हम्पी मध्यकालीन हिंदू राज्य विजयनगर साम्राज्य की राजधानी था। तुंगभद्रा नदी के तट पर स्थित यह नगर अब हम्पी (पम्पा से निकला हुआ) नाम से जाना जाता है और अब केवल खंडहरों के रूप में ही अवशेष है। इन्हें देखने से प्रतीत होता है कि किसी समय में यहाँ एक समृद्धशाली सभ्यता निवास करती होगी। भारत के कर्नाटक राज्य में स्थित यह नगर यूनेस्को द्वारा विश्व के विरासत स्थलों की संख्या में शामिल किया गया है। हर साल यहाँ हज़ारों की संख्या में सैलानी और तीर्थ यात्री आते हैं। हम्पी का विशाल फैलाव गोल चट्टानों के टीलों में विस्तृत है। घाटियों और टीलों के बीच पाँच सौ से भी अधिक स्मारक चिह्न हैं। इनमें मंदिर, महल, तहख़ाने, जल-खंडहर, पुराने बाज़ार, शाही मंडप, गढ़, चबूतरे, राजकोष आदि असंख्य इमारतें हैं।
हम्पी में विठाला मंदिर परिसर नि:संदेह सबसे शानदार स्मारकों में से एक है। इसके मुख्य हॉल में लगे 56 स्तंभों को थपथपाने पर उनमें से संगीत लहरियाँ निकलती हैं। हॉल के पूर्वी हिस्से में प्रसिद्ध शिला-रथ है जो वास्तव में पत्थर के पहियों से चलता था। हम्पी में ऐसे अनेक आश्चर्य हैं। जैसे यहाँ के राजाओं को अनाज, सोने और रुपयों से तौला जाता था और उसे गरीब लोगों में बाँट दिया जाता था। रानियों के लिए बने स्नानागार मेहराबदार गलियारों, झरोखेदार छज्जों और कमल के आकार के फव्वारों से सुसज्जित होते थे। इसके अलावा कमल महल और जनानखाना भी ऐसे आश्चयों में शामिल हैं। एक सुंदर दो-मंजिला स्थान जिसके रास्ते ज्यामितीय ढँग से बने हैं और धूप और हवा लेने के लिए किसी फूल की पत्तियों की तरह बने हैं। यहाँ हाथी-खाने के प्रवेश-द्वार और गुंबद मेहराबदार बने हुए हैं और शहर के शाही प्रवेश-द्वार पर हजारा राम मंदिर बना है।
चौदहवीं शताब्दी के दौरान मध्य कालीन भारत के महानतम साम्राज्यों में से एक, विजयनगर साम्राज्य की राजधानी, हम्पी कर्नाटक राज्य के दक्षिण में स्थित है। हम्पी के चौंदहवीं शताब्दी के भग्नावशेष यहां लगभग 26 वर्ग किलो मीटर के क्षेत्र में फैले पड़े हैं, इनमें विशालकाय स्तंभ और वनस्पति शामिल है। उत्तर में तुंगभद्रा नदी और अन्य तीन ओर पत्थरीले ग्रेनाइट के पहाडों से सुरक्षित ये भग्नावशेष मौन रह कर अपनी भव्यता, विशालता अद्भुत संपदा की कहानी कहते हैं। महलों और टूटे हुए शहर के प्रवेश द्वारा की गरिमा मनुष्य की असीमित प्रतिभा तथा रचनात्मक की शक्ति की कहानी कहती है जो मिलकर संवेदनाहीन विनाश की क्षमता भी दर्शाती है। विजय नगर शहर के स्मारक विद्या नारायण संत के सम्मान में विद्या सागर के नाम से भी जाने जाते हैं, जिन्होंने इसे 1336 - 1570 ए. डी. के बीच हरीहर - 1 से सदाशिव राय की अवधियों में निर्मित कराए। इस राजवंश के महानतम शासक कृष्ण देव राय (एडी 1509 - 30) द्वारा बड़ी संख्या में शाही इमारतें बनवाई गई। इस अवधि में हिन्दू धार्मिक कला, वास्तुकला को एक अप्रत्याशित पैमाने पर दोबारा उठते हुए देखा गया। हम्पी के मंदिरों को उनकी बड़ी विमाओं, फूलदार सजावट, स्पष्ट और कोमल पच्चीकारी, विशाल खम्भों, भव्य मंडपों और मूर्ति कला तथा पारम्परिक चित्र निरुपण के लिए जाना जाता है, जिसमें रामायण और महाभारत के विषय शामिल है। हम्पी में स्थित विठ्ठल मंदिर विजय नगर शैली का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। देवी लक्ष्मी, नरसिंह और गणेश की एक पत्थर से बनी मूर्तियां अपनी विशालता और भव्यता के लिए उल्लेखनीय है। यहां स्थित कृष्ण मंदिर, पट्टाभिराम मंदिर, हजारा राम चंद्र और चंद्र शेखर मंदिर भी यहां के जैन मंदिर हैं जो अन्य उदाहरण हैं। हम्पी के अधिकांश मंदिरों में कई स्तर वाले मंडपों के बगल में व्यापक रूप से फैले बाजार हैं।
