रोहिग्या शरणार्थियों को भारत द्वार शरण न दिए जाने की निंदा, - Study Search Point

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रोहिग्या शरणार्थियों को भारत द्वार शरण न दिए जाने की निंदा,

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हमारा देश भारत जहाँ 125 करोड़ लोग निवास करते है, पूरे विश्व में भारत जनसंख्या की दृष्टि से दूसरा सबसे बड़ा देश हैं। अब इतना बड़ा देश हैं तो लाजमी है कि समस्याएं भी अधिक होगी, देश का प्रत्येक नागरिक इस समस्यााओं से निजात पाना चाहता हैं, जिसमें सरकार के द्वार हमारी मदद की जाती हैं, साथ ही हम अपने एशो आराम के साधनों को बढ़ना चाहते हैं, जिसे हम अपनी रोज मर्रा के जीवन को सरल और सुखदायक बनाने के लिए नए नए तरीके अपनाते रहते हैं। विश्व के प्रत्येक राष्ट्र ने शासन प्रशासन के क्रियान्वयन के लिए अपने अपने तरीके से सरकारों का गठन किया है। भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश हैं, जहाँ जनता के द्वारा अपने मत का प्रयोग कर प्रत्यक्ष रूप से अपने प्रतिनिधियों को चुनकर सरकार बनाने की आज़ादी हैं, जनता द्वारा चुने प्रतिनिधि देश के सर्वोच्च सदन संसद में बैठकर अपने अपने संसदीय क्षेत्रों की समस्याओं को सदन में रखते हैं, तथा सभी मिलकर समस्याओं का निदान कर जनकल्याण और देश के प्रगति विकास, के लिए कार्य करते हैं। संसद में बैठें प्रत्येक सदस्य का कर्तव्य हैं कि वह देश के हित को सर्वोपरि रखें, सरकार के देश के विकास-जनहित कल्याण के कार्यों में सहयोग करें। साथ ही जनता का कर्तव्य है कि वह सरकार द्वारा बनाये कानूनों और देश हित में लिए निर्णयों का समर्थन और सहयोग करें, जिसे कि एक वेहतर समाज और राष्ट्र का निर्माण हो सके। लेकिन वर्तमान समय की राजनीतिक दांव पेंच में ये सब बातें केवल कहने और लिखने मात्र तक सीमित रह गयी हैं। लगातार राजनीतिक दुनिया में जातिवाद और तुष्टिकरण हावी होती जा रहा हैं, देश में पहले से चल रही समस्या से तो हम ठीक से निजात नहीं पा पारहे हैं, फिर ये अभी रोहिग्या शरणार्थियों का आना देश की राजनीति में आग में घी डालने का काम किया है। जिसमें खूब तुष्टिकरण की राजनीति की जा रही हैं, रोहिग्यों द्वारा म्यामांर के सैनिक छावनियों और पुलिस स्टेशनो पर हमला किया था जिसके बाद, हुए सैन्य कार्यवाही में म्यामार सरकार के द्वारा रोहिग्या मुस्लिम समुदाय पर आतंकवादी गतिविधियों में लिप्त होने पर की गयी कार्यवाही के बाद लाखों रोहिग्या म्यामार छोड़कर भारत और बांग्लादेश आ गए।
भारत सरकार ने रोहिग्यों को देश में शरण देने से साफ़ इंकार कर दिया था, साथ ही सरकार ने स्पष्ट किया कि अधिकतर रोहिग्यों के ISI और अन्य आतंकी संगठनो से सम्बन्ध हैं, ऐसे में रोहिग्यों को देश में शरण देने देश की सुरक्षा के लिया खतरा होगा। लेकिन देश में कुछ धर्म के ठेकेदारों ने उन्हें शरण देन और उनके लिए सभा की, जो कि किसी देशद्रोह के काम से कम नही था, कुछ ने तो प्रार्थना सभा तक कर दी, बात यही ख़त्म नही हुयी एक पार्टी के राजनेता तो यहाँ तक कह दिया कि जम्मू कश्मीर, विहार, झारखण्ड, छत्तीसगढ़, बंगाल, नागालैंड, मणिपुर, साथ ही पूर्वोत्तर के अन्य राज्यों में, अलगाववाद, नक्सलवाद पहले से हैं, इन रोहिग्यों को शरण देने में सरकार को क्या