स्वास्थ्य : बीन्स की हरी सब्जी, पौष्टिक मूली के गुण, - Study Search Point

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स्वास्थ्य : बीन्स की हरी सब्जी, पौष्टिक मूली के गुण,

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बीन्स की हरी पौध सब्जी के रूप में खायी जाती है तथा सुखा कर इसे राजमा, लोबिया इत्यादि के रूप में खाया जाता है। अमेरिका तथा अफ्रीका के कुछ भाग में तो बीन्स को प्रोटीन का मुख्य स्रोत माना जाता है। हरी बीन्स या सामान्य भाषा में फ्रेंच बीन्स में मुख्यत: पानी, प्रोटीन, कुछ मात्रा में वसा तथा कैल्सियम, फास्फोरस, आयरन, कैरोटीन, थायमीन, राइबोफ्लेविन, नियासीन, विटामिन सी आदि तरह के मिनरल और विटामिन मौजूद होते हैं। राइबोफ्लेविन को विटामिन बी२ के नाम से ज़्यादा जाना जाता है, विटामिन बी२ शरीर की कोशिकीय प्रक्रियाओं के लिए बहुत ही आवश्यक घटक है। बीन्स विटामिन बी2 का मुख्य स्रोत होते हैं।  बीन्स में सोडियम की मात्रा कम तथा पोटेशियम, कैल्सियम व मेग्नीशियम की मात्रा अधिक होती है और लवणों का इस प्रकार का समन्वय सेहत के लिए लाभदायक है। इससे रक्तचाप नहीं बढ़ता तथा ह्रदयाघात का खतरा टल सकता है
बीन्स का 'ग्लाइसेमिक इन्डेक्स' कम होता है इसका अभिप्राय यह है कि जिस तरह से अन्य भोज्य पदार्थों से रक्त में शक्कर का स्तर बढ़ जाता है, बीन्स खाने के बाद ऐसा नहीं होता। बीन्स में मौजूद फाइबर रक्त में शक्कर का स्तर बनाए रखने में मदद करते हैं। और बीन्स की इस ख़ासियत की वजह से मधुमेह के रोगियों को बीन्स खाने की सलाह देते हैं। ऐसे उदाहरण भी हैं कि बीन्स का ज्यूस शरीर में इन्सुलिन के उत्पादन को बढ़ावा देता है। इस वजह से जिन्हें मधुमेह है या मधुमेह का खतरा है उनके लिये बीन्स खाना बहुत लाभदायक है। होम्योपेथिक दवाओं में भी बीन्स बहुत काम आती है। ताज़ी बीन्स का उपयोग रूमेटिक, आर्थराइटिस तथा मूत्र मली में तकलीफ़ की दवाई बनाने के लिए किया जाता है। बीन्स में एन्टीआक्सीडेंट की मात्रा भी काफी होती है। एन्टीआक्सीडेंट शरीर में कोशिकाओं की मरम्मत के लिए अच्छा माना जाता है। इसलिए इसका सेवन करने से केंसर की सम्भावना कम हो जाती है। बीन्स में फाईटोइस्ट्रोजन की मात्रा होने से ऐसा माना जाता है कि इससे स्तन केंसर का खतरा भी कम हो सकता है।
हरी सब्ज़ियाँ खाना सेहत के लिए बहुत फ़ायदेमंद है, छोटी-सी बीन्स शरीर के लिए बड़े ही फ़ायदे की चीज़ है। ये शरीर के लिए एक तरह से शक्तिस्रोत का काम करती हैं। फलियों में फाईबर तथा पानी की मात्रा काफी ज़्यादा होता है और कैलोरी की मात्रा काफी कम। बस हरी बीन्स ख़रीदते हुए ध्यान रखें कि ये पीली तथा मुरझाई हुई न हो तथा यह भी याद रखें कि बीन्स को धोकर फ्रिज में न रखें इससे इसके मिनरल खत्म होने लगते हैं।

