वधूसमेत रत्नपुर आगमनवर्णन; महासेन द्वारा राज्य धर्मनाथ को सौंपकर वैराग्यप्राप्ति तथा धर्मनाथ की राज्य स्थिति; अनेक नरेशों के साथ धर्मनाथ के सेनापति सुपेण का चित्रयुद्धवर्णन; पाँच लाख वर्ष तक राज्य करने के पश्चात् धर्मनाथ द्वारा राज्यत्या, तपस्या, ज्ञानप्राप्ति एवं दिव्य ऐश्वर्य; धर्मनाथ द्वारा संक्षेप में जिन सिद्धांत का निरूपण। इस काव्य ने स्वयं पश्चाद्वर्ती महाकाव्यों को प्रभावित किया है। बारहवीं शती में महाकवि श्रीहर्ष द्वारा निर्मित 'नैषधीय चरित' धर्मशर्भाभ्युदय से अतिशय प्रभावित जान पड़ता है।
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