आजादी के दिन समाचार पत्रों में स्वतंत्रता की खबरे, - Study Search Point

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आजादी के दिन समाचार पत्रों में स्वतंत्रता की खबरे,

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(समाचारों की सलामी!)


प्रस्तुति: 

आधी रात को जब पूरा देश आजादी के उत्साह और जोश से लबरेज था, तब अखबारों के संपादक और रिपोर्टर संजो रहे थे वे पंक्तियां जिनमें देश की आजादी का पैगाम देना था। उस दिन प्रमुख अंग्रेजी अखबारांे ने क्या लिखा, देश की आजादी, पर एक खास पेशकश।

टाइम्स ऑफ इंडिया
(बर्थ ऑफ इंडियाज फ्रीडम)
पहले पेज पर 8 कालम का हैडिंग है, 'भारत की आजादी का जन्म', लिखा था 'आजादी के एतिहासिक पलों का गवाह बनने के लिए पूरी दिल्ली आधी रात को भी जाग रही थी। संविधान सभा कक्ष के अंदर और बाहर एक जैसे उत्साह से अभूतपूर्व नजारा था।' पहले पेज पर ही एक दूसरी खबर का शीर्षक था 'बम्बई में उन्मादी उत्साह'। लिखा था, 'मुम्बई में शुक्रवार की सुबह हर तरफ उमड रही खुशियां जन्नत का नजारा पेश कर रही थीं। कारों को चलने के लिए जगह नहीं मिल रही थी। गलियों में आनंद में डूबी भीड ने कब्जा कर लिया था। ट्रेन और बसों में पैर रखने को भी जगह नहीं थीं, इसके बाद भी खुशी से झूमते लोग वाहनों की छतों पर सवार होकर हाथ में झंडे लहरा रहे थे। जगह-जगह बैंड की धमक, शंखनाद और तुरहियों के स्वर ग़ूंज रहे थे। सार्वजिनक इमारतों पर लाखों बल्बों और दीयों की रोशनी ने दीवाली का समा बांध दिया था।'
हिंदुस्तान टाइम्स
(न्यू स्टार राइज इन द ईस्ट)
'पूर्व में नए सितारे का उदय', देशभक्ति के इस ज्वार का संदेश पूरी दुनिया में फैलाने के लिए इससे बेहतर शीर्षक नहीं हो सकता। देशभक्ति की उन्मादी लहर में डूबे हुए हिंदुस्तान टाइम्स के पहले पेज पर मोटे-मोटे अक्षरों में घोषणा थी 'भारत आजाद हुआ'। आजादी के मौके पर निकाले गए इस विशेष संस्करण में अखबार ने खुद को तिरंगे के रंगों में रंग डाला था और पहले ही पेज पर हाथ जोडे हुए महात्मा गांधी जी की तस्वीर छापी गई थी। 'एक यात्रा खत्म, दूसरी शुरू' शीर्षक वाले मुख्य समाचार में अनुभवी पत्रकार दुर्गादास जी ने नई-नई मिली इस स्वतंत्रता को अपने जादुई शब्दों में कुछ इस तरह पिरोयां, 'अधिकतर भारतीयों को उम्मीद से पहले ही आजादी का तोहफा मिल गया, जिसकी उनके साथ-साथ ब्रिटिश राज ने भी कल्पना नहीं की होगी। भारत के उतार चढाव से भरे इतिहास में यह एक ऐतिहासिक मौका था जब विदेशी आधिपत्य की एक हजार साल पुरानी परंपरा का अंत हो रहा था।'
द पायोनियर
(फ्रीडम ईरा बिंगस)
'शुरू हुआ आजादी का दौर' अपनी मुख्य खबर के शीर्षक में पायोनियर ने एक शक्तिशाली साम्राज्य के अंत और भारत की ऐतिहासिक स्वतंत्रता को शब्दों का जामा पहनाया। अखबार ने आजादी के आलम को बखूबी शब्द दिए ही साथ ही भारत के ऐतिहासिक महत्व को उजागर करते हुए ब्रिटिश शासन की कडी आलोचना भी की।' दिल्ली की राजगद्दी पर कई साम्राज्यों ने कब्जा जमाया, भारत की तकदीर लिखने वाले इस शहर पर 200 सालों से ज्याद और कोई नहीं टिक पाया। तय समय से 10 साल पहले उस साम्राज्य को भी यहां से जाना पडा, जिसे दुनिया में सर्वशक्तिशाली माना जाता है। भारत में व्यापार करने आई एक कंपनी धीरे-धीरे यहां की भाग्यविधाता बनने का भ्रम पाल बैठी थी आर इस देश ने अपनी आजादी के रूप में उसके भ्रम का निवारण कर दिया।'
