संगीतकार और गायक सचिन देव बर्मन, - Study Search Point

निरंतर कर्म और प्रयास ही सफलता की कुंजी हैं।

demo-image

संगीतकार और गायक सचिन देव बर्मन,

Share This
सचिन देव बर्मन (1 अक्टूबर1906  -  31 अक्टूबर1975हिन्दी और बांग्ला फ़िल्मों के प्रसिद्ध संगीतकार और गायक थे। सचिन देव बर्मन को एस. डी. बर्मन के नाम से भी जाना जाता है। सचिन देव बर्मन भारतीय संगीतकार, जिन्होंने हिंदी फ़िल्म उद्योग पर अमिट प्रभाव छोड़ा है। एस॰डी॰ बर्मन के नाम से विख्यात सचिन देव वर्मन हिन्दी और बांग्ला फिल्मों के विख्यात संगीतकार और गायक थे। उन्होंने अस्सी से भी ज़्यादा फ़िल्मों में संगीत दिया था। उनकी प्रमुख फिल्मों में मिलीअभिमानज्वैल थीफ़गाइडप्यासा,बंदनीसुजाताटैक्सी ड्राइवर जैसी अनेक इतिहास बनाने वाली फिल्में शामिल हैं। संगीत की दुनिया में उन्होंने सितारवादन के साथ कदम रखा। कलकत्ता विश्वविद्यालय से पढ़ाई करने के बाद उन्होंने 1932 में कलकत्ता रेडियो स्टेशन पर गायक के तौर पर अपने पेशेवर जीवन की शुरुआत की। इसके बाद उन्होंने बाँग्ला फिल्मों तथा फिर हिंदी फिल्मों की ओर रुख किया। एक गायक के रूप में उनकी पहली रिकॉर्डिंग बंगाल के क्रांतिकारी संगीतज्ञ कवि क़ाज़ी नज़रुल इस्लाम की एक रचना थी। इसके बाद वर्षों तक दोनों का साथ बना रहा। 1944 में मुंबई आ गए और फ़िल्मों की गतिमान छवियों के प्रति असाधारण संवेदनशीलता के साथ एक अभिनव रचनाकार के रूप में स्वयं को शीघ्र ही स्थापित कर लिया। 
उनका संगीत दृश्यों की सशक्तता बढ़ाया था, जैसा कि ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है में हुआ। यह गीत प्यासा फ़िल्म में गुरुदत्त पर फ़िल्माया गया था। बर्मन ने अपना अधिकतर कार्य देव आनंद की नवकेतन फ़िल्म्स (टैक्सी ड्राइवर, फ़टूश, गाइड, पेइंग गेस्ट, जुएल थीफ़ और प्रेम पुजारी), गुरुदत्त की फ़िल्मों (बाज़ी, जाल, प्यासा, काग़ज़ के फूल) और बिमल रॉय की फ़िल्में (देवदास, सुजाता, बंदिनी) के लिए किया। बहुमुखी प्रतिभा के पार्श्वगायक किशोर कुमार के साथ उनके लंबे और सफल संबंध ने अनगिनत लोकप्रिय संगीत रचनाएं दीं। नौ दो ग्यारह, चलती का नाम गाड़ी, मुनीमजी और प्रेम पुजारी जैसी फ़िल्मों के गीत-संगीत कार और गायक, दोनों के लिए महत्त्वपूर्ण थे। आराधना की सहज सफलता के साथ बर्मन ने फ़िल्म संगीत के आधुनिक दौर में आसानी से प्रवेश किया, यद्यपि पाश्चात्य धुनों के साथ पहला सफल प्रयोग उन्होंने 1950 के दशक के अंतिम वर्षों में फ़िल्म चलती का नाम गाड़ी में ही कर लिया था। जीवन के अंतिम वर्षों में ऋषिकेश मुखर्जी की फ़िल्म अभिमान और उन्हीं की कुछ दूसरी फ़िल्मों के लिए (चुपके-चुपके और मिली) अद्भुत संगीत रचना उनकी महानतम उपलब्धि थी।  'मशाल' का संगीत सुपरहिट हुआ। उसी वक़्त देव आनंद, जिनकी सिने जगत में अच्छी पहचान थी व रुत्बा था, उन्होंने 'नवकेतन बैनर' की शुरुआत की और एस.डी.बर्मन को 'बाज़ी' का संगीत देने को कहा। 1951की 'बाज़ी' हिट फ़िल्म थी, और फिर 'जाल' (1952), 'बहार' और 'लड़की' के संगीत ने बर्मन दा की सफलता की नींव रखी। बर्मन दा ने उसके बाद तो 1974 तक लगातार संगीत दिया। दर्जनों हिन्दी फ़िल्मों में कर्णप्रिय यादगार धुन देने वाले सचिन देव बर्मन के गीतों में जहाँ रूमानियत है वहीं विरह, आशावाद और दर्शन की भी झलक मिलती है। भारतीय सिनेमा जगत में सचिन देव बर्मन को सर्वाधिक प्रयोगवादी एवं संगीतकारों में शुमार किया जाता है। 'प्यासा', 'गाइड', 'बंदिनी', 'टैक्सी ड्राइवर', 'बाज़ी' और 'अराधना' जैसी फ़िल्मों के मधुर संगीत के जरिए एसडी बर्मन आज भी लोगों के दिलों दिमाग पर छाए हुए हैं। अपने क़रीब तीन दशक के फ़िल्मी जीवन में सचिन देव बर्मन ने लगभग 90 फ़िल्मों के लिये संगीत दिया।
बर्मन दा ने संगीत निर्देशन के अलावा कई फ़िल्मों के लिए गाने भी गाए। इन फ़िल्मों में सुन मेरे बंधु रे सुन मेरे मितवामेरे साजन है उस पारअल्लाह मेघ दे छाया दे, जैसे गीत आज भी दर्शकों को भाव विभोर करते हैं। एस. डी. बर्मन ने फ़िल्म अभिनेता निर्माता और निर्देशक देवानंद की फ़िल्मों के लिए सदाबहार संगीत देकर उनकी फ़िल्मो को सफल बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थीं।

पुरस्कार सम्मान
  • 1958- संगीत नाटक एकैडमी एबार्ड
  • 1958- एशिया फिल्म सोसायटी एबार्ड
  • 1970- सर्वश्रेष्ठ पुरुष पार्श्व गायक का राष्ट्रीय पुरस्कार, फिल्म आराधना के लिए
Comment Using!!

Pages

undefined