बक्सर का युद्ध 1763 ई., - Study Search Point

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बक्सर का युद्ध 1763 ई.,

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प्लासी के युद्ध के बाद सतारुढ़ हुआ मीर जाफ़र अपनी रक्षा तथा पद हेतु ईस्ट इंडिया कंपनी पर निर्भर था। जब तक वो कम्पनी का लोभ पूरा करता रहा तब तक पद पर भी बना रहा। उसने खुले हाथो से धन लुटाया, किंतु प्रशाशन सम्भाल नही सका, सेना के खर्च, जमींदारों की बगावातो से स्थिति बिगड़ रही थी, लगान वसूली मे गिरावट आ गई थी, कम्पनी के कर्मचारी दस्तक का जम कर दुरूपयोग करने लगे थे वो इसे कुछ रुपयों के लिए बेच देते थे इस से चुंगी बिक्री कर की आमद जाती रही थी बंगाल का खजाना खाली होता जा रहा था।
हाल्वेल ने माना की सारी समस्या की जड़ मीर जाफ़र है। उसी काल में जाफर का बेटा मीरन मर गया जिस से कम्पनी को अवसर मिल गया था और उसने मीर कासिम जो जाफर का दामाद था, को सत्ता दिलवा दी। इस हेतु 27 सितंबर 1760 एक संधि भी हुई जिसमे कासिम ने 5 लाख रूपये तथाबर्दवान, मिदनापुर, चटगांव के जिले भी कम्पनी को दे दिए। इसके बाद धमकी मात्र से जाफ़र को सत्ता से हटा दिया गया और मीर कासिम सत्ता मे आ गया। इस घटना को ही 1760  की क्रांति कहते है। बक्सर का युद्ध 1763 ई. से ही आरम्भ हो चुका था, किन्तु मुख्य रूप से यह युद्ध 22 अक्तूबर, सन् 1764 ई. में लड़ा गया। ईस्ट इण्डिया कम्पनी तथा बंगाल के नवाब मीर क़ासिम के मध्य कई झड़पें हुईं, जिनमें मीर कासिम पराजित हुआ। फलस्वरूप वह भागकर अवध आ गया और शरण ली। मीर कासिम ने यहाँ के नवाब शुजाउद्दौला और मुग़ल सम्राट शाह आलम द्वितीय के सहयोग से अंग्रेज़ों को बंगाल से बाहर निकालने की योजना बनायी, किन्तु वह इस कार्य में सफल नहीं हो सका।  इस युद्ध में एक ओर मुग़ल सम्राट शाह आलम द्वितीय, अवध का नवाब शुजाउद्दौला तथा मीर क़ासिम थे, दूसरी ओर अंग्रेज़ी सेना का नेतृत्व उनका कुशल सेनापति 'कैप्टन मुनरो' कर रहा था। दोनों सेनायें बिहार मेंबलिया से लगभग 40 किमी. दूर 'बक्सर' नामक स्थान पर आमने-सामने आ पहुँचीं। 
22 अक्टूबर, 1764 को 'बक्सर का युद्ध' प्रारम्भ हुआ, किन्तु युद्ध प्रारम्भ होने से पूर्व ही अंग्रेज़ों ने अवध के नवाब की सेना से 'असद ख़ाँ', 'साहूमल' (रोहतास का सूबेदार) और जैनुल अबादीन को धन का लालच देकर अलग कर दिया। लगभग तीन घन्टे में ही युद्ध का निर्णय हो गया, जिसकी बाज़ी अंग्रेज़ों के हाथ में रही। शाह आलम द्विताय तुरंत अंग्रेज़ी दल से जा मिला और अंग्रेज़ों के साथ सन्धि कर ली। ऐसा माना जाता है कि, बक्सर के युद्ध का सैनिक एवं राजनीतिक महत्व प्लासी के युद्ध से अधिक है। मुग़ल सम्राट शाह आलम द्वितीय, बंगाल का नवाब मीर क़ासिम एवं अवध का नवाब शुजाउद्दौला, तीनों अब पूर्ण रूप से कठपुतली शासक हो गये थे। उन्हें अंग्रेज़ी सेना के समक्ष अपने बौनेपन का अहसास हो गया था। थोड़ा बहुत विरोध का स्वर मराठों और सिक्खों मे सुनाई दिया, किन्तु वह भी समाप्त हो गया। निःसन्देह इस युद्ध ने भारतीयों की हथेली पर दासता शब्द लिख दिया, जिसे स्वतन्त्रता प्राप्त करने के बाद ही मिटाया जा सका। मीर क़ासिम को नवाब के पद से हटाकर एक बार पुनः मीर जाफ़र को अंग्रेज़ों ने बंगाल का नवाब बनाया। 5 फ़रवरी, 1765 ई. को मीर जाफ़र की मृत्यु हो गई। उसकी मृत्यु के बाद कम्पनी ने उसके अयोग्य पुत्र नजमुद्दौला को बंगाल का नवाब बनाकर फ़रवरी, 1765 ई. में उससे एक सन्धि कर ली। सन्धि की शर्तों के अनुसार रक्षा व्यवस्था, सेना, वित्तीय मामले, वाह्य सम्बन्धों पर नियंत्रण आदि को अंग्रेज़ों अपने अधिकार में कर लिया तथा बदले में नवाब को 53 लाख रुपये वार्षिक पेंशन देने का वादा किया।

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