तकलीफ हैं, नेता जी क्या कहना चाहते थे, वो ये बताना चाह रहे है कि देश में पहले ही इतने नक्सली हैं, दो चार आतंकी और आ जायेंगे तो, क्या हो जायेगा, ऐसे राजनेताओं के कारण आज देश में सामाजिक अस्थिरताएं पैदा हो रही हैं, ऐसे नेता ना केवल समाज के लिए बल्कि देश के लिए भी सबसे बड़े खतरे का कारण बन सकते हैं, रोहिग्या शरणार्थियों के मामले को संज्ञान में लेते हुए उधर UNO ( संयुक्त राष्ट्र संघ ) ने भी रोहिग्या शरणार्थियों को भारत द्वार शरण ना दिए जाने की निंदा की और मानवाधिकार के कर्तव्यों को याद दिलाने की कोशिस की, लेकिन भारत ने साफ किया कि वो रोहिग्यों को उनके देश में भारत मानवीय आधार पर  सहायता उपलब्ध करने के तत्पर हैं, लेकिन अपने देश की सुरक्षा को प्राथमिकता देते हुए, इतनी बड़ी संख्या में रोहिग्यों को शरण नही देगा। UNO मानवाधिकार को आधार बनाकर भारत की छवि धूमिल ना करें, भारत ने नैतिकता के आधार पर बांग्लादेश में रोहिग्यों के लिए सहायता पैकेज भी भेजा था, माना UNO और तमाम धर्म संगठनों ने मानवाधिकार की दुहाई दी, लेकिन एक सवाल सभी मानवाधिकारों के पक्षकरो से हैं कि जब भारत के एक शांत और अमन का प्रतीक कश्मीर घाटी में जब कश्मीरी पंडितों के साथ उनके ही मूल निवास स्थान पर उनके ही घरों में घुसकर हैवानियत भरा बर्ताव कर बर्बरता पूर्वक उनकी हत्याएं कर दी गयी, हजारों कश्मीरी पंडितों को अपना घर और अपनी जिंदगी गवानी पड़ी, उस समय कहा गया था, ये मानवाधिकार, और जो राजनेता अभी आतंकवादी गतिविधियों में लिप्त रोहिग्या शरणार्थियों की जो इतनी फ़िक्र कर रहे हैं, उस समय इनको क्या सांप सूंग गया था, या इनकी मुख से आवाज ही चली गयी थी, जो आज रोहिग्यों के आते ही इनकी जवान फिर से लौट आयी, या फिर इन राजनेताओं और UNO ने इसलिए जोर से आवाज नही उठी क्यों कि कश्मीरी पंडितों हिन्दू थे, और आज ये रोहिंग्या मुस्लिम की बात आई और सबको अपनी-अपनी राजनीति चमकाने को मिली तो कूद पड़े, सभी धर्मो को एक समान माना जाना चाहिए ना तुष्टिकरण कर उसे राजनीतिक फायदे के लिए प्रयोग किया जाना चाहिए, काम से कम UNO जैसे एक अन्तराष्ट्रीय संगठन से ऐसी उम्मीद नही की जा सकती कि वह भारत को मानवता के बारे में सिख दे, हम संयुक्त राष्ट्र संघ को याद दिला दें कि दुनिया में भारत से बड़ा मानवता का पक्षकार कोई नही हैं। आतंकवाद का कोई धर्म या मजहब नही होता इसलिए, आतंकवाद को धर्म और राजनीति से अलग रखना चाहिए, सभी को आतंकवाद की लड़ाई में एक जुट होना चाहिए ना कि अपनी-अपनी बयां बाजीयों करनी चाहिए, जो राजनेता तुष्टिकरण की राजनीति करते हैं, वो समाज, और देश दोनों की लिए घातक साबित होंते है, जो की देश की एकता और अखंडता पर हमेशा खतरा बने रहते हैं , और अपने सियासी फायदे के लिए, हिंसक प्रदर्शनों, दंगों, नक्सलवाद, और अलगाववादियों का सहारा लेते है, समाज को जरुरत हैं कि इस तरह के राजनेताओं की बातों में ना आ आये और सतर्क रहें, प्रत्येक नागरिक के लिए देश की सुरक्षा सर्वोपरि हैं, इसके बाद में जो जाकर मानवाधिकार की बात आती हैं।

Note : यह लेख स्वतंत्र टिप्पणीकार है, किसी भी तरह के संगठन से कोई वास्ता नही हैं, लेख में समाज के सामने सच्चाई को प्रस्तुत करने की कोशिस की हैं।

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