विश्व अस्थमा दिवस , स्वंयसेवक दिवस/विश्व रेडक्रॉस दिवस, विश्व थैलेसिमिया दिवस, - Study Search Point

निरंतर कर्म और प्रयास ही सफलता की कुंजी हैं।

विश्व अस्थमा दिवस , स्वंयसेवक दिवस/विश्व रेडक्रॉस दिवस, विश्व थैलेसिमिया दिवस,

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विश्व अस्थमा दिवस (World Asthma Dayमई महीने के पहले मंगलवार को पूरे विश्‍व में घो‍षित किया गया है। अस्‍थमा के मरीजों को आजीवन कुछ सावधानियां अपनानी पड़ती हैं। अस्थमा के मरीज़ों को हर मौसम में अतिरिक्त सुरक्षा की आवश्यकता होती है। अपने स्वास्‍थ्‍य को समझकर, अस्थमा या दमा के मरीज़ भी मौसम का मज़ा ले सकते हैं। विश्व अस्थमा दिवस मनाने का मुख्य उद्देश्य है विश्वभर के लोगों को अस्थमा बीमारी के बारे में जागरूक करना। एक अनुमान के मुताबिक भारत में अस्थमा के रोगियों की संख्या लगभग 15 से 20 करोड़ है जिसमें लगभग 12 प्रतिशत भारतीय शिशु अस्थमा से पीड़ित हैं। 

वर्ष 2013 में 7 मई को विश्व अस्थमा दिवस मनाया गया। वर्ष 2013 हेतु विश्व दमा दिवस का विषय था- दमा को नियंत्रित रखना संभव है। विश्व अस्थमा दिवस का आयोजन प्रत्येक वर्ष ग्लोबल इनिशिएटिव फॉर अस्थमा (जीआईएनए) द्वारा किया जाता है। अस्थमा की वजह वायुमार्ग संकुचन और फेफड़ों की सूजन है। इसके मरीज को सांस लेने में परेशानी होती है, बहुत ही जल्द सांस फूल जाता है। खांसी आती है, वैसे यह बीमारी किसी भी उम्र में हो सकती है लेकिन हाल के वर्षों की बात की जाए तो बच्चों में यह बीमारी लगातार बढ़ती जा रही है। अस्थमा के मरीज को रात में ज्यादातर परेशानी होती है। दमा बढ़ जाने पर खांसते-खांसते और टूटी-फूटी सांस लेते हुए मरीज रात गुजार पाता है। इसकी मुख्य वजहों में व्यक्ति की जीवन शैली और शहरों में धुएं और धूल के कारण इसके मरीजों की संख्या बढ़ रही है। वैसे यह कह पाना कि अस्थमा जीवनशैली या पर्यावरण से जुड़ा है थोड़ा मुश्किल है। इसको लेकर कई सवाल भी उठते हैं जैसे क्या इसके पीछे सिगरेट या प्रदूषण है। 
वायरल इंफेक्शन (विषाणु द्वारा संक्रमण) से ही अस्थमा की शुरुआत होती है। युवा यदि बार-बार सर्दी, बुखार से परेशान हों तो यह एलर्जी का संकेत है। सही समय पर इलाज करवाकर और संतुलित जीवन शैली से बच्चों को एलर्जी से बचाया जा सकता है। समय पर इलाज नहीं मिला, तो धीरे-धीरे वे अस्थमा के मरीज बन जाते हैं।
  1. वातावरण के प्रति प्रतिकूलता
  2. आनुवांशिकी
  3. वायु प्रदूषण
  4. हवा में मौजूद परागकण
  5. धूम्रपान
  6. जीवन शैली में बदलाव
  7. घर के अंदर खेले जाने वाले खेलों को प्रोत्साहन
बदलती जीवन शैली युवाओं के लिए खतरा बन गई है। शहरों में खत्म होते खेल मैदान से बढ़ा इंडोर गेम्स का चलन युवाओं को अस्थमा का मरीज बना रहा है। हालात इतने खतरनाक हैं कि अस्थमा के कुल मरीजों में अब युवाओं और बच्चों की संख्या बड़ों से दोगुनी हो गई है। विशेषज्ञों की मानें तो खेल मैदान की कमी के चलते युवा इंडोर गेम्स को प्राथमिकता दे रहे हैं। इंडोर गेम्स के दौरान घर के पर्दे, गलीचे व कारपेट में लगी धूल उनके लिए बेहद खतरनाक साबित हो रही है। इससे उनमें एलर्जी और अस्थमा की समस्या हो रही है। विशेषज्ञों का कहना है कि जब तक हम युवाओं के लिए संतुलित जीवन शैली का चुनाव नहीं करेंगे, यह समस्या ब़ढ़ती ही जाएगी। इतना ही नहीं घर की चहारदीवारी में बंद रहने वाले युवा जब कॉलेज जाने के लिए घर से बाहर निकलते हैं तो वातावरण के धूल व धुएँ के कण से भी उन्हें एलर्जी होने की संभावना बढ़ जाती है।