द स्टेट्समैन
(इनोग्रेशन ऑफ टू डोमेनियंस)
'दो उपनिवेशों का उदय' पहले पेज का यह एक ऐसा शीर्षक था, जिससे हर किसी को हैरानी हुई। फीके शीर्षक से आजादी का माधुर्य नहीं झलक रहा था और जोश से लबरेज राष्ट्र को यह अखरा भी। जहां एक आर हरएक अखबार ने अपने शीर्षक को रोचक और सामयिक बनाने की कोशिश में रात गुजार दी थी, वहीं सांपादकीय का शीर्षक भी साधारण रखा गया- 'इंडिपेंडेंस डे' संपादकीय में भारत के आखिरी वायसराय लार्ड माउंटबेटन की प्रशंसा कुछ इस तरह की गई, 'ब्रिटेन की ईमानदारी और लार्ड माउंटबेटन के सिद्धांत, कौशल और बेहतरीन राजनीतिक क्षमता ने आज के दिन को भारतीय इतिहास के लिए यादगार बना दिया है।' देश के नेताओं के साथ किए उनके अंतिम समझौते को एक समझदारी भरा कदम ठहाराया गया जिसके बिना देश की आजादी संभव नहीं थी। अखबार ने खुद को तटस्थ रखने की पूरी कोशिश की थी लेकिन कामयाब नहीं रहा। आखिर उस समय इस अखबार का संपादकीय दायित्व एक ब्रिटिश के हाथों में जो था।
द हिंदू
(ट्रिस्ट विद डेस्टिनी)
15 अगस्त की उस भोर में जहां एक और ज्यादातर भारतीय अखबार अपने पहले पेज पर ही आजादी के तराने गा रहे थे वहीं चेन्नई से प्रकाशित 'द हिंदू' ऐसा एकमात्र अखबार था जिसमें भारत की आजादी जैसी महत्वपूर्ण खबर पहले पेज पर नहीं थी। अखबार के मुख्य पृष्ठ अर हमेशा की तरह उस रोज भी विज्ञापन ही छाए हुए थे और इतिहास का रुख मोड देने वाली इस महत्वपूर्ण खबर को छठे पेज पर स्थान मिला। इसमें पंडित नेहरु के संविधान सभा कक्ष में ऐतिहासिक भाषण 'ट्रिस्ट विद डेस्टिनी' के अलावा डॉ. राजेन्द्र प्रसाद के उस भाषण का भी जिक्र था जिसमें उन्होंने अल्पसंख्यकों की समस्याओं का निवारण करने का आश्‍वासन दिया था। संदेश स्पष्ट रूप से उन मुस्लमानों के लिए था, जिन्होंने विभाजन के साथ पाकिस्तान गठित होने के बावजूद भारत में ही रहने का फैसला कर लिया था। राजेन्द्र प्रसाद जी ने कहा था 'जिस देश में वे रह रहे है, वहां की नागरिकता के सभी विशेषाधिकारों का आनंद वे उठा सकते हैं। उनसे सिर्फ देश के प्रति ईमानदारी और वफादारी की उम्मीद की जाती है।'
द ट्रिब्यून
(इंडिया वॉक्स फॉर लाइफ एंड हिस्ट्री)
लाहौर से प्रकाशित होने वाले अखबार 'द ट्रिब्यून' ने अपने पहले पेज पर दोनों राष्ट्रों के जन्म को बराबर जगह दी। भारत की आजादी के मौके पर पंडित नेहरू के असेंबली में दिए गए भाषण की एक पंक्ति पृष्ठ के ऊपरी दाएं कोने का शीर्षक बन गई थी, 'जिदंगी और इतिहास बनाने को जागा भारत' और बाईं तरफ पाकिस्तान के जन्म पर लिखा गया था, 'पाकिस्तान का जन्म: एक ऐतिहासिक घटना।'

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