1923 में कांग्रेस खिलाफत स्वराज पार्टी,जो स्वराज पार्टी के नाम से प्रसिद्ध हुई, - Study Search Point

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1923 में कांग्रेस खिलाफत स्वराज पार्टी,जो स्वराज पार्टी के नाम से प्रसिद्ध हुई,

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स्वराज पार्टी ने स्वयं को कांग्रेस का ही अभिन्न अंग एवं अहिंसा व असहयोग का खुले आम समर्थन किया| बल्लभभाई पटेल,मदनमोहन मालवीय और  एम.एस.जयकर जैसे कांग्रेस नेताओं का इसे सक्रिय सहयोग मिला था| जब असहयोग आन्दोलन प्रारंभ हुआ था तो उस समय विधायिकाओं के बहिष्कार का निर्णय लिया गया था| चितरंजन दास,मोतीलाल नेहरु और विट्ठलभाई पटेल के नेतृत्व वाले एक गुट का मानना था कि कांग्रेस को चुनाव में भाग लेना चाहिए और विधायिकाओं के अन्दर पहुँचकर उनके काम को बाधित किया जाना चाहिए| वल्लभभाई पटेल,सी.राजगोपालाचारी और राजेंद्र प्रसाद के नेतृत्व वाले गुट ने इसका विरोध किया|

➤➤ असहयोग आन्दोलन को वापस लेने के बाद कांग्रेस पार्टी दो भागों में बंट गयी| जब असहयोग आन्दोलन प्रारंभ हुआ था तो उस समय विधायिकाओं के बहिष्कार का निर्णय लिया गया था|चितरंजन दास,मोतीलाल नेहरु और विट्ठलभाई पटेल के नेतृत्व वाले एक गुट का मानना था की कांग्रेस को चुनाव में भाग लेना चाहिए और विधायिकाओं के अन्दर पहुँचकर उनके काम को बाधित जाना चाहिए| वल्लभभाई पटेल,सी.राजगोपालाचारी और राजेंद्र प्रसाद के नेतृत्व वाले गुट ने इसका विरोध किया| वे कांग्रेस को रचनात्मक कार्यों में लगाना चाहते थे|
➤➤ 1922 में गया में आयोजित कांग्रेस के अधिवेशन,जिसकी अध्यक्षता चितरंजन दास ने की थी,में विधायिकाओं में प्रवेश सम्बन्धी प्रस्ताव अस्वीकृत हो गया |इस प्रस्ताव के समर्थकों ने 1923 में कांग्रेस खिलाफत स्वराज पार्टी,जो स्वराज पार्टी के नाम से प्रसिद्ध हुई,की स्थापना की|1923 में अबुल कलाम आज़ाद की अध्यक्षता में दिल्ली में आयोजित कांग्रेस के विशेष अधिवेशन में कांग्रेस ने  स्वराजियों को चुनाव में भाग लेने की अनुमति प्रदान कर दी| स्वराजियों ने केंद्रीय व प्रांतीय विधायिकाओं में बड़ी संख्या में सीटें जीतीं| वृहद् स्तर की राजनीतिक गतिविधियों के अभाव के इस दौर में स्वाराजियों ने ब्रिटिश विरोधी प्रदर्शन व भावना को जीवित बनाये रखने में महत्वपूर्ण योगदान दिया था| उन्होंने ब्रिटिश शासकों की नीतियों व प्रस्तावों का विधायिकाओं से पारित होना लगभग असंभव बना दिया |उदाहरण के लिए 1928 में एक बिल लाया गया जिसमें ब्रिटिश सरकार को यह शक्ति प्रदान करने का प्रावधान था कि वह किसी भी ऐसे गैर-भारतीय को भारत से बाहर निकाल सकती है जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का समर्थन करता हो| स्वराजियों के विरोध के कारण यह बिल पारित न हो सका| जब सरकार ने इस बिल को दोबारा पेश किया तो विट्ठलभाई पटेल,जोकि सदन के अध्यक्ष थे, ने ऐसा करने की अनुमति प्रदान नहीं की| विधायिकाओं में होने वाली बहसों,जिनमें भारतीय सदस्य प्रायः अपनी दलीलों से सरकार को मत दे देते थे,को पूरे भारत में जोश और रूचि के साथ पढ़ा जाता था|
➤➤ सन 1030 में जब जन राजनीतिक संघर्ष को पुनः प्रारंभ किया तो फिर से विधायिकाओं का बहिष्कार किया जाने लगा| गाँधी जी को फरवरी 1924 में जेल से रिहा कर दिया गया और रचनात्मक कार्यक्रम,जिन्हें कांग्रेस के दोनों गुटों ने स्वीकृत किया था,कांग्रेस की प्रमुख गतिविधियाँ बन गयीं| रचनात्मक कार्यक्रमों के सबसे महत्वपूर्ण घटक खादी का प्रसार,हिन्दू-मुस्लिम एकता को बढावा और अस्पृश्यता की समाप्ति थे| किसी भी कांग्रेस समिति के सदस्य के लिए यह अनिवार्य कर दिया गया की वह किसी राजनीतिक या कांग्रेस की गतिविधियों में भाग लेते समय हाथ से बुनी हुई खद्दर ही धारण करे और प्रति माह 2000 यार्ड सूत की बुनाई करे| अखिल भारतीय बुनकर संघ की स्थापना की गयी और पूरे देश में खद्दर भंडारों खोले गए| गाँधी जी खादी को गरीबों को उनकी निर्धनता से मुक्ति का और देश की आर्थिक समृद्धि का प्रमुख साधन मानते थे| इसने लाखों लोगों को आजीविका के अवसर प्रदान किये और स्वतंत्रता संघर्ष के सन्देश को देश के कोने-कोने तक पहुँचाया,विशेषकर ग्रामीण भागों में| इसने आम आदमी को कांग्रेस के साथ जोड़ा और आम जनता के उत्थान को कांग्रेस के कार्यों का अभिन्न अंग बना दिया| चरखा स्वतंत्रता संघर्ष का प्रतीक बन गया|
➤➤ असहयोग आन्दोलन को वापस लेने के बाद देश के कुछ भागों में सांप्रदायिक दंगे भड़क गए |स्वतंत्रता संघर्ष को जारी रखने और लोगों की एकता को बनाये रखने और मजबूत करने के लिए साम्प्रदायिकता के जहर से लड़ना जरुरी था| गाँधी जी का छुआछुत/अस्पृश्यता विरोधी कार्यक्रम भारतीय समाज की सबसे भयंकर बुराई को समाप्त करने और समाज के दलित वर्ग को स्वतंत्रता संघर्ष से जोड़ने के लिए बहुत महत्वपूर्ण था|

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