केरल का इतिहास - Study Search Point

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केरल एक भारतीय राज्य, जो भारत के दक्षिण-पश्चिम सीमा पर स्थित है। इसकी राजधानी तिरुवनन्तपुरम (त्रिवेन्द्रम) है। केरल को 'भारत का मसालों का बगीचा' कहा जाता है। यह मलय पर्वत की क्रोड में बसा हुआ प्रदेश है, जिसमें भूतपूर्व त्रावणकोर और कोचीनकी रियासतें सम्मिलित हैं!


केरल का इतिहास
  • सम्राट अशोक के शिलालेख 2 में पांड्य, सातियपुत्र और केरल राज्यों का उल्लेख है। ताम्रपर्णी नदी तक इनका विस्तार माना गया है।
  • परवर्ती काल में केरल को 'चेर' भी कहा जाता था, जो केरल का रूपांतर मात्र है।
केरल की मुख्य नदियाँ 'मुरला', 'ताम्रपर्णी', 'नेत्रवती' और 'सरस्वती' आदि हैं। इतिहासकार हेमचंद्र रायचौधरी के अनुसार उड़ीसा मेंमहानदी के तट पर स्थित वर्तमान सोनपुर के पास के प्रदेश को भी केरल कहते थे, क्योंकि यहाँ स्थित 'ययाति नगरी' से केरल युवतियों का सम्बंध धोई कवि ने अपने 'पवनदूत' नामक काव्य में बताया है; किंतु यह तथ्य संदेहास्पद है।

राज्य का निर्माण

स्‍वतंत्र भारत में जब छोटी-छोटी रियासतों का विलय हुआ, तब त्रावनकोर तथा कोचीन रियासतों को मिलाकर 1 जुलाई1949 को 'त्रावनकोर कोचीन' राज्‍य बना दिया गया, लेकिन मालाबार मद्रास प्रांत (वर्तमान चेन्नई) के अधीन ही रहा। 'राज्‍य पुनर्गठन अधिनियम', 1956 के अंतर्गत 'त्रावनकोर-कोचीन राज्‍य तथा मालाबार' को मिलाकर 1 नवंबर1956 को 'केरल राज्‍य' का निर्माण किया गया। हिन्दुओं और मुसलमानों के अतिरिक्त यहाँ ईसाई भी बड़ी संख्या में रहते हैं। इस राज्य का क्षेत्रफल 38863 वर्ग कि.मी. है।

भौगोलिक स्थिति

पूर्व में ऊंचे पश्चिमी घाट और पश्चिम में अरब सागर के मध्य में स्थित इस प्रदेश की चौड़ाई 35 कि. मी. से 120 कि. मी.तक है। भौगोलिक दृष्टि से केरल पर्वतीय क्षेत्रों, घाटियों, मध्‍यवर्ती मैदानों तथा समुद्र का तटवर्ती क्षेत्र हैं। केरल नदियों और तालाबों के सम्बंध में बहुत ही समृद्ध है। केरल में 44 नदियां बहती हैं जिनमें 41 नदियाँ पश्चिम की ओर और तीन पूर्व की ओर बहने वाली नदियाँ हैं। ये नदियाँ अपनी सहायक नदियों और उपधाराओं के साथ केरल की प्राकृतिक संपदा को बढ़ाती हैं। समुद्री झीलें केरल का मुख्य आकर्षण हैं। आर्थिक दृष्टि से भी प्राकृतिक संसाधन बहुत म‍हत्‍वपूर्ण हैं। उत्तरी केरल राज्य के एक अंत:क्षेत्र दक्षिण भारत में माहि नगर स्थित है।
केरल राज्य में गर्म मौसम है क्योंकि यह भूमध्यरेखा से मात्र 8 डिग्री के अंतराल पर स्थित है। केरल राज्य की जलवायु की मुख्य विशेषता है- शीतल मन्द हवा और भारी वर्षा। पश्चिमी मानसून से प्रमुख वर्षा काल प्रारम्भ होता है। दूसरा वर्षाकाल उत्तरी-पश्चिमी मानसून है । प्रत्येक वर्ष लगभग 120 से लेकर 140 दिन तक वर्षा होती रहती है । केरल की औसत वार्षिक वर्षा 3017 मिली मीटर मानी जाती है । केरल में भारी वर्षा से बाढ़ भी आती हैं जिससे जन और धन की भी बहुत हानि होती है ।

