भारत एक गहरे इतिहास वाला देश है। यहां की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत ने सभी को सम्मोहित कर रखा है। भारत के सभी राज्यों में कोई न कोई सांस्कृतिक इतिहास अवश्य है। यदि आपको कभी हैदराबाद जाने का अवसर मिले जो आंध्र प्रदेश की राजधानी है, तो आप शायद 400 साल पुराने भव्य और प्रभावशाली गोलकोंडा किले को देखने का मोह नहीं छोड़ सकेंगे जो शहर के पश्चिमी सिरे पर स्थित है। यह किला तेरहवीं शताब्दी में काकतिया राजवंश द्वारा निर्मित किया गया था। गोलकुंडा या गोलकोण्डा दक्षिणी भारत में, हैदराबाद नगर से पाँच मील पश्चिम स्थित एक दुर्ग तथा ध्वस्त नगर है। पूर्वकाल में यह कुतबशाही राज्य में मिलनेवाले हीरे-जवाहरातों के लिये प्रसिद्ध था। इस दुर्ग का निर्माण वारंगल के राजा ने 14वीं शताब्दी में कराया था। बाद में यह बहमनी राजाओं के हाथ में चला गया और मुहम्मदनगर कहलाने लगा। 1512 ई. में यह कुतबशाही राजाओं के अधिकार में आया और वर्तमान हैदराबाद के शिलान्यास के समय तक उनकी राजधानी रहा। फिर 1687 ई. में इसे औरंगजेब ने जीत लिया।
यह ग्रैनाइट की एक पहाड़ी पर बना है जिसमें कुल आठ दरवाजे हैं और पत्थर की तीन मील लंबी मजबूत दीवार से घिरा है। यहाँ के महलों तथा मस्जिदों के खंडहर अपने प्राचीन गौरव गरिमा की कहानी सुनाते हैं। मूसी नदी दुर्ग के दक्षिण में बहती है। दुर्ग से लगभग आधा मील उत्तर कुतबशाही राजाओं के ग्रैनाइट पत्थर के मकबरे हैं जो टूटी फूटी अवस्था में अब भी विद्यमान हैं। भारत का सर्वाधिक असाधारण स्मारक माना जाने वाला गोलकोंडा किला अपने समय की ''नवाबी'' संस्कृति का अद्भुत चित्रण करता है। ''चरवाहे की पहाड़ी'' या ''गोला कोंडा'', जिसे तेलुगु में लोकप्रिय रूप से यह नाम दिया गया है और इसके साथ एक रोचक इतिहास जुड़ा हुआ है। एक दिन एक चरवाहा बालक पहाड़ी पर एक मूर्ति पा गया, जिसे मंगलावरम कहा गया था। यह समाचार तत्कालीन शासक काकतिया राजा तक पहुंचा। राजा ने उस पवित्र स्थान के चारों ओर मिट्टी का एक किला बनवा दिया और उनके उत्तरवर्तियों ने भी इस प्रथा को जारी रखा।
आगे चलकर गोलकोंडा का किला बहमनी राजवंश के अधिकार में आ गया। कुछ समय बाद कुतुब शाही राजवंश ने इस पर कब्जा किया और गोलकोंडा को अपनी राजधानी बनाया। गोलकोंडा के किले में मोहम्मद कुल कुतुब शाह के समय की अधिकांश भव्यता अभी बची हुई है। इसके पश्चात की पीढियों ने गोलकोंडा किले को कई तरह से संपुष्ट किया और इसके अंदर एक सुंदर शहर का निर्माण कराया। गोलकोंडा किले को 17वीं शताब्दी तक हीरे का एक प्रसिद्ध बाजार माना जाने लगा। इससे दुनिया को कुछ सर्वोत्तम ज्ञात हीरे मिले, जिसमें ''कोहिनूर'' शामिल है। इसकी वास्तुकला के बारीक विवरण और धुंधले होते उद्यान, जो एक समय हरे भरे लॉन और पानी के सुंदर फव्वारों से सज्जित थे, आपको उस समय की भव्यता में वापस ले जाते हैं। गोलकोंडा किले की भव्य वास्तुकला चिर स्थायी है और यह बात प्रवेश द्वार पर बने सुंदर और मजबूत