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विश्व रेडक्रॉस दिवस (World Red Cross Day) अन्तर्राष्ट्रीय स्वंयसेवक दिवस के रूप में मनाया जाता है। लगभग 150 वर्षों से पूरे विश्व में रेडक्रॉस के स्वंय सेवक असहाय एवं पीड़ित मानवता की सहायता के लिए काम करते आ रहे हैं। भारत में वर्ष 1920 में पार्लियामेंट्री एक्ट के तहत भारतीय रेडक्रॉस सोसायटी का गठन हुआ, तब से रेडक्रॉस के स्वंय सेवक विभिन्न प्रकार के आपदाओं में निरंतर निस्वार्थ भावना से अपनी सेवाएं दे रहे हैं। अन्तर्राष्ट्रीय रेडक्रॉस ने इस वर्ष अन्तर्राष्ट्रीय रेडक्रॉस का 'Find the Volunteer in side you' (अपने अन्दर के स्वयं सेवक को पहचानें) का नारा दिया है। पीड़ित मानवता की सेवा बिना भेदभाव के करते रहने का विचार देने वाले तथा रेडक्रॉस अभियान को जन्म देने वाले महान मानवता प्रेमी जीन हेनरी डयूनेन्ट का जन्म8 मई 1828 में हुआ था। उनके जन्म दिवस 8 मई को विश्व रेडक्रॉस दिवस के रूप में पूरे विश्व में मनाया जाता है। उन्होंने समाज सेवा के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य किया और पूरे विश्व के लोगों को मानवतावादी सेवक के रूप में स्थापित करने के लिए प्रेरित किया। सेवा कार्य के लिए उनके द्वारा गठित सोसायटी को रेडक्रॉस का नाम दिया गया। वर्तमान में विश्व के 186 देशों में रेडक्रॉस सोसायटी कार्य कर रही है। वर्ष 1901 में हेनरी डयूनेंट को उनके मानव सेवा के कार्यों के लिए पहला नोबेल शांति पुरस्कार मिला।

युद्ध में घायल सैनिकों की स्थिति से विचलित हेनरी डयूनेन्ट ने 9 फरवरी 1863 को जेनेवा में पांच लोगों की एक कमेटी बनाई। हेनरी की इस परिकल्पना का नाम था 'इंटरनेशनल कमेटी फॉर रिलीफ टू द उन्डेड'। इस संस्था की पहचान के लिए सफ़ेद पट्टी पर लाल रंग के क्रास चिह्न को मान्यता दी गई। आज यह चिह्न पूरे विश्व में पीड़ित मानवता की सेवा का प्रतीक बन गया है। इसके साथ यह भी अतिमहत्त्वपूर्ण है कि विश्व का पहला ब्लड बैंक रेडक्रॉस की पहल पर अमेरिका में 1937 में खुला। आज विश्व के अधिकांश ब्लड बैंकों का संचालन रेडक्रॉस एवं उसकी सहयोगी संस्थाओं के द्वारा किया जाता है।

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विश्व थैलेसिमिया दिवस (World Thalassemia Day) प्रत्येक वर्ष 8 मई को मनाया जाता है। थैलेसिमिया रोग के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। यह बीमारी आनुवांशिक है, रिश्तेदारी के साथ पीढ़ी दर पीढ़ी चलती है। बीमारी का जन्म शिशु के साथ होता है, जो उम्रभर साथ नहीं छोड़ती। इसका सिर्फ एक समाधान है, रिश्तों में सावधानी। यह बीमारी कुछ विशेष समुदायों में है।

थैलेसिमिया एक आनुवांशिक बीमारी है, जो माता-पिता से संतान को होती है। इस बीमारी से ग्रस्त शरीर में लाल रक्त कण बनने बंद हो जाते हैं। इससे शरीर में रक्तकी कमी आ जाती है। बार-बार खून चढ़ाना पड़ता है। रंग पीला पड़ जाता है। इस रोग से बच्चों में जिगर, तिल्ली और हृदय की साइज बढ़ने, शरीर में चमड़ी का रंगकाला पड़ने जैसी विकट स्थितियां पैदा होती हैं। इस रोग को लेकर महिला के प्रसव से पूर्व ध्यान रखने की जरूरत है। एक शोध के मुताबिक भारत में प्रति वर्ष लगभग 8 से 10 थैलेसिमिया रोगी जन्म लेते हैं। वर्तमान में भारत में लगभग 2,25,000 बच्चे थैलेसिमिया रोग से ग्रस्त हैं। बच्चे में 6 माह, 18 माह के भीतर थैलेसिमिया का लक्षण प्रकट होने लगता है। बच्चा पीला पड़ जाता है, पूरी नींद नहीं लेता, खाना-पीना अच्छा नहीं लगता है, बच्चे को उल्टियां, दस्त और बुखार से पीड़ित हो जाता है। आनुवांशिक मार्गदर्शन और थैलेसिमिया माइनर का दवाइयों से उपचार संभव है।
रोगी को बार-बार खून चढ़ाने से शरीर में लौह तत्त्व की मात्रा बढ़ जाती है। इसलिए रोगी को हरी पत्तेदार सब्जी, गुड़, मांस, अनार, तरबूज, चीकू कम देना चाहिए। बोन मेरो ट्रांसप्लांट (Bone Marrow Transplantation) से इसका इलाज संभव है। इलाज की यह पद्धति काफी महंगी है। अब वैज्ञानिक नई तकनीक पर प्रयोग कर रहे हैं, जिसका नाम स्टेम सैल थैरेपी है।

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