छत्तीसगढ़ राज्य के स्वतंत्रता सेनानियों में से एक ठाकुर निरंजन, - Study Search Point

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छत्तीसगढ़ राज्य के स्वतंत्रता सेनानियों में से एक ठाकुर निरंजन,

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ठाकुर निरंजन सिंह
ठाकुर निरंजन सिंह (जन्म-जनवरी1903 नरसिंहपुर ज़िला मध्य प्रदेश मृत्यु-1968) मध्य प्रदेश के प्रमुख राजनीतिक व्यक्ति थे।

जीवन परिचय

ठाकुर निरंजन सिंह का जन्म नरसिंहपुर ज़िले में जनवरी 1903 हुआ था। ठाकुर निरंजन शिक्षा प्राप्त करने के लिए खंडवा भेजे गए तो वहाँ राष्ट्रवादी कवि पंडित माखनलाल चतुर्वेदी के प्रभाव में आ गए। फलतः 1921 के असहयोग आंदोलन में विद्यालय का बहिष्कार कर दिया और 1923 के नागपुर के झंग सत्याग्रह में भाग लेने पर गिरफ्तार कर लिए गए। आंदोलन धीमा पड़ने पर पुनः अध्ययन करने के लिए जब वे आगरा पहुंचे तो वहाँ उन्हें प्रेरित करने के लिए श्रीकृष्णदत्त पालीवाल पहले से मौजूद थे। ठाकुर निरंजन सिंह का समय राष्ट्रीय आंदोलन में भाग लेने और जेल की सजाएं काटने में बीतता रहा। 1930193119321933 और 1940 में उन्हें गिरफ्तार किया गया। 1942 में वे भूमिगत हो गए थे। बाद में गिरफ्तार करके सेंट्रल जेल में डाले गए तो बरसात की एक रात में जेल की ऊँची दीवारों को लांघकर फरार हो गए। फरारी का यह जीवन उन्होंने साधु का वेश धारण करके विदेशी सरकार के विरुद्ध आंदोलन को गति प्रदान करने में बिताया। बाद में जब पकड़े गए तो पैरों में बेड़ी और हाथों में हथकड़ी डालकर उन्हें 6 महीने अलग कोठरी में बंद रखा गया था। ठाकुर निरंजन सिंह की मृत्यु 1968 में हुई थी।

लाल कालेन्द्र सिंह
जीवन परिचय 
लाल कालेन्द्र सिंह का नाम छत्तीसगढ़ राज्य में हुए असंख्य शूरवीरों के साथ लिया जाता है। बस्तर में अंग्रेज़ी दासता के विरुद्ध संघर्ष करने वालों में अनगिनत शूरवीरों का योगदान है, जिनके नाम केवल इतिहास में नहीं, जन-जन के मानव पटल में भी अंकित है। लाल कालेन्द्र सिंह उन्हीं में से एक थे। ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध सन 1910 में एक महान जनक्रान्ति का विस्फोट छत्तीसगढ़ में बस्तर के वनांचल में हुआ। स्थानीय भाषा में यह क्रान्ति 'भूमकाल' के नाम से आज भी विख्यात है। इस क्रान्ति के सूत्रधार, सिपहसालार और प्रेरणा स्रोत लाल कालेन्द्र सिंह थे। बस्तर के राजवंश में जन्म लेने के बावजूद भी लाल कालेन्द्र सिंह में राजशाही दंभ नहीं था। महल की सुख सुविधाओं के बदले उन्होंने असुविधाओं को झेलते देहात में रहना स्वीकार किया था, ताकि वनवासियों के बीच उनके अपने बनकर रह सकें।
सन 1808 में परजा जनजाति के लोगों के सामूहिक नरसंहार और बलात्कार की घटना ने समूचे बस्तर को दहला दिया था। पहले से क्षुब्ध और क्रुद्ध, पूरा का पूरा बस्तर ज्वालामुखी के समान भीषण विस्फोट के लिये तैयार हो चुका था। रानी के सुझाव पर, नेता नार के वीर गुंडा धुर को भूमकाल का नायक निर्वाचित किया गया। प्रत्येक परगने से एक-एक व्यक्ति को नेता नियुक्त किया गया था। कालेन्द्र सिंह के नेतृत्व में क्रांति की सुनियोजित रुपरेखा तैयार हो गयी और 1 फ़रवरी, 1910 को सम्पूर्ण बस्तर में विद्रोह का बिगुल बज उठा। रानी सुबरन कुंवर ने क्रांतिकारियों की सभा में मुरिया राज की स्थापना की घोषणा की। वनवासियों ने नये जोश के साथ अंग्रेज़ आधिपत्य वाले शेष स्थानों को अधिकार में करने के लिए पूरी ताकत झोंक दी। छोटे डोंगर में क्रांतिकारियों एवं अंग्रेज़ी सेना के बीच दो बार मुठभेड़े हुई। अपनी क्रांतिकारी गतिविधियाँ चलाने वाले लाल कालेन्द्र सिंह पकड़ लिये गए थे और उन्हें आजीवन कारावास का दंड मिला। दंड भोगते-भोगते वनवासियों की आंखों के तारे वीर कालेन्द्र सिंह ने 1916 में अपनी आंखे सदा के लिये मूंद लीं और अपनी मातृभूमि के नाम शहीद हो गये।


