बॉलीवुड के सबसे लोकप्रिय अभिनेता : अमिताभ, - Study Search Point

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बॉलीवुड के सबसे लोकप्रिय अभिनेता : अमिताभ,

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अमिताभ बच्चन (जन्म-11 अक्टूबर) बॉलीवुड के सबसे लोकप्रिय अभिनेता हैं। 1970 के दशक के दौरान उन्होंने बड़ी लोकप्रियता प्राप्त की और तब से भारतीय सिनेमा के इतिहास में सबसे प्रमुख व्यक्तित्व बन गए हैं। बच्चन ने अपने करियर में कई पुरस्कार जीते हैं, जिनमें तीन राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार और बारह फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार शामिल हैं। उनके नाम सर्वाधिक सर्वश्रेष्ठ अभिनेता फिल्मफेयर अवार्ड का रिकार्ड है।
अभिनय के अलावा बच्चन ने पार्श्वगायक, फिल्म निर्माता और टीवी प्रस्तोता और भारतीय संसद के एक निर्वाचित सदस्य के रूप में 1984 से 1987 तक भूमिका की हैं। इन्होंने प्रसिद्द टी.वी. शो "कौन बनेगा करोड़पति" में होस्ट की भूमिका निभाई थी | अमिताभ बच्चन का विवाह 3 जून1973 को बंगाली संस्कार के अनुसार अभिनेत्री जया भादुड़ी से हुआ। अभिनेत्री के रूप में जया की भी अपनी विशिष्ट उपलब्धियाँ रही हैं और वे फ़िल्म क्षेत्र की आदरणीय अभिनेत्रियों में गिनी जाती हैं। आज के अनेक युवा कलाकारों के लिए वे मातृवत स्नेह का झरना हैं। रचनात्मकता को बढ़ावा देना उनका स्वभाव तथा जीवन का ध्येय है। अभिनय से उन्हें दिली-लगाव है। वे कई वर्षों तक 'चिल्ड्रन्स फ़िल्म सोसायटी' की अध्यक्ष रह चुकी हैं। रमेश तलवार के नाटक 'माँ रिटायर होती है' के माध्यम से रंगकर्म की दुनिया में उन्होंने अपनी सनसनीखेज वापसी दर्ज की थी। सत्तर के दशक में उन्होंने फ़िल्म 'कोरा काग़ज़' (1975) और 'नौकर' (1980) में अभिनय के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के फ़िल्मफेयर पुरस्कार भी प्राप्त किए थे।