क्या आप जानते हैं?
औक्सिका मैक्सिको में क्रिसमस की पूर्व संध्या को मूली संध्या के रूप में भी जाना जाता है। इस दिन मूली को विभिन्न पशुओं के आकार में काट कर सजाया जाता है। अमरीकी 400 मिलियन पाउन्ड मूली प्रतिवर्ष खा कर खतम कर देते हैं। इसमें से अधिकतर का प्रयोग सलाद के रूप में होता है।प्राचीनकाल में जैतून के तेल के आविष्कार होने से पहले, मिस्र के लोग मूली के बीजों का तेल प्रयोग में लाते थे। हार्स रैडिश या घोड़ा मूली, मूली नहीं बल्कि सरसों की जाति का तीखा सुगंध वाला पौधा है।
मूली कृषक सभ्यता के सबसे प्राचीन आविष्कारों में से एक है। 3000 वर्षो से भी पहले के चीनी इतिहास में इसका उल्लेख मिलता है। अत्यंत प्राचीन चीन और यूनानी व्यंजनों में इसका प्रयोग होता था और इसे भूख बढ़ाने वाली समझा जाता था। यूरोप के अनेक देशों में भोजन से पहले इसको परोसने परंपरा का उल्लेख मिलता है। आजकल हम लोग अस्पतालों तथा अंग्रेज़ी दवाइयों की दुनिया में इतने खो गए कि उन्हें अपने आसपास उपलब्ध होने वाली, उन शाक-सब्ज़ियों की तरफ़ ध्यान देने का समय ही नहीं मिलता, जो बिना किसी हानि के हमारी अनेक बीमारियों को निर्मूल करने में सक्षम हैं। प्रकृति हमारे लिए शीत ऋतु में इस प्रकार की शाक-सब्ज़ियाँ उदारतापूर्वक उत्पन्न करती है। इन्हीं में से एक है 'मूली'। 
मूली में प्रोटीन, कैल्शियम, गन्धक, आयोडीन तथा लौह तत्व पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होते हैं। इसमें सोडियम, फॉस्फोरस, क्लोरीन तथा मैग्नीशियम भी होता है। मूली में विटामिन 'ए' भी होता है। विटामिन 'बी' और 'सी' भी इससे प्राप्त होते हैं। जिसे हम मूली के रूप में जानते हैं, वह धरती के नीचे पौधे की जड होती हैं। धरती के ऊपर रहने वाले पत्ते से भी अधिक पोषक तत्वों से भरपूर होते हैं। सामान्यत: हम मूली को खाकर उसके पत्तों को फेंक देते हैं। यह गलत आदत हैं। मूली के साथ ही उसके पत्तों का सेवन भी किया जाना चाहिए। मूली, शरीर से विषैली गैस कार्बन-डाई-आक्साइड को निकालकर जीवनदायी आक्सीजन प्रदान करती है। मूली हमारे दाँतों को मज़बूत करती है तथा हडि्डयों को शक्ति प्रदान करती है। इससे व्यक्ति की थकान मिटती है और अच्छी नींद आती है। मूली खाने से पेट के कीड़े नष्ट होते हैं तथा पेट के घाव ठीक होते हैं।
यह उच्च रक्तचाप को नियंत्रित करती है तथा बवासीर और हृदय रोग को शान्त करती है। इसका ताज़ा रस पीने से मूत्र संबंधी रोगों में राहत मिलती है। पीलिया रोग में भी मूली अत्यंत लाभदायक है। मूली सौन्दर्यवर्धक भी है। इसके प्रतिदिन सेवन से रंग निखरता है, खुश्की दूर होती है, रक्त शुद्ध होता है और चेहरे की झाइयाँ, कील-मुहाँसे आदि साफ़ होते हैं। सर्दी-जुकाम तथा कफ-खाँसी में मूली के बीज का चूर्ण विशेष लाभदायक होता है। मूली के बीजों को उसके पत्तों के रस के साथ पीसकर लेप किया जाए तो अनेक चर्म रोगों से मुक्ति मिल सकती है। मूली के रस में तिल्ली का तेल मिलाकर और उसे हल्का गर्म करके कान में डालने से कर्णनाद, कान का दर्द तथा कान की खुजली ठीक होते हैं। मूली के पत्ते चबाने से हिचकी बन्द हो जाती है। मूली सौन्दर्यवर्धक भी है। इसके प्रतिदिन सेवन से रंग निखरता है, खुश्की दूर होती है, रक्त शुद्ध होता है और चेहरे की झाइयाँ, कील-मुहाँसे आदि साफ़ होते हैं। सर्दी-जुकाम तथा कफ-खाँसी में मूली के बीज का चूर्ण विशेष लाभदायक होता है। मूली के बीजों को उसके पत्तों के रस के साथ पीसकर लेप किया जाए तो अनेक चर्म रोगों से मुक्ति मिल सकती है। मूली के रस में तिल्ली का तेल मिलाकर और उसे हल्का गर्म करके कान में डालने से कर्णनाद, कान का दर्द तथा कान की खुजली ठीक होते हैं। मूली के पत्ते चबाने से हिचकी बन्द हो जाती है। मूली के रस में समान मात्रा में अनार का रस मिलाकर पीने से रक्त में हीमोग्लोबिन बढ़ता है और रक्ताल्पता का रोग दूर होता है। सूखी मूली का काढ़ा बनाकर, उसमें जीरा और नमक डालकर पीने से खाँसी और दमा में राहत मिलती है।

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