वामनराव बलिराम लाखे
जीवन परिचय
वामनराव बलिराम लाखे (जन्म- 17 सितम्बर1872रायपुरछत्तीसगढ़; मृत्यु- 21 अगस्त1948भारत की आज़ादी के लिए संघर्ष करने वाले छत्तीसगढ़ राज्य के स्वतंत्रता सेनानियों में से एक थे। 1913 में लाखे जी ने अपना कार्य क्षेत्र सहकारी आंदोलन को बनाया था, जिससे वे जीवन पर्यन्त जुड़े रहे। सहकारिता आंदोलन के द्वारा दु:खी और शोषित किसानों की सेवा तथा सहयोग करना उनका प्रमुख उद्देश्य था। सन 1915 में रायपुर में 'होमरूल लीग' की स्थापना की गई थी। वामनराव बलिराम लाखे जी उसके संस्थापक थे। छत्तीसगढ़ में शुरू में जो राजनीतिक चेतना फैली, उसमें लाखे जी का बहुत बड़ा योगदान था। उन्होंने अपना सारा जीवन राष्ट्रीय आन्दोलन और सहकारी संगठन में बिताया। वामनराव बलिराम लाखे ने रायपुर से मैट्रिक उत्तीर्ण किया। माधवराव सप्रे भी उस समय उसी स्कूल में पढ़ते थे। दोनों में दोस्ती हो गई। सन 1900 में जब माधवराव सप्रे ने 'छत्तीसगढ़ मित्र' नाम से मासिक पत्रिका का प्रकाशन किया तो लाखे जी उस पत्रिका के प्रकाशक थे। छत्तीसगढ़ की यह पहली पत्रिका थी। सिर्फ तीन साल तक यह पत्रिका चली, पर उन तीन सालों के भीतर ही उस पत्रिका के माध्यम से राष्ट्रीय जागरण का युग आरम्भ हो गया था।