लोहे की बड़ी छड़ों से स्पष्ट हो जाती है जो इस पर आक्रमण करने वाली सेनाओं को इससे टकराने से भय पैदा करती हैं। इस प्रवेश द्वार के आगे पोर्टिको है, जिसे बाला हिस्सार गेट कहते हैं और यह प्रवेश द्वार अत्यंत भव्य है। आप यहां आकर आधुनिक श्रव्य प्रणाली के प्रभाव से चकित रह जाएंगे जो इस प्रकार बनाई गई है कि हाथ से बजाई गई ताली की आवाज़ बाला हिस्सार गेट से गूंजते हुए किले में सुनाई देती है। वास्तुकारों की अद्भुत योजना यहां हवा के आने जाने की दिशा से स्पष्ट हो जाती है, जो इस प्रकार डिज़ाइन की गई है कि यहां ठण्डी ताजा हवा के झोंके सदा बहते रहते हैं चाहे बाहर आंध्र प्रदेश की तीखी नम गर्मी जारी हो। यहां स्थित रॉयल नगीना गार्डन भी एक देखने लायक स्थान है, साथ ही अंगरक्षकों का बैरक और पानी के तीन तालाब जो 12 मीटर गहरे हैं, जो एक बार बनने के बाद किले में पानी के आंतरिक स्रोत रहे। किले की शानदार भव्यता यहां का दरबार हॉल देख कर समझी जा सकती है, जो हैदराबाद और सिकंदराबाद के दोनों शहरों पर नजर रखते हुए पहाड़ी की छोटी पर बनाया गया है। यहां एक हज़ार सीढियां चढ़ कर पहुंचा जा सकता है और यदि आप यहां चढ़ने का काम पूरा कर लेते हैं तो आपको नीचे प्रसिद्ध चार मीनार का सुंदर दृश्य दिखाई देता है। गोलकोंडा किले के बाहर पत्थरीली पहाडियों पर तारामती गान मंदिर और प्रेमनाथ नृत्य मंदिर नामक दो अलग अलग मंडप हैं, जहां प्रसिद्ध बहनें तारामती और प्रेममती रहती थीं। वे कला मंदिर नामक दो मंजिला इमारत के शीर्ष पर बने एक गोलाकार मंच पर नृत्य कला का प्रदर्शन करती थीं, जो राजा के दरबार से दिखाई देता था। कला मंदिर की भव्यता को दोबारा जीवित करने के प्रयास जारी हैं जो अब कुछ भग्नावस्था में पहुंच गया है। इसके लिए दक्षिण कला महोत्सव का वार्षिक आयोजन किया जाता है। सुंदर गुम्बद वाला कुतुबशाही गुम्बद किले के पास इस्लामी वास्तुकला का अनोखा नमूना प्रस्तुत करता है।
किले का एक आकर्षण यहां होने वाला ध्वनि और प्रकाश का कार्यक्रम है जिसमें गोलकोंडा के इतिहास को सजीव रूप में प्रस्तुत किया जाता है। दृश्य और श्रव्य प्रभावों के विहंगम प्रस्तुतिकरण से गोलकोंडा की कहानी आपको कई सदियों पुराने भव्य इतिहास में ले जाती है। यह कार्यक्रम सप्ताह के एक दिन छोड़कर अगले दिन के अंतराल पर अंग्रेजी और तेलुगु में प्रस्तुत किया जाता है। गोलकोंडा का किला भारतीय सेना की गोलकोंडा सशस्त्र सेना के मौजूदा समय में गर्व से खड़ा है, जो आज यहां उपस्थित है।
आगे चलकर गोलकोंडा का किला बहमनी राजवंश के अधिकार में आ गया। कुछ समय बाद कुतुब शाही राजवंश ने इस पर कब्जा किया और गोलकोंडा को अपनी राजधानी बनाया। गोलकोंडा के किले में मोहम्मद कुल कुतुब शाह के समय की अधिकांश भव्यता अभी बची हुई है। इसके पश्चात की पीढियों ने गोलकोंडा किले को कई तरह से संपुष्ट किया और इसके अंदर एक सुंदर शहर का निर्माण कराया। गोलकोंडा किले को 17वीं शताब्दी तक हीरे का एक प्रसिद्ध बाजार माना जाने