#मॉस्को दौरे पर गए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी #अफगानिस्तान में संसद का उद्घाटन कर भारत लौटने वाले थे। लेकिन इस बीच उन्होंने ट्वीट कर #पाकिस्तान जाने की बात कही और भारत-पाकिस्तान में हलचल मच गई। पीएम मोदी के इस कदम को लेकर सुषमा स्वराज ने ट्वीट किया है कि इसे कहते हैं राजनेता, पड़ोसी से ऐसे ही रिश्ते होने चाहिए। सुषमा के ट्वीट से अलग कांग्रेस इसे मुद्दा बना रही है वहीं जनता #सोशलमीडिया पर इस कदम की तारीफ कर रही है।
सीमा पार जाकर पाकिस्तान में आधिकारिक यात्रा करना भारत के प्रधानमंत्रियों के लिए आसान नहीं रहा है। #प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब 2016 में पाकिस्तान में हुई 19वीं सार्क समिट में हिस्सा लिया था, तो वह चौथे ऐसे प्रधानमंत्री बन गए थे, जिन्होंन पाकिस्तान का दौरा किया हो। मजेदार बात यह है कि यह तीसरा मौका था, जब 1985 में गठित इस ग्रुप की सार्क समिट पाकिस्तान में हुई हो। इससे पहले तीन अन्य प्रधानमंत्रियों ने पाकिस्तान का दौरा किया है। जानते हैं इसके बारे में...
जवाहर लाल नेहरू : -
भारत और पाकिस्तान के बीच कश्मीर सहित सभी विवादों को निपटाने के लिए नेहरू ने पहली बार गंभीर प्रयास 25 से 27 जुलाई 1953 में किए थे। नेहरू ने अपने समकक्ष नेता के साथ बातचीत जारी रखने के लिए कराची की यात्री की थी। इसके बाद उन्होंने 19 से 23 सितंबर 1960 में दूसरी बार सिंधु जल समझौते को लेकर पाकिस्तान की यात्रा की थी। इस दौरान उन्होंने कराची, रावलपिंडी और लाहौर सहित कई जगहों की यात्रा की, जहां उन्हें देखने के लिए भारी भीड़ जमा हुई।
राजीव गांधी : -
इसके 28 साल बाद राजीव गांधी ने बतौर प्रधानमंत्री इस्लामाबाद में आयोजित हुई सार्क समिट में शिरकत की थी। बेनजीर भुट्टे के नेतृत्व में एक दशक बाद पाकिस्तान में कोई लोकतांत्रिक सरकार बनी थी। इसके एक महीने बाद ही राजीव गांधी ने यह यात्रा की थी। इस दौरान दोनों नेताओं ने कई द्विपक्षीय समझौतों पर हस्ताक्षर किए थे। इसमें दोनों देशों के परमाणु संयंत्रों पर हमले को प्रतिबंधित करना, सांस्कृतिक सहयोग को बढ़ाना शामिल था। इसके बाद 16-17 जुलाई 1989 को उन्होंने दूसरी बार यात्रा की थी। घरेलू राजनीति के दबाव में दोनों नेता कुछ अधिक नहीं कर पाए थे।
अटल बिहारी वाजपेई : -
अटलजी ने बड़ा कदम उठाते हुए 19-20 फरवरी 1999 में लाहौर की यात्रा की और लाहौर-दिल्ली बस सेवा का उद्घाटन किया। वह पैदल चलकर सीमा पार गए, जहां पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने उनका स्वागत किया। इसके कुछ ही महीनों के बाद सेना ने सत्ता पर कब्जा कर लिया और लाहौर घोषणा समाप्त कर दी गई। इसके बाद करगिल युद्ध हुआ।
इसके बाद दूसरी बार उन्होंने 4-6 जनवरी 2004 में 12वें सार्क सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए इस्लामाबाद की यात्रा की। यह वार्ता प्रक्रिया यूपीए-1 में मनमोहन सिंह की सरकार के साथ तक चलती रही, लेकिन 26 नवंबर को मुंबई में हुए हमले के बाद बातचीत बंद हो गई।