आम के घरेलू नुस्खे, बेल गुणकारी फल, - Study Search Point

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आम के घरेलू नुस्खे, बेल गुणकारी फल,

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➤ भारत में प्रतिवर्ष एक करोड़ टन आम पैदा होता है जो दुनिया के कुल उत्पादन का 52 प्रतिशत है।
➤ अनुकूल जलवायु मिलने पर आम का वृक्ष पचास-साठ फुट की ऊँचाई तक पहुँच जाता है।
➤ भारतीय प्रायद्वीप में आम की कृषि हजारों वर्षों से हो रही है।
➤ आम की लकड़ी गृहनिर्माण तथा घरेलू सामग्री बनाने के काम आती है।
➤ आम भारत का राष्ट्रीय फल है।
आम फलों का राजा है पर इसे राजा की पदवी यों ही नहीं मिली है। खाने में तो यह लाजवाब है ही गुणों में भी बेमिसाल है। कालिदास ने इसका गुणगान किया है और शतपथ ब्राह्मण में इसका उल्लेख मिलता है। वेदों में इसका नाम लिया गया है तथा अमरकोश में इसकी प्रशंसा इसकी बुद्धकालीन लोकप्रियता के प्रमाण हैं। वेदों में आम को विलास का प्रतीक कहा गया है। कविताओं में इसका उल्लेख हुआ और कलाकारों ने इसे अपने कैनवास पर उतारा। भारतवर्ष में आम से संबंधित अनेक लोकगीत, आख्यायिकाएँ आदि प्रचलित हैं और हमारी रीति, व्यवहार, हवन, यज्ञ, पूजा, कथा, त्योहार तथा सभी मंगलकार्यों में आम की लकड़ी, पत्ती, फूल अथवा एक न एक भाग प्राय: काम आता है। उपयोगिता की दृष्टि से आम भारत का ही नहीं वरन समस्त उष्ण कटिबंध के फलों में सर्वाधिक लोकप्रिय है और बहुत तरह से इसका उपयोग होता है। कच्चे फल से चटनी, खटाई, अचार, मुरब्बा आदि बनाते हैं। पके फल अत्यंत स्वादिष्ट होते हैं और इन्हें लोग बड़े चाव से खाते हैं। ये पाचक, रेचक और बलप्रद होते हैं। पके फल को तरह तरह से सुरक्षित करके भी रखते हैं। रस का थाली, चकले, कपड़े इत्यादि पर पसार, धूप में सुखा "अमावट" बनाकर रख लेते हैं। यह बड़ी स्वादिष्ट होती है और इसे लोग बड़े प्रेम से खाते हैं। 
आँकड़ों के अनुसार इस समय भारत में प्रतिवर्ष एक करोड़ टन आम पैदा होता है जो दुनिया के कुल उत्पादन का 52 प्रतिशत है। आम भारत का राष्ट्रीय फल भी है। अन्तर्राष्ट्रीय आम महोत्सव, दिल्ली में इसकी अनेक प्रजातियों को देखा जा सकता है। भारतीय प्रायद्वीप में आम की कृषि हजारों वर्षों से हो रही है। आम की अनेक प्रजातियाँ हैं और प्रजाति की अपनी एक विशिष्ट महक और स्वाद है। प्रजातियों के हिसाब से इनके आकार प्रकार में भी भिन्नता देखी जा सकती है। फिर भी मुख्य है हापुस नीलम बादाम तोतापरी लंगड़ा सिंदूरी दशहरी रत्नागिरी केशरिया लालपत्ता आदि। इसी प्रकार स्थानीय स्तर पर भी इनकी अनेक किस्में हैं। आम के दो स्वरूप होता हैं कच्चा और पका हुआ। कच्चे आम को अमिया अथवा कैरी कहते हैं। इन दोनो के ही विशिष्ट औषधीय उपयोग हैं। अमिया या कैरी सदैव खट्टी होती है जबकि आम मीठे या खट्टेमीठे होते हैं। पका आम रासायनिक तत्वों से परिपूर्ण होता है। इसमें विटामिन प्रोटीन वसा खनिज लवण आदि प्रमुख हैं। खनिजों में कैलशियम फासफोरस सोडियम पोटैशियम कापर गंधक मैगनीशियम क्लोरीन तथा नियमिन प्रमुख हैं। विटामिनों में विटामिन ए बी सी एवं डी प्रमुख हैं। आँखों में जलन होने पर कच्चे आम की पुल्टिस रात को सोते समय साफ़ कपड़े में बाँधकर आँखों पर रखने से लाभ होता है। अमचुर के चूर्ण में सेंधा नमक मिलाकर बनाए गए लेप को दाद पर लगाने लाभ होता है। बवासीर की शिकायत में भी आम लाभकारी माना गया है। इसी प्रकार पित्त की शिकायत होने पर कच्चे आम पर काली मिर्च और शहद लगाकर सेवन करना चाहिए। आम को पथरी की शिकायत में भी उपयोगी पाया गया है। यह गुर्दे की पथरी तक को गला देता है। यदि शरीर में फोड़े फुनसियाँ हों तो अमचुर के चूर्ण को पानी में भिगोकर उसका लेप करने से आराम मिलता है। कच्चे आम का पना लू लगने की रामबाण औषधि है। कच्ची कैरियों को पानी में उबालकर, उन्हें मसलकर निकाले गए गूदे को चलनी में से छानकर पानी शक्कर और नमक मिलाकर सेवन करने पर, लू लगने की स्थिति में आराम मिलता है। गर्मियों में यह पना पीकर घर से निकलने पर लू का अंदेशा कम हो जाता है।
इसमें लौह तत्त्व की प्रधानता होती है। रेशे प्रधान होने के कारण यह कोष्ठबद्धता या कब्ज में लाभकारी है। क्षय रोग में भी आम के रस में शहद मिलाकर सेवन करने की सलाह दी गई है। विटामिन ए से भरपूर होने के कारण आम का सेवन आँखों के लिए काफ़ी लाभदायक है। यदि दस्त लग गए हों तो आम की गुठली को पानी में पीसकर नाभि पर लेप करने से आराम मिलता है। मूत्र संबंधी रोगों से निजात पाने के लिए आम की जड़ का छिलका और शीशम के पत्ते बराबर मात्रा में मिलाकर पानी में उबालकर मिश्री के सात सेवन करने से आराम मिलता है। डिप्थीरिया में आम की छाल के रस को पानी में मिलाकर गरारा करने से लाभ होता है। यदि दस्त लग गए हों तो आम की भीतरी छाल को पीस व छानकर शक्कर मिले पानी से सेवन करने पर आराम हो जाता है। आम के पेड़ की छाल का काढा बनाकर घाव पर लगाने से वह जल्दी भर जाता है। मधुमेह में आम की कोमल पत्तियों को रात में पानी में भिगो कर सुबह इन्हें पानी के साथ पीसकर पीने से मधुमेह में लाभ होता है।

