चार्टर अधिनियम : 1793 ई. ., - Study Search Point

निरंतर कर्म और प्रयास ही सफलता की कुंजी हैं।

चार्टर अधिनियम : 1793 ई. .,

Share This
1793 ई. में पारित चार्टर अधिनियम द्वारा कंपनी के भारत के साथ व्यापारिक एकाधिकार को अगले बीस वर्षों के लिए बढ़ा दिया गया और गवर्नर जनरल के अधिकार क्षेत्र में बम्बई और मद्रास के गवर्नर को भी शामिल कर दिया| सुप्रीम कोर्ट के अधिकार क्षेत्र को खुले सागर तक बढ़ा दिया| वे नागरिक सेवा के किसी भी सदस्य को शांति–न्यायाधीश के रूप में नियुक्त कर सकते थे|वे प्रेसीडेंसी नगरों के लिए सफाई कर्मचारी भी नियुक्त कर सकते थे और बिना लाइसेंस के शराब की बिक्री पर प्रतिबन्ध भी लगा सकते थे|
भारत में घटने वाली अनेक विलक्षण राजनीतिक घटनाओं के फलस्वरूप 1793 ई. में कम्पनी को व्यापार और वाणिज्य सम्बन्धी अधिकारों के साथ-साथ भारत के विशाल क्षेत्र पर प्रशासन करने का दायित्व भी सौंपा गया। कम्पनी का पहला चार्टर 1794 ई. में समाप्त होने वाला था। कम्पनी की गतिविधियों के बारे में जाँच-पड़ताल तथा कुछ विचार-विमर्श करने के बाद 1793 ई. में एक नया चार्टर क़ानून पास किया गया, जिसके द्वारा कम्पनी की कार्य अवधि और अधिकार 20 वर्षों के लिए पुन: बढ़ा दिये गये। इसके बाद 1858 ई. तक हर बीस वर्षों के उपरान्त एक नया चार्टर क़ानून पास करने की प्रथा सी बन गई। 1858 ई. में ईस्ट इंडिया कम्पनी को समाप्त कर दिया गया और उसके अधिकार तथा शासित क्षेत्र महारानी विक्टोरिया ने सीधे अपने हाथ में ले लिया।

भारत में कम्पनी का काधिकार -
1793 ई. के चार्टर क़ानून में कोई महत्त्वपूर्ण परिवर्तन नहीं किया गया था और कम्पनी को भारत में व्यापार वाणिज्य पर एकाधिकार जमाये रखने तथा अपने हस्तगत क्षेत्रों पर शासन करने की पूरी छूट दे दी गई थी। 1813 ई. के चार्टर क़ानून ने भारत के साथ व्यापार करने के कम्पनी के एकाधिकार को समाप्त कर दिया और इंग्लैंण्ड के अन्य व्यापारियों को भी आशिंक रूप में भारत के साथ निजी व्यापार, वाणिज्य और औद्योगिक सम्बन्ध स्थापित करने का अवसर प्रदान कर दिया, किन्तु चीन से होने वाले कम्पनी के व्यापारिक एकाधिकार को समाप्त नहीं किया। इस चार्टर क़ानून ने कम्पनी के भारतीय क्षेत्रों में ईसाई पादरियों को भी प्रवेश करने की अनुमति दे दी तथा भारतीय प्रशासन में एक धार्मिक विभाग जोड़ दिया। इस चार्टर क़ानून में यह भी कहा गया था भारत वासियों के हितों की रक्षा करना उन्हें खुशहाल बनाना इंग्लैंण्ड का कर्तव्य है और इसके लिए उसे ऐसे क़दम उठाने चाहिए, जिनसे उनको उपयोगी ज्ञान उपलब्ध हो और उनका धार्मिक और नैतिक उत्थान हो। लेकिन यह घोषणापत्र केवल आदर्श अभिलाषा बनकर ही रह गया और इस पर कोई कार्यवाही नहीं की गई।

ईस्ट इंडिया कम्पनी की समाप्ति -
1833 ई. के चार्टर क़ानून ने ईस्ट इंडिया कम्पनी की व्यापारिक भूमिका समाप्त कर दी और उसे पूरी तरह भारतीय प्रशासन के लिए इंग्लैण्ड के राजा के राजनीतिक अभिकरण के रूप में परिणत कर दिया। गवर्नर-जनरल की परिषद् में क़ानून के वास्ते एक सदस्य को शामिल कर दिया गया तथा क़ानून आयोग की स्थापना की गई, जिसके फलस्वरूप बाद में इंडियन पेनल कोड (भारतीय दंड संहिता) और इंडियन सिविल एंड क्रिमिनल प्रोसीजर कोड (भारतीय दीवानी एवं फ़ौजदारी संहिता प्रक्रिया संहिता) लागू हुआ। इस प्रकार भारत के वर्तमान सरकारी क़ानूनों का विकास 1833 ई. के चार्टर से शुरू हुआ। गवर्नर-जनरल और उसकी परिषद को एक साथ बैठकर क़ानून बनाने का अधिकार भी दिया गया। इसमें इस सिद्धान्त का प्रतिपादन भी किया गया कि सरकारी पदों के लिए अगर कोई भारतीय शैक्षणिक तथा अन्य योग्यताएँ रखता है, तो उसे केवल धर्म या रंगभेद के आधार पर इस पद से वंचित नहीं किया जाएगा। यह घोषणापत्र भी काफ़ी अरसे तक पवित्र भावना की अभिव्यक्ति मात्र रहा, लेकिन अंत में यह काफ़ी महत्त्वपूर्ण सिद्ध हुआ।

अधिनियम की विशेषताएं -
• अधिनियम कम्पनी को व्यापारिक विशेषाधिकार प्रदान करता है और अगले बीस वर्षों के लिए उन्हें नवीनीकृत करता है|
•  गवर्नर जनरल के अधिकार क्षेत्र में बम्बई और मद्रास के गवर्नर को भी शामिल कर दिया |

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Pages