लगा। इससे दुनिया को कुछ सर्वोत्तम ज्ञात हीरे मिले, जिसमें ''कोहिनूर'' शामिल है। इसकी वास्तुकला के बारीक विवरण और धुंधले होते उद्यान, जो एक समय हरे भरे लॉन और पानी के सुंदर फव्वारों से सज्जित थे, आपको उस समय की भव्यता में वापस ले जाते हैं। गोलकोंडा किले की भव्य वास्तुकला चिर स्थायी है और यह बात प्रवेश द्वार पर बने सुंदर और मजबूत लोहे की बड़ी छड़ों से स्पष्ट हो जाती है जो इस पर आक्रमण करने वाली सेनाओं को इससे टकराने से भय पैदा करती हैं। इस प्रवेश द्वार के आगे पोर्टिको है, जिसे बाला हिस्सार गेट कहते हैं और यह प्रवेश द्वार अत्यंत भव्य है। आप यहां आकर आधुनिक श्रव्य प्रणाली के प्रभाव से चकित रह जाएंगे जो इस प्रकार बनाई गई है कि हाथ से बजाई गई ताली की आवाज़ बाला हिस्सार गेट से गूंजते हुए किले में सुनाई देती है। वास्तुकारों की अद्भुत योजना यहां हवा के आने जाने की दिशा से स्पष्ट हो जाती है, जो इस प्रकार डिज़ाइन की गई है कि यहां ठण्डी ताजा हवा के झोंके सदा बहते रहते हैं चाहे बाहर आंध्र प्रदेश की तीखी नम गर्मी जारी हो। यहां स्थित रॉयल नगीना गार्डन भी एक देखने लायक स्थान है, साथ ही अंगरक्षकों का बैरक और पानी के तीन तालाब जो 12 मीटर गहरे हैं, जो एक बार बनने के बाद किले में पानी के आंतरिक स्रोत रहे। किले की शानदार भव्यता यहां का दरबार हॉल देख कर समझी जा सकती है, जो हैदराबाद और सिकंदराबाद के दोनों शहरों पर नजर रखते हुए पहाड़ी की छोटी पर बनाया गया है। यहां एक हज़ार सीढियां चढ़ कर पहुंचा जा सकता है और यदि आप यहां चढ़ने का काम पूरा कर लेते हैं तो आपको नीचे प्रसिद्ध चार मीनार का सुंदर दृश्य दिखाई देता है। गोलकोंडा किले के बाहर पत्थरीली पहाडियों पर तारामती गान मंदिर और प्रेमनाथ नृत्य मंदिर नामक दो अलग अलग मंडप हैं, जहां प्रसिद्ध बहनें तारामती और प्रेममती रहती थीं। वे कला मंदिर नामक दो मंजिला इमारत के शीर्ष पर बने एक गोलाकार मंच पर नृत्य कला का प्रदर्शन करती थीं, जो राजा के दरबार से दिखाई देता था। कला मंदिर की भव्यता को दोबारा जीवित करने के प्रयास जारी हैं जो अब कुछ भग्नावस्था में पहुंच गया है। इसके लिए दक्षिण कला महोत्सव का वार्षिक आयोजन किया जाता है। सुंदर गुम्बद वाला कुतुबशाही गुम्बद किले के पास इस्लामी वास्तुकला का अनोखा नमूना प्रस्तुत करता है।
किले का एक आकर्षण यहां होने वाला ध्वनि और प्रकाश का कार्यक्रम है जिसमें गोलकोंडा के इतिहास को सजीव रूप में प्रस्तुत किया जाता है। दृश्य और श्रव्य प्रभावों के विहंगम प्रस्तुतिकरण से गोलकोंडा की कहानी आपको कई सदियों पुराने भव्य इतिहास में ले जाती है। यह कार्यक्रम सप्ताह के एक दिन छोड़कर अगले दिन के अंतराल पर अंग्रेजी और तेलुगु में प्रस्तुत किया जाता है। गोलकोंडा का किला भारतीय सेना की गोलकोंडा सशस्त्र सेना के मौजूदा समय में गर्व से खड़ा है, जो आज यहां उपस्थित है।
स्रोत: राष्ट्रीय पोर्टल
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