गुणकारी बेल : - 
➤ बेल पत्र इसी बेल नामक फल की पत्तियाँ हैं जिनका प्रयोग पूजा में किया जाता है।
➤ आयुर्वेद में बेल को अत्यन्त गुणकारी फल माना जाता है।

उष्ण कटिबंधीय फल बेल के वृक्ष हिमालय की तराई, मध्य एवं दक्षिण भारत बिहार, तथा बंगाल में घने जंगलों में अधिकता से पाए जाते हैं। चूर्ण आदि औषधीय प्रयोग में बेल का कच्चा फल, मुरब्बे के लिए अधपक्का फल और शर्बत के लिए पका फल काम में लाया जाता है। गर्मी एवं पेट के रोगों से मुक्ति प्रदान करने वाला, जाना जाता है। इसके गीले गूदे को 'बिल्वपेशिका' या 'बिल्वकर्कटी' तथा सूखे गूदे 'बेल सोंठ' या 'बेल गिरी' कहा जाता है
बेल का वृक्ष 15 से 30 फुट ऊँचा और पत्तियाँ तीन और कभी-कभी पाँच पत्रयुक्त होती है। तीखी स्वाद वाली इन पत्तियों को मसलने पर विशिष्ट गंध निकलती है। गर्मियों में पत्ते गिरने पर मई में पुष्प लगते हैं, जिनमें अगले वर्ष मार्च-मई तक फल तैयार हो जाते हैं। इसका कड़ा और चिकना फलकवच कच्ची अवस्था में हरे रंग और पकने पर सुनहरे पीले रंग का हो जाता है। कवच तोड़ने पर पीले रंग का सुगन्धित मीठा गूदा निकलता है जो खाने और शर्बत बनाने के काम आता है। 'जंगली बेल' के वृक्ष में काँटे अधिक और फल छोटा होता है।
बेल के फलों में 'बिल्वीन' नाम या 'मार्मेसोलिन' नामक तत्व एक प्रधान सक्रिय घटक होता है। इसके अतिरिक्त गूदे में लबाब, पेक्टिन, शर्करा, कषायिन एवं उत्पत तेल पाए जाते हैं। ताज़े पत्तों से प्राप्त पीताभ-हरे रंग का उत्पत तेल स्वाद में तीखा और सुगन्धित होता है। इसकी छाल और जड़ घाव, कफ, ज्वर, गर्भाशय का घाव, नाड़ी अनियमितता, हृदयरोग आदि दूर करने में सहायक होती है। बिल्वादि चूर्ण, बिल्व तेल, बिल्वादि घृत, बृहद गंगाधर चूर्ण, बिल्व पंचक क्वाथ आदि औषधियों में प्रयुक्त होने वाले बेल के फलों का अधिक सेवन अर्श (बवासीर) के रोगियों के लिए अहितकर होता है। जठराग्नि मन्द हो जाने पर भूख मर जाती है। खाया-पिया हजम नहीं होता। ऐसे में बेल के पके गूदे में, पचास ग्राम पानी में फूली इमली और पचास ग्राम दही में थोड़ा बूरा मिला मिक्सी में घोंट लें। यह पेय स्वादिष्ट, पचने में आसान, भूख बढ़ाने वाला, चुस्ती देने वाला शर्बत है। कुछ दिन नियमित लें।