सहकारिता आंदोलन

वर्ष 1913 में वामनराव बलिराम लाखे ने अपना कार्यक्षेत्र सहकारी आंदोलन को बनाया, जिससे वे जीवन पर्यन्त जुड़े रहे। सहकारिता आंदोलन के द्वारा इस अंचल के दु:खी और शोषित किसानों की सेवा तथा सहयोग करना उनका प्रमुख उद्देश्य था। 1913 में ही उन्होंने रायपुर में 'को-आपरेटिव सेन्ट्रल बैंक' की स्थापना की थी, जिसके वे 1936 तक अवैतनिक सचिव के पद पर रहकर कठोर परिश्रम तथा निष्ठा के साथ कार्य करते रहे और संस्था को उन्नति के सर्वोच्च शिखर तक पहुंचा दिया। 1937 से 1940 तक वे इस संस्था के अध्यक्ष पद पर रहे। उनके प्रयास से ही 1930 में बैंक का अपना स्वयं का भवन बनाया गया था। सन 1915 में रायपुर में 'होमरूल लीग' की स्थापना की गई थी। लाखे जी उसके संस्थापक थे। छत्तीसगढ़ में शुरू में जो राजनीतिक चेतना फैली थी, उसमें लाखे जी का बहुत बड़ा योगदान था। उन्होंने अपना सारा जीवन राष्ट्रीय आन्दोलन और सहकारी संगठन में बिताया। 1915 में बलौदा बाज़ार में 'किसान को-आपरेटिव राइस मिल' की स्थापना उन्होंने की थी। लाखे जी को अंग्रेज़ हुकूमत ने किसानों की सेवाओं के लिए 1916 में 'रायसाहब' की उपाधि दी थी।

असहयोग आन्दोलन में भागीदारी

वामनराव बलिराम लाखे ने 1920 में 'रायसाहब' की पदवी त्याग करके असहयोग आन्दोलन की शुरुआत की। 1920 में नागपुर में महात्मा गाँधी ने असहयोग का प्रस्ताव रखा था। लाखे जी उस अधिवेशन से लौटने के बाद स्वदेशी प्रचार में सक्रिय हो गये और रायसाहब की पदवी लौटाकर असहयोग आन्दोलन में सक्रिय हो गये। लोगों ने उन्हें 'लोकप्रिय' की और एक उपाधि दी थी। सन 1921 में माधवराव सप्रे ने रायपुर में 'राष्ट्रीय विद्यालय' की स्थापना की। उस विद्यालय के मंत्री लाखे जी बने। लाखे जी खादी का प्रचार करने लगे। 1921 में अक्टूबर के महीने में रायपुर में "खादी सप्ताह" मनाया गया था, जिसके प्रमुख संयोजकों में से एक थे लाखे जी। न जाने कितने लोग उस वक्त उत्साह के साथ खादी पहनने लगे थे। 1922 में वामनराव बलिराम लाखे 'रायपुर ज़िला कांग्रेस' के अध्यक्ष निर्वाचित हुए और इसी समय में उन्होंने नियमित खादी वस्त्र पहनने का संकल्प लिया तथा विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार का संकल्प लिया। 1930 में जब महात्मा गाँधी ने आन्दोलन शुरू किया तो रायपुर में इस आन्दोलन का नेतृत्व वामनराव बलिराम लाखे, ठाकुर प्यारेलाल सिंह, मौलाना रउफ़, महंत लक्ष्मीनारायण दास और शिवदास डागा कर रहे थे। ये पांचों रायपुर में स्वाधीनता के आन्दोलन में 'पांच पाण्डव' के नाम से विख्यात हो गये थे।
वामनराव बलिराम लाखे ने जब एक सभा में अंग्रेज़ी शासन को गुण्डों का राज्य कहा तो उन्हें गिरफ़्तारकर लिया गया और उन्हें एक साल की सज़ा तथा 3000 रुपये जुर्माना हुआ। 1941में व्यक्तिगत सत्याग्रह में लाखे जी को सिमगा में सत्याग्रह करते हुए गिरफ़्तार किया गया और चार महीनों की सजा दी गई। उन्हें नागपुर जेल में रखा गया था। उस वक्त लाखे जी 70 वर्षके थे। छ: साल बाद जब आज़ादी मिली तो 15 अगस्त को रायपुर के गाँधी चौक में वामनराव बलिराम लाखे ने तिरंगा झंडा फरहाया।
वामनराव बलिराम लाखे जी का निधन 21 अगस्त1948 को हुआ।

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