धार्मिक प्रवेश द्वारा के बीच जनाना संलग्नक का उल्लेख भी आवश्यक है जिसमें रानी के महल का विशालकाय पत्थरीला तहखाना और एक सजावटी मंडप ''कमल महल'' हैं जो यहां के ऐश्वर्य पूर्ण अंत:पुर की कहानी कहती हैं। ऊंची इमारतों के कोने वाले स्तंभ, धन नायक के संलग्नक (खजाना) महा नवमी दिवा में सुंदर शिल्पकारी के पैनल, कई प्रकार के तालाब और पोखर, मंडप, हाथी का अस्तबल और खम्भे युक्त मंडपों की कतारें हैं, जो हम्पी के महत्वपूर्ण वास्तुकलात्मक अवशेष हैं। हम्पी ने हाल में की गई खुदाई से बड़ी संख्या में संकुलों और अनेक मंचों के तहखाना को सामने लाया गया है। इसमें पाई गई रोचक जानकारियों में पत्थर की बनी हुई छवियां, टेराकोटा से बनी सुंदर वस्तुएं और स्टूको आकृतियां हम्पी के महल में बिखरी पड़ी हैं। इसके अतिरिक्त सोने और तांबे के सिक्के, घरेलू बर्तन, चौकोर सीढियों वाले सरोवर महा नवमी दिबा के दक्षिण पश्चिम में हैं और साथ ही यहां सिरामिक की बड़ी संख्या पाई गई है। यहां दूसरी और तीसरी शताब्दी ए. डी. के पोर्सलेन से बने विभिन्न प्रकार के बर्तन और बोध शिल्पकला के खुदाई के नमूने भी सामने आए।
चौदहवीं शताब्दी के दौरान मध्य कालीन भारत के महानतम साम्राज्यों में से एक, विजयनगर साम्राज्य की राजधानी, हम्पी कर्नाटक राज्य के दक्षिण में स्थित है। हम्पी के चौंदहवीं शताब्दी के भग्नावशेष यहां लगभग 26 वर्ग किलो मीटर के क्षेत्र में फैले पड़े हैं, इनमें विशालकाय स्तंभ और वनस्पति शामिल है। उत्तर में तुंगभद्रा नदी और अन्य तीन ओर पत्थरीले ग्रेनाइट के पहाडों से सुरक्षित ये भग्नावशेष मौन रह कर अपनी भव्यता, विशालता अद्भुत संपदा की कहानी कहते हैं। महलों और टूटे हुए शहर के प्रवेश द्वारा की गरिमा मनुष्य की असीमित प्रतिभा तथा रचनात्मक की शक्ति की कहानी कहती है जो मिलकर संवेदनाहीन विनाश की क्षमता भी दर्शाती है। विजय नगर शहर के स्मारक विद्या नारायण संत के सम्मान में विद्या सागर के नाम से भी जाने जाते हैं, जिन्होंने इसे 1336 - 1570 ए. डी. के बीच हरीहर - 1 से सदाशिव राय की अवधियों में निर्मित कराए। इस राजवंश के महानतम शासक कृष्ण देव राय (एडी 1509 - 30) द्वारा बड़ी संख्या में शाही इमारतें बनवाई गई। इस अवधि में हिन्दू धार्मिक कला, वास्तुकला को एक अप्रत्याशित पैमाने पर दोबारा उठते हुए देखा गया। हम्पी के मंदिरों को उनकी बड़ी विमाओं, फूलदार सजावट, स्पष्ट और कोमल पच्चीकारी, विशाल खम्भों, भव्य मंडपों और मूर्ति कला तथा पारम्परिक चित्र निरुपण के लिए जाना जाता है, जिसमें रामायण और महाभारत के विषय शामिल है। हम्पी में स्थित विठ्ठल मंदिर विजय नगर शैली का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। देवी लक्ष्मी, नरसिंह और गणेश की एक पत्थर से बनी मूर्तियां अपनी विशालता और भव्यता के लिए उल्लेखनीय है। यहां स्थित कृष्ण मंदिर, पट्टाभिराम मंदिर, हजारा राम चंद्र और चंद्र शेखर मंदिर भी यहां के जैन मंदिर हैं जो अन्य उदाहरण हैं। हम्पी के अधिकांश मंदिरों में कई स्तर वाले मंडपों के बगल में व्यापक रूप से फैले बाजार हैं।
स्रोत: राष्ट्रीय पोर्टल
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें