ब्रिटिश रुल के समय भारतीय प्रेस का विकास क्रम., - Study Search Point

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ब्रिटिश रुल के समय भारतीय प्रेस का विकास क्रम.,

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1780 ई. में जेम्स ऑगस्टस हिक्की ने ‘बंगाल गजट’ या ‘कलकत्ता जनरल एडवरटाइजर’ पत्र शुरू किया जिसे 1872 ई. में सरकार की स्पष्ट आलोचना करने के कारण जब्त कर लिया गया|लेकिन हिक्की के इस प्रयास ने भारत में प्रेस की स्थापना की |बाद में अनेक समाचार पत्र और जर्नल प्रकाशित हुए,जैसे- बंगाल जर्नल,कलकत्ता क्रोनिकल,मद्रास कोरियर और बॉम्बे हेराल्ड| भारतीय प्रेस का विकासक्रम नीचे वर्णित है -

• लॉर्ड वेलेजली ने भारत पर फ्रेंच हमले की आशंका के चलते प्रेस एक्ट,1799 के तहत प्रेस पर सेंसरशिप लगा दी|
प्रेस एक्ट,1835 या मेटकाफ एक्ट : मेटकाफ (गवर्नर जनरल,1835-36) ने 1823 के आपत्तिजनक अध्यादेश को वापस ले लिया ,इसी कारण से उन्हें ‘भारतीय प्रेस का मुक्तिदाता’ कहा जाता है|
लाइसेंसिंग एक्ट,1857 : इस अधिनियम ने लाइसेंस प्रतिबन्ध लागू किया और पुस्तकों के प्रकाशन व वितरण, समाचार पत्र व अन्य छपी हुई सामग्री को रोकने का अधिकार सरकार को प्रदान कर दिया गया|
रजिस्ट्रेशन एक्ट,1867 : इस अधिनियम ने 1935 के मेटकाफ एक्ट द्वारा लगाये प्रतिबंधों में ढील प्रदान की और कहा कि सरकार नियामकीय भूमिका निभाए न कि प्रतिबंधात्मक |
वर्नाकुलर प्रेस एक्ट,1878 : इसका निर्माण देशी भाषा के पत्रों पर बेहतर नियंत्रण स्थापित करने,प्रभावी दण्ड देने और सरकार विरोधी लेखन के दमन हेतु किया गया था| इस एक्ट के प्रावधान निम्नलिखित हैं-

1. जिला मजिस्ट्रेट को यह शक्ति प्रदान की गयी कि वह किसी भी देशी  भाषा के समाचार पत्र के प्रकाशक व मुद्रक को को बुलाकर सरकार के  साथ एक ऐसे अनुबंधपत्र पर हस्ताक्षर करने को कह सकता है जिसमे  यह वर्णित होता था कि सरकार के विरुद्ध किसी भी तरह की सामग्री  प्रकाशित नहीं करेगा और न ही विभिन्न धर्मों,जातियों,प्रजातियों के लोगों  के मध्य विद्वेष फ़ैलाने वाली सामग्री प्रकाशित करेगा| मुद्रक व प्रकाशक  को प्रतिभूति राशि भी जमा करनी पड़ती थी जिसे अनुबंधपत्र का उल्लंघन  करने पर जब्त भी किया जा सकता था|
2. मजिस्ट्रेट का निर्णय अंतिम होता था जिसके विरुद्ध न्यायालय में  अपील नहीं की जा सकती थी|
3. देशी भाषा के समाचार पत्र को इस एक्ट से तभी छूट मिल सकती थी  जब वह प्रकाशन से पूर्व सम्बंधित सामग्री को सरकार के पास जमा करे|

समाचार पत्र(अपराध हेतु प्रेरणा) एक्ट,1908 : इस एक्ट द्वारा मजिस्ट्रेट को यह अधिकार दिया गया कि वह आपत्तिजनक सामग्री,जैसे-हत्या हेतु भड़काना,हिंसा को बढ़ावा देना आदि,को प्रकाशित करने वाले पत्र की प्रेस संपत्ति को जब्त कर सकता है|
भारतीय प्रेस एक्ट, 1910 : यह वर्नाकुलर एक्ट का ही नया रूप था जो स्थानीय सरकार को यह अधिकार देता था कि वे रजिस्ट्रेशन के समय मुद्रक/प्रकाशक से प्रतिभूति राशि की जमा कराये और यदि समाचार पत्र द्वारा किसी प्रकार का कोई उल्लंघन किया किया जाता है तो उसे जब्त कर सकती है या फिर रजिस्ट्रेशन रद्द कर सकती है|साथ ही समाचार पत्र के मुद्रक को प्रत्येक संसकरण की दो प्रतियाँ स्थानीय सरकार के पास जमा करनी पड़ती थीं|

निष्कर्ष -
अतः भारतीय प्रेस का उद्भव विकासात्मक कठिनाइयों,निरक्षरता,औपनिवेशिक प्रतिबंधों और दमन से भरा हुआ था| इसने स्वतंत्रता के विचार को लोगों तक पहुँचाया और स्वतंत्रता संग्राम के लिए महत्वपूर्ण उपकरण बन गया|

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