अर्थव्यवस्था

भौगोलिक और भौगर्भिक कारक केरल की अर्थव्यवस्था को गंभीर रूप से प्रभावित करते हैं। यहाँ की सघन आबादी के लिए उपलब्ध कृषि योग्य भूमि काफ़ी नहीं है। इस राज्य में जीवाश्मईधनों और खनिजों के प्रमुख भंडारों की भी कमी है। यहाँ सिर्फ इल्मेनाइट (टाइटेनियम का प्रमुख अयस्क), रयूटाइल (टाइटेनियम ऑक्साइड), मोनाजाइट (सीरियम और थोरियम फास्फेट युक्त खनिज) हैं, जो समुद्र तट की रेत में पाए जाते हैं। केरल में जलविद्युत की काफ़ी संभावनाएँ हैं। इडुक्की कॉम्पलेक्स विशालतम विद्युत उत्पादन संयंत्र है। केरल राज्य में कृषि की विशेषता है कि यहाँ व्‍यापारिक फ़सलें अधिक उगाई जाती हैं। राज्‍य के लगभग 50 प्रतिशत नागरिक कृषि पर निर्भर है। नारियल, रबड, काली मिर्च, अदरक, चायइलायची, काजू तथा कॉफी आदि का उत्पादन केरल में प्रमुख रूप से होता है। दूसरी फ़सलों में सुपारी, केला, अदरक तथा हल्‍दी आदि हैं। केरल राज्‍य में जायफल, दालचीनी, लौंग आदि मसालों के वृक्ष भी उगाए जाते हैं। चावल तथा टैपियोका केरल की मुख्‍य खाद्य फ़सलें हैं।

 

पर्यटन

पर्यटन गतिविधियों के लिए केरल में स्‍थायी और सफल वृद्धि के लिए अपेक्षित वातावरण पहले से विद्यमान है। पर्यटन क्षेत्र के लिए महत्‍वपूर्ण तत्‍व है - प्राकृतिक सौंदर्य, सामान्‍य जलवायु, स्‍वच्‍छ पर्यावरण, मैत्री भाव वाले शांतिप्रिय लोग हैं जो सांस्‍कृतिक विविधता के प्रति बेहद सहिष्‍णु हैं और अनूठे पर्यावरण को निर्मित करने की क्षमता रखते हैं। केरल देश में सर्वप्रिय पर्यटन स्‍थल के रूप में उभरा है। समुद्र तट, गर्म मौसम, समुद्री झीलें, पर्वतीय स्‍थल, जल प्रपात, वन्‍य जीवन, आयुर्वेद, वर्ष भर त्‍योहार तथा विविध पेड़ पौधे केरल को पर्यटकों के लिए एक अनूठा गंतव्‍य स्‍थल बनाते हैं।

  • पर्यटन विभाग, केरल पर्यटन विकास निगम, ज़िला पर्यटन संवर्द्धन परिषद, बेकल पर्यटन विकास निगम, स्‍थानीय प्रशासनों तथा निजी क्षेत्र की पर्यटन में महत्‍वपूर्ण भूमिका है। वर्तमान में जो मुख्‍य क्षेत्र विकास के लिए देखे जा रहे है: वे हैं ग्रामीण पर्यटन, माइस पर्यटन (एम.आई.सी.ई - मीटिंग, इंसेंटिव, कन्‍वेंशस तथा इवेंट्स/एक्‍सीबीशन ट्रेड शोज़) यानी - बैठक, प्रोत्‍साहन, सम्‍मेलन और प्रदर्शनियां/व्‍यापार प्रदर्शनियां, सांस्‍कृतिक पर्यटन, विरासत पर्यटन, पर्यावरण पर्यटन तथा चिकित्‍सा पर्यटन।

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