रोचक तथ्य -

यदि हरिवंश राय बच्चन अपना उपनाम 'बच्चन' नहीं करते, तो आज वह 'अमिताभ श्रीवास्तव' कहलाते। हिंदी साहित्य के प्रसिद्ध कवि सुमित्रानंदन पंत ने बच्चन दंपति के इस शिशु का नाम 'अमिताभ' रखा था जिसका अर्थ होता है सूर्य। अमिताभ का अर्थ 'बुद्ध' भी है। हरिवंश राय बच्चन के मित्र प्रो. अमरनाथ झा ने अमिताभ का नाम 'इंकलाब राय' और अजिताभ का नाम 'आज़ाद राय' रखा था। बच्चन परिवार की नेहरू परिवार से आत्मीयता कराने का श्रेय भारत कोकिला सरोजिनी नायडू को है, जिन्होंने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। अमिताभ के चौथे जन्मदिन पर इंदिरा जी अपने ढाई साल के बेटे राजीव को 'धोबी की फेंसी ड्रेस' में लेकर आई थीं। 'रानी के बाग़' में प्रवेश के लिए अमिताभ ने अपने घर से 'चार आने' चुराए थे। हाईस्कूल में दीवार पर पेंसिल से लकीरें खींचने पर 'प्राचार्य रिचर्ड डूट' ने अमिताभ की हथेली पर बेंत मारी थीं, इस घटना का प्रयोग 'अभिमान' फ़िल्म में किया गया था। अमिताभ छोटे भाई अजिताभ को अपनी साईकिल के डंडे पर बैठाकर स्कूल ले जाते थे। नेहरू जी ने बच्चन परिवार को 'तीन मूर्ति भवन' में चाय पर आमंत्रित किया था। यहीं पर अमिताभ-अजिताभ और राजीव-संजयपुनः मिले और दोस्त बने। अमिताभ का पहला वेतन पाँच सौ रुपए था और कलकत्ता छोड़ते समय उनका वेतन एक हज़ार छः सौ अस्सी रुपए प्रति माह था। हरिवंश राय बच्चन के लंदन जाते समय अमिताभ ने लंदन से अपने लिए एक बंदूक लाने को कहा था। अमिताभ और अजिताभ कलकत्ता निवास के समय बहुत नाटक-फ़िल्में देखते थे, किंतु 'मुंबइया मसाला सिनेमा' के कटु आलोचक थे। अमिताभ का अपनी मित्र मंडली में और सामूहिक लंच के समय 'वनमैन-शो' होता था। अमिताभ का मुंबई के 'रूपतारा स्टूडियो' में स्क्रीन टेस्ट फ़िल्मकार 'मोहन सहगल' ने किया था। उसका परिणाम आज तक अमिताभ को नहीं बताया गया है। ख़्वाजा अहमद अब्बास ने जब फ़िल्म 'सात हिन्दुस्तानी' के लिए अमिताभ बच्चन का चयन किया, तो उन्हें नहीं मालूम था कि यह डॉ. हरिवंशराय बच्चन के पुत्र हैं। सात हिन्दुस्तानी फ़िल्म में काम करके अमिताभ को पाँच हज़ार रुपए मिले थे। अमिताभ ने फ़िल्म 'सात हिन्दुस्तानी' दिल्ली के 'शीला सिनेमा हॉल' में अपने माता-पिता के साथ देखी थी। वह अपने पिता का कुर्ता-पायजामा पहनकर आए थे। सात हिन्दुस्तानी देखकर मीना कुमारी ने अमिताभ की तारीफ़ की थी। अभिनेता जलाल आगा की विज्ञापन कंपनी में अपनी आवाज़ के लिए अमिताभ को प्रति विज्ञापन पचास रुपए मिलते थे। फ़िल्मों में काम की तलाश के समय अमिताभ वर्ली की 'सिटी बेकरी' से बिस्किट-टोस्ट के कट-पीस आधे दाम में ख़रीदकर चाय के साथ खाते थे। अमिताभ की आवाज़ के कारण सुनील दत्त ने फ़िल्म 'रेशमा और शेरा' में उन्हें गूँगे का रोल इसलिए दिया था कि उनकी संवाद अदायगी कमज़ोर साबित न हो? वहीदा रहमान को अमिताभ अपनी सर्वोत्तम पसंद की अभिनेत्री मानते हैं, लेकिन वहीदा की शिकायत है कि अमिताभ को फ़िल्म 'लावारिस' का गाना- "मेरे अँगने में तुम्हारा क्या काम है"- नहीं गाना चाहिए था। चरित्र अभिनेता ओमप्रकाश और खलनायक प्राण ने यह घोषणा की थी कि यह कलाकार एक दिन 'सुपर सितारा' बनेगा। फ़िल्म जंजीर (1973) के पहले लगातार कई फ़िल्में पिट जाने से अमिताभ को फ़िल्म इंडस्ट्री में 'असफल हीरो' माना जाने लगा था। उनका फ़िल्मों में मनपसंद नाम विजय रहा और 20 से ज़्यादा फ़िल्मों में ये नाम इस्तेमाल किया गया। फ़िल्म 'कुली' में काम करते वक़्त उन्हें आँतों में गहरी चोट लगी और वे मौत के मुँह में जाते-जाते बाल बाल बचे। उनके लिए हज़ारों-करोड़ों दर्शकों ने मन्नतें मांगी। अभिनेत्री 'निरुपा रॉय' ने अधिकतम फ़िल्मों में उनकी माँ का किरदार निभाया।


