अवध उत्तर भारत का ऐतिहासिक क्षेत्र था, जिसमे वर्त्तमान उत्तर प्रदेश का उत्तर पूर्वी भाग शामिल था। प्राचीन कोसल प्रदेश के नाम की राजधानी अयोध्या के नाम पर इसका नाम अवध पड़ा था। सोलहवीं सदी में यह मुग़ल साम्राज्य का हिस्सा बन गया और 1856 ई. में इसे ब्रिटिश साम्राज्य में मिला लिया गया। 1722 ई. में ,मुग़ल बादशाह मुहमदशाह द्वारा फारस के शिया सादत खां को अवध का सूबेदार बनाये जाने के बाद अवध सूबे को स्वतंत्र राज्य घोषित कर दिया गया। सादत खां ने सैय्यद बंधुओं को हटाने में सहयोग दिया। बादशाह ने सादत खां को नादिरशाह के साथ वार्ता के लिए नियुक्त किया ताकि वह एक बड़ी रकम के भुगतान के एवज में अपने देश लौट जाये और शहर को तबाह करने से उसे रोका जा सके। लेकिन जब नादिरशाह को उस रकम का भुगतान नहीं किया गया तो उसका परिणाम दिल्ली की जनता को नरसंहार के रूप में भुगतना पड़ा। सादत खां ने भी शर्म और अपमान के कारण आत्महत्या कर ली।
सादत खां के बाद अवध का अगला नवाब सफदरजंग बना जिसे मुग़ल साम्राज्य का वजीर भी नियुक्त किया गया था। उसका पुत्र शुजाउद्दौला उसका उत्तराधिकारी बना। अवध ने एक शक्तिशाली सेना का गठन किया जिसमे मुस्लिमों के साथ साथ हिन्दू ,नागा,सन्यासी भी शामिल थे।अवध के शासक का प्राधिकार दिल्ली के पूर्व में स्थित रूहेलखंड क्षेत्र तक था। उत्तर –पश्चिमी सीमान्त की पर्वत श्रंखलाओं से बड़ी संख्या में अफ़ग़ान ,जिन्हें रोहिल्ला कहा जाता था ,वहाँ आकर बस गए थे।अवध के नवाबों का विवरण निम्नलिखित है-
सादत खां बुरहान-उल-मुल्क (1722-1739 ई) : इन्होने 1722 ई. में अवध की स्वायत्त राज्य के रूप में स्थापना की उसे मुग़ल बादशाह मुहम्मदशाह द्वारा गवर्नर नियुक्त किया गया था ।उसने नादिरशाह के आक्रमण के समय साम्राज्य की गतिविधियों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। अंततः इज्ज़त और सम्मान की खातिर आत्महत्या कर ली।
सफ़दर जंग अब्दुल मंसूर (1739-1754 ई) : यह सादत खां का दामाद था जिसने 1748 ई. में अहमदशाह अब्दाली के विरुद्ध मानपुर के युद्ध में भाग लिया था।
शुजाउद्दौला (1754-1775 ई) : वह सफदरजंग का पुत्र और अहमदशाह अब्दाली का सहयोगी था। उसने अंग्रेजों के सहयोग से रोहिल्लों को हराकर 1755ई. में रूहेलखंड को अपने साम्राज्य में मिला लिया था।
आसफ-उद-दौला : यह लखनऊ की संस्कृति को प्रोत्साहित करने और इमामबाड़ा तथा रूमी दरवाजा जैसी ऐतिहासिक इमारतें बनवाने के लिए प्रसिद्ध है। उसने 1755 ई. में अंग्रेजों के साथ फ़ैजाबाद की संधि की।
वाजिद अली शाह : यह अवध का अंतिम नवाब था जिसे अख्तरप्रिया और जान-ए-आलम नाम से जाना जाता है। उसके समय में ही ब्रिटिश गवेर्नर जनरल लार्ड डलहौजी द्वारा अवध को कुशासन के आधार पर ब्रिटिश साम्राज्य में मिला लिया गया था। वह शास्त्रीय संगीत और नृत्य का शौक़ीन था जिसने कालका-बिंदा जैसे कलाकार भाइयों को अपने दरबार में शरण दी थी।
निष्कर्ष - अवध अपनी उपजाऊ भूमि के कारण के हमेशा से आकर्षण का केंद्र रहा है । अंग्रेजों ने भी अपने स्वार्थ के लिए इसकी उपजाऊ भूमि का दोहन किया। इसीलिए अंग्रेजों ने 1856 ई. में इसे अपने साम्राज्य में मिला लिया।
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