सरदार बलदेव जीवन परिचय
सरदार बलदेव सिंह (Sardar Baldev Singh, जन्म:11 जुलाई, 1902 - मृत्यु: 29 जून, 1961) भारत के प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी, राजनीतिज्ञ एवं प्रथम रक्षामंत्री थे। सरदार बलदेव सिंह का जन्म 11 जुलाई, 1902 को एक जाट-सिख परिवार में पंजाब के रोपड़ ज़िले के दुम्मना गाँव में हुआ था।
इनके पिता का नाम इंदर सिंह था, जिन्होंने अपने जीवन की शुरुआत एक सरकारी कर्मचारी के रूप में की थी, लेकिन बाद में वे ठेकेदार बन गये। बलदेव सिंह ने अपनी शिक्षा अम्बाला में पूरी करके खालसा कॉलेज, अमृतसर में अपने पिताजी के साथ कार्य किया। 1930 में पंजाब लौटने पर सरदार बलदेव सिंह ने राजनीति में प्रवेश किया। सरदार बलदेव सिंह का निधन 29 जून, 1961 को दिल्ली में हो गया।
गोपी चन्द भार्गव जीवन परिचय
साभार - भारत कोष
सरदार बलदेव सिंह (Sardar Baldev Singh, जन्म:11 जुलाई, 1902 - मृत्यु: 29 जून, 1961) भारत के प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी, राजनीतिज्ञ एवं प्रथम रक्षामंत्री थे। सरदार बलदेव सिंह का जन्म 11 जुलाई, 1902 को एक जाट-सिख परिवार में पंजाब के रोपड़ ज़िले के दुम्मना गाँव में हुआ था।
गोपी चन्द भार्गव जीवन परिचय
गोपी चन्द भार्गव (Gopi Chand Bhargava; जन्म- 8 मार्च, 1889, पंजाब; मृत्यु- 26 दिसम्बर, 1966) संयुक्त पंजाब के प्रथम मुख्यमंत्री थे। वे 'गाँधी स्मारक निधि' के प्रथम अध्यक्ष, गाँधीवादी नेता तथा स्वतंत्रता सेनानी थे। उनका सम्पूर्ण जीवन एक प्रेरणा स्त्रोत था। गोपी चन्द भार्गव के जीवन का मुख्य उद्देश्य समाज की सेवा था और वे आजीवन इसी कार्य में तत्पर रहे। उन्होंनेमहात्मा गाँधी के साथ देश की आज़ादी की लड़ाई भी लड़ी। गोपी चन्द भार्गव का जन्म 8 मार्च, 1889 को तत्कालीन पंजाब के हिसार ज़िले में हुआ था।
उन्होंने 'लाहौर मेडिकल कॉलेज' से एम.बी.बी.एस. की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद 1913 ई. से चिकित्सा कार्य प्रारम्भ किया था, लेकिन 1919 में जलियाँवाला बाग़ हत्याकाण्ड की घटना के कारण वे राजनीति में आ गए। लाला लाजपत राय, पंडित मदन मोहन मालवीय आदि के विचारों से गोपी चन्द भार्गव बहुत प्रभावित थे। सबसे अधिक उन्हेंमहात्मा गाँधी ने प्रभावित किया था। डॉ. गोपी चन्द भार्गव ने प्रत्येक आंदोलन में भाग लिया और 1921, 1923, 1930, 1940 और 1942 में जेल की सज़ाएँ भोगीं। अपनी निष्ठा और देशभक्ति के कारण डॉ. भार्गव का बड़ा सम्मान था। वे उदार दृष्टिकोण के व्यक्ति थे। जातिवाद पर उनका विश्वास नहीं था। महिलाओं की समानता के वे पक्षपाती थे। कांग्रेस संगठन में वे अनेक पदों पर रहे। 1946 में गोपी चन्द भार्गव पंजाब विधान सभा के सदस्य चुने गए। भारत की आज़ादी और फिर विभाजन के बाद सरदार पटेल के अनुरोध पर उन्होंने सयुंक्त पंजाब के प्रथम मुख्यमंत्री का पद स्वीकार कर जनता की सेवा का प्रण लेते हुए निभाया। गोपी चन्द भार्गव प्रथम बार 15 अगस्त, 1947 से 13 अप्रैल, 1949 तक संयुक्त पंजाब प्रांत के मुख्यमंत्री रहे। फिर वे दूसरी बार18 अक्टूबर, 1949 से 20 जून, 1951 तक और इसके बाद तीसरी बार 21 जून, 1964 से 6 जुलाई, 1964 तक मुख्यमंत्री रहे। डॉ. भार्गव 'गाँधी स्मारक निधि' के प्रथम अध्यक्ष भी रहे थे। उन्होंने गाँधी जी की रचनात्मक प्रवृत्तियों को आगे बढ़ाने के लिये कई कदम उठाए। विभाजन से उत्पन्न उत्तेजना और कटुता के बीच प्रशासन को उचित दिशा की ओर ले जाने में उन्होंने महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। 26 दिसम्बर, 1966 ई. को डॉ. गोपी चन्द भार्गव का निधन हुआ।