➤ पाचन तंत्र में खराबी के कारण आंव आने लगती है, जो कुछ ही समय में रोगी को दुर्बल-असक्त बना देती है। ऐसे में बेलगिरी और आम की गुठली की गिरी बराबर मात्रा में कूट-छान लें। आधा ग्राम चूर्ण सुबह चावल की माड के साथ सेवन करें।
➤ कब्ज से पेट-सीने में जलन रहने पर पचास ग्रामा गूदे में, पच्चीस ग्राम पिसी हुई मिश्री और ढ़ाई सौ ग्राम जल मिलाकर शर्बत बना लें। रोज़ पीने से कब्ज़ नष्ट होकर, चेहरे पर ओज आएगा।
➤ छाती में जमे कफ से तेज़ खाँसी उठती है। रोगी रातभर सो नहीं पाता। इसमें सौ ग्राम बेल गूदा आधा किलो पानी में हल्की आँच में पकायें। तीन सौ ग्राम रह जाने पर उतार कर छान लें। 
➤ दमा में कफ निकालने के लिए बेल की पत्तियों का काढ़ा दस-दस ग्राम सुबह-शाम शहद मिला कर पिएँ। अथवा पाँच ग्राम रस में पाँच ग्राम सरसों का शुद्ध तेल मिला कर पिलाएँ।
➤ पचास ग्राम सूखे बेल पत्तों का चूर्ण, तीन ग्राम मात्रा में एक चम्मच शहद के साथ सुबह-शाम देने अथवा पक्के गूदे में थोड़ी मलाई मिलाकर खाने से मूत्र और वीर्य दोष नष्ट होते हैं।
➤ ल्युकोरिया में बेलगिरी रसौत और नागकेसर समान मात्रा में कूट-पीस कर कपड़े से छान लें पाँच ग्राम चूर्ण, चावल के मांड के साथ दिन में दो या तीन बार दें।
➤ पीलिया में बेल की कोंपलों का पचास ग्राम रस, एक ग्राम पिसी काली मिर्च मिलाकर सुबह-शाम पिलाएँ। शरीर में सूजन भी हो तो पत्र रस तेल की तरह मलिए।
➤ सौ ग्राम पानी में थोड़ा गूदा उबालें, ठंडा होने पर कुल्ले करने से मुँह के छाले ठीक हो जाते हैं।
➤ रक्त शुद्धि के लिए बेलवृक्ष की पचास ग्राम जड़, बीस ग्राम गोखरू के साथ पीस-छान लें। सुबह एक छोटा चम्मच चूर्ण आधा कप खौलते पानी में घोंलें। मिश्री या शहद मिला कर गरमा-गरम घूँट भरें। कुछ ही दिनों में लाभ दिखाई देने लगेगा। सिर दर्द में बेल पत्र के रस से भीगी पट्टी माथे पर रखें। 
➤ आँखें दुखने पर पत्तों का रस, स्वच्छ पतले वस्त्र से छानकर एक-दो बूँद आँखों में टपकाएँ। दुखती आँखों की पीड़ा, चुभन, शूल ठीक होकर, नेत्र ज्योति बढ़ेगी।
➤ जल जाने पर बिल्व चूर्ण, गरम किए तेल को ठंडा करके पेस्ट बना लें। जले अंग पर लेप करने से फौरन आराम आएगा। चूर्ण न होने पर बेल का पक्का गूदा साफ़ करके भी लेपा जा सकता है।

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