फ़िरोज़शाह का युद्ध 21 और 22 दिसम्बर को प्रथम सिक्ख युद्ध (1845-1846 ई.) के दौरान सिक्खों और अंग्रेज़ों के बीच लड़ा गया। इस युद्ध में सिक्खों को पराजय का मुँह देखना पड़ा, लेकिन अंग्रेज़ों को भी एक बहुत भारी क़ीमत इस युद्ध को जीतने के लिये चुकानी पड़ी। उनके हज़ारों सैनिक इस युद्ध में मारे गये।
सर ह्यू गॅफ़ के नेतृत्व में 35 हज़ार सैनिकों वाली सिक्ख सेना पर आक्रमण किया। लगभग खदेड़े जाने और संकट की रात्रि के बाद अंग्रजों ने लगभग 2,400 सैनिकों की जान गंवाकर सुबह जीत हासिल की, जबकि क़रीब 8,000 सिक्ख सैनिक मारे गए। सामने से किए इस हानिकारक आक्रमण के लिए गॅफ़ की आलोचना की गई, लेकिन उन्होंने 10 फरवरी 1846 को सोबरांव में युद्ध में अंतिम विजय प्राप्त कर ली। 21 दिसम्बर की रात को युद्ध के पहले दिन ब्रिटिश फ़ौज की हालत बेहद नाज़ुक थी, जब उसे खुले मैदान में पड़ाव डालना पड़ा। दूसरे ही दिन तड़के दोनों सेनाओं के मध्य युद्ध फिर से प्रारम्भ हुआ। सिक्ख जनरल तेजा सिंह द्वारा स्वार्थवश बहादुर सैनिकों को पीछे हटने का आदेश दिये जाने के कारण यह युद्ध अकस्मात ही समाप्त हो गया। युद्ध में सिक्खों की हार हुई, किन्तु अंग्रेज़ों को जीत का बड़ा भारी मूल्य चुकाना पड़ा। ब्रिटिश फ़ौज के 2415 जवान हताहत हुए, जिसमें 103 अधिकारी भी थे। अधिकारियों में गवर्नर-जनरल के पाँच अंगरक्षक मारे गये और चार घायल हो गये। इस लड़ाई की समाप्ति के बाद भी सिक्ख-अंग्रेज़ युद्ध समाप्त नहीं हुआ। 1845-1846 ई. के बीच कुल पाँच लड़ाईयाँ लड़ी गईं, जिनमें से चार का नतीजा नहीं निकल सका। 10 फ़रवरी, 1846 ई. में 'सबराओ' की पाँचवीं लड़ाई निर्णायक सिद्ध हुई, जिसमें अंग्रेज़ों की विजय हुई। लालसिंह और तेजा सिंह के विश्वासघात के कारण ही सिक्खों की पूर्णतया हार हुई, जिन्होंने सिक्खों की कमज़ोरियों का भेद अंग्रेज़ों को दे दिया था।
साभार : भारत Kosh
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