बच्चन ने फिल्मों में अपने कैरियर की शुरूआत ख्वाज़ा अहमद अब्बास के निर्देशन में बनी सात हिंदुस्तानी के सात कलाकारों में एक कलाकार के रूप में की, उत्पल दत्तमधु और जलाल आगा जैसे कलाकारों के साथ अभिनय कर के। फ़िल्म ने वित्तीय सफ़लता प्राप्त नहीं की पर बच्चन ने अपनी पहली फ़िल्म के लिए राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार में सर्वश्रेष्ठ नवागंतुक का पुरूस्कार जीता। इस सफल व्यावसायिक और समीक्षित फिल्म के बाद उनकी एक और आनंद (1971) नामक फिल्म आई जिसमें उन्होंने उस समय के लोकप्रिय कलाकार राजेश खन्ना के साथ काम किया। डॉ॰ भास्कर बनर्जी की भूमिका करने वाले बच्चन ने कैंसर के एक रोगी का उपचार किया जिसमें उनके पास जीवन के प्रति वेबकूफी और देश की वास्तविकता के प्रति उसके दृष्टिकोण के कारण उसे अपने प्रदर्शन के लिए सर्वश्रेष्ठ सहायक कलाकार का फिल्मफेयर पुरस्कार मिला। इसके बाद अमिताभ ने (1971) में बनी परवाना में एक मायूस प्रेमी की भूमिका निभाई जिसमें इसके साथी कलाकारों में नवीन निश्चलयोगिता बाली और ओम प्रकाश थे और इन्हें खलनायक के रूप में फिल्माना अपने आप में बहुत कम देखने को मिलने जैसी भूमिका थी। इसके बाद उनकी कई फिल्में आई जो बॉक्स ऑफिस पर उतनी सफल नहीं हो पाई जिनमें रेशमा और शेरा (1971) भी शामिल थी और उन दिनों इन्होंनेगुड्डी फिल्म में मेहमान कलाकार की भूमिका निभाई थी। इनके साथ इनकी पत्नी जया भादुड़ी के साथ धर्मेन्द्र भी थे। अपनी जबरदस्त आवाज के लिए जाने जाने वाले अमिताभ बच्चन ने अपने कैरियर के प्रारंभ में ही उन्होंने बावर्ची फिल्म के कुछ भाग का बाद में वर्णन किया। 1972 में निर्देशित एस. रामनाथन द्वारा निर्देशित कॉमेडी फिल्म बॉम्बे टू गोवा में भूमिका निभाई। इन्होंने अरूणा ईरानीमहमूदअनवर अली औरनासिर हुसैन जैसे कलाकारों के साथ कार्य किया है। अपने संघर्ष के दिनों में वे 7(सात) वर्ष की लंबी अवधि तक अभिनेता, निर्देशक एवं हास्य अभिनय के बादशाह महमूद साहब के घर में रूके रहे। अमिताभ की श्रेष्ठ फ़िल्में हैं- आनंदज़ंजीर, अभिमान, दीवारशोलेत्रिशूल, मुकद्दर का सिकंदर, कुली, सिलसिला, अमर अकबर एंथनी, काला पत्थर, अग्निपथ, बाग़बान, ब्लैक और पा, जिनकी सफलता का श्रेय अमिताभ बच्चन को जाता है, हालांकि हल्की-फुल्की हास्य फ़िल्में 'चुपके-चुपके' (1976) और रोमांस आधारित 'कभी-कभी' (1976) जैसी फ़िल्में अमिताभ बच्चन की बहुमुखी प्रतिभा की परिचायक हैं। 1980 के दशक के अंतिम वर्षों तक बच्चन का जादू सिर चढ़कर बोलता रहा, जिसका लाभ उन्हें अपने संक्षिप्त राजनीतिक जीवन में भी मिला, लेकिन शहंशाह (1988) के बाद उनकी लोकप्रियता में तेज़ी से गिरावट आई। फिर भी 1990 के दशक के आरम्भिक वर्षों में उनकी तीन महत्त्वपूर्ण फ़िल्में- अग्निपथ, हम और ख़ुदागवाह सफल हुई। अग्निपथ के लिए अमिताभ को सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय पुरस्कारमिला। अपने लंबे करियर में अमिताभ बच्चन परदे पर कई नायिकाओं के नायक बने हैं। 'नूतन', 'माला सिन्हा' जैसी सीनियर नायिकाओं के भी वे नायक रहे हैं, तो दूसरी ओर 'मनीषा कोइराला' और 'शिल्पा शेट्टी' जैसी कम उम्र की नायिकाओं के साथ भी उन्होंने फ़िल्में की हैं। कुमुद छुगानी (बंधे हाथ), लक्ष्मी छाया (रास्ते का पत्थर), सुमिता सान्याल (आनंद) जैसी गुमनाम नायिकाओं के साथ भी उन्होंने काम किया। कुछ नायिकाओं के साथ उनकी जोड़ी खूब सराही गई।
अमिताभ बच्चन को भारत सरकार ने पद्मश्री और पद्म भूषण (2000) और पद्म विभूषण (2015) से सम्मानित किया है। अमिताभ बच्चन को अब तक चार बार 'राष्ट्रीय पुरस्कार' मिल चुका है। इनमें फ़िलहाल उन्हें फ़िल्म 'पा' में उनके अभिनय के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार मिला है। अमिताभ बच्चन ने यह पुरस्कार तीसरी बार जीता है। इससे पहले उनको यह पुरस्कार फ़िल्म 'अग्निपथ' और 'ब्लैक' के लिए मिल चुका है। इसके अलावा वह 'सात हिन्दुस्तानी' के लिए सर्वश्रेष्ठ नवोदित कलाकार का 'राष्ट्रीय पुरस्कार' प्राप्त कर चुके हैं।

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