दक्षिणी भारत के वास्‍तुकलात्‍मक पट्टा डक्‍कल में स्‍मारकों का समूहों, - Study Search Point

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दक्षिणी भारत के वास्‍तुकलात्‍मक पट्टा डक्‍कल में स्‍मारकों का समूहों,

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कर्नाटक के दक्षिण राज्‍य में स्थित, स्‍मारकों का पट्टा डक्‍कल समूह उत्तरी तथा दक्षिणी भारत के वास्‍तुकलात्‍मक रूपों का सुम्‍मेलित मिश्रण दर्शाने के लिए प्रसिद्ध है। मध्‍य कालीन भारत के चालुक्‍य राजवंश की राजधानी पट्टा डक्‍कल बादामीन से 22 किलो मीटर की दूरी पर और बैंगलोर से 514 किलो मीटर की दूरी पर है। यह प्रसिद्ध विश्‍व विरासत स्‍थल 10 बड़े मंदिरों का समूह है, जिनमें से प्रत्‍येक में रोचक वास्‍तुकलात्‍मक विशेषताएं हैं।
इसे सातवीं तथा आठवीं शताब्‍दी में नेतृत्‍व कराया गया था और यहां के स्‍मारक '' पट्टाडाकीसोवूलाल नामक राजवंशी राज्‍याभिषेक के लिए प्रसिद्ध हैं। यहां निर्मित मंदिरों में रेखा नाग‍रा प्रसाद और द्रविड़ विमान शैलियों का मिश्रण दिखाई देता है। पट्टा डक्‍कल का सबसे पुराना मंदिर‍ विजयादित्‍य सत्‍य श्रेय (ए डी 697 - 733) द्वारा विशाल संगमेश्‍वर के रूप में बनवाया गया था। पट्टा डक्‍कल के मल्लिकार्जुन और विरुपाक्ष मंदिर विक्रम आदित्‍य द्वितीय की दो रानियों द्वारा पल्‍लव वंश पर चालुक्‍यों की विजय को मनाने के‍ लिए निर्मित कराए गए थे। विरुपाक्ष मंदिर का निर्माण रानी लोक महादेवी द्वारा कराया गया था जिन्‍हें मूलत: लोकेश्‍वर कहते हैं। यह मंदिर दक्षिण द्रविड़ शैली में बनावा गया है और यह अपने क्षेत्र में सबसे बड़ा है। इसका बृहत प्रवेश द्वार है और इसमें अनेक शिला लेख तराशे गए हैं। विरुपाक्ष मंदिर राष्‍ट्र कूट राजाओं के लिए एक आदर्श रूप में भी कार्य करता है जो एल्‍लोरा के महान कैलासा में तराशी गई हैं। शुरूआती चालुक्‍य वंश के शिला लेख कला भव्‍यता और कोमल विस्‍तारों द्वारा पहचाने जा सकते हैं। नव गृह, दिकपाल, नृत्‍य मुद्रा में नटराज, दीवार के खानों में लिंगोद्भव, अर्ध नारिश्‍वर, त्रिपुरारी, बराह विष्‍णु, त्रिविक्रम के छत पर लगे हुए पैनल शिल्‍पकार के कौशल की असाधारण क्षमता और साथ ही उस समय प्रचलित पूजा विधि को दर्शाते हैं। इसमें रामायण, महाभारत, भगवत गीता और पंच तंत्र से लिए गए कुछ कथानकों को चित्रित किया गया है तथा यहां महान धार्मिक मुख द्वार इनसे समृद्ध हैं। पट्टा डक्‍कल के जम्‍मू लिंग मंदिर में नृत्‍य करते हुए शिव और नंदी बैल के सुंदर चित्र हैं और पार्वती उनके बगल में खड़ी हैं। उत्तरी शैली में बने स्‍तंभ के साथ यहां घोड़े की नाल के आकार के प्रक्षेपण प्रवेश द्वारा से बाहर की ओर निकलते हैं।
चंद्र शेखर और कदासिधेश्‍वर यहां के दो अन्‍य प्रमुख मंदिर है और पट्टा डक्‍कल में दो सुंदर हाथियों के साथ राष्‍ट्र कूट युग के जैना बसदी भी हैं।
स्रोत: राष्‍ट्रीय पोर्टल

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