शहीद बलवंत सिंह जीवन परिचय
शहीद बलवंत सिंह (जन्म: 16 सितंबर, 1882 ई. जालंधर ज़िले खुर्दपुर गांव; मृत्यु मार्च, 1917 लाहौर जेल) एक स्वतंत्रता सेनानी थे और उन्होंने 10 वर्ष तक अंग्रेजों की सेना में थे। 1905 में सेना से त्यागपत्र दे दिया और धार्मिक क्रियाकलापों में लग गए। कुछ समय बाद बलवंत सिंह अमेरिका होते हुए कनाडा पहुंचे। वहां उन्होंने देखा कि भारत की दासता के कारण और जातीय भेदभाव से भारत से गए लोगों के साथ बहुत बुरा बर्ताव किया जाता है। उन्होंने इसके विरोध में आवाज़ उठाई, किन्तु उसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा। अब उनको विश्वास हो गया कि भारत से अंग्रेजों की सत्ता समाप्त होने पर ही इस भेदभाव का अंत संभव है। बलवंत सिंह ‘ग़दर पार्टी’ के संपर्क में आए। ‘कामागाटा मारु’ जहाज से भारत के लोगों को कनाडा के तट पर उतारने का प्रयत्न करने वालों में वे भी सम्मिलित थे। भारत आकर उन्होंने पंजाब में लोगों को विदेशी सरकार के विरुद्ध संगठित करने का प्रयत्न किया। वहां के लेफ्टिनेंट गवर्नर माइकल डायर ने लिखा कि बलवंत सिंह पंजाब में राजद्रोह फैला रहे थे।
बलवंत सिंह बैंकाक गए हुए थे कि उन पर कनाडा के सिखों के विरुद्ध काम करने वाले हॉपकिन्सन की हत्या में सम्मिलित होने का आरोप लगाया गया। 1915 में गिरफ्तार हुए और ब्रिटिश सरकार को सौंप दिए गए। दूसरे ‘लाहौर षड्यंत्र केस’ में उन पर भी मुकदमा चला और मार्च, 1917 में लाहौर जेल में फांसी दे दी गई।
बलराज भल्ला जीवन परिचय
बलराज भल्ला (Balraj Bhalla ; जन्म- 10 जून, 1888, पंजाब; मृत्यु- 26 अक्टूबर, 1956) भारत के प्रसिद्ध क्रांतिकारियों में से एक थे। इनके पिता महात्मा हंसराज प्रसिद्ध शिक्षाशास्त्री और 'डी. ए. वी. कॉलेज', लाहौर के प्रथम प्रधानाचार्य थे। बलराज भल्ला बड़े ही साहसिक थे और जोखिम उठाने को सदा तैयार रहते थे। जीवन के अंतिम दिनों में वे गाँधीजी के अनुयायी हो गए थे। क्रांतिकारी बलराज भल्ला का जन्म 10 जून, 1888 ई. को पंजाब के गुजरांवाला ज़िले में हुआ था। महात्मा हंसराज इनके पिता थे, जो एक प्रसिद्ध शिक्षाशास्त्री और 'डी.ए.वी. कॉलेज', लाहौर के प्रथम प्रधानाचार्य थे।
बलराज भल्ला ने 1911 ई. में एम. ए. की परेक्षा पास की थी, परंतु रासबिहारी बोस और खुदीराम बोस आदि के प्रभाव से वे छोटी उम्र में ही क्रांतिकारी आंदोलन में सम्मिलित हो गए थे। इस कारण उनकी विश्वविद्यालय की डिग्रियाँ वापस ले ली गईं। बलराज बड़े साहसी थे और बड़े से बड़ा खतरा उठाने के लिए तैयार रहते थे। उनका विश्वास था कि स्वतंत्रता के पवित्र उद्देश्य की पूर्ति के लिए साम्राज्यवाद के कुछ प्रतिनिधियों की जान लेने या सरकारी बैंकों को लूटने में कोई बुराई नहीं है। वाइसराय की गाड़ी पर बम फेंकने के अभियोग में वर्ष 1919 में बलराज भल्ला को तीन वर्ष की सज़ा हुई थी। दूसरे 'लाहौर षड्यंत्र केस' में भी उन पर मुकदमा चला था और कठोर करावास की सज़ा उन्हें दी गई। बलराज भल्ला भारत के ही प्रसिद्ध क्रांतिकारी लाला लाजपतराय के अनुयायी थे।अपने कार्यों के लिए सहयोग प्राप्त करने के उद्देश्य से बलराज भल्ला ने एक बार गुप्त रूप से जर्मनी की भी यात्रा की थी। जीवन के अंतिम दिनों में बलराज भल्ला का राजनीतिक हिंसा पर से विश्वास उठ गया था और वे राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के अहिंसक मार्ग के अनुयायी बन गए थे। 26 अक्टूबर, 1956 ई. को बलराज भल्ला का देहांत हुआ।